Thursday 31 December 2015

इन्तजार




ना हो जाये देर कहीं , तुझे आवाज देने में 

पकड ना लूँ किसी और का हाथ, मैं भी यूँही अनजाने में 

मत देना दोष मेरी मोहब्बत  को, तू फिर यूँ ज़माने में

मैंने  तो किया था इन्तजार तेरा, इस दिल को बहुत बहलाने में ....


अब भी वक़्त है, मेरी मोहब्बत का दामन थाम ले 

कुछ मैं भी जी लूँ , कुछ तू भी जी ले 

इस ढलती जवानी के आगोश में 

एक  दिन खाक में मिल जायेगा जिस्म दोनों का 

यूँही एक  दूसरे  के इन्तजार में .... 


By
Kapil  Kumar 

Tuesday 29 December 2015

नारी की खोज --- 9





अभी तक आपने पढ़ा (नारी की खोज भाग –1 , 2 , 3,4 ,5 ,6 ,7 और 8 में ) ...की मैंने  बचपन से आज तक नारी के भिन्न भिन्न रूपों को देखा .......मेरे इस सफर की आगे की कहानी.....



गतांक से आगे .......


इन्सान का चरित्र क्या है  ? अगर इसकी परिभाषा  पूछी जाए तो शायद दुनिया जहां  के लोग इसे सब मिलती जुलती सी बताये , पर जब उसके मापदंड पूछे जाये तो वह  समय , काल , स्थान , परिवेश , धर्म और समुदाय में अलग अलग हो जाते है  ...जैसे किसी विशेष धर्म में एक  से ज्यादा शादी स्वीकृत है , पर दुसरे धर्मो में यह अधर्म है , पाश्चात्य सभ्यता में शादी से पहले किसी के साथ सम्बन्ध स्वीकार्य है , पर भारतीय  समाज में इसे आसानी से हज़म  नहीं किया जाता ।  ऐसे ही किसी विशेष स्थान पर  आप किसी वेश्या के साथ सो सकते है , पर उसी देश में , उसी शहर में , दुसरे स्थान पर यह गैर कानूनी बन जाता है । ...किसी समय में नारी को गुलाम बना कर रखना और उसका शारीरक शोषण करना अपने समय में बहुत सारी सभ्यताओ में स्वीकार्य था ...पर अब ऐसा सोचना भी गुनाह है , ऐसे ही कुछ बाते जो किसी के सामने बोलने पर एक  साधारण तो दुसरे के सामने बोलने पर वे  हमें कुछ और समझ लेते है .... कहने का तात्पर्य यह है , चरित्र की परिभाषा तो वही रहती है ...पर उसका बदलता पैमाना आपको चरित्रहीन  बनाने के लिए काफी होता है ....



अन्जाने  शहर में ,अकेला , तन्हा  , मैं अपनी जिन्दगी गुजर बसर कर रहा था ।  यूँ तो मैंने अपनी यौवन  की जरूरतों को पूरा करने के लिए , अपने आस पास की जवान होती बालाओं पर अपने तरकश के तीर चलाये , पर सब बेकार गए   उनमें  से किसी ने भी मुझे भाव ना दिया , शायद मेरी ढलती जवानी का तकाजा था या मैं शिकार करना भूल चूका था ....


मेरी हालत उस शेर की तरह थी जिसका प्राइम समय ढलान पर था , जवानी अपना दामन छुड़ाने के लिए बेताब, तो , अधेड़ अवस्था अपने आगोश में लेने के लिए बेक़रार थी .. ऐसे में ,मेरे जैसे सिंह को अब तेज दौड़ती हिरनियो का शिकार सिर्फ निराशा और अवसाद के और कुछ ना दे रहा था ... मैंने  भी प्रकृति के नियम को समझा , की शेर अपना प्राइम समय जीने के बाद , दूसरे  जानवर के किये शिकार को छीन  कर  खाने  या फिर उनके खाने के बाद बचा खुचा  खाने  या फिर बीमार अपाहिज़  जानवर का शिकार करने को मजबूर होता है ....ऐसा करना उसकी मज़बूरी है , ख़ुशी या गर्व की बात नहीं .....


ऐसे ही हम कुछ लाचार , बेज़ार  शेर अपना समय सेक्स की अज़ीबों  गरीब बातें करके गुज़ार  लेते थे... मेरी उन बातों  से , खाते पीते शेर , जो अपने घर परिवार और बीवी बच्चो  के साथ रहते थे हमें चरित्रहीन की उपाधि से  गाहे बगाहे से वशीभूत कर देते ...कुछ नए नए जवान हुए शेर , जिन्हें अभी तक  शिकार करने का मौका ना मिला था , हमारी बातों  से अपना दिला बहला लेते ...


ऐसे ही , मेरे साथ काम करने वाले एक  लड़के की नयी नयी शादी हुई , उसे मेरी बातों में बड़ी दिलचस्पी होती ।  एक  दिन मुझे अकेला देख , उसने मुझसे सेक्स के बारे में कुछ इधर उधर के सवाल किये , जो सुनने में बड़े  अटपटे से थे  ।  फिर भी मैंने  समय काटने के लिए उनपर जोक्स  उसे सुना दिए ...अचानक मैंने उससे पुछा तो बता तेरी नयी नयी शादी के दिन कैसे कट रहे है ?


मेरी बात सुन वह  थोडा सीरियस हो गया और मेरी तरफ मुस्कुराते हुए बोला , अगर किसी को ना बोलो तो एक  बात पूछूँ ? उसके इस तरह सवाल पूछने से मेरे कान खड़े हो गए , मैं बोला , क्या समस्या है ? क्या सुहागरात में मजा नहीं आया ?


मेरी बात सुन , उसने कहा ...अभी तक सुहागरात बनी ही नहीं , अब चौंकने  की बारी मेरी थी ।  मैं बोला , अबे तेरी शादी को तो 10 /15  दिन से ऊपर हो गए , तू अब तक क्या कर रहा था ?

उसने मुझे गहरी नज़रों  से देखा औए एक  गहरी सांस ली ।  बोला एक  समस्या है ..मैंने  भी अधीर होते हुए पुछा , अब क्या हुआ ?


वह  बोला मेरी लाख कोशिसों  के बावजूद , मैं अन्दर नहीं डाल पाया , मैंने तो लुब्रिकेंट तक लगा कर देख लिया !  बताओ अब क्या करू ?  मुझे तो अब बीवी का सामना करते शर्म आती है ? मैं हंसा और बोला , बेटा इसमें शर्म की नहीं गर्व की बात है , मेरी बात सुन वह चौंक  पड़ा और बोला कैसे ?


मैंने  उसे समझाया , देख तुम्हारा नाकामयाब होना इस बात का पुख्ता सबूत है , की तू और तेरी बीवी दोनों वर्जिन हो ...अगर एक  भी पुराना उस्ताद होता , तो तेरा काम अब तक हो गया होता ...


उसने अधीर होते हुए कहा , पर अब मैं क्या करूँ ? ..मैं बोला सब्र कर , सब समझा दूंगा , .. देख भाई यह ऐसा है , यहाँ  घोड़ी और घुड़सवार दोनों अनाड़ी है... तू भी अनाड़ी और तेरी बीवी भी ... अब घोड़ी भी अनाड़ी हो और घुड़सवार भी तो , घोड़ी भी इधर उधर दौड़ेगी और घुड़सवार भी गिरेगा ....या तो घोड़ी सीखी  सिखाई हो , जो घुड़सवार को अपनी पीठ पे लाद ले या फिर घुड़सवार मंझा हुआ खिलाडी हो , जो घोड़ी पर नकेल डाल ले , पर तुम दोनों के केस में तो ऐसा है नहीं ?


उसने खीजते हुए पुछा तो इसका हल क्या है ? मैं बोला , भाई ऐसा है , प्रकृति ने नारी को  उसका जननांग  ऐसी जगह लगाया है , जहां बिना उसकी मर्जी के , कोई माई का लाल उसे हासिल नहीं कर सकता ....

इसलिए तुझे उसका सहयोग लेना ही पड़ेगा ..तू ऐसा कर अपना काम शुरू करने से अच्छे से वहां  लुब्रिकेंट लगा और फिर उसकी पीठ के नीचे तकिया लगा देना , फिर उसको बोलना की अपनी टाँगे जितनी हो सके अलग अलग दिशा में  फैला दे , तब तेरा काम बन जाएगा , अगर तब भी ना बने तो तकिये को उसके नितम्ब के बिल्कुल नीचे लगा देना , एक  दो बार की कोशिस में तेरा काम शर्तिया बन जाएगा ....


उसने मेरी बात को बड़े ध्यान से सुना और कई बार खोद खोद कर अपने सारे शक दूर किये ।  मैंने  भी अपने पुराने वक़्त को याद करते हुए उसे एक  से एक  बढ़िया टिप दिए ...

बात आई गई हो गई , मैं भी  अपने काम में वयस्त हो गया ,कुछ दिन मेरा और उसका सामना ना हुआ  ..एक  दिन जब वह  दिखलाई दिया तो मेरी उत्सुकता जगी की , उसका क्या हुआ ? मैंने  जैसे ही उससे पुछा तो भाई कैसा रहा , उसने नज़रें  फेर ली और हँसते हुए बोला , मुझे इस विषय पर बात नहीं करनी और ऐसा  कह वह  वहां से खिसक लिया ..... उसकी चाल बता रही थी , की उसने किला फतह कर लिया था ....

कुछ दिनों में , किसी के मुँह   से सुनने में आया , की वह  मेरे चरित्र का सर्टिफिकेट दूसरे  लोगो को दे रहा था .... ....मुझे उसके इस रवैये  से ना तो हैरानी थी , ना ही शिकायत , क्योकि किसी मर्द के लिए औरत को न भोग पाने की  नाकामी उसकी समाज और खुद की नज़रों  में सबसे ज्यादा शर्मनाक  होती है .... कितनी अजीब बात है ....


समाज में नारी , मर्द की इज्जत दोनों हो स्थितियों  में उछाल देती है , अगर वह  सेक्स के बारे में ज्यादा जाने तो चरित्रहीन और अगर ना जाने तो अनाड़ी गधा ....


जिस घर में  मैंने  कमरा  किराये पर  ले रखा था .. उसी घर में मेरे वाले फ्लोर पर  ,मेरे कमरे से सटा एक  दो बेड रूम का सेट और था .... जिसमे एक  मियां बीवी अपने दो बच्चों  के साथ रहते ....वैसे तो मैं अधिकतर खाना बाहर  ही खाता , पर सुबह की चाय घर पर बनाता और कभी कभी मन होता तो ब्रेड आमलेट भी बना लेता ... यूँ तो मैं घर में रहता ही बमुश्किल था और अपने  कपडे किसी प्रेस करने वाले से धुलवाता , फिर भी अंडरवियर बनियान और कुछ बर्तन मुझे धोने होते थे ....उन्ही की जिद्द पर मैंने  उनकी काम वाली बाई को अपने यहां लगा लिया ...की मैं इस उम्र में , मैं खुद कपडे , बर्तन और पोछा करता अच्छा नहीं लगता .....


खैर  कामवाली बाई आती और अपना काम करके रोज चली जाती , कई दिनों तक मैंने   उसकी सुरत भी ढंग से न देखी  .... एक  दिन सीढियों पर चढ़ते हुए मैंने एक  औरत को अपने कमरे से निकलते देखा तो चौंका , मैंने पूछा  तुम कौन हो ?  उसने हँसते हुए कहा , अरे मैं "लता"  ! जो आपके यहाँ काम करती है ...मैंने  आज उसे पहली बार गौर से देखा ,वह 30 /35 साल  की गेहुंए  रंग की मझले से कद की भरी पूरी , अच्छे नाक नक्श वाली एक  हंसमुख औरत थी ...जो देखने में आम कामवाली बाई जैसी कदापि नहीं लगती थी ...उसके कपडे साफ़ सुथरे और चेहरे पर एक  रौनक   थी उसे मेरी बात पर इतनी हंसी आई , की उसने यह बात सब अड़ोस पड़ोस  में बता दी ...की मैं  अपनी धून में कितना खोया रहता हूँ ...


असल में उसके आने का टाइम जब होता तब मैं ऑफिस में होता ,वह  आती और अपना काम करके चली जाती ।  उसे मेरे कमरे का दरवाजा हमेशा खुला मिलता ,क्योकि मेरे पड़ोस वाली फॅमिली और मेरा आने जाने का एक  दरवाजा कॉमन था  । वैसे भी मैं  अपने कमरे पर  कभी ताला  लगाता ही नहीं था .....क्योकि दिन भर उनके बच्चे और गृहणी घर में रहते ....और कभी जब काम वाली  जल्दी आती मैं नींद में खोया होता , तब वह  बिना आवाज़  किये चुपचाप अपना काम करके चली जाती ...ऐसे में उसका दीदार मैंने  कभी किया ही नहीं था ....


छुट्टी का दिन था और काम वाली बाई जिसका नाम लता था आज देर से आई थी , तब तक  मैं उठ चूका था , पर अलसाया सा नींद में अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था , उसने मुझे यूँ पड़े देखा तो बोली , मैं झाड़ू बाद में लगा दूंगी तब तक मैं कपडे धो लेती हूँ ...मैंने  कोई जवाब न दिया और आँखे बंद कर ऊँघने लगा ...कपड़ो पर  जब थपकी की फटकार लगी तो मेरी आँखे खुली ।  मेने देखा ,वह  घर के पोर्च में, कपडे धोने के लिए उन्हें थपकी से कूट रही थी ....


मैं भी कमरे से बहार निकल आया और पोर्च पर  पड़ी चारपाई पर बैठ बाहर  का नज़ारा  देखने लगा ।  लता अपने कपड़ों  में लगी हुई थी ...की अचानक मेरी नज़र उसपर  पड़ी ...इस वक़्त उसने अपनी साड़ी घुटनों तक चढ़ा रखी थी जिससे उसकी गोरी गोरी पिंडली बाहर  झांक रही थी , फिर जैसे ही उसने कपड़ों  को निचोड़ने के लिए उन्हें मरोड़ा , तो उसका आँचल नीचे गिर गया , उसने आधे गले  का कट ब्लाउज पहन रखा था , जिसमे से उसके उरोज उछल कूद कर निकलने को बेताब हो रहे थे ....


जब जब वह  कपड़ो पर थपकी की फटकार लगाती , तब तब उरोज, थपकी की ताल से ताल मिलते हुए अपनी अपनी जगह उछलते ....


देखने में यह एक  आम सा दृश्य था , जो आज से पहले ,ना जाने कितनी बार, मैंने  घर में कामवाली बाई को ऐसा करते  देखा था ।  पर उस वक़्त मुझे इनमें  कोई रोचकता न लगी थी , आज शायद मेरी उत्सुकता थी या मेरी मर्दानगी की जरुरत , वही सीन देखने से एक  अलग ही आनन्द का अनुभव हो रहा था ....


लता ने मुझे यूँ बैठे देखा तो मुस्कुरा कर बोली , क्यों भैया ! आज जल्दी उठ गए और हँसते हुए अपने काम  में लग गई ?...मैं भी ,कभी उसे, तो कभी बाहर  के नज़ारे को देख अपना टाइम काट रहा था ..करने को कुछ था नहीं , इसलिए उसका नज़ारा ही समय काटने का  एक  मात्र विकल्प था ....


अब मर्द अपने को कितना भी स्मार्ट दिखाए , पर वह  नारी की चील जैसी आँखों से बच नहीं सकता ...लता  ने ना जाने कब और कितनी बार मुझे कनखियों से अपनी और ताड़ते हुए देखा.. यह मुझे उस दिन नहीं... बाद में पता चला ...


लता ने मुझे देखा और मुस्कराने  लगी ।मैने  भी झेप मिटाने के लिए उसकी  तरफ देखा और  हंस दिया ।  कपडे धोते धोते , उसने अचानक ही मुझसे पुछा की मैं यहां क्यों रहता हूँ ? यह कमरा कोई बहुत अच्छा तो नहीं ?असल में वह  कमरे का सेट  बहुत ज्यादा अच्छा ना था ।  होने को साथ में किचन था , पर बाथरूम ना था , सिर्फ इक टॉयलेट वह  भी दुसरे किरायेदार के साथ सांझे में था , ऐसे में मुझे किचन में नहाना पड़ता था ....मैं बोला , असल में मुझे जल्दीबाजी में बस यही सेट किराये पर मिला , फिर मुझे लगा बाद में बदल लूँगा , पर मौका ही नहीं मिला । वह  बोली आप चिंता ना करो , मेरी नजर में एक  कमरा है वह जल्दी खाली  हो जायेगा , तब मैं आपको बता दूंगी और आप उसे देख लेना , उसमे किचन तो नहीं है , पर बाथरूम पूरा है और ऐसा कह वह  खिलखिला कर हंस दी ...


अब जब भी वह  सुबह  काम पर आती , मेरी नींद अचानक खुल जाती , वह  झाड़ू पोछा कर रही होती और मैं एक  आँख बंद किये उसे निहार रहा होता  , पता नहीं उसे यह सब पता होता भी नहीं या उस पर  अपने काम का दबाब होता , जिसके चलते वह  किसी और चीज पर  ध्यान ना देती ...


अब जब भी वह  सफाई करती , मैं उसकी उठी हुई साड़ी से झांकती पिंडलियों या गिरे हुए पल्लू से मचलते उभारो को निहारने का मौका ना छोड़ता यूँही ताका झांकी करते करते 2 /3  महीने बीत गए ।  इस दौरान मेरे मकान मालिक ने , इशारों ही इशारों में अपनी लड़की से मेरी मुलाकात भी करवा दी , वह 19 /20  साल की मासूम सी लड़की थी , जिसपर  अपनी नज़रें  इनायत करने की गुस्ताखी मैंने  नहीं की , मुझे देखने में वह  भली लगी , इसलिए उसके घर वालो की छुट के बावजूद मैंने  उसपर हाथ नहीं रखा ...


शायद शेर को इस उम्र में भी ,किसी का यूँ फैंका हुआ टुकड़ा रास नहीं आया या फिर चरित्र भी कोई चीज है ...


एक  दिन लता ने बताया की वह  कमरा खाली है , शाम को वह  मुझे वह  मकान दिखा देगी ।  पर मुझसे शाम तक रुकने का सब्र ना हुआ और में अकेला ही मकान देखने चला गया । वह  मकान एक  तीन मंजिला मकान था , जिसके सबसे ऊपर के माले पर सिर्फ एक कमरा और उसके साथ अटैच्ड बाथरूम बना था .. गर्मियों के दिन थे , मुझे कमरा हवादार लगा और साथ में पूरी खुली हुई छत थी ...तो मैंने  उस कमरे को किराये पर ले लिया ...

जिन्दगी फिर से अपने ढर्रे पर चलने लगी , यहां  पर न कोई बोलने वाला था ना कोई टोकने वाला , बस महीने के एक  दिन मकान मालिक को किराया दे देता ।  यूँ तो उस मकान में कई और किरायेदार थे , पर मैंने  कभी किसी से कोई बातचीत नहीं की ....क्योकि सबका एक  ही सवाल होता ,की मैंने  अब तक शादी क्यों नहीं की ? अगर की है तो यूँ अकेला छड़ो की तरह क्यों रहता हूँ?


गर्मियों में तो उस मकान में मुझे कोई खामी नजर नहीं आई , पर जब सर्दिया आई और सर्दी की तेज तेज हवा चलती , तब कमरा बहुत ठंडा हो जाता ...लता , पहले की तरह ही मेरे कमरे में आती और अपना काम करके चुपचाप चली जाती ....अब मैं भी उसे ताक ताक के थक चूका था ....दूसरे वह अब कपडे बाथरूम में धोती ...


एक  दिन वह  काम करने थोड़ी देर से आई ।  तब तक मैं उठ कर अपनी दिनचर्या से निबट चूका था ... उस वक़्त वह  कुछ रूवांसी सी लग रही थी ।मैने पूछा क्या बात है ? उसने बताया की, उसका पति कुछ महीने पहले उसे छोड़ कर गल्फ में नौकरी करने चला गया है ... इतने महीने बीतने के बाद  उसकी  खोज खबर  तो  मिली ...पर उसने एक धेला भी नहीं भेजा है .... उसकी वजह से उसके ऊपर कर्ज चढ़ा हुआ है ...वरना वह  यह काम कभी नहीं करती ....


इतने दिनों में , आज मैंने  उससे पहली बार  बात की थी ..उसने अपने आसूं पोछे  और काम में लग गई । मैंने  भी ज्यादा कुरेदना ठीक ना समझा ।  कमरे में झाड़ू मारते हुए , उसने कहा , आज मैं एक  नए घर में काम करने गई तो ,वहां  दो मुस्टंडे रहते थे ,मैंने  तो उन्हें देख कर ही मना कर दिया ....की मैं छड़ों के यहां काम नहीं करती , सिर्फ बीवी बच्चे वालो के यहां काम करती हूँ ...


उसकी इस बात पर  मुझे बहुत जोर की हंसी आई , वह  बोली , इसमें हँसने  की क्या बात है ?

मैं बोला... मैं भी तो छड़ा  हूँ ! मुझसे डर नहीं लगता ...इस पर उसने एक  गहरी नज़र  डाली और बोली , तुमसे कैसा डरना ?

और ऐसा कह उसने पास पड़ी सब्जी काटने की छुरी उठा ली .और मेरी तरफ नचा कर बोली , तुमने कभी कोई गलत हरकत की तो , इससे तुम्हारा काट दूंगी ...अब तक तो मैंने  उसमे कोई दिलचस्पी ना दिखाई थी , पर उसके यह कहने से मुझे उसका इशारा समझ आ गया ...

मैं उसके करीब गया और झाड़ू लेकर एक  तरफ रख दी ... उसने मुझे देखा और छुरी को नाचते हुए बोली , मुझे छूना मत ....मैं उसके और करीब गया और उसके गाल पर हाथ रख दिया और बोला , इतना गुस्सा अच्छा नहीं ......

ऐसा कह मैं कमरे से बहार आकर छत पर टहलने लगा । मैंने ऐसा कर तो दिया था , पर मेरा दिल डर के मारे जोर जोर से धडक रहा था , कहीं  इसने हल्ला मचा दिया , या लोगो को यह बोल दिया की मैं इसे अकेली देख छेड़ रहा था , तब मेरा क्या होगा ...झाड़ू लगाने के बाद , लता बाहर  आई और बोली अन्दर आ जाओ बाहर  ठण्ड है ...मैंने  झाड़ू लगा दी है ...मैं अन्दर आया और चुपचाप फोल्डिंग पलंग पर लेट गया , मेरा दिल डर के मारे अभी भी धक् धक् कर रहा था ...

लता ने कपडे धोकर बाहर  सूखने डाल दिए और कमरे में मेरे बिस्तर के पास आकर खड़ी हो गई और बोली ..अब बोलो तब क्या कह रहे थे ...मैंने  उसे टुकुर टुकुर देखा और उसका हाथ पकड कर बोला , तो अब क्या करोगी , मुझसे डरोगी नहीं ...वह  जैसे इसी का इंतजार कर रही थी , वह  मेरे करीब आई और उसने अपनी बांहे मेरे गले में डाल दी ..मैंने  भी उसे अपने ऊपर बिस्तर पर खींच  लिया ...अभी वह  मेरे साथ बिस्तर पर आई ही थी की , एक  झटके में उठी और बोली , अरे दरवाजा तो बंद कर लो और ऐसा कह उसने खुद दरवाजे का कुंडा लगा दिया और आकर मेरी बाहों में खो गई ....

जब वह  बांहों में आ गई तो मुझे लगा अब सब काम आसन है , मैंने  उसे चूमने के लिए जैसे उसके होठों  को चूमा , तो लगा जैसे किसी ऐश ट्रे में मुँह  लगा दिया , वह  शायद बीड़ी  पीती होगी ... फिर उसके ब्लाउज को हटाया तो , उन्हें देख दिल निराशा में डूब गया , जो बाहर से देखने में किसी गेंद जैसे लगते थे , अन्दर से किसी निचुड़े हुए संतरे जैसे थे , जिनमे ना कोई कठोरता थी ना ही कोई ठहराव  ...लागता था उसके बच्चो ने जैसे अपनी माँ के अन्दर की औरत को पूरी तरह से निचोड़ डाला था ...


फिर भी किसी तरह उससे चिपके चिपके मैंने  उसके गालों,  उरोजो और नाभि को काफी देर तक चूमा ...वह  आँखे बंद किये जैसे सपने में खो गई .. काफी देर चूमा चाटी के बाद ... मेने सोचा  चलो अपनी मंजिल की तरफ बढ़ा जाए ...अभी मैंने  उसकी साड़ी को घुटने से ऊपर उठाया ही था की उसने एक  झटके में मेरा हाथ झटक दिया और बोली अरे क्या करते हो , बच्चा हो गया तो ? और ऐसा कह वह  हंसती हुई बिस्तर से बिजली की तरह उठी और कमरे से बाहर  चली गई ...मैं अपना मन मसोस कर उसे यूँ जाते देखता रहा ....


क्रमश : ..............

By
Kapil Kumar 


Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental”. Please do not copy any contents of the blog without author's permission. The Author will not be responsible for your deeds..


Monday 28 December 2015

नारी की खोज---8


अभी तक आपने पढ़ा (नारी की खोज भाग –1 , 2 , 3,4 ,5 ,6 और 7 में ) ...की मैंने  बचपन से आज तक नारी के  भिन्न भिन्न रूपों को देखा .......मेरे इस सफर की आगे की कहानी.....




गतांक से आगे .......


शायद ही कोई ऐसा इन्सान हो जो अपनी परिस्थिति और कुदरत की दी हुई नेमतों  से अपने को धन्य मानता हो ... हम हमेशा उस सुख या चीज को देख दुखी होते है जो हमारे पास नहीं होती .... मैं भी अपने जीवन के भिन्न भिन्न पड़ावों पर  , अपनी इन अपूर्ण इच्छाओं को लेकर अपनी किस्मत को कोसता रहा... पर यह नियति भी अजीब खेल खेलती है , अगर हम शिद्दत से इससे कुछ मांगे तो हमें जरुर मिलता है ...यह वक़्त के गर्भ में रहता है.... की हमारी इच्छा कब पूरी हो ,पर जब इच्छा पूर्ण होती है, तब हमें उसकी एक  वाजिब कीमत भी चुकानी होती है .....


शायद मेरे ऊपर भी एक  डेविल विश का साया है/था , जो जीवन में, मेरी मुरादे तो पूरी कर देता ....पर उसके बदले मेरा  कुछ ना कुछ ले लेता ।  कभी वह  सुख शांति के पल... तो कभी कुछ और ले लेता .....


जवानी के उस दौर में , जीवन में काफी चीज़ें  थी , काम चलाऊ  सी नौकरी ,जिसमे मेरे अकेले का गुजारा आराम से हो जाता  । यौवन  की हल्की फुल्की  प्यास बुझाने के लिए साथ में एक सुन्दर  गर्लफ्रेंड ....जिसके साथ जीवन के वे  पल बड़े हसीन तरीके से कट रहे थे ....


कहाँ एक  वक़्त था , मैं रोनी की बीवी को किस करने की सोच भी ना पाया था , बल्कि उसके साथ सोने के नाम से ही शरीर में चींटियाँ रेंगने  लगती थी , कहाँ  यह वक़्त था  ,की एक  खुबसूरत जवान जिस्म से मैं घंटो लिपटा रहता ... जीवन का वह  हसींन दौर था , नारी के प्रेम और समर्पण के मामले में ,किस्मत मुझपर  पूरी तरह से मेहरबान थी ,ऐसा लगता था , मैं जिस भी लड़की को चाहूँ , वह  मेरी बाहों में आ सकती है ...


मैं और मीना दोनों एक  दुसरे में इस कदर खो जाते थे , कई बार तो ऐसा होता की ...काफी देर तक चुम्बन  लेने के कारण ....हम दोनों के होठ ....कई दिनों तक सूजे रहते ....


अगर उन दिनों चुम्बन लेने का कम्पटीशन होता , तो शायद हम दोनों उसमे अव्वल आते , जब जब मेरा उसका मिलन होता , हम दोनों घंटो होठों को जोड़े इतनी देर तक रहते ,की, उसकी साँस की महक, मेरे जिस्म के अन्दर इस कदर समा जाती थी ...की , उससे जुदा होने के बाद भी, कई घंटो तक ऐसा लगता था, जैसे मेरे नथुनों से उसकी सांस की गर्मी निकल रही हो .....


उस वक़्त , मेरे लिए यह सब बहुत ही साधारण बात थी , जीवन का वह अपना स्वर्ण काल था , उस वक़्त एक  नहीं, कई कई लडकियों ने मेरे दरवाजे पर  दस्तक दी ...


 सुन्दर और सुशील लडकियों के सामने मैंने  अपने करियर को प्राथमिकता दी और जो मेरे करियर में गति दे सकती थी , उनमे मैंने  सुन्दरता ढूंढनी  चाही ...


इन सबका यह नतीजा निकला , मैंने  उन सब आवाजो को सुन कर भी अनसुना कर दिया .... ऐसे में, मेरे जीवन में रीना नाम का तूफान भी आगया ...


 रीना की कहानी के लिए पढ़े ...”क्या तुम मुझसे शादी करोगे ?”.....


 क्या तुम मुझसे शादी करोगे? --- भाग-1

क्या तुम मुझसे शादी करोगे? --- भाग- 2

उस वक़्त मुझे क्या पता था , की आने वाले दिनों में यही आवाज़ें  और नारी की कोमलता , मेरे लिए सिर्फ एक  याद बनकर रह जाने वाली थी  ........ कुदरत की यह मेहरबानी एक  दिन अपनी कीमत वसूलने वाली थी .....


एक  वक्त में दो दो खुबसूरत लड़कियाँ मुझपर  दिलो जान से फ़िदा थी और मुझे उनमे से एक  को सेलेक्ट करना था ...पर मैंने  भी... कुदरत की दी गई दोनों नेमतों  को ठोकर मार दी , उस वक़्त मुझे अपने करियर से शिकायत थी , जिसमे मीना के आने के बाद एक  ग्रहण सा लग गया था ...या उसके साथ जीवन की मस्ती में इस कदर डूबा की अपने करियर को ही डुबो बैठा .....जब मैं जागा , तब से बस, दिन रात इस चक्कर में रहता , की मुझे कहीं  कोई अच्छी सी नौकरी मिले तो ,मैं इनमे से किसी एक  का चुनाव करूँ ...


नारी के साथ, मेरा यह स्वर्ण काल अधिक दिन तक टिकाऊ  ना रह सका ....जैसे हर चाँद को , अगले दिन सूरज की रोशनी   के आगे नतमस्तक होना पड़ता है , वैसे ही बदकिस्मती के सूरज ने , मेरी खुशियों के चाँद को एक  दिन निगल लिया ... जिस तेजी से, मीना से मेरी नज़दीकियां  बढती जा रही थी ,साथ में उसका दबाब भी ...की... मैं उससे जल्द से जल्द शादी करूँ , क्योंकि मेरी वजह से उसकी काफी बदनामी हो रही थी । पर मेरी बहुत कोशिशो के बावजूद भी , मैं कोई ढंग की नौकरी नहीं ढूंड पाया , जिससे शादी के बाद, मेरा और मीना का खर्चा आराम से निकल आता .... 


मैं नौकरी के लिए जितना प्रयास करता , असफलता उतनी ही तेज़ी  से मेरे करीब आती , ना जाने कितने इंटरव्यू मैंने  उस दौरान दिए , पर जैसे, मेरा भाग्य मुझसे रूठा हुआ था , मेरी असफलता ने ,मेरे अन्दर एक  अनजाना सा डर और कुंठा को जन्म दे दिया , मुझे लगता ,मीना का साथ जब तक है, तब तक मेरे करियर में यह ग्रहण लगा रहेगा ....


मुझे अब मीना के साथ में, ना तो पहले जैसे आकर्षण  लगता  और ना ही कोई रोमांच , मेरा दिल और दिमाग हर वक़्त नौकरी के तनाव में डूबा रहता .....वह  मुझसे लिपटी होती, तो मेरे दिमाग में नौकरी का भूत होता ....पता नहीं क्यों नौकरी और करियर को लेकर एक  अनजाना सा डर मेरे अन्दर समाने लगा , मुझे मीना के चुम्बन और आलिंगन में जैसे एक  नीरसता और बोरियत सी होने लगती ,मेरी इस बेरुखी को देख ,कई बार तो मीना मुझे उलाहने देने लगती , की मैं कुछ क्यों नहीं करता ?....शायद मेरी इस, बेरुखी या त्याग से खुश होकर कुदरती डेविल ने, आखिर मेरी विश पूरी कर ही दी....


डेविल ने मेरी विश तो पूरी की , की जल्दी ही मुझे एक  अच्छी नौकरी मिल गई , पर कुदरत कभी भी, अपने ख़जाने  से चीज़ें , हमें मुफ्त में नहीं देती , इसके बदले मुझे जीवन में , फिर कभी नारी की उस सुन्दरता , कोमलता और अहसास के दर्शन नहीं हुए ...


करियर ने तो अपनी गति पकड ली , पर उसके साथ  जीवन में कई चीज़ें  छुटती चली गई , पहले वह  शहर छूटा  , उसके साथ ही  मीना का साथ भी छूट  गया ...मीना की जुदाई ने शायद करियर की गति को बढ़ा दिया ....मुझे नौकरी तो अच्छी मिली , पर उसके सिलसिले में मुझे अक्सर टूर पर रहना पड़ता ,मेरे पाँव  कभी जमीन पर  ,तो कभी आसमान पर  , तो कभी ट्रेन के अन्दर होते ... मेरी जिन्दगी एक  खानाबदोश जैसी थी , जिसमे नाम था , पैसा था ...पर नारी और परिवार का सुख नदारद था ....इस दौरान मेने देश का कोना कोना खंगाला और एक  लम्बा विदेशी टूर भी किया... अगर जीवन के इस दौर में मीना होती , तो शायद उसे,मुझपे अत्यंत गर्व होता और उसकी ख़ुशी का तो ठिकाना ही नहीं होता ....क्योंकि उस ज़माने में , हमारी कंपनी में विदेश जाने के लिए लोग , ना जाने कितनी तिगड़म  और पापड़ बेलते थे ...  


पर जीवन में कुछ पाने के लिए कुछ खोना क्या होता है , इसे मुझसे बेहतर कौन बता सकता है ...नौकरी के सिलसिले में देश विदेश भटकते हुए ,मैंने  जीवन के कई भिन्न भिन्न पहलुओं  को देखा , समझा और परखा ...


यूँ अकेले भटकते भटकते, नारी की चाह,मेरे जीवन की ना बुझने वाली प्यास बनकर रह गई ...


ऐसे ही एक  बार, काम के सिलसिले में, मुझे ट्रेन से कोलकत्ता जाना हुआ  , उस सफर के दौरान मुझे एक  ऐसा  अनुभव हुआ, जिसने नारी के स्वाभाव और चरित्र की एक  नयी परिभाषा लिख दी .... उस सफर के अनुभव ने मेरे जीवन में ऐसी मृगतृष्णा को जन्म दिया , जिसने नारी के शरीर के सम्मोहन की ,एक  कभी ना बुझने वाली प्यास को, हमेशा हमेशा के लिए मेरे तन और मन में बसा दिया  ....


इस सफर की कहानी के लिए पढ़े  “एक  रात के हमसफ़र”.....

एक रात के हमसफ़र 

जब करियर अपनी रफ़्तार से बढ़ने लगा ... तो पुराने रिश्तो का साथ छूटने  लगा ,कल तक जो  खुबसूरत बालाएं  ,मेरे लिए पलके बिछाये बैठी थी , अचानक से मेरी जिन्दगी से एक एक  करके दूर होने लगी ... तब  मैंने  भी सोचा , अब करियर अपने सही मुकाम की और है ,तो क्यों न शादी कर ली जाए ?.....


उस वक़्त मैं शायद भूल गया था , मैंने  विश डेविल से ,अपने करियर के लिए खुशियों का सौदा किया था ...

शादी के बाद होने वाले सुख ,शांति और आराम के सपने, सिर्फ सपने बन कर रह गए , नौकरी के सिलसिले में, मैं अधिकतर घर से बाहर रहता और रही सही कसर मेरे जीवन के पहले विदेशी दौरे ने पूरी कर दी ....शादी के कुछ दिनों बाद ही मुझे, कुछ महीने के लिए विदेश जाना पड़ा ... 



यूँ भटकते रहने की वजह से नयी नयी शादी का सरुर भी मुझपर  ना चढ़ सका  ।  नौकरी के सिलसिले में , मुझे अधिकतर घर से बाहर  रहना होता था ..... इसलिए शुरुवात में अपनी पत्नी को भी ज्यादा समझने और परखने का मौका ना मिला , मैं समझता था , मेरे जीवन में अब तक जैसी लड़कियां आई है , यह भी वैसी ही होगी, पर मेरी यह गलतफहमी  भी जल्दी दूर हो गई ...

जो आम औरत के गुण मीना या और मेरी जिन्दगी में आई और लडकियों में मैंने  देखे थे , वह  मुझे अपने हमसफर में  ढूंढने  से भी ना मिले ...



मैं एक  ऐसा प्रेम पथिक , जिसने नारी से अपने रिश्ते की कल्पना सिर्फ प्रेम की आधरशिला  पर रखी थी... पर यहां तो , वह आधार ही नदारद था ...


किसी नारी से लड़ना झगडा या उसे बुरा भला बोलना क्या होता है , यह मेरा जैसा कोमल ह्रदय प्रेमी कभी सपने में भी नहीं सोच सकता था ।  मेरे मन में नारी के लिए इतनी प्यास थी , की मैं उसे, अपने प्रेम से जीवन भर बुझाता, तो भी वह  शायद कम ना होती ...एक  वक़्त था , कहाँ मैं और मीना प्रेम के पंछी बन , घंटो गुटर गूं करते , वहीँ शादी के बाद मेरा, नारी से शारीरिक परिचय तो हुआ  , पर उसमें  प्रेमी प्रेमिका वाला सम्मोहन , आकर्षण और रिश्तों की गर्मी का नामोनिशान भी ना था  ..... डेविल ने मेरी विश की काफी अच्छी कीमत वसूली थी ...

कभी कभी सोचता तो बहुत ही अजीब लगता की , जिससे कोई सामाजिक रिश्ता ना था , उसने मेरी भावनाओं  का कितना ख्याल रखा था .... मीना के घर में सब मांसाहार करते थे ,परन्तु जब तक वह  मेरे साथ थी, उसने कभी भी मांसाहार को छुआ तक नहीं  .... इसके विपरीत मेरे हमराही को मेरी पसंद , ना पसंद और भावनाओ की कभी परवाह ही ना हुई .....


एक  वक़्त था मैं और मीना घंटो आलिंगन में पड़े ,चुम्बन में खोये रहते थे ,अब मुझे चुम्बन से अजीब सी बैचेनी होती .....एक  मीठे और गर्मजोशी से भरा  चुम्बन  भी मेरे लिए किसी अमृत से ज्यादा अमूल्य हो गया  .... मेरा जैसा प्रेम पथिक , अनजाने में , जीवन के इस सफर में बिना मंजिल की राह में भटकने लगा ...जिन जिन बातो को मेने शादी से पहले कोई मूल्य ना दिया था ,अब अचानक से जैसे, वह  अमूल्य होती जा रही थी .....

डेविल विश ने मुझे करियर के नाम पर वह  सब कुछ दिया , जो मैंने  मीना के साथ रहते हुए सोचा भी ना था , पर बदले में उसने मुझसे वह  सब कुछ छीन लिया , जिसकी मैंने  कल्पना भी ना की थी ....


टूरिंग वाली नौकरी से तंग आकर , मैंने  फिर से डेविल विश की शरण ली , इस बार भी मेरी विश पूरी हुई , पर डेविल ने इसकी एक  अलग कीमत मांग ली ...टूरिंग वाली नौकरी में कम से कम एक  हफ्ते के बाद, कुछ दिनों के लिए घर तो आ जाता था... टूरिंग वाली नौकरी यह सोच कर छोड़ी की,  एक  स्थान पर  टिक जाऊँगा  ।  पर बदकिस्मती भी यहां आकर मंडरा गई ...  नौकरी के सिलसिले में मैं  कुछ महीनों  के लिए , अपने घर परिवार को छोड़ कर, कई सौ मील दूर अकेला, अनजान शहर में, कुवांरो की तरह जीवन बिताने को मजबूर था ... बीवी अपनी नौकरी और बच्चे के चलते मेरे साथ आ नहीं सकती थी ....


मैंने  अपने गुज़र  बसर करने के लिए एक  कमरा किराये पर ले लिया , क्योकि मुझे कुछ महीने में, काम पूरा करके हेड ऑफिस वापस अपने शहर आना था ... इसलिए पुरे परिवार को वहां लाने की कोई तुक ना था  ...मुझे यूँ अकेला रहता देख , मेरा मकान मालिक , अड़ोस पड़ोस  , सब लोग मुझसे पूछते की मैंने अब तक शादी क्यों नहीं की , मैं उनसे कहता की मैं शादी शुदा हूँ , तो उन्हें लगता , मैं उनसे पीछा छुड़ाने के लिए झूठ बोलता हूँ , वे  पूछते ....


फिर तुम्हारी बीवी तुम्हारे पास क्यों नहीं रहती ? वह  तुमसे मिलने क्यों नहीं आती ?


कई बार मेरे मकान मालिक ने , इशारों ही इशारों में अपनी लड़की का रिश्ता मेरे सामने पेश किया , जिसे मैंने  मजाक में उड़ा दिया .....जीवन में एक  चीज को लेकर ठराव बढ़ता था तो दूसरी जैसे हाथ से फिसलती जा रही थी , घर परिवार का सुख , शांति , सब हाथ से रेत की तरह फिसलने लगे ...मैं जीवन में फिर से , एक  बार उसी मोड़ पर आकर खड़ा हो गया , जिसपर  मैं कई साल पहले जवानी की दहलीज पर खड़ा था ....


अकेला, तन्हा....नारी के स्पर्श, आलिंगन , प्रेम  से अति दूर ....अपनी रातें ... अकेले बिताने को मजबूर था  ...


इसे मेरी किस्मत कहे या डेविल विश की मेरी आधी अधूरी सी इच्छा आने वाले समय में पूरी हो गई , जिसने मुझे नारी के रूप का एक  अलग ही परिदृश्य दिया .... 


क्रमश :......  


By

Kapil Kumar  


Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.' ”


एक दिल.........




तेरे इंकार मे भी एक  अदा है 

तेरे इकरार मे भी एक ख़ता  है 

तू कबूल करती नही 

की तेरा दिल भी मुझ पर  फ़िदा है ......

मैं  सांस लेता हूँ इधर 

तेरा दिल धडकता है उधर

दोनो के बीच मे है फासला इतना 

फिर भी लगता है ऐसे , दो जिस्मों के बीच

सिर्फ एक  दिल ही जुड़ा है ..... 


By
Kapil Kumar 

Sunday 27 December 2015

एक रात के हमसफ़र



गाड़ी  के छुटने का समय होगया था और अभी तक मैं नयी दिल्ली  के उस प्लेटफ़ॉर्म को तलाश कर रहा था ..जहां से राजधानी एक्सप्रेस को छुटना था ...अधिकतर कलकत्ता (Kolkata) जाने वाली राजधानी प्लेटफ़ॉर्म नंबर 8 या 10 पर लगती थी ...पर आज अचानक आखिर समय पर  उसके बदले जाने से ...मुझे नए वाले प्लेटफ़ॉर्म को ढूंढने  में दिक्कत हो रही थी ....मैं भी  बिना प्लेटफ़ॉर्म देखे अपनी पुराने अनुभव के बल पर सीधा राजधानी के तय प्लेटफ़ॉर्म पर आ गया था ...अब वहां से जल्दी से कुली कर मैं भागा भागा ...नए प्लेटफ़ॉर्म पर पहुंचा ..कुली को सौ रुपया का नोट फैंक सीधा बोगी  में घुस गया ....

कुली पीछे से आवाज़  लगता रह गया ....अरे बाबूजी अपना छूटटा तो ले लो ....अब किसके इतना समय और धैर्य था की 10 /20  रूपये के चक्कर में और टेंशन लेता ....डब्बे में घुस अपने कुप्पे को तलाशता हुआ ...सीधा सीट पर जाकर पसर गया और एक  गहरी सांस ली ....

यूँ तो महीना दिसम्बर का था ...पर गाडी छूटने की टेंशन और प्लेटफ़ॉर्म ढूंढने  की हड़बड़ी में…. मेरा बदन पसीने से लथपथ सा हो गया था....जब मन और तन को थोडा सा सकूंन मिला तो ...मैंने अपनी नज़रें अगल बगल इनायत की ...

अरे सामने तो एक  खुबसूरत फूलों का गुलदस्ता मेरी आवभगत के लिए पहले से ही रखा था और मैं अनजान भंवरा बन यूँही इधर उधर मंडरा रहा था .....


वह एक 17 /18 साल की सांवली, छहररे बदन की, लम्बे कद की एक  खुबसूरत सी लड़की थी ...जो अपने  चेहरे को किसी पत्रिका के पन्नों में डुबो के बैठी थी..... शायद उसने मेरे आते वक़्त मेरी बदहवासी का जायजा ले लिया था और पहले ही अपनी गहरी और रहस्यमयी  आँखों से मेरे मन , तन और चरित्र का मुआयना वह अच्छे से ले चुकी थी ...पर इस वक़्त ऐसे अनजान बनके बैठी थी ..की जैसे उसे आभास ही नहीं की कौन उसके सामने आकर बैठा है?...


हसीनाओं  की यह अदा मैं आज तक नहीं समझ पाया... की...आदमी भले ही अपने अगल बगल की हसीना को ताड़ने से चूक जाए ...पर ये ज़ालिम हम लोगों का जायज़ा  बिना नजर उठाये कैसे ले लेती है ....यह भी खोज का एक  विषय है ?


उसने किसी बहाने अपने चेहरे को पत्रिका से बहार निकाला या यूँ कहे की यह देखने के लिए की मैं क्या कर रहा हूँ उसने अपनी नजरे मेरे पर  इनायत की ...मैं तो कबसे इसी  फ़िराक में बैठा था ..कि वह  कब अपने हसींन मुखड़े के दर्शन करा कर अपने यौवन  और जवानी के सरुर के लिए मुझसे पूरे  10 में से 10 अंक ले ले ....

जैसे ही उसकी मृगनयनी जैसी आँखे मेरे चेहरे पर टिकी.. तो...मेने हड़बड़ा कर नज़रें  नीची करनी चाही ...पर उसने तो मुझे घूरते हुए रंगे हाथ पकड लिया ...अब कोई चारा ना देख मैं भी बेशर्मो की तरह उसे देख मुस्करा  दिया ..उसने मुझे इक सरसरी निगाहों से देखा ....अपनी नाक और मुंह सुकोड़ा और  फिर से अपनी पत्रिका में डूब गई ....


पर उसकी एक झलक ने मेरे कुवांरे,आवारा और आशिक लड़कपन  में एक हलचल सी मचा दी ...उसके मासूम चेहरे पर एक  अलग सी  कशिश और उसकी आँखे में एक  अज़ीब  सा सम्मोहन था... लगता था जैसे नशे का कोई जाम उसकी आँखों से लगातार छलक रहा हो ....उसके नाजुक पतले से होंठ  गुलाब की पंखुड़ी की भांति इक दुसरे को जोड़े पड़े थे... वह  कभी कभी अपने होंठों  के बीच से जीभ फेर कर उन्हें यौवन  के रस में डुबो कर उन्हें नया जीवन दे देती थी...उसकी साँसों के साथ उपर नीचे होता उसका वक्षस्थल...मेरे दिल पर हथौड़ा  बजा रहा था......

उसके चेहरे की आभा में....मैं  कुछ इस तरह से डूबा..की.....जब टिकट  कलेक्टर ने आकर हमसे टिकेट माँगा तब मुझे अहसास हुआ की....मैं ना जाने कब से मदहोश हुआ... उसके रूप और यौवन  के सागर में डूबा पड़ा था ...

उसने एक  हिकारत भरी निगाह मुझ पर  डाली ....शायद उसे... लोगो का... इस तरह उसे घूरना अच्छा ना लगता था ....


पर उसे क्या पता था ....की... उसके रूप और योवन में वह सम्मोहन था..... जिसमे बंध कर इन्सान... अपनी सुध बुध खुद बा  खुद भूल जाता था ....


गाड़ी  अपनी रफ़्तार से बढ़ रही थी....रास्ते में पड़ने वाले पेड़ो  और खेतो को अपने पीछे छोडती जा रही थी ...उसे एक  बार देख लेने से,मेरा मन जैसे प्यासा सा हो उठा था... लगता था उसे बस यूँही निहारता रहूँ  ..पर एक  अंजान लड़की को इस तरह से घूरते रहना भी मुझे अच्छा ना लग रहा था ....

उससे बात करने के लिए ...मैंने  उससे पुछा ..आप कहाँ तक जा रही है ..मैं तो कलकत्ता तक जाऊँगा ..उसने बिना नज़रें  उठाये कहा ...मैं “धनबाद” जा रही हूँ और ऐसा कह वह ... फिर से अपनी किताब  में खो गई ...लगता था उसे, मुझसे बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी .....


मैंने  भी अपने मन को समझा लिया ...की.. इन तिलों में तेल नहीं और अपने कुप्पे के आस पास के बासी गोभी के फूलो में.... उनके गुजरे ज़माने की कल्पना ढूंढ  ..उनसे अपना दिल बहलाने लगा .......


कब मेरी आँख लगी मुझे पता भी ना चला....अचानक एक  हिचकी की आवाज सुन मैं चौंक  उठा ..देखा सामने बैठी लड़की तेज तेज हिचकी ले रही थी और बार बार अपने मुंह पर  हाथ रख उसे बंद करने का असफल प्रयास कर रही थी ..उसकी यह हालत देख मुझे समझते देर ना लगी ...की ..इसे उलटी करने का मन हो रहा है... ...

शायद उसके शरीर में इतनी ताकत ना थी की वह  बाथरूम तक जा पाती...... मैंने  स्थिति को समझ फटाफट एक  बड़ी सी पॉलीथीन  अपने बैग से निकाल उसके हाथो में पकड़ा उसके मुंह से लगा दी ....मैंने जैसे ही उसका हाथ छोड़ा... की ..उसने जोर जोर से पॉलीथीन  में उलटी करनी शुरू कर दी ....


जो अभी कुछ देर पहले तक मेनका और उर्वशी की वाट लगाती लग रही थी अचानक विभीत्स ,बदबू और वितृष्णा  के ढेर में बदल गई .....


जब वह  उलटी कर चुकी ....तब उसने पॉलीथीन  को बांध एक  तरफ रख दिया और अपना एक रुमाल निकाल कर मुंह साफ़ करने लगी ...मैंने  अपनी बिसलेरी की बोतल निकाल उसके हाथ में पकड़ा दी ..उसने एक  ही झटके में उसे आधा ख़त्म कर दिया और थैंक्स बोल ..जोर जोर से साँसे लेने लगी ...गीता कुछ झिझकते हुए बोली ...मुझे ट्रेन के सफर से हमेशा उलटी जैसा जी हो जाता है ...पर आज एग्जाम की टेंशन में मैंने कुछ खाया नहीं था.....शायद उससे एसिडिटी हो गई?...

थोड़ी देर बाद वोह उठी और अपने साथ उस पॉलीथीन  को ले कर बाथरूम की तरफ चली गई ....अब उसकी तरफ देखने भर से मन बैचेन होने लगा था ....


थोड़ी देर बाद जब वोह लौट के आई तो ....सारी फ़िजा बदल चुकी थी ...लगता था उसे भी उलटी करते वक़्त मेरे मनो भावो का पता चल गया था ...


उसने अपने बालो को अच्छे से कंघी कर अब खुला छोड़ दिया था ...चेहरे पर एक  हलके से पाउडर की परत के साथ गालो पर  हलके से रूज़  की चमक उन्हें एक  नयी छवि दे रही थी ...पतले सूखे होठों पर  गहरे लाल रंग की लिपस्टिक उन्हें दहकते अंगारों में तब्दील कर चमक रही थी ...आँखों पर सजे काजल की एक  हलकी सी लकीर ....पलकों पर  सजे मस्कारे  के साथ मिल उन्हें एक  झील की तरह खामोश गहराई दे रही थी...

उसे इस रूप में देख मेरे मन में थोड़ी देर पहले की भरी वितृष्णा ... हवा के झोके की तरह उड़ गई ....मेरे होठ  उसके इस ग्लैमरस रूप को देख अचानक एक  सीटी  बन कर बज उठे और मेरे मुंह से अनजाने में जोर से “WOW” निकल गया ....


इस बार उसने मुझे… नाक मुंह सुकोड़ने के बजाये.. एक  हलकी सी मुस्कराहट के साथ शरमाते हुए देखा ...उसके मुस्कुराने से उसके गालो में पड़ने वाले गड्ढे  जैसे मुझे अपनी और खींचने लगे थे ...अब मैं उसे जी भर कर खुल्म खुल्ला निहार रहा था और उसे उसपे कोई आपत्ति ना थी .....

अपनी सीट पर  बैठ .... .वोह बोली ..आप क्या कलकत्ता में रहते है या किसी काम से जा रहे है .....मैंने उसे बताया की मैं काम के सिलसिले में एक दिन के लिए कलकत्ता जा रहा हूँ और अगले दिन मुझे वापस धनबाद आना था ...धनबाद का नाम सुन वह चौंक  पड़ी ...बोली आपको वहां  क्या काम है .....मैंने  उसे बताया की धनबाद के पास सिंदरी में एक  फ़र्टिलाइज़र प्लांट है .. ..... वहां किसी तकनिकी खराबी को ठीक करने मुझे जाना था ..पर उस काम में ज्यादा वक़्त लगता इसलिए ..पहले कलकत्ता का काम निबटा कर फिर धनबाद आऊंगा ...


उसने अपना परिचय देते हुए कहा ..मेरा नाम “गीता” है ..मैं JNU में फिजिक्स ओनोर्स की फर्स्ट इयर स्टूडेंट हूँ और धनबाद अपनी ममेरी बहन की शादी में जा रही हूँ ...गीता का सारा परिवार शादी में पहले ही पहुँच चूका था पर उसे अपने एग्जाम ख़त्म होने तक दिल्ली  में रुकना पड़ा था ..आज आखिरी  एग्जाम देकर वह  भी शादी अटेंड करने जा रही थी .....


हम दोनों का बातो का सिलसिला फिर शुरू हुआ तो खत्म  ही नहीं हुआ ..कब रात हुई और कब दिन आया ..हमें पता भी ना चला ....ऐसे लगता था ..जैसे वक़्त अपने पंख लगा कर उड़ गया ....


अचानक गीता ने अपने नज़र  घडी पर डाली और हडबडा कर बोली... अरे थोड़ी देर में धनबाद आने वाला है ...मुझे अपना सामन देख लेना चाहिए ..उसका स्टेशन नजदीक आ रहा था और मेरा दिल बैठा जा रहा था ....इतनी ढेर सारी बाते हुई ..पर उसने अभी तक ना अपने घर का अता पता दिया ..ना ही कुछ और ?

मैंने हिम्मत  करके उससे पूछ लिया ..अरे तुम रहती कहाँ  हो ?...और तुम्हारे पिताजी क्या करते है ?


मेरी बात सुन वह  मुस्करा कर बोली ...मेरे पिताजी की दिल्ली  में “करोल बाग” के मार्किट में “गीता ज्वेल्लेर्स” नाम की एक  बड़ी दुकान है ...धनबाद के पास किसी  गावं में मेरा ननिहाल है ...मैं इस वक़्त वहीँ जा रही हूँ ...


उसकी तरफ से और कोई रिस्पांस ना देख.... मैंने  उसे अपने ऑफिस का नंबर दे दिया और बोला ..जब तुम वापस दिल्ली आ जाओ तो मुझे कॉल करना ..उसने मेरा  नंबर बड़े जतन से ले अपनी डायरी में लिख लिया ...

जैसे ही गाडी प्लातेफ़ोर्म पर  रुकी ..मैं भी उसके साथ उतर गया ..उसकी आँखे जैसे कह  रही थी ....की काश  तुम भी मेरे साथ चलते..तुम यहीं  धनबाद में रुक क्यों नहीं जाते? ...


एक  बार को मुझे भी लगा की..क्यों ना मैं भी यहीं उतर जाऊं और पहले यहां  का काम निबटा दूँ ..फिर कलकत्ता देख लूँगा ...पर शायद हिम्मत ना जुटा पाया और बड़े बोझिल दिल से “गीता” को बाय बाय बोल उसे अपनी आँखों से दूर जाते देखता रहा ....

जैसे जैसे वह  दूर जा रही थी मेरा दिल बैठता जा रहा था ..उसने एक  बार पलट कर देखा ..फिर अचानक वह  मेरी आँखों से ओझल हो गई ..अपने मासूम दिल को संभाले मैं गुमसुम सा बैठा ..नींद के आगोश में खो गया ....


गाड़ी जब कलकत्ता पहुंची तो शाम हो चुकी थी ....जल्दी बाज़ी में चलते हुए मैंने  कलकत्ता का होटल बुक नहीं कराया था सोचा था ...एक  रात की बात है ..कुछ न कुछ इंतजाम हो जायेगा ...अपने अधिकतर सामान को स्टेशन के लगेज रूम में जमा करा दिया...सोचा डिनर  करने के बाद किसी होटल में रात गुज़ार  कर ..अगले दिन काम ख़त्म करके ..स्टेशन से ट्रेन पकड़ वापस धनबाद जाना ही तो है क्यों पुरे सामन के साथ इधर  उधर भटकता फिरूँ  ... ..ऐसा सोच ...अपने साथ एक  छोटे हैण्ड बैग को ले मैं कोलकत्ता  शहर की सैर पर  निकल पड़ा...एक  टैक्सी पकड़ कर मैंने  उसे पार्क स्ट्रीट चलने के लिए कहा ....मेरा अगले दिन यहीं पर ही किसी क्लाइंट से अपॉइंटमेंट था .....


उस वक़्त मुझे क्या मालूम  था की कोलकत्ता  शहर की वह  अंजान   रात मेरे लिए एक  ऐसे अनुभव का इन्तजार कर रही है ...जो मेरे आने वाले दिनों की एक  रहस्यमयी याद बनके रह जाएगा ......


एक  पंजाबी होटल में मैंने  अपना मनपसंद खाना खाया ...डिनर  करने के बाद भी घडी में सिर्फ रात के आठ बजे थे ...सोचा चलो किसी होटल में रात बिताने का जुगाड़ टटोला जाए ...हाय मेरी किस्मत जिस भी होटल में जाता ...”NO Vacancy” का बोर्ड लटका हुआ पाता ....भटकते भटकते रात के 12  बज गए ..पर सोने का कोई ठिकाना  अभी तक ना बना था .....


एक  निहायत ही गंदे से होटल से भी ना का जवाब सुन अभी निकला ही था ....की पीछे से एक  जनानी आवाज सुन चौंक  पड़ा .....

किसी मीठी सी आवाज ने कहा ...Excuse me ! उस आवाज के आकर्षण से बंधे मेरे पाँव जैसे अपनी जगह ठिठक गए ....मैंने  गर्दन घुमा कर देखा तो चौंक  पड़ा.... लगता था पूर्णमासी का चाँद आसमान से उतर धरती पर  आ गया था ...

एक  एंग्लो इंडियन सी लगने वाली लड़की... एक  काली स्कर्ट और सफ़ेद ब्लाउज पहने ..अप्सरा बनी मेरे सामने खड़ी थी ..उसकी उंगलियों में एक  लम्बी सी सिगरेट (शायद मोर ब्रांड की ) थी ..जिसके धुंए के छल्ले बना कर वह  हवा में उडा रही थी ...

उसके जवानी के ज्वार में बहता हुआ ....मैं उसके पास खिंचा चला आया ...उसने मुझे ऊपर से नीचे  देखा और बोली ...क्या आज रात के लिए तुम्हे मेरी सर्विस चाहिए?


ना जाने बिना सोचे समझे मेरे मुंह से निकल गया ...कितना लेती हो ?

वह  मुस्कराई  और बोली ...यह डिपेंड करता है ....की तुम्हे क्या चाहिए ?

मैंने  अपने को चालाक दिखाते हुए कहा ..क्या मतलब ..तुम्हारे रेट क्या औरों  से कुछ अलग है?     वह  बोली ....

अगर सिर्फ हैण्ड जॉब तो उसके पांच सौ रुपया ....अगर पूरी सर्विस तो उसका दो हजार और पूरी रात का पांच हजार लगेगा ...होटल का दो हजार अलग ...

मैंने  अपने नीली पिक्चर के अनुभव को झाड़ते हुए कहा ..और “ब्लो जॉब “ का कितना लोगी? ...

मेरी बात सुन वोह हंसी और बोली लगता है नए हो ...यह काम कोई भी नहीं करेगी समझे ...और ऐसा कह... मुझे अपनी कातिल निगाहो से घूरते हुए कुछ धुएं के छल्ले मेरे तरफ उडा दिए ....


मेरे पास बोलने के लिए कुछ ना था ....ना जाने उसके सम्मोहन में पड ...मैं बोला ...तुम्हारा रेट कुछ ज्यादा है ....असल में मेरे पास ना तो इतनी हिम्मत थी की मैं किसी हूकर के साथ अनजान शहर में जाऊं और ना ही मेरे पास इतने पैसे थे की ...उसकी किसी सर्विस पर इतने पैसे बरबाद कर सकूँ ...पर दोनों ही बाते उसके सामने कबूलना मुझे मंजूर ना था ....शायद  उसके हुस्न की तपिश में जाने अनजाने जलने को मैं बेक़रार था ...


मैंने  उसे टरकाते हुए  कहा ..चलो तुम किसी और को देख लो ...ना जाने उसे मुझमें  क्या दिलचस्पी लगी ...वह  बोली ... शायद तुम्हें .. ..मुझसे ज्यादा किसी होटल की तलाश है ...चलो मेरे साथ ...तुम्हारे दोनों काम हो जायेगे !....

उसकी बात सुन मैंने  कुछ ना कहा और अपने कदम आगे की तरफ बढ़ा दिए...की अचानक ..उसने पीछे से आकर मेरे कंधे पर अपना हाथ रखा और एक  हलकी सी चुम्बन मेरे गाल पर रख दी और बोली चलो  तुम्हारे सोने का इंतजाम करवा देते है ...


मैंने  अब उसे सब कुछ सही सही बताने का निश्चय कर लिया ....मैं बोला....सच बात यह है ....की मैं आज तक किसी बाजारू औरत के साथ नहीं सोया और दुसरे मेरे पास तुम्हे देने के लिए इतने पैसे भी नहीं और तुम्हारे साथ सोने पर  ना जाने कौन सी बीमारी लग जाए ?

मेरी बात सुन वह  थोड़ी गंभीर हो गई ...वह  बोली ठीक है तुम मेरे साथ मत सोना ..चलो मैं तुम्हे अपने घर लेकर जाती हूँ तुम वहां  सो जाना और जो तुम्हे ठीक लगे वह  मुझे दे देना ...


उसकी बात सुन मेरा मन सोचने लगा ..की जाऊं के ना जाऊं ….मुझे कश्मकश  में पड़ा देख ….वह  भी समझ गई ….बोली चलो टैक्सी में चलते है और तुम्हे डरने की जरुरत नहीं है ..अगर समझ में आये तो ठहरना वरना वापस लौट जाना ....

टैक्सी से करीब पांच मिनट में हम उसके घर के पास पहुँच गए ..यह कोई एक  माध्यम वर्ग परिवार का पुराने से मौहल्ले में एक  बहुत ही पुराना सा घर था... मुझे अपने साथ ले वह  घर के दरवाजे पर  पहुंची तो बोली ...मेरे घर में... मेरे   काम के बारे में कोई नहीं जानता ..इसलिए ऐसी कोई बेहूदा हरकत ना करना ..की मुझे सबके सामने शर्मिंदा होना पड़े ...


तुम्हे एक  शरीफ और जरूरतमंद आदमी समझ मैं अपने घर ले आई हूँ ...मुझे उम्मीद है तुम ऐसा कुछ ना कहोगे और करोगे... जिसमे मेरी जरा भी बदनामी हो ....

रात आधी के करीब बीत चुकी थी ...पुरे मोहल्ले में सन्नाटा सा छाया हुआ था ..कभी कभी कंही गली के कोने से कुत्तो के भूँकने  की आवाज सुनाई देती थी ....


जब हम उसके घर में घुसे तो... कहीं  से किसी कमरे से... किसी औरत की आवाज आई ..उसने बंगाली में शायद पुछा था ..की वह  आ गई है क्या? ...अगर उसे भूख हो तो वो किचन से खाना लेकर खा ले ....उसने बंगाली में कुछ कहा जो मुझे समझ ना आया ...

वह  मुझे अपने साथ ले ....एक  साफ़ सुथरे से कमरे में ले गई और बोली...अब  तुम आराम करो और सुबह हम मिलेंगे ...जैसे ही वह  जाने के लिए मुड़ी की मेरा दिल बैठने लगा ...


शायद इन्सान की फितरत है पहले वह  रोटी को देखता है ..फिर ठंडा पानी चाहता है ...जब पेट भर जाता है तब ...आरामदायक बिस्तर ..अगर यह सब हो जाए तो उसे दूसरे  शौक याद आने लगते है ....


अब जब सोने का जुगाड़ फिक्स हो गया और सब कुछ ठीक ठाक लगने लगा तो मुझे मेरी मर्दानगी सताने लगी ...मैंने  उसका हाथ पकड अपनी तरफ खिंच लिया और बोला ...तुम इतनी खुबसूरत हो ..जी करता है ..की तुम्हारे साथ एक  सुहागरात मैं भी बना लूँ...

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वह  मुस्कराई  और मुझे धक्का देती हुई बोली ...मैंने  तुम्हे जब ऑफर किया तब तुम महात्मा बन रहे थे ..तो ..फिर अब क्यों शैतान बनना चाहते हो ..मैं पहले ही कह चुकी हूँ की घर में यह सब कुछ नहीं करना ....नहीं तो तुम्हे अभी घर से बाहर जाना होगा ....

उसकी बाते अपनी जगह सही थी ...पर मेरा बावरा मन... अब, जब ,सब कुछ देख निश्चिन्त हो चूका था ...उसे देख बार बार मचलने लगा ....मेरी बैचेनी उसे समझ में आ रही थी ...पर उसकी भी अपने समाज और परिवार में इज्जत थी ...वह  क्यों भला ....मुझ जैसे अजनबी पे यूँही ख़राब कर देती?...


ना जाने उसकी इस बेरुखी से.... मुझे क्या सूझा  ..मैं लगभग गिडगिडाते हुए बोला ...ठीक है तुम मेरे साथ कुछ मत करो ....क्या हम दोनों कुछ देर बात कर सकते है ? मैं सोच रहा था ...इस बहाने उस जी भर के देखना तो नसीब हो जायेगा... उसने घडी देखी और झिड़क कर बोली रात के 12  बजने वाले है और तुम्हे इस वक़्त गप्पें सूझ रही है ..जाओ चुप चाप सो जाओ .....

मेरा दिल मायूसी में बैठ गया और बुझे मन से उसे गुड नाईट बोल मैं बिस्तर में घुस गया .....


दिन भर का थका मांदा और पिछली रात का जगा होने के बावजूद नींद थी की आती ना थी ..बार बार उसकी मोहनी सूरत मेरा मजाक उड़ाती ...समझ नहीं आता था ....की इतनी खुबसूरत और सीरत वाली लड़की क्यों  इस धंधे में पड़ी है? ....चारपाई पे करवट बदल बदल के ....करीब इक घंटा नींद को बुलाने में लगा दिया ..पर उसे ना आना था ..ना वो आई ...

अचानक एक  खुशबु का झोंका मेरे नथुनों में टकराया ...फिर मुझे लगा जैसे कोई मेरे बिस्तर में घुसने की कोशिस कर रहा है ....मैं कुछ बोलता ..इससे पहले उसने मेरे होठों पर अपने होंठों को रख मुझे चुप करा दिया ...

ऐसा लगता रहा था की दुनिया में उससे मीठा और मोहक जाम मेने आज से पहले कभी पीया नहीं था...उसने फुसफुसाते हुए कहा ..मुझे तो देर से सोने की आदत है ..पर तुम क्यों इतनी देर से करवटे बदल रहे हो ?

मैं बोला ...तुम्हे याद करके मुझे नींद नहीं आ रही थी ..ऐसा लगता था जैसे तुम्हे बांहों में भर कर सो जाऊं ....उसने एक  हलकी सी हंसी के साथ मेरे शरीर में एक  हलकी सी गुदगुदी की और  बोली...ठीक है .... तुम मेरे शरीर से ऊपर ऊपर जो चाहे कर लो ....बस मेरे कपडे नहीं हटाना ....


मैं नहीं चाहती ....मेरे अन्दर की गंदगी तुम्हे छू  भी जाए .....मैं उसे चूमते  हुए बोला ..इसका कितना लोगी ...वह  हलकी सी हंसी के साथ बोली... यह मेरी तरफ से मुफ्त सेवा समझ कर मजा लो ...

उसकी बात समझ... मैं एक भूखे  प्यासे कुत्ते की तरह ...जिसे कोई हड्डी बहुत दिनों बाद नसीब हो की भांति उसके शरीर को इधर उधर चाटने , काटने और झिंझोड़ने लगा...वह  मन ही मन मुस्कराती  हुई ....मेरी ज़लील  और नापाक हरकतों को सह रही थी ....


शायद यह उसका रोज का काम था जिसे वह  मज़बूरी में करती थी ....पर आज उसी कार्य सेवा का दान वह एक  महादानी की भांति करके अपनी रूह में एक सकूँन महसूस कर रही थी .....

उसके शरीर से लिपटे, कसते और चुमते चुमते कब मुझे अपने तनाव से छुटकारा मिल गया मुझे पता भी ना चला ..अचानक कुछ गीला गीला सा महसूस कर उसने मुझे अपने से अलग किया और ..गुड नाईट बोलकर चली गई .....

आज से पहले जीवन में ...मैंने  तरह तरह के दान सुने थे ..बहुत तरह की समाज सेवा सुनी थी ...पर किसी की इस तरह की मुफ्त सेवा ...किसी के लिए यह एक  नए तरह का दान था ...जिसका मैं शायद पहला भिखारी  था ....

सुबह करीब आठ बजे उसने मुझे आकर उठाया ..उस वक़्त वह एक  अलग रूप रंग में लग रही थी ...रात  को जो बाजारुपन उसके सौंदर्य  और कपड़ों  में था ..उसका अब नामो निशान तक ना था ...अब उसने एक  बंगाली साडी अपने शरीर पर लपेट रखी थी ....उसके लम्बे खुले बाल लहरा रहे थे और चेहरे पर  मेकअप के नाम पर सिर्फ एक  बड़ी सी लाल बिंदी उसके ललाट की शोभा बनी हुई थी ...इस वक़्त वह साक्षात  किसी देवी का अवतार लग रही थी ....


मैं जल्दी से नहा  धो कर तैयार हो गया  ..उसने मुझे नाश्ता करने का आग्रह किया ..जिसे मैंने  नम्रता से ठुकरा दिया ...की ...मुझे अपने क्लाइंट के पास 9 बजे पहुचना था और मेरे पास ज्यादा समय ना था ..घर से निकलते वक़्त मैंने एक  हजार रुपया उसके हाथ पर रख दिया ..उसने मेरी तरफ एक नज़र  घुमाई और मेरे पैसे वापस मेरी जेब में रख कर बोली ...इसकी जरुरत नहीं ....

मैंने तुम्हें एक  जरुरमंद समझ अपने घर ठहराया  था ....मुझे तुमसे पैसे नहीं लेने थे ...वह  तो मैं  तुम्हारी नियत देखने के लिए मांग लिए थे ...पर तुम्हारे रात के प्यार में एक  ऐसी आग थी ..जिसमे वासना होते हुए भी एक  अपनापन था ..उसे पाकर मेरे मन और तन को एक  अजीब सा सकूंन मिला है ...यही मेरी और तुम्हारी आपसी ख़ुशी की एक  रात की सौगात समझ लो ...


मेने उसे पैसे देने की बहुत कोशिस की ..पर वह  ना मानी ...शायद उसने मुझे अपनी एक  रात दान में दे दी थी ...

अपना धनबाद का काम निबटा कर मैं वापस दिल्ली  आ गया और इन सब बातों को काम की उलझन  में उलझ कर भूल गया ....की एक  दिन यूँही मुझे याद आया ...की ट्रेन वाली गीता की खोज खबर ली जाए ..उसने चलते चलते मुझसे कहा था ..वह दिल्ली पहुँच कर फोन करेगी ....


मैंने  अपनी रेसप्स्निस्ट से पुछा की... क्या कभी किसी लड़की का मेरे लिए कोई फोन आया था ?

उसने याद करते हुए कहा ....हाँ किसी लड़की ने किया तो था ....पर आप तब टूर पर गए हुए थे ...उसने कोई अपना नंबर छोड़ा था ...वह  मैं रख कर भूल गई ...उसकी यह बात सुन बड़ा गुस्सा आया ..पर उसने झट सॉरी बोल अपना पल्ला झाड लिया...अब गीता को कहाँ ढूँढूँ  ?  ..इसी उधेड़बुन  में लगा था ....की मुझे याद आया .....

उसने कहा था वोह JNU में BSc फर्स्ट इयर में पढ़ती है....अब इतने बड़े JNU में कहाँ उसे ढूंढने  जाऊंगा... उससे अच्छा है की उसके पिताजी की ज्वेलरी की दुकान से उसकी खोज खबर ले लूँ .....ऐसा सोच करोल बाग उसके पिता की दुकान ढूंढने  निकल पड़ा ....

पर उस नाम की वहां कोई दुकान ना मिली....इतनी भाग दौड़ की ..वह  सब बेकार गई ...दिल अलग उदास हो गया .... शायद उसने कुछ और कहा था या मैंने  कुछ और सुना था ...अब जब दुकान ही नहीं मिली तो JNU में भी पढ़ती होगी ..उसका भी क्या पता ठिकाना ?

गीता को याद करते करते वह  एंग्लो इंडियन भी याद हो आई ...जिसके साथ मैं कोलकत्ता में बिस्तर पे सोया था ...पर हड़बड़ी में ...उसका मैंने  नाम तक ना पुछा था .... उसे याद करता भी तो किस नाम से ?

मेरी यादों  के कब्रिस्तान में दोनों एक  रात के हमसफ़र के नाम पर हमेशा हमेशा के लिए दफन हो गयी ....

By
Kapil Kumar 



Note: - “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.' ”
  

दहेज़ (दबाओ, हड्काओ , जिब्रह करो)



दहेज़  शब्द कितना कड़वा , घिनौना  ,विषाद से भरपूर और समाज में एक  कोढ़ जैसा प्रतीत होता है अधिकतर लोगो के अनुभव के अनुसार  इसका शिकार लड़कियों को होना पड़ता है! जब भी आपके सामने दहेज़  का जिक्र होता है तो तक़रीबन सबके सामने एक  तस्वीर कौंध जाती है ! एक  मंडप सजा है दूल्हा , दुल्हन , बाराती और  एक  बूढ़ा लाचार इन्सान जो  हाथ में पगड़ी लिए खड़ा है और उसके सामने मोटी मोटी मूंछो वाला एक  हट्टा कट्टा इन्सान जिसका सर कड़क और घमंड आसमान में  है ! बेचारी लाल कपड़ो में सजी संवरी “दुल्हन” कातर निगाहों  से अपने बाप की बेबसी का तमाशा खून के आसूं पी पी कर देख रही है! और एक  कोने में खड़ा सजीला नौजवान अपने बाप की परवरिश का सूद अदा कर रहा है ! बाराती लोग आने वाले सीन की कल्पना से रोमांचित हो टक टक्की लगाये, आगे होने वाले एक्शन का इंतजार कर रहे है|


पर हमारा अनुभव कुछ और ही है । हमारे अनुभव से लड़का वह  बकरी है जिसे इस उम्मीद से पाला जाता है एक  दिन इसे काट कर अपने आवश्यकता रूपी धर्म की और इज्जत रूपी भूख की पूर्ति होगी ? ना तो बकरी से कोई पूछता है की तुझे  क्या चाहिए और ना ही लड़के से! बकरी के दिल पर क्या गुज़रती  है जब लोग उस बकरी का सौदा करने आते है ! सोचो, अगर कटने से पहले बकरी बगावत कर दे और अपना खूंटा तोड़ कर भाग जाये ,तो बेचारा उसका क्या होता होगा जिसने इस बकरी को इतने जतन और मेहनत से पाला ! खूंटा तोड़ कर भागने के बाद अब बकरी के साथ क्या होता है वह  भी एक  कहानी है !

असल मेअसली जिन्दगी मे यह सीन यंहा तक पहुंचे उससे पहले दुल्हे और दुल्हन यानि लड़के और लड़की को एक  लम्बा सफ़र तय करना होता है ! आपने शायद लडकियों के सफ़र की कहानी तो बहुत सुनी होगी ? कैसे दहेज़ की वज़ह  से उनका रिश्ता टूट गया , लड़के वाले लालची निकले आदि आदि ! पर आज मैं  आपके सामने ,लड़के की कहानी रख रहा हूँ ! इस  कहानी को शरू  करू  उससे पहले आप सब इस बात से सहमत हैं की आज की तारीख में  एक   ईमानदार , नेक और शरीफ इन्सान दुर्लभ है ! अधिकतर इन्सान लालची , मतलबी और मौकापरस्त होते है ! चाहे वह लड़के के मां बाप हो या लड़की के मां बाप हो या खुद लड़का हो या लड़की या हमारे तुम्हारे रिश्तेदार , आखिर हैं तो सब इंसान ही?

हुआ यूँ की गलती से हम जवान हो गए और अपने ज़माने में दिखने में भी ठीक ठाक भी थे ! और गलती से अपने खानदान में पढ़े लिखे एक  अनमोल रत्न, जो गलती से इंजिनियर बन गया था ! यूँ तो हमारी बड़ी बहन डॉक्टर बन चुकी थी पर बेटी तो लड़की होती है | अब इसे विधि का विधान कहे या समय की विडंबना की हमारा अपने पिताजी के साथ 36 का आंकड़ा था  | हम उनके विपरीत 180 डिग्री  पर चलते , उन्होंने हमारे लिए कुछ और खवाब देखे थे और हम उनमे पतीला लगाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते ! असल में गलती किसी की  नहीं थी |हमने अपने खानदान , रिश्तेदारों की जो बहु बेटियां देखि थी वैसी हमारे मिजाज में फिट नहीं बैठती थी ! हम हमेशा बराबरी की बात मन में सोचते थे पर हमारा  स्वभाव देख अधिकतर लोग हमें dominating  नेचर का समझ लेते !हमारे घरवालो और रिश्तेदारों को लगता इसे घरेलु टाइप लड़की चाहिए और हमें लगता हमें जीवन संगनी चाहिए थी, न की हमारी पथ पालक !अब दूध देती गाय की तो लात सब खा लेते है तो वोह भी अपने गुस्से को वक़्त की नजाकत समझ हमसे बड़ी नरमी से पेश आते और इशारो इशारो में हमारी माताजी के हाथ पैगाम भिजवाते !

अरे उसकी लड़की का रिश्ता आया है , इतने लगा देगा , लड़की भी  जात बिरादरी की है आदि आदि , हम उनके मंसूबो को जान, बागी नेताओ की तरह संसद का बहिस्कार विदेह्यक के पारित होने से पहले ही कर देते !न तो उन्होंने हम से सीधे पूछा और न ही हमने सीधे इंकार किया! हमारी इस कोल्ड वार की खबर हमारे रिश्तेदारों के साथ अड़ोसी पडोसी को भी लग गई, उन्होंने हमें एक  दुधारू गाय जिसका कोई मालिक नहीं, समझ अपना अपना खूंटा लगाना शुरू कर दिया !


एक  दिन हमारा छोटा भाई, अपने साथ अपने एक  मित्र का मित्र लेकर आया! उसने हमें कहा ,भैया इनकी बहन है जिसने एम . ए. किया है और उसके मित्र ने झट अपनी बहन का फोटो हमें पेशे नज़र कर दिया हमने भी फोटो पर ऐसे सरसरी नज़र घुमाई जैसे किसी प्रोडूसर के पास सिफारशी हीरोइन की तस्वीर पेश कर दी गई हो और उसने उसे न लेने का इरादा बिना देखे ही बना रखा हो ! अब प्रोडूसर के मन में किस तरह की हीरोइन की तस्वीर है यह तो वही जाने |
                                    कुछ दिन बाद हमारे भाई ने पूछा! हमारा उस लड़की के बारे में क्या इरादा है

 हमने कह दिया तुझे पता तो है कुछ भी कह दे! मेरे भाई की उस लड़की से थोड़ी बहुत बोल चाल थी , उसने आकर बताया की लड़की ने कहा है अपने भाई को बोल मैं अपने पिताजी से कहकर “पचास हजार” और शादी में लगवा दूंगी !जब हमने उसे भी न कर दिया तो उसने गुस्से में कहा तेरा भाई शादी के लिए क्या कोई “हेमा मालिनी” ढूंढ़ रहा है | “यह दहेज़ का नया अवतार था “ !

हमारे कुछ दूर के रिश्तेदार ,जिन्हें हमने अपनी जिन्दगी मे शायद एक  बार भी ढंग से नहीं देखा, वे  हर दुसरे दिन अपने साथ 2 /4  मुश्टण्डों की फौज ले कर हमारे ऑफिस में धमक आते और कहते,

"अरे तू उसका लौंडा है" न, यह हमारे दोस्त / रिश्तेदार / सम्बन्धी /जानने वाले है इनकी लड़की बहुत सुशील है और यह इतना और उतना लगा देंगे !

एक  दिन हमारे रिश्तेदार के बड़े भाई ने, जिन्हें हमने शायद कभी पहले ध्यान से देखा हो, ने हमें हमारे ऑफिस के ख़त्म होने से कुछ पहले ही, हमें ऑफिस के गेट पर धर दबोचा! अब भागने  का कोई जुगाड़ ना देख, हमें उनके साथ किडनैप जैसी स्थिति से होते हुए साथ में  जाना ही पड़ा , वे  हमें एक  हवेली नुमा बड़े से घर मे ले गए , जहां पर हमें एक  बहुत बड़े मूढ़े  नुमा कुर्सी पर  बैठा दिया गया और कुछ देर बाद कुछ लोग अपने हाथ मे एक एक  कुर्सी ले हमें घेर कर ऐसे बैठ गए जैसे कोई हिरन अपना झुण्ड छोड़ भूखे शेरों के सामने आ गया हो , वे  सब हमें टक टक्की लगाये घूर रहे थे| जैसे शेर यह तोल  रहे हो की इस हिरन मे कितना मांस  है और शेरनियां यानि वहां  पर बैठी औरते ऐसे देख रही थी ,की तैय कर रही हो ,इस हिरन पर पहला हमला कौन और कहाँ से करे? हमने मौके की नज़ाकत  समझ उनकी स्थिति का अवलोकन किया तो,उनसे बचने का उपाय तुरंत खोज निकला !

                   वोह लोग कुछ व्यापारी या जमींदारी टाइप थे| उनके सामने हमने अपनी काम चलाऊ अंग्रजी में  बोलना शुरू कर दिया, हमें बोलता देख, उनमे से किसी ने हमसे ज्यादा सवाल जवाब नहीं किया और हमारे रिश्तेदार विजयी भव  वाले भाव लेकर ,हमें लेकर वहां  से ऐसे  निकले, जैसे मौहम्मद  गौरी ने पृथ्वीराज   पर विजर प्राप्त कर ली हो! रास्ते में, हमने बड़ी हिम्मत जुटा कर उनसे पुछा की?


                                    लड़की देखने मे कैसी है? और कितनी पढ़ी लिखी है?

                                जैसे किसी सोये हुए कुत्ते की पूँछ पर गलती से पैर पड़ जाये और वह जोर से गुर्राने  वाले लहजे मे उन्होंने हमें जवाब दिया |


अपनी बहु बेटी जैसी है, और पढ़ी लिखा क्या मतलब! प्राइवेट से B.A. कर रही है, तुझे कौन से उससे नौकरी करवानी  है?

हम कुछ आगे बोले! इससे पहले ही उन्होंने हमें चुप करा दिया, बोले ,

                                                                                      अपने बाप को बोलियों,जीजाजी से फ़ोन पे बात कर ले?

अब हमारी हालत उस चूहे की जिसके सामने यह बिल्ली रूपी अन्जान रिश्तेदार हमें चट करने को और कुत्ते रूपी हमारे साथी और बॉस हमारी गतिविधियों को भाँपने  के लिए तैयार बैठ जाते ! हम भी पुराने घाघ थे भला ऐसे ही हमने इतनी लडकियों को टोपी पहनाई थी जो इनके झांसो में आ जाते, हम बड़ी मासूमियत से इन बिल्लियों का रुख अपने पिताजी की दिशा में कर देते ! पर इन ऑफिस वालों  का क्या ? उन्हें कैसे समझाते ? इसी चक्कर में नौकरी से दबी छुपी वार्निंग भी मिल जाती ! की घर के लोग ऑफिस में नहीं आने चाहिए?

रविवार का दिन था अपनी मस्त जवानी के नशे में चूर सुबह के 10 बजे तक बिस्तर की ऐसी तैसी कर रहे थे, की फरमान आया !

                                                अरे उठ जा कोई तुझ से मिलने आया है!

बड़े अनमने मन से,बिना आँख, मुंह धोये और कुल्ला किये जब ड्राइंग रूम में पहुंचे ,तो एक  सज्जन हमारे भाई के मित्र के  साथ आये थे , उन्हें देखते ही हम समझ गए, यह कौन है ? बिना भूमिका बनाये हमारे भाई का मित्र बोला |

भैया, यह हमारे फूफा जी हैं और यह अपनी लड़की के बारे में आपसे बात करना चाहते है! अब हमने तो अपना बचपन मे, उनके घर के सामने से, ना जाने कितनी बार गुजरे थे और हम उस लड़की को अच्छी भली तरह जानते और पहचानते थे !

पर हमारा आश्चर्य इस बात का था की वह  हमारे घर क्या करने आ गये ! क्योंकि  हमने सुना था की बचपन में हमारे पिताजी से उनका कुछ पंगा हो गया था !
उन्होंने हमारा इंटरव्यू ऐसे लिया, जैसे कोई बॉस कैंडिडेट को देखते ही रिजेक्ट करने का मन बना ले! पर खानापूर्ति के लिए अपने कागज पूरे कर रहा हो  !

   कहाँ  काम करते हो ?        जी यंहा .....
    कितना कमाते हो?          जी इतना उतना ....
      तो प्राइवेट नौकरी है  , ......  जी हाँ   , ......  हूँ .....  ठीक है ! 

थोड़ी देर बाद बिना और कुछ पूछे वे  चले गए! जब आपका इंटरव्यू बहुत छोटा हो तो इस के सिर्फ दो मायने होते हैं की आप pre selected या pre rejected कैंडिडेट हो ।हमें पूरी उम्मीद थी वोह सिर्फ दिखावा करने वाए थे पर क्यों आये थे यह राज आज तक नहीं पता ? हमने अपनी उम्मीद का “दिया” कुछ दिन यह सोच के जला के रखा, शायद वे  हमें अपने लायक समझे ।  ख़ैर  कुछ दिनों बाद जब हमने इस बार में पूछ ताछ की तो, हमें अपना रिजेक्शन लैटर इस मैसेज़  के साथ मिला की हम नौकरी लोकल नहीं करते।बड़ा ही घिसा पिटा जवाब ,जैसे कोई कहे, ooh! हमें better कैंडिडेट मिल गया| जबकि सिलेक्टेड वाला ना तो क्वालिफाइड हो और ना ही experienced हो ? कुछ समय बाद जब उस लड़की की शादी हमारे पड़ोस  मे बड़ी धूम धाम से और हमसे दूर नौकरी करने वाले और हमसे कम वेतन पाने वाले के साथ हुई , तो हमने अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए जानना चाहा  , की हम इंटरव्यू मे कैसे फ़ैल हुए, तो जवाब मिला , लड़का उन्नीस है तो क्या पर उसके घर मे माल ज्यादा है और अपने बाप का अकेला वारिस  भी!  अब हमारे जैसा शरीफ आदमी, जो बिना दहेज़ के तैयार था इसलिए मात खा गया, क्योंकि  "बाप" का माल हमारे पास कम था ? यह दहेज़ का नया रूप था !

   अपने पिताजी से चली इस बेमतलब की कोल्ड वार में, हमने अपनी न लौट के आने वाली जवानी के 2  साल गवां दिए !


 ख़ैर  इन सबका हमने एक  तोड़ निकला और अपनी शादी का विज्ञापन इस हौंसले  और इरादों के साथ दिया की ,लोग तो लव मैरिज कर लेते है क्या हम अपनी पसंद की लड़की के साथ शादी को अरेंज्ड मैरिज से नहीं कर सकते ? जवानी के खून ने या बेवकूफी में हमने कलयुग में संत बनने  का गलत निर्णय ले लिया और अपनी शादी के इश्तिहार में,

 "नो कास्ट, नो डोवेरी " जैसे भारी भरकम शब्दों को बिना जाने जोड़ दिया !

जब यह बिना टाइम का बम हम ने घर में फोड़ा! तो, हमारे पिताजी का गुस्सा इतना था ,की हमारे शहर के मेन बाजार में ,सड़कों  के बीचों बीच  अपनी दादागिरी से चलने वाला "सांड" भी उस दिन, उन्हें देख किसी दुकान के पीछे छुप जाता ! हम भी थे उस घर के चश्मों - चिराग ! हम भला ऐसे कैसे डर जाते अगर वे  खूंखार सांड के रूप में तो, हम घाघ टाइगर रूप में थे, जो वक़्त की नजाकत समझ शिकार के थकने का इंतजार कर रहा था |

और हमारी माताजी जो अधिकतर "निरूपमा राय " या "दुर्गा खोट्टे" का रोल निभाती थी, वह भी आज  "ललिता पवार" के रोल में तैयार थी! अगर हम इंसानी मनो भाव को पढ़े और अपने को अपने माता पिता की जगह रख के देखे तो उनकी भी कोई गलती ना थी! असल मे बड़ी बेटी को डॉक्टर बनाते वक़्त उन्हें यह गुमान ना था की लड़की डॉक्टर, इंजिनियर , प्रोफेसर .. से पहले एक  लड़की होती है ! शादी के वक़्त लड़के वालो ने उन्हें जो तारे दिखाए थे उसकी कसर वह  हमारे द्वारा पूरी करना चाहते थे और हमारी माताजी जिन्हें हमारे, मामा मामी , बुआ फूफा  , चाचा चाची , मौसा मौसी के साथ साथ अड़ोसी -पडोसी  का भी हिसाब चुकता करना था !जो हमारी बहन की शादी की वजह से अधुरा पड़ा था ! जब इतना बड़ा स्टेक्स दावं पर हो तो, खेलने वाले की उम्मीदें  भी ज्यादा होती है, और जिस गाय को 25  साल से खिला पिला कर बड़ा कर रहे हो और दूध देने के वक़्त, गाय का ही ठिकाना ना हो तो उम्मीदों का समुन्दर गुस्से की ‘सुनामी’ मे बदलना वाज़िब  ही है । कहते हैं की घर का भेदी लंका ढाये , इस इश्तिहार की खबर जब चाचा , मामा ,मौसा को लगी तो, आ गये सब चढ़ी कढाई में अपनी अपनी पुरियां तलने , उपर से कहते अरे जीजाजी आपने लोंडे को कुछ ज्यादा ही ढीला छोड़ दिया है |हमारे लोंडे की इतनी हिम्मत होती तो टांग तोड़ देते !  अरी बीबी तुझे इतनी बार अपने साढू की लड़की का रिश्ता लाया, तुम्हारे तो दिमाग में समझ नहीं आया |अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा कहो तो कल लड़की देखने का प्रोग्राम फिक्स्ड कर दू ! अब इतने सारे बैंड बजाने वाले हो तो ,कोई ना कोई धुन तो निकल आती है| हम वंहा से ऐसे रफ्फू  चक्कर हुए ,की सात मुल्को की पुलिस "डॉन" को भले ही ढूंढ़ लेती पर हमें न ढूंढ़ पाती !

            जब हम लौट के आये और हमारे इश्तिहार ने जो गुल खिलाये उसका अनुभव तो Mr. योगी से कई गुना रोमांचिक था !  Mr. योगी तो 12  कन्या देख आराम से 11  को रिजेक्ट कर दिए और एक  से शादी कर लिए, पर हमें तो 12 कन्याओं में से 12  से रिजेक्ट होना पड़ा, उसकी कहानी किसी और ब्लॉग मे ..........

By

Kapil Kumar