Wednesday 11 November 2015

नारी की खोज---2





(नारी की खोज भाग में .......)


नारी की खोज ?--- 1

... अभी तक आपने पढ़ा की मेने बचपन से आज तक नारी की भिन्न भिन्न रूपों को देखा .......मेरे इस सफर की आगे की कहानी.....
गतांक से आगे .......

हॉस्टल में छोटी उम्र में भी लोग बड़े और छोटे का अर्थ खूब अच्छी तरह समझते थे ....होने को मैं सिर्फ सात साल का और दूसरी कक्षा का छात्र था .....पर नारी के प्रति आकर्षण उस उम्र में भी अपने रंग दिखाने लगा था .....मुझसे बड़े बच्चे जो चोथी क्लास के थे .....हमपे पूरा रॉब ठोंकते और हमें ऐसे ट्रीट करते जैसे वोह हमारे बाप हो .....

s चोथी क्लास के बच्चो में इक बच्चा मेरा दोस्त था या यूँ कहे मेरे जीवन का पहला गुरु था ......

Ms मीना (जो हमारी हॉस्टल की सहयोगी वार्डन थी ) की खूबसूरती के चर्चे पुरे हॉस्टल में थे ... मीना हमें खुबसूरत औरत से ज्यादा इक कठोर वार्डन लगती थी...क्योकि बच्चो के नहाने के बाद उनके हाथ पैर का मुआयना वो ही करती  और जिस बच्चे के हाथ या पैर पे मैएल या कालापन मिलता ..उसे वोह ठण्ड में वन्ही खड़ा कर तब तक रगड़वाती ...जब तक या तो मैएल साफ़ नहीं हो जाता या वंहा से खून रिसने लगता या बच्चो की क्लास का समय हो जाता ....उस उम्र में हमें ठण्ड में नहाने से ज्यादा ...Ms मीना के निरक्षण का डर लगता था...

बोर्डिंग स्कूल में चोथी क्लास के बच्चे दूसरी क्लास वालो को बड़े चटखारे लेकर सुनाते...की कैसे वोह मेडम मीना की सुन्दरता का लुफ्त लेते है? .....

इन्ही किस्से कहानी के वशीभूत..... मैं भी इक भवंरा बन Ms मीना के रूप और योवन को सूंघने का मौका ढूंढने लगा  .....बच्चे जो दिखने में छोटे और नादान लगते थे ....सब इक से बढ़ कर इक उस्ताद थे ....इक दिन मेरे गुरु ( मेरे सीनियर क्लास का बच्चा ) ने मुझे कहा आज चल तुझे मैं कुछ दिखाऊ ...उसकी बातो में कर मैं उसके साथ चल पड़ा ....

हमारे हॉस्टल में इक कॉमन रूम था जिसमे कुछ टेबल टेनिस की टेबल थी ...वोह लड़का और मैं इक टेबल के निचे घुस कर बैठ गए ......थोड़ी देर बाद Ms मीना अपने किसी बॉय फ्रेंड के साथ टी टी ...खेलने आई .....वोह खेलती कम थी ..दोनों हँसते और इक दुसरे को छूते ज्यादा थे ...
मीना ने उस वक़्त स्कर्ट और ब्लाउज पहना हुआ था ...जब वोह खेलने लगी तो .....मेरा गुरु(सीनियर ) बोला ...देख मीना की टाँगे ...


मुझे उस वक़्त यह समझ ना आया ..की औरत की नंगी टाँगे देखने में क्या लुफ्त है? ...


काफी देर वंहा बैठे रहने के बाद हम लोग चुपके से निकल आए ....हमें वंहा से बहार जाता देख मीना के कुछ समझ ना आया ...की हम कब अंदर आए और कब बहार गए ....हमारी तीखी मुस्कान हमारे चेहरे पे इक विजय दिखा रही थी .....शायद मीना की नंगी टाँगे देखने से ...मैं दिल के अंदर ही अंदर उसके द्वारा किये गए अत्याचारो का बदला लेकर खुश था .....

शायद आदमी का औरत से बदला लेने का भी यह इक तरीका है ..जिसमे वोह अपने से ज्यादा शक्तिशाली औरत को उसके औरत होने का अहसास करा दे ...

पर यह रहस्य मेरे दिमाग में घिर कर रह गया ....की औरत की टांगो में क्या है ?...इसका जवाब मुझे तब तो ना मिला ...पर आने वाले वक़्त में इस अनुभव ने नारी की इक पहेली को सुलझा दिया ....

कुछ साल हॉस्टल रहने के बाद मैं वापस अपने शहर आगया ....मेरे एडमिशन इक पब्लिक स्कूल में करा दिया गया .....यंहा आकर मेने नारी का इक अलग रूप देखा ....जिसने  मुझे यह समझाया ...की सुनदर सजीले चेहरे ..अंदर से कितने कुरूप होते है .....

अब तक मेने सिर्फ पुरुष टीचर देखे थे .....इस स्कूल में सारी टीचर लड़कियां या औरते थे ....आदमियों से पढ़ते वक़्त हमें यही लगता था ..वोह कर्कश , कठोर और अत्याचारी (ज्यादा मारने पीटने , सजा देने वाले ) होते है ...औरत तो... ममता की मूर्ति , नाजुक और खुबसूरत होती है तो ...लेडीज टीचर से पढने में मजा आएगा और डर भी नहींलगेगा ...पर ....

 मुझे क्या पता था ...की ...हर सुन्दर चेहरे के पीछे इक डरावनी चुडेल छिपी होती है.... 

औरत को औरत समझने का गुण और ट्रेनिंग लेकर मैं इस स्कूल में आया ...यंहा पर सारी टीचर लेडीज थी ....जिनमे फ्रस्ट्रेसन कूट कूट कर भरा था ...ऊपर से वोह बच्चो पे लाड प्यार सा दिखाती ...पर गलती होने पे सजा देने में वोह हमारे मेल टीचर की भी बाप थी ....

ऐसे ही ....जब मेरा पाला मैडम नवदीप कौर से पड़ा ...देखने में इक सीधी साधी मोहनी सूरत की नवदीप मैडम के पास जैसे ही मैं अपनी गंडित की कॉपी लेकर गया ....तो उसने अपनी कजरारी आँखों से मुझे पहले जि भरकर देखा ...जैसे कसाई बकरे को काटने से पहले ..उसके अन्दर होने वाले मीट का हिसाब किताब लगाता है .....

फिर अचानक से मेरी कापी उडती हुई क्लास के फर्श पर नजर आई ...और नवदीप की कडकती आवाज ...यह कौनसी कॉपी है ...क्लास वर्क या होम वर्क ......

मेने डरते हुए कहा होम वर्क ...तो उसपे लिखा क्यों नहीं ? और ऐसा कह उसने मुझसे हाथ टेबल पर रखने को कहा ....मेने अपने हाथ मासूमियत से उसकी टेबल पर रख दिए ...अचानक उसने पेंसिल मेरी उंगलियों के बीच से डाली और बेदर्दी से मेरी उँगलियाँ दबाने लगी ...मैं दर्द से चिल्ला पड़ा ....... 

मेरे चिल्लाने की आवाज से चोंकी वोह मोहनी सूरत वाली टीचर...अचानक इक चुडेल में बदल गई ....उसका हाथ अचानक से घुमा और चटाक की आवाज मेरे चेहरे पे ....अपनी छाप छोड चुकी थी .....

नवदीप से निपटने के बाद अगला पीरियड अंग्रेजी का था ...उसकी टीचर तो पहले से ही हम कुछ मासूम बच्चो को छांट चुकी थी ....की पुरे साल अपना चुडेलपना ...वोह हमारे साथ दिखाएगी ....उसका ऱोज का काम होता ....की हमें यह अहसास कराना की हम क्लास के सबसे ज्यादा नालायक बच्चे है ...और जब भी स्कूल का प्रिंसिपल हमारी क्लास में राउंड पे आता....वोह उससे हमारी खिदमत जरुर करवा देती .....

मुझे समझ ना आता वोह हमें रोज सजा देने के बाद भी संतुष्ट क्यों नहीं हो पाती? ...शायद उसके अंदर की चुडेल ...शिकार करने के साथ साथ  ....शिकार होता देखने का भी मजा लेती थी !!....

उस दिन के बाद ..हर दिन जब भी कभी किसी मैडम को मुस्कुराते देखता ...तो सोचता हर मोहनी सूरत में इक चुडेल कैसे अंदर छिपी होती है? ....
उस दिन के बाद ..मेने जब भी किसी टीचर को देखा ..उसके अन्दर इक चुडेल को ही पाया ...किसी की चुडेल हमेशा जगी रहती ....तो .....किसी की कभी कभी जागती ...पर होती सबके अन्दर ....लेडिज टीचर ने मेरे अन्दर औरते के प्रति इक अजीब सी कशिश पैदा कर दी .....जो नफ़रत थी या आकर्षण उसका फैसला....मेने जवान होने पे किया .....
.

  पर जब यही चुड़ेल स्कूल ख़त्म होने के बाद इक साथ जाती .....तो ...इनकी मस्त चाल देख मेरा दिल ना जाने किस तरह के हिल्लोरे लेता ...उनकी मस्त और नागिन जैसी चाल बचपन से ही मेरी अंदर नारी की सुन्दरता का इक पैमाना  बन गई ...शायद मेरा मन उनकी मस्त चाल देख कर उनके अंदर की चुडेल में नारी कोमलता को कंही ढूंड रहा होता था ....

  

वंहा से पांचवी क्लास ख़त्म करने के बाद मेरा दाखला अब सरकारी स्कूल में हो गया ...जन्हा सिर्फ मर्द टीचर थे ...मर्दों की कठोरता का अनुभव हमें बचपन से था ....पर हैरानी की बात यह थी .... उनसे सजा मेने अपने विधार्थी जीवन में कुछ ही बार पाई थी ...जबकि लेडीज टीचर ...मुझे सजा देने के बहाने ना जाने कहाँ कहाँ से ढूंड लाती थी .....

शायद मेरी लेडीज टीचर मुझे इक छात्र कम इक पुरुष ज्यादा समझती थी और मैं उन्हें अपनी टीचर कम इक औरत ज्यादा...इसलिए वोह पुरुष समाज के प्रति अपने अन्दर की वेदना से मुझ जैसे लोगो को सजा देकर जलाती.......

इन सबका असर मेरे आने वाले जीवन में इक अलग अंदाज में देखने को मिला ....वक़्त का पहिया अपनी धुरी पे घुमने लगा ...और बचपन में ही जवानी की हिल्लोरे मेरे शरीर और मन से बहार निकलने के लिए बेताब होने लगी .....

मैं ही शायद अपने समय का इक ऐसा बदनसीब बच्चा था ...जिसे किसी भी औरत ने कभी भी ....ना तो गले लगाया ...ना ही उसे चुम्मा और ना ही उसे कभी अपने पास सुलाया .....मेरी उम्र के बच्चे घर बहार की औरतो द्वारा लाड प्यार पाते ...पर मुझे देख ना जाने क्यों सब दूर हट जाती .....

 शायद  नारी अपने अस्तित्व की गरिमा को पुरुष से पहले पहचान लेती है ...... 

जबकि  सच यह था ...मेरे अन्दर का बचपन और बच्चो जैसा ही था ...पर मेरी सोच बड़े आदमियों जैसी ...उस वक़्त मैं किसी नारी के संपर्क से कोई उत्तेजना महसूस ना करता ...पर मेरी आँखे ना जाने कौनसा सन्देश दे देती?

मुझे तो तलाश रहती की आखिर इक नारी के स्पर्श में ....उसके आलिंगन में....उसके चुम्बन में क्या रहस्य है ? जिसका पता मुझे तब तो नहीं ...अपनी जवानी में जाकर जरुर चला .....

औरतो की इस बेवफाई को तो मेने ज्यादा गंभीरता से ना लिया ....और देखते ही देखते मैं टीन ऐज में पहुँच गया .....मेरी उम्र के लड़के आस पडूस की लडकियों के साथ खेलते ...पर जैसे ही मैं उनके पास जाता ...ना जाने ..वोह सब या तो शर्माने लग जाती या उनके चेहरे पे गुस्सा झलकने लगता ...मुझे समझ ना आता ..मेने ऐसा क्या कर दिया? ...

शायद मेरी नजर उनके बढ़ते वक्ष स्थल का मुआयना जाने अनजाने कर बैठती थी ...वोह मुझे इक रहस्य लगता की ...जो कल नहीं था आज कैसे ? इन लडकियों की छाती अचानक कैसे और क्यों बढ़ रही है ?

मैं उनकी छाती देखता इक अजूबे की तरह पर वोह उसका कुछ और ही मतलब निकाल लेती थी ...जिसका अर्थ तब मुझे समझ नहीं आता था ....मेरे दोस्त मुझे समझा बुझा कर चले जाने को कहते  और मैं इस उधेड़ बून में लगा रहता ...

वोह क्या रहस्य है ...जो इक नारी और पुरुष को आपस में जोड़ता और दूर करता है? ......आखिर इक पुरुष किसी नारी के प्रति क्यों आकर्षित होता है ? वोह उसमे क्या देखता या धुन्ड़ता है और क्यों ?

इक नारी किसी पुरुष के प्रति उदासीन , शर्मीली , गुस्सेल और चिडचिडी क्यों होती है? आखिर बिना किसी को जाने समझे कैसे कोई किसी के बारे में अपनी राय बना लेता है ......

क्या हम पुरुषो के अंदर से कोई द्रव्य उत्सर्जित होता है ...जिसकी गंध नारी को अपना फैसला लेने में सहायक होती है ?

वक़्त के साथ साथ मेरी नारी को जानने और समझने में रूचि बढती गई ...पर अफ़सोस उस ज़माने में माहौल इतना खुला ना था और बदकिस्मती से मेरे स्कूल में को-एजुकेशन नहीं थी ....मतलब लड़कियां हम लोगो के साथ नहीं पढ़ती थी.....

मेरे घर के सामने इक लड़की रहती थी ...उसका नाम बेनू था ...जो उस ज़माने में मुझे इक अजूबा सी लगती ..उसके लड़केनुमा कटे बाल उसे बड़ा बोल्ड दिखाते ....उस वक़्त उसे दूर से ही देख मैं खुश हो जाता ..क्योकि उससे बात करने का कोई बहाना या मौका मुझे मिलता ही ना था ...वो मेरे जैसे लडको के साथ ना खेलती और ना ही उसका हमारे घर आना जाना था ....यूँ तो मोहल्ले में और भी लड़कियां थी ...पर ना जाने क्यों मुझे उन सबके अन्दर सिर्फ इक चुड़ेल ही दिखाई देती सिवाय उसके ....

देखते ही देखते कई साल यूँही बीत गए ..उसे दूर से देखते देखते हम दोनों बचपन से जवानी में आगये ..... उससे कभी बात करने और पास से देखने का मौका ही ना मिला...

पर उसके प्रति ना जाने इक अजीब सी भावना ने अंदर ही अंदर जन्म ले लिया... शायद वोह कच्ची उम्र का पहला पहला प्यार था .....जिसमे सिर्फ इक चाहत थी .......जिसकी ना कोई पहचान थी और ना ही कोई आरजू ...

वक़्त ने करवट ली मैं और बेनू दोनों इक ही कॉलेज में ...इक ही क्लास में आगये ...अब तो मैं उसे पास से देख भी सकता था और बात भी कर सकता था ...पर जब भी उससे कुछ बोलता ...वोह अपनी नजरे झुका लेती और बोलती ...मेरी सहेलियों ने किसी भी लड़के से बात करने के लिए मना किया है ...खास तौर से आप से .....

उसने जब पहली बार मुझेआपकहा मेरा मन मयूर नाच उठा ...मुझे याद नहीं कभी उससे पहले किसी ने मुझेतुमभी कहा था ....बचपन से उस दिन तक मुझे सिर्फअबे , तुबे , तूआदि सुनने की आदत थी ...मेरे घर की नारियां भी शायद किसी परुष कोआपकह कर सम्भोधित नहीं करती थी ....

अब मैं अपने और बेनू की मोहब्बत के सपने बुनने लगा ....पर हाय री किस्मत मेरे प्रेम की तो भ्रूण हत्या हो गई ....मेने सोचा ...जिस दिन किसी इंजीनियरिंग कॉलेज में सलेक्ट हो जायूँगा तब उससे बोलूँगा ...पर मेरे कॉलेज के रिजल्ट आने से पहले ही उसकी कंही मंगनी हो गई ....

जीवन का मेरे प्रति यह बड़ा ही क्रूर मजाक था ....इतने साल संयम और मेहनत से इक भँवरे ने कलि की रक्षा करते हुए इक फूल खिलाया और उसे कोई और ले उड़ा .....

उस दिन पता चला..... दिल शरीर के कौन से हिस्से में होता है और इन्सान दिल के टूटने से क्यों बर्बाद हो जाता है ....

यह गम भी धीरे धीरे आने वाली खुशियों के साए तले दब गया और मैं अपनी उम्र से पहले नारी को समझने की असफल चेष्टा करने लगा .....

जंहा मेरी उम्र के लड़के लडकियों के आगे पीछे दुम हिलाते घूमते ...वन्ही मुझ जैसे कुछ बेअक्ल ..उन्हें उनकी असलियत का आइना दिखाते फिरते .....

इस बेमतलब की अकड़ का यह परिणाम निकला ...मैं अपनी आधी जवानी ...बिना गर्लफ्रेंड यानी नारी के सुख और मीठे स्पर्श के बेजार कर गया ....
इक बार किसी दोस्त की शादी में गया ...तो वंहा इक अधेड़ औरत को देख चोंक पड़ा ....उसे पास जाकर देखा ...वोह कुछ अपनी ही हम्र उम्र औरतो के साथ बातचीत में मग्न थी ..मुझे अचानक यूँ देख वोह झेंप गई और बोली ...भाईसाहब आप किसे ढूंड रहे है ?

उसकी आवाज सुन मैं चोंक पड़ा .....मुझे पक्का यकींन हो गया वोह कौन है ...फिर भी अनजान बनते हुए मेने कहा ...शायद आप कुछ जानी पहचानी लगती है ...इसपे वोह हंसी और बोली ...अरे आप की उम्र और मेरी उम्र में बहुत फर्क है ....ऐसा कह वोह फीकी हंसी हंस दी ....

मेने अपने दोस्त से उस औरत के बारे में पुछा तो ...वोह बोला ..अरे यार बड़ी बदनसीब है ...माँ बाप ...उससे नौकरी करवाते है और खुद घर में सोते है ...उसकी शादी की इन्हें कोई फ़िक्र ही नहीं ..अब यह 38 की हो गई.... अब इससे भला कौन शादी करेगा ....बेचारी बड़ी सीधी सधी और नेक औरत है .....मैं बोला ..इसका नाम नवदीप कौर है ना...वोह चोंका और बोला तुझे कैसे मालूम ?
जवाब में मेने कुछ ना कहा और इक संतुष्टि की मुस्कान के साथ उन औरतो के झुंड की तरफ चला गया ...तो गौर से देखने पे मुझे अपने पब्लिक स्कूल की वोह सारी चुड़ैल इक साथ फीकी हंसी हंसती हुई दिखलाई दी ....उनमे से अधिकतर अभी तक कुवांरी थी ....उनकी हसीं जवानी अपना दामन कबका छुड़ा कर उन्हें आने वाले बुढ़ापे के अंधियारे में धकेल चुकी थी .....ना जाने उन्हें यूँ देख दिल को बड़ा सकूंन मिला ....

कैसी विडम्बना थी ....जिस मर्द जात यानी पुरुष समाज से उन्हें चिड थी आज वही समाज उनके लिए आवंछित हो चूका था ...
वक़्त का पहिया घुमा ...मेरी उम्र भी शादी की हो चली ....इक दिन मेरे लिए इक लड़की का रिश्ता आया ...देखने में लड़की अच्छी खासी थी ...पर उसे देखने जाने का इक ही आकर्षण था ...की ...वोह किसी पब्लिक स्कूल में क्लास 4 को पढ़ाती थी...उसकी माँ ने जोर देकर कहा की मैं उसे देखने स्कूल चला जायुं ...ताकि उसके स्वाभिमान को ठेस ना पहुंचे ...उनकी बात मान मैं उसे देखने स्कूल पहुंचा ....

स्कूल पहुँचने पे ...पहले तो प्रिंसिपल ने किसी से मिलने से मन कर दिया ....पर प्रिंसिपल को आने का कारण बताया तो उसने मुझे उसकी क्लास की तरफ इशारा करके बोला ...उसे क्लास के बहार से देख लो ....

मैं जब क्लास के पास पहुंचा तो ...मुझे इक कडकडाती हुई आवाज सुनाई दी ....नो टॉकिंग....उस आवाज की कडक ने मुझे अपने बचपन की याद दिला दी ....फिर भी हिम्मत कर उसे क्लास के बहार बुला कर अपना परिचय दिया और थैंक्स कह कर चला आया .....उसनो टॉकिंगने जैसे मेरा फैसला उसे बिना देखे ही कर दिया था ....यूँ भटकते भटकते ...मेरी आखिर में आँख इक लड़की से लड़ ही गई ....मेरे ऑफिस में लडकियों का इक नया बैच ज्वाइन करने आया ...उस बैच की सबसे खुबसूरत लड़की ने मेरे अंडर ज्वाइन किया ...जो कुछ समय बाद मेरी पहली प्रेमिका बनी ......उसके साथ बिताये समय ने नारी की इक गुत्थी खोली की ....

हर नारी अपने से ज्यादा पढ़ा लिखा , समझदार और कामयाब जीवन साथी चाहती है .......क्रमश :

.मेरे इस सफर की आगे की कहानी.....

By

Kapil Kumar 


Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. 



No comments:

Post a Comment