Tuesday 27 September 2016

नारी की खोज –13


अभी तक आपने पढ़ा नारी की खोज भाग –--1 से 12 तक में  ...की मैंने बचपन से आज तक नारी के भिन्न भिन्न रूपों को देखा .......मेरे इस सफ़र  की आगे की कहानी.....


गतांक से आगे .......

अगर भारत देश में लोगो से नारी की सुन्दरता का पैमाना पुछा जाए तो सबकी लिस्ट में एक चीज़ आवश्य होगी और वह है उसका रंग , अगर कोई औरत या लड़की कितने भी अच्छे नयन नक्श की और चाहे आवर गिलास फिगर वाली हो (ऊँचा उभरा वक्ष स्थल , गठे हुए नितम्ब और पतली कमर )पर देखने में सांवली हो तो लोगों  को उसकी सुन्दरता में कुछ कमी आवश्य महसूस  होगी ...कई लोगो के लिए तो सिर्फ गोरा रंग होना ही सुंदर होना होता है , भले ही देखने में वह नारी अजीब से नाक नक्श , दिमाग से बोडम और शरीर से बैडोल  ही क्यों ना हो ...किसी नारी की अदा , तहज़ीब  , सलीका , चाल ढाल जैसे सब उसके रंग के आगे तुच्छ से हो जाते है ......

मुझे याद है जब हमारे घर या रिश्तेदारों में किसी की शादी की बात होती तो , लड़की का रंग गोरा होना जैसे सबसे अहम बात मानी जाती ,की फ़लाने की बहु गोरे रंग की है , जिसकी लड़की गोरी होती उसके माँ बाप , अपनी लड़की को ना जाने क्या समझते ... ऐसे ही जब, उस ज़माने में, मैं आवारा भंवरा था , तब मैंने  भी यही अनुभव किया था की अधिकतर लडकियों के मन में भी अपने सांवले रंग को लेकर एक  काम्प्लेक्स रहता था , जो लड़की तनिक भी गोरी होती , वह अपने को दुसरे के मुकाबले किसी राजकुमारी से कम ना समझती , भले ही सलीका , तहजीब ,स्मार्टनेस जैसी चीजो का उसे ऐ , बी , सी भी ना आता हो और देखने , चलने और बात करने मैं वह नंबर एक  की फूहड़ और झल्ली लगती हो .....

शायद अंग्रेजो की गुलामी करते करते देश के लोगो के ज़ेहन  में गोरे रंग का खौफ इतना चढ़ गया , की उन्हें किसी का गोरा होना ही सर्वगुण संपन्न लगने लगा और ऐसा अब तक हमारे समाज में बादस्तूर चला आ रहा है ......की लड़की बस गोरी होनी चाहिए और जिनके लड़के का रंग जरा सा साफ हो तो , उन माँ बाप के नखरों का तो भगवान भी हिसाब नहीं लगा सकता ....की वह अपने लड़के को कामदेव का अवतार या कहीं  का राजकुमार बताते नहीं थकते है ....

पर मेरा यह मिथक विदेश में आकर टूट गया की , सुन्दरता में रंग ही सबसे अहम  नहीं होता , नारी में अदा , तहजीब ,सलीका, करुणा  , विश्वास और अच्छी फिगर का होना ही नारी के सुंदर होने का कारण होता है ..... गोरा रंग सिर्फ उन लोगों में अहमियत रखता है , जहां गोरे लोग कम संख्या में होते है , जैसे भारत में गोरा होने का मतलब अंधों में काना सरदार ., क्योकि अधिकतर भारतीय सांवली त्वचा या रंग वाले होते है .....लड़की बहुत काली ना हो , पर सांवली लड़की भी गज़ब  की खुबसूरत होती है ...

नौकरी के सिलसिले में , देश में सब कुछ छोड़ छाड़कर मैं विदेश तो चला आया , पर यहां के अपने अलग संघर्ष थे , इंडिया में रहने वाले विदेश में रहने वालो को समझते है की वह लोग सिर्फ मौज मस्ती की जिन्दगी जीते है , पर विदेश में अपने तरह के अलग संघर्ष होते है , जिन्हें ना तो समझाया जा सकता है और ना कोई उन्हें देश में बताना जा सकता है , अधिकतर प्रवासी भारतीय , भारत में आकर अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को अपनी ऐशो आराम की जिन्दगी की नुमाइश करके सिर्फ यह दिखलाते है की वह लोग बहुत मजे, ऐशो आराम से रहते हैं और काफी  पैसे वाले है ....जबकि कई बार हकीक़त इसके विपरीत होती है ....

खैर यह मेरी जीवन यात्रा थी और इसे मुझे ही पूरा करना था , विदेश में कुछ दिन शुरू के काफी अच्छे कटे, हम लोग फ्लोरिडा के एक  शहर में सेटल हो गए ...फ्लोरिडा का मौसम  इंडिया के दिल्ली जैसा था , ना ज्यादा ठण्ड और दिल्ली जैसी गर्मी , इसलिए मौसम के साथ ताल मेल बैठाने में कोई दिक्कत नहीं हुई , घर से 8/10 मील की दुरी पर समुन्द्र था , तो हर शुक्र या शनि की शाम को बीच पर ही गुज़रती ,जिन्दगी में ऐसा लगता था जैसे सब कुछ सुहाना सा है ....

पर यह मस्ती ज्यादा देर तक चल नहीं पाई , की , एक  नयी मुसीबत सर पर आन पड़ी ,की , मेरी नौकरी खत्म  हो गई , शुरू शुरू में तो मैंने उसी शहर में नौकरी ढूंढी  , ताकि हम सब एक  साथ रह सके , पर एक  प्रवासी के लिए जो वीसा के नियम से बंधा हो , उसे छोटे शहर में नौकरी के बड़े ही सीमित अवसर होते है , क्योंकि हम सब किसी ना किसी कंपनी के साथ वीसा की शर्तों  से बंधे होते है जब तक आपका ग्रीन कार्ड ना आ जाये ...दूसरे  फ्लोरिडा बिज़नेस  और इकॉनमी  के हिसाब से इतना अच्छा ना था , की वहां किसी प्रवासी को नौकरी आसानी से मिल जाए .......

इसी भाग दौड़ में कुछ महीने निकल गए , मुझे उस शहर या उसके आस - पास में कोई नौकरी ना मिल सकी ...कई महीने घर में बिना नौकरी के काटने के बाद, अब एक  शर्म और ग्लानि  सी लगने लगी , की अडोस-पड़ोस  के देसी लोग मुझे बीवी की कमाई पर पलने वाला जंतु समझने लगे थे .....इसके अलावा मेरा रुतबा जो घर में देश में था, अब वह मैं विदेश में आकर खो चूका था , क्योंकि घर में बच्चे को पालते और घर के काम करते करते , मैं कब इतना झुक गया की मैं अपनी मर्दानगी को हमेशा के लिए गँवा बैठा और जब मैंने  अपनी कमर सीधी करनी चाही तब तक बहुत देर हो चुकी थी .....मेरी हालत उस राजा की तरह थी जो बीमार होने पर  अपने राज्य की बाग़डोर अपनी रानी को दे दे और जब राजा वापस आये तो सब कुछ बदल चूका हो .....साथ में उसकी गद्दी, नौकर चाकर और उसके दरबारी भी ...

घर में रहते रहते मैं बोर हो चूका था , एक  तरफ पैसे की भी तंगी थी तो दूसरी और मुझे अपने कैरियर  की भी चिंता होने लगी , की , घर बैठे बैठे कहीं  किसी काम का ना रहूँ ... तभी मुझे एक  नौकरी का अवसर मिला , पर यह तो हमारे शहर से बहुत दूर दुसरे स्टेट में था , पर उस वक़्त हालत ऐसी थी की “बैगर  आर नोट चूज़र” वाली हैसियत में जो मिला मैंने  उसे ले लिया ....

एक  नए शहर में आकर मैंने  उस नौकरी को ज्वाइन कर लिया ,और रहने के लिए पास में ही एक  अपार्टमेंट किराये पर ले लिया , ऑफिस अपार्टमेंट से मुश्किल से 1 मील की दुरी पर था , सोचा की पैदल आना जाना कर लूँगा , पर जब ठण्ड में कान फोड़ने वाली हवा चलने लगी तब समझ आया की बिना गाड़ी  के एक  दिन भी जिन्दा रहना कितना मुश्किल था , पैदल जाने का मतलब था की ,आप अपनी आफत को गले लगाना चाहते है ...खैर  इस समस्या का भी हल निकल आया , जब मेरे साथ काम करने वाले एक  लड़के ने मुझे सुबह और शाम को लेना और छोड़ना स्वीकार कर लिया ...

देखते ही देखते महीना  बीत गया , मैं अपनी नयी नौकरी में रम गया , जब मेरे पास नौकरी ना थी , तब बीवी के आँख में मैं खूब खटकता था की घर में बेकार पड़ा हूँ , अब जब मैं उससे दूर चला आया तो , उसने भी अपना नया गाना गाना शुरू कर दिया , की उसे और बच्चे को अकेले रहते बोर लगता है , सारी बच्चे की जिम्मेदारी उस पर आन पड़ी आदि अदि ...नौकरी ,मैं अब छोड़ नहीं सकता था और बीवी भी नौकरी छोड़ कर मेरे शहर में आसानी से नहीं आ सकती थी ..क्योंकि  वह भी अपनी कंपनी के वीसा नियम से बंधी थी , इसलिए हम दोनों को ऐसे ही कुछ समय गुज़ारना था , जब तक उसका काम अपने क्लाइंट से ख़त्म नहीं होता और वह मेरे शहर में दूसरा क्लाइंट नहीं ढूंड लेती .... इसलिए नौकरी में करीब डेढ़ महीना  बीतने के बाद ,मैं हर दुसरे हफ्ते बीवी बच्चे से मिलने के लिए फ्लाइट पकड कर 2/3 दिन के लिए चला आता ...क्योकि उसका शहर और मेरा शहर इतना दूर था ...की फ्लाइट में भी 2 घंटे लग जाते थे ...ऐसी ही एक  बार सफ़र के  दौरान मुझे ऐसा अनुभव हुआ , जिसने मुझे यह सोचने पर विवश किया , की आखिर सुन्दरता क्या है ?...


हर बार की तरह मैं फ्लाइट में अपनी सीट पर आकर बैठ गया , मेरी फ्लाइट अधिकतर दोपहर की होती थी ऐसे में वह लोग सफर करते थे , जो अपने प्रोजेक्ट या काम के सिलसिले में अपने घर से दूर बाहर  आते जाते थे , विदेश में सोमवार की सुबह’ की और शुक्र की दोपहर / शाम की फ्लाइट में अधिकतर ऐसे प्रोफेशनल लोग होते है , जो काम की सिलसिले में अपने घर से बाहर  टूर पर होते है ....यह लोग सोम की सुबह निकलते है और शुक्र को वापस अपने शहर लौट आते है.....मैं भी और रूटीन की तरह ,फ्लाइट में आकर बैठता थोड़ी ही देर में आँखे बंद करके सो जाता , क्योकि इधर उधर देखने लायक ऐसा कुछ सीन वहां नहीं होता .....

पर इस बार एक  नया अनुभव मेरा इन्तजार कर रहा था , की फ्लाइट में , मेरे बगल वाली सीट पर एक  19/20 साल की निहायत ही खुबसूरत लड़की आकर बैठ गई ...मैंने नज़र  उठाकर उसे देखा तो बदले में उसने एक  मीठी सी मुस्कान फैंक दी , विदेश का भी अजीब कल्चर है आप किसी को देखे तो बदले में दूसरा आपको एक  मीठी मुस्कान देगा या आपको हेल्लो या विश करेगा या फिर अपना हाथ हिला देगा ...अपने देश में तो लोग देखने पर  , मुंह  सिकोड़  लेते है , खासतौर से खुबसूरत चेहरे ...ना जाने क्यों खुबसूरत लड़कियां  / औरतें  , किसी आदमी/लड़के की तरफ मुंह को बिचका कर या सिकोड़  कर ऐसे देखेगी  जैसे कोई जंगली जानवर देख लिया हो और अपने अच्छे भले चेहरे  का सत्यानाश कर देंगी ....

उस लड़की का रंग दूध में मिली हल्की  सी केसर जैसा था , उसका गोरा वर्ण एक  थोड़ी सी गुलाबी और सुनहरी सी रंगत लिए था , लड़की अच्छे नाक नक्श , उठे और भरे हुए उभार लिए एक लम्बे कद की लड़की थी , उसका बदन पूरी तरह से जवानी की धुप में पक कर निखर चूका था उस पर  उसके खुले हुए सुनहरे बाल , उसके बार्बी डॉल होने का आभास दे रहे थे ....वह मेरे बगल वाली सीट पर  आकर बैठ गई और जैसे ही फ्लाइट आसमान में पहुँच कर सीधी हुई , उसने अपने एक  झोले नुमा बैग से एक पुरानी  सी निक्कर निकाली और उसका मुआयना  करने लगी .... तभी अचानक उसके हाथ में एक  सुई प्रगट हुई और वह अपनी आसन के पास से उधडी निक्कर को सीने लगी .. ....उसे ऐसा करते देख मुझे बहुत हैरानी हुई , विदेश में भी कोई लड़की सुईं धागे से सीना पिरोना जानती होगी , इसकी तो मैंने  कल्पना भी ना की थी , कहाँ हमारे देश में तो लडकियों ने , मेरे समय में ही ,जैसे इस काम को हाथ ना लगाने की कसम लेनी शुरू कर दी थी ...उन्हें लगता था सिलाई , कढाई , बुनाई और खाना बनाना यह काम सिर्फ उन औरतो के लिए है , जो अनपढ़ है और घरेलू है , भला आज के ज़माने की पढ़ी लिखी लड़की यह सब क्यों करे ?  ...

उसे ऐसा करते देख मेरा मन उससे बात करने को मचलने लगा और मैंने  उससे पूछ लिया ..की वह कहाँ और क्यों जा रही है ...उसने बताया की वह यहीं कॉलेज में पढ़ती है और छुट्टी में अपनी दादी से मिलने जा रही है ....जब मैंने  उसे अपनी जिज्ञासा के बारे में बताया की उसे यूँ सिलाई करते देख मुझे हैरानी हुई तो उसने कहा , यह तो कुछ भी नहीं , फिर उसने मुझे अपने झोले से कई तरह के क्रोशिया (कढाई करने के लिए )और बुनने के लिए सलाई दिखाई तो मुझे बहुत ही हैरानी हुई ...क्योंकि यह चीज़ें तो मेरे ज़माने में ही देश से विलुप्त होने लगी थी ...क्योंकि मैंने  भी अपने घर में अपनी बड़ी बहन के बाद किसी को यह सब करते हुए नहीं देखा , ना मेरी छोटी बहन , बीवी और न ही मेरी किसी सहेली में यह हुनर था ...की वह कुछ सिलाई , कढाई या बुनाई जैसा कुछ कर सके , कम से कम मेरे सामने तो किसी ने कभी कुछ किया नहीं और ना ही मुझे कुछ ऐसा करके दिखाया ....

उसे यूँ सिलाई करते देख आँखे जैसे एक  मीठे से सकून  में डूब गई , की अभी भी नारी में कोमलता , करुणा  और उसके स्त्री सुलभ गुणों का अहसास कहीं ना कहीं   जिन्दा है ....मेरी दिलचस्पी उस लड़की में अब और ज्यादा हो गई और मैं उसके बारे में जानने के लिए उत्सुक हो उठा ... उसके बात करने का सलीका और तरीका इतना दोस्ताना था , लगता था जैसे बस उससे देखता रहूँ , उसका हर बात पर मुस्करा कर , कभी सॉरी , कभी थैंक्स तो कभी एक्सक्यूस मी बोलना दिल को छू  जाता ... मैं उसके भोले भाले से मासूम सौन्दर्य  और कमसिन अदाओ में जैसे डूब गया ...

मन को ऐसा अहसास हुआ अगर मैं इस लड़की के साथ अगर डेटिंग पर जाऊं  तो कितना मजा आएगा ...मुझे लगता था , यह बस ऐसे ही मुस्करा  कर बातें  करती रहे और मैं इसे बस यूँही निहारता रहूँ .... इसकी कभी ना ख़त्म होने वाली बातें ,  जैसे बस मेरे कानो में गूंजती रहे और आँखे इसके कमसिन सौन्दर्य  में डूबी रहे ....पर उस दिन मुझे सुन्दरता का एक वीभत्स  दर्शन होना बाकी था .....जिसने इन्सान के अंदर छिपी एक  वीभत्स सुन्दरता को उजाग़र करना था ...

बातें  करते हुए अचानक लड़की ने अपने अपनी निक्कर को ज़िप की तरफ से सीधा किया और कमर के आसन की तरफ से उसका मुआयना करने लगी ...मुझे यह तो पता नहीं उसने वहां  पर कितना बड़ा छेद देखा ....जिसे वह बंद करना चाहती थी ...पर निक्कर की ज़िप के सामने जो हिस्सा पोट्टी की तरफ आता है , वहां  कुछ लगा हुआ था ....मेरी जिज्ञासा  हुई की वह क्या है , गौर से देखने पर लगा वह कोई सुखी हुई पोट्टी थी , जो उसकी निक्कर पर लगी हुई थी ...लड़की उससे बेखबर वहां  अपनी उधड़ी  हुई सीवन की तुरपाई / सिलाई करने में मस्त थी ....

मुझे एक  बार को लगा शायद उसने देखा नहीं ...पर जब उसने निक्कर को सीट के सामने वाली टेबल पर अच्छे से फैला दिया तो ....उसमे उसकी लगी गंदगी साफ दिख रही थी ...मुहे यह देख एक  बड़ी सी उबकाई आई ..मैंने  अपनी नज़रों  को वहां से हटा लिया ...अभी तक जो मुझे किसी अजन्ता की मूरत  लग रही थी ...अचानक से एक  गंदगी के ढेर में खेलने वाली एक  गन्दी सी बच्ची लगने लगी ..इसके बाद मैंने  उसकी तरफ निगाह उठा कर भी नहीं देखा ....

मुझे लगा यह इतनी लापरवाह कैसे हो सकती है , या तो इसने इस गंदगी को देखा नहीं , अगर देखा है तो इसे कोई बड़ी ख़ास बात इसमें नहीं लगी होगी , पर सवाल यह था की यह गंदगी क्यों और कैसे वहां  पर रह गई ...

जैसे ही फ्लाइट लैंड हुई और मैं अपनी सीट से उठा और बिना कुछ कहे सुने सीधा प्लेन से बहार निकलने के लिए आगे की तरफ चल दिया की उस लड़की ने मुझे मुस्करा  कर बाई /अलविदा कहा ....मैंने  उसके बाई  का जबाब किसी तरह से मुस्करा  कर दिया और वहां से तेज़ क़दमों  से होता हुआ प्लेन से बाहर  निकल आया ....उस वक़्त मन को ऐसा लगता था जैसे मैंने  किसी सुंदर स्त्री के अंदर एक  छिपी हुई चुड़ैल  देख ली हो ....पर उस वक़्त मुझे क्या पता था ...मैंने  जो वीभत्य सुंदरता देखी  है ..उसका तो यह ट्रेलर मात्र था , पूरी पिक्चर अभी आनी बाकी थी ...

जिन्दगी अपनी रफ़्तार से चलने लगी , मैं अपनी नौकरी में वयस्त हो गया और कुछ समय बाद बीवी ने भी विधि का विधान समझ हालत से समझौता  कर लिया... की ..कुछ महीने हमें ऐसे ही लग रहकर गुज़ारने होंगे ....एक  दिन मुझे मेरे कॉलेज फ्रेंड अशोक का पता मिला की वह भी मेरे ही शहर में रहता है तो .... उससे बातचीत हुई और वह मुझसे मिलने की लिए अगले शनिवार मेरे अपार्टमेंट चला आया ...बातों ही बातों में , कॉलेज की लडकियों और उनके अफेयर की बात निकल पड़ी और उसने मुझसे एक  अजीब सा सवाल पूछ लिया ....अशोक बोला ...हाँ तो गुरु अब तक कितनी लोंडिया टहला चुके हो ? ..मैंने भी अपने मर्दानगी की लंबी छोड़ी डींगे मार दी , की इंडिया के काफी राज्यों में घूमा  तो हर राज्य में हाथ साफ़ का लिया ...जबकि हकीकत में , मुझे कहीं भी किसी औरत के साथ कुछ करना नसीब नहीं हुआ था , पर उसके सामने अपने को मर्द भी तो दिखाना था ....

अशोक बोला.... बॉस इतने दिन हो गए अमेरिका आये हुए हो गए , कुछ किया की नहीं , मैं बोला करने से मतलब ..उसने एक  गहरी साँस ली और बोला ...गुरु इंडिया में क्या किया उसे मारो गोली , यह बताओ की “ किसी गोरी की अब तक ली की नहीं “ .. उसके इस सवाल पर मैं चोंका और बोला ...अबे मैं तो अभी नया नया आया हूँ , मुझे भला यहां  कौन जानता है ...इस बात पर  अशोक हंसा और बोला ..तो गुरु बस चुप रहो , जिस दिन गोरी की ले लो , तब मेरे सामने अपना मुंह  खोलना और यह कह कर उसने एक  तिरछी नज़र  मुझ पर डाल दी ....उसने यह बात जिस अंदाज में कही , वह ना जाने क्यों मेरे दिल में एक  नुकीले नश्तर की तरह उतर गई .... उस वक़्त मुझे ऐसा लगा , जैसे किसी ने मुझे सरे बाजार नंगा करके मुझे मेरी औक़ात  दिखा दी हो .....

अशोक तो बुझी राख में चिंगारी को हवा देकर चला गया , अब मेरा मन इस बात सोच सोच कर बैचैन  होता की ..किसी गोरी से कैसे संपर्क बढाया जाए ... उसके साथ सोने में किसी देसन के साथ सोने क्या फर्क लगेगा ,पर ऐसा होना इतना आसान ना था , एक  तो मैं विदेश में नया था दूसरे  किसी से बात करना एक  बात है पर किसी से उस तरह की बात करना अलग बात ....

मेरे ऑफिस में , एक  साउथ इंडियन लड़का था , जिन दिनी मेरे पास गाड़ी  नहीं थी , वह उन दिनों मुझे शुरू शुरू में अपने साथ सुबह और शाम घर से ऑफिस से लाता ले जाता था ,....तो एक  दिन ऑफिस में जब हम बात कर रहे थे की ..उसने किसी इंडियन लड़की की तरफ इशारा करके कहा , उसे देखते हो . मैं बोला हाँ तो क्या खास बात है इसमें , उसने अपने खींसें निपोरे और बोला , यह कैलिफ़ोर्निया से यहां प्रोजेक्ट करने आती है और ऑफिस के पास वाले होटल में ठहरी  है .... यह हर दो हफ्ते में कैलिफ़ोर्निया वापस जाती है , और जिस हफ्ते यह यहां रहती है , उस हफ्ते यह किसी लडके के साथ अपने ऐश’ का इंतजाम करती है ,अगर तुम्हे इसके साथ मज़े  लेना हो तो , इसे ले जाओ और कुछ शोपिंग करवाओ और खिलाओ पिलाओ ....बस तुम्हारी ऐश पक्की ...

उस लड़के की बात सुन मुझे विश्वास ना हुआ , भला एक  प्रोफेशनल लड़की यह सब क्यों करेगी ...पर मेरा मिथक जल्दी टूट गया , जब मैंने  उसे अलग अलग समय में अलग अलग लड़कों  के साथ ऑफिस के पास वाले होटल से निकलते देखा .... ऐसे ही एक  दिन उसके साथ मैंने एक  गोरी लड़की को होटल से निकलते देखा ..बाद में पता चला की वह गोरी हमारे ही ऑफिस के किसी प्रोजेक्ट में काम करने आई थी और पास वाले होटल में उस लड़की की तरफ से रह रही थी ....

एक  दिन जब मैं ऑफिस गया तो साथ वाले किसी लड़के ने बताया की एक  गोरी है जो आसानी से मान जाती  है ...न जाने मुझे क्यों लगा की हो ना हो यह सब उसी लड़की के बारे में बात कर रहे है ...मैंने  उसे सिर्फ दूर से देखा था ..इसलिए मुझे पता भी ना था की वह देखने में कैसी है और लड़के जो उसके बारे में बता रहे है , उस बात में दम है भी या नहीं ...फिर बातों ही बातों में एक  लड़के ने मुझसे पूछा अगर तुम्हें  इंटरेस्ट है तो उस गोरी का नंबर दूँ  ?

अब अँधा क्या चाहे दो आँख वाली बात हो गई ....मैंने  झट उस लड़के से लड़की का नंबर ले लिया ...नंबर तो मैंने  जोश में ले लिया पर बात कैसे करूँ यह समझ नहीं आया , कहीं लोगों  की बातें झूठी निकली तो मैं नौकरी से हाथ धो बैठता और कुछ लफड़ा गले पड़ता वह अलग रुसवाई का कारण बनता , पर उस वक़्त किसी गोरी नारी के जिस्म की चाह इतनी तीव्र थी जैसे मैं सब भूल गया और मैंने  वह अहमक कदम उठा लिया जिसे सोचकर भी आज मेरी रूह कांप उठती है ..की अगर वह कदम जरा भी गलत होता तो कौन जाने आज मैं कहाँ  होता?.....

पर जोश में होश कहाँ होता है ..नंबर मिलने की ख़ुशी ने मुझे बावरा बना दिया और मैंने  बिना सोचे समझे की अगर मैं गलत हुआ तो इसका क्या परिणाम होगा , मैंने  नंबर डायल कर दिया ....एक  दो रिंग के बाद किसी लड़की की आवाज आई ..हेलो  ....

में आई हेल्प यू ? व्हाट डू यू वांट ? ....मैंने  अपनी दिल की धड़कनों  को काबू रखते हुए कहा , इफ यू आर फ्री , कैन वी गो फॉर लंच ? उसने मुझसे पुछा मैं कौन बोल रहा हूँ और मुझे यह नंबर कैसे मिला ? मैंने  उसे सच सच बता दिया , की मेरे एक  साथ काम करने वाले ने तुम्हारा नंबर दिया , की तुम किसी साथी की तलाश में हो और तुम्हारे साथ लंच किया जा सकता है ...

उसने मेरी बात सुनी और एक  तीखी साँस ली और बोली , तुम मुझे होटल की लोबी में मिलो , अगर तुम मुझे ठीक लगे तो मैं तुम्हारे साथ लंच पर चलूंगी वरना , तुम वापस जा सकते हो , मुझे उसकी इस शर्त में कोई आपत्ति  नहीं लगी और देखते ही देखते , मैं उडन छु  होकर, उसके होटल पहुँच गया ...

सर्दी खत्म  होने को थी , स्प्रिंग लगभग आ चूका था , फिर भी इतनी ठण्ड तो थी की , मुझे एक  जैकेट अपने बदन पर डालनी पड़ी , पर उस वक़्त सर्दी से ज्यादा मुझे गर्मी लग रही थी , टेंशन और एक्साइटमेंट में बदन से पसीना ऐसे चू रहा था जैसे , गर्मी के मौसम में खुले आसमना के नीचें खड़ा हूँ ,मैं धड़कते  दिल और कल्पनाओ में खोया तुरंत फुरंत में उसके होटल पहुँच गया ...

होटल की लॉबी में पहुंच मैंने  रिसेप्शन से उसको अपने आने की सूचना  भिजवा दी , जिसके जवाब में उसने कहा की वह थोड़ी देर में नीचे आती है ...आज से पहले मैंने  सिर्फ उसे एक उड़ती नज़र  से दूर से देखा था , मुझे यह तो अंदाजा था की वह कैसी है , पर दूर और पास का भ्रम कल्पनाओं को एक  उड़ान देने में लगा था , की अचानक एक  आवज सुन मैं चोंका , ओहः  , सो यू आर देयर ... मैंने एक उड़ती सी  नज़र  उस पर डाली ....

वह एक  मझले कद (वेस्टर्न वर्ल्ड के हिसाब से ) और गठीले बदन की करीब 25/25 साल के करीब की युवती लगी  ... उसका गोल चेहरा हल्की  सी गुलाबी रंगत के साथ सुनहरा रंग लिए हुए था , उसकी हल्की  भूरी आँखें एक  ख़ामोशी सी समेटे हुए थी और होंठ अनार की तरह लाल होने के बावजूद   भी अपने हल्के  मोटे होने के कारण बहुत आकर्षण पैदा नहीं कर पा रहे थे , उसके सुनहरे बाल कंधे के नीचें  तक लटके हुए थे और चेहरे पर एक अज़ीब  सी निराशा झलकती थी , मुझे उसके चेहरे में ऐसा कोई आकर्षण नजर नहीं आया , जो मुझे याद भर रहता ,वह सुंदर होने के वावजूद अपनी सुन्दरता को जैसे कंही दबाये हुए थी , शायद वह  अपनी जिन्दगी में निराशा के गर्त में कुछ ज्यादा ही डूबी हुई थी ....

उसकी सुन्दरता ,नारी सुलभ कोमलता , करुणा  और लज्जा के वस्त्र ना होने कारण अपने आप को समाज में नंगा महसूस कर रही थी और इसे छिपाने के लिए उसकी बाज़ारू मुस्कराहट नाकाफ़ी थी .....

मैंने  उसे अपना परिचय दिया और बदले में उसने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया ... उसके चेहरे की मुस्कान में एक  बाजारू दिखावा भर था , फिर वह मुस्कराते  हुए बोली ,अब क्या प्लान है ?...मैंने उससे कहा जहां वह पसंद करे हम लंच पर चल सकते है , उसे उस एरिया का ज्यादा पता नहीं था तो उसने कहा ... चलो तुम ही अपनी पसंद के रेस्टुरेंट में ले चलो , मैंने  उसे कहा की , मेरा पसंद का खाना तो सिर्फ इंडियन वेजिटेरियन है , अगर उसे पसंद हो तो वहीँ  चलते है , जिस पर उसने अपनी गर्दन हाँ में हिला दी ...

रेस्टुरेंट पहुंचकर हम दोनों ने अपनी अपनी पसंद की डिश आर्डर कर दी , खाना खाने के दौरान हम दोने ने ऑफिस और काम से सम्बंधित बातें  और थोड़ी इधर उधर की बातें  की , मुझे एक  बार भी नहीं लगा की यह लड़की किसी खुले सेक्स या किसी ऐसी चीज में कोई दिलचस्पी रखती भी होगी या नहीं ? जैसे जैसे लंच ख़त्म हुआ  ,मेरा दिल निराशा में डूब रहा था , की कहीं उसके बारे में जो लड़कों  ने कहा वह गलत तो नहीं ?उसकी बातों से ऐसा कुछ लगा नहीं की वह ऐसा कुछ करती भी होगी ....

कुछ समय बाद लंच भी ख़त्म हो गया ......मैंने  उससे पुछा अब क्या करना है किसी मॉल में चले क्या , उसने कहा वहां क्या करना है , मैं बोला शायद तुम कुछ शोपिंग करना चाहो , इस बात पर वह जो से हंसी तो तुम मुझे शोपिंग करवाना चाहते हो , पर मुझे तो कुछ खरीदना ही नहीं है , उसकी यह बात सुन मेरा दिल डूबने लगा , की अब मेरी बात कैसे आगे बढ़ेगी ?... वह मुझसे बोली ,ऐसा करते है होटल चलते है वहीँ बातें करते है , अब मैं वापस उसके साथ होटल जा रहा था , मुझे लगा , अब इससे ज्यादा कुछ नहीं होगा , इसे होटल छोड़कर मैं भी वापस अपने अपार्टमेंट चला जायूँगा ...पर मुझे क्या पता था , अभी मुझे जीवन में नारी के और रूप के दर्शन करने बाकी थे ....

होटल पहुंचे पर उसने मुझसे कहा की मैं जाकर गाडी को पार्किंग लॉट  में पार्क करके आऊं  और उसके बाद थोड़ी देर लॉबी में बैठ कर बातें करते है ... उसकी इस बात ने दिल को थोड़ी तस्सली दी की , अभी सब कुछ’ ख़त्म नहीं हुआ है ....हम दोनों होटल की लॉबी में पड़े सोफे पर आकर बैठ गए और इधर उधर की बातें  करने लगे ..की अचानक वह बोली ऐसा है मुझे कल चेक आउट करना है , मैं कमरे में जाती हूँ तब तक तुम जा कर मेरा फाइनल पेमेंट रिसेप्शन से क्लियर करके रूम पर आजाना, यह मेरा रूम नंबर है और ऐसा कह वह वहां  से इठला कर चली गई ... इस बार उसकी चल में एक  लापरवाह मस्ती और अदा थी .....

उसकी यह बात सुन एक  तरफ दिल जोश में उछलने लगा तो दूसरी तरह यह आकांक्षा  मन में उठने लगी पता नहीं उसका कितना बिल बकाया होगा , कहीं  लेने के देने ना पड़ जाए ...खैर  हिम्मत करके रिसेप्शन से उसका बकाया पुछा ,जो अनुमान के बराबर ही निकला ,जैसा की लडको ने मुझे हिंट दिया था ... जिसे मुझे चुकाने में कोई परेशानी ना हुई ....

रिसेप्शन से निबट  कर , मैं उछलता कूदता उसके कमरे पर पहुँच गया और उसके कमरे पर  दस्तक दे दी ... कमरे पर  दो चार बार खटखटाने के बाद भी कमरा नहीं खुला तो मैं बाहर धडकते  दिल से इंतजार करने लगा , की थोड़ी देर इन्तजार करने के बाद कमरे का दरवाजा खुला और उसने कमरे के दरवाजे को थोडा सा खोलकर धीरे से मुझसे कहा अंदर आ जाओ ...

मैं जोश और उत्तेजना  में उड़ता हुआ कमरे में घुस गया ...उत्तेजना  और तनाव से मेरा बदन कांप रहा था , एक तरफ तनाव से ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ था , जिसके कारण सर्दी में भी शरीर से पसीना छूट  रहा था और दूसरी तरफ उत्तेजना के कारण मेरी हथेली और पैर के तलुओ में कंप कम्पी लगी हुई थी ....हाथ और पैर जैसे ठन्डे हुए जा रहे थे ,मुझे अपना कोई होश न था, उस वक़्त मुझे ना कुछ दिख रहा था और ना ही मुझे कुछ समझ आ रहा था ..लगता था जैसे मेरा दिमाग शून्य हो चूका है ....

कमरे का नज़ारा भी अज़ीब  था , पूरा कमरा बुरी तरह से अस्त वयस्त था ,जो उसके अदब , आदत , तहज़ीब  और सलीके का ढोल अपने ही तरीके से पीट रहा था ....कमरे के कोने  में एक  तरफ गंदे तौलियों  का ढेर था तो दूसरी तरफ पहले से खाए हुए खाने और मुर्गे की हड्डियां , प्लेट में सडती हुई एक अज़ीब  से दुर्गन्ध फैलाये हुए थी , पर उस वक़्त मेरे दिमाग पर जवानी का भूत इस कद्र चढ़ा हुआ था ,की मैं सब कुछ देख कर भी अनज़ान बन गया ...

कमरे से घुमती हुई मेरी निगाहें  उसे ढूंडती हुई जब उसकी तरफ मुड़ी की मेरा मुंह मस्ती भरी हैरानी में खुला का खुला रह गया .... उसके गोरे जिस्म को सिर्फ ब्रा और पेंटी ने हल्के  से ढक भर रखा था .... उसकी मस्त जवानी उसके दुधिया रंग जैसे गोरे बदन से छलकने को बेताब थी , उसके कसे और भरे हुए उरोज उसकी ब्रा की कैद से निकलने के लिए बैचेन हो रहे थे , उसकी भरी पूरी चिकनी मखमली जांघे , मुझे अपनी तरफ खींचने के लिए उतावली हो रही थी , उसके लाल होठ और गुलाबी गाल जैसे मुझे मेरी जवानी की गहराई नापने की चेतावनी दे रहे थे .... वह अपनी आँखों में एक कामुकता और मादक चाल से चलती हुई मेरे नज़दीक  आई और उसने गले से लगाकर मेरे गाल पर एक चुम्बन रख दिया .....

उससे गले मिलकर बदले में मैंने  भी उसकी शरीर को अपनी बांहों में कस कर भींच लिया , की उसने एक  मीठी सी आह भरी ....और बोली की इतनी जोर से मत दबाओ , पर उस वक़्त मुझे होश कहाँ था , मैं तो जैसे उसके शरीर को अपनी बांहों में इतना जकड़ लेना चाहता था , की वह कभी मेरी जकड़ से आजाद ना हो पाए , उसने जोर लगाकर अपने को मेरी बांहों की गिरफ्त से अलग किया और अपने प्रोफेशनल अंदाज में बोली चलो कहाँ से शुरू करना है और तुम्हें पता है ना की तुम्हे सिर्फ एक  ही बार करने का मौका मिलेगा ....

मैं बोला इसका क्या मतलब , वह बोली ....बस एक  बार के स्खलन के बाद तुम्हारा काम ख़त्म , फिर उसने मुझे ऊपर से नीचे  घूर कर देखा और बोली कपडे नहीं उतारने या सिर्फ ब्लो जॉब करवाना है ?.... उसका इतना कहना था की मैंने  अपने शरीर से कपडे एक ही झटके में उतार फैंके , पर इस हड़बड़ी में जैसे मेरा ध्यान भटक गया ...... आज से पहले , मैंने ओरल सेक्स (ब्लो जॉब )का नाम सुना और उसे सिर्फ ब्लू फिल्मों में  देखा भर था ....मुझे इंडिया में इसका अनुभव कभी हो नहीं पाया था , मेरे वक़्त में ना जाने क्यों देश की औरतो / लडकियों में ओरल सेक्स को लेकर तरह तरह की भ्रांतियां -गलतफमियां थी , की यह स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है , बहुत गन्दा है आदि आदि ...मैंने  सोचा क्यों ना आज इस मौके का भरपूर फायदा उठाया जाए और इसका मज़ा भी ले लिया जाए ....मैंने  कहा चलो पहले ब्लो जॉब से शुरू करते है ....

उसने मेरी बात सुनी और मुस्करा  कर बोली ठीक है , उसने अपने पर्स से एक  कंडोम निकाला और मेरे ऊपर चढाने लगी , मैं बोला यह क्यों , वह बोली मैं हर काम के लिए कंडोम का इस्तमाल करती हूँ ... मुझे  उसके कंडोम चढाने और मुंह  में लेने पर हैरानी हुई , क्योकि कंडोम के उपर तो एक  अजीब सी चिकनाई वाला लुब्रिकेंट होता है , उसे भला कौन मुंह  में ले सकता है ... पर उस वक़्त मैंने  उससे कुछ ना कहा , मैं सोफे पे बैठ गया और वह मेरे पास आकर नज़दीक  में ज़मीन पर  बैठ गई और ऐसा कह कर उसने चढ़े हुए कंडोम को अपने मुंह  में ले लिया ....

उसने मुंह  में लेते ही अपनी जिव्हा से ऐसा खेल खेलना शुरू किया जैसे कोई भूखा बच्चा सोफ्टी वाली आइसक्रीम का कोन उपर से नीचे जल्दी जल्दी से जल्दी चाट कर सारी आइसक्रीम चट कर लेना चाहता हो , उसके ऐसा करने से मेरा तनाव एक  सेकंड में ही अपनी चरम सीमा के करीब पहुँच गया , तब मुझे ऐसा लगा, जैसे मैं बस अब आजाद होने वाला हूँ ,तभी मुझे लगा , यह तो सारा मामला एक  मिनट में ही निबटा देगी और यंहा से मुझे रुख़सत कर देगी ...पर मुझे तो उसके साथ एक  लम्बा सफ़र तय करना था .....मैंने  उसके कंधे को झटका दिया और उसे अपने से दूर कर दिया , ताकि मुझे थोड़ी सांस लेने और सोचने समझने का वक़्त मिल सके और मैं अपनी चढ़ती उत्तेजना को कंट्रोल में कर सकूँ .....वरना मेरा तनाव खत्म  होने का मतलब खेल खत्म  होना हो जाता ....




मैंने  अपनी उखड्ती सांसो को काबू में लिया और एक  गहरी सांस ली , फिर मैंने  अपना ध्यान भटकने के लिए , कमरे में इधर उधर निगाह डाली , कमरे में एक  बड़ा बेड था जिसके पास एक  सोफा और दो कुर्सी पड़ी थी और सामने बाथरूम दिखलाई दिया.... मैं वापस फिर से सोफे पर पसर गया की..

वह मेरे नजदीक आई और मुझे सहलाने लगी ....मैंने  उसे पुछा वह कंडोम को मुंह  में कैसे ले लेती है , उसने मुस्कराते  हुए कहा , यह स्पेशल टाइप के कंडोम है , जो कई तरह के फ्लेवर में मिलते है जैसे चोकलेट , स्ट्रॉबेरी , वनीला  आदि , ऐसे कंडोम इसी काम के लिए इस्तमाल में लाये जाते है और ऐसा कह उसने मेरी तरह एक  आंख दबा दी....

मेरे लिए यह एक  नयी जानकारी थी , तब मुझे समझ आया की वेस्टर्न वर्ल्ड में ओरल सेक्स क्यों ज्यादा इस्तमाल में होता है फिर वह नीचे झुकी और कंडोम को फिर से मुंह में रख लिया , मैंने उसके कंधे को पकड उसे वहां से हटाया और उसे अपने गले से लगा कर , उसके उभारों को दबा दिया .... मेरे ऐसा करने पर उसने आपत्ति कर दी , बोली इन्हें बस हलके से चूम या सहला सकते हो , इन्हें ऐसे जंगलीपन से मत दबाओ ....वैसे भी तुम्हे इन्हें छूने से पहले मुझसे पूछना चाहिए था और फिर बड़े ही नाराजगी वाले स्वर में बोली .....मैं तुम्हारी बीवी नहीं हूँ जिसे जैसा मर्जी इस्तमाल करो ...समझे और आगे ख्याल रखना ...वरना तुम यहां से जा सकते हो ....

उसकी बात सुन मुझे बहुत हैरानी हुई , मैं बोला इसका क्या मतलब , वह बोली आदमी अपनी बीवी के साथ वहशी पन करता है  क्योंकि वहां  उसे कोई रोक टोक नहीं होती , पर मेरे साथ तुम ऐसा कुछ नहीं कर सकते , तुम यहां आये हो , इसका मतलब यह नहीं की तुम जो चाहे , जैसे चाहे करोगे .....तुम्हे पहले मुझसे पूछना होगा की ..”मे आई टच दिस ?”.....उसने ऐसा कहकर मुझे एक  ना भूलने वाला अनजाना सा सन्देश दे दिया ....उसकी यह बात मैं भी गंभीर होकर सोचने लगा .......की ...

क्या अधिकतर आदमी अपनी बीवी के साथ सेक्स करते हुए उसको कितना महत्वहीन समझते है और शायद अधिकतर आदमी अपनी बीवी की इच्छा , अनिच्छा , मान सम्मान , दर्द और ज़रुरत का कोई ख़्याल नहीं रखते ....

उसके ऐसा कहने से मेरा मूड कुछ उखड़ सा गया , फिर भी मैं उसके जवानी से सरोबर हुस्न के एक एक  कतरे को जी भरकर चूमना और चुसना चाहता था की अचानक  मुझे ख़्याल  आया क्यों ना इसके साथ नहाया जाए .....वैसे भी इतनी देर के तनाव से मैं पसीना पसीना हो चूका था .....मैंने  उससे कहा , क्यों ना बाथरूम में चलकर थोडा साथ साथ नहा   लेते है , मेरी यह फ़रमाइश उसे थोड़ी सी अजीब लगी , पर उसके लिए भी यह शायद एक  अनोखा अनुभव था ..जो उसने किसी के साथ अब तक नहीं किया था ....इसलिए वह ख़ुशी ख़ुशी मेरी बात मान गई ...तभी उसने अपने शरीर से बचे खुचे  कपडे भी अलग कर दिए और हम दोनों बाथरूम में एक फव्वारे  के नीचे  आदम जात वाले स्वरूप में आकर खड़े हो गए ...

दो लोगों  के नहाने के हिसाब से बाथरूम काफी छोटा था ..हम दोनों किसी तरह से उसमे समाये हुए थे , उसे इतना करीब देख मेने उसे अपनी बांहों में भींच लिया और उसके चेहरे को चुमते हुए उसके उरोजों  को हल्के  से दबाने लगा ...अब उसे मेरी इस हरकत से ,किसी भी तरह की कोई उत्तेजना  या परेशानी नहीं हुई , फिर मैंने उसके शरीर के उस हर भाग का बड़ी नज़दीक  से मुआयना किया जो अब तक परदे के पीछे छिपा हुआ था .....यानी हर आदमी की जन्म स्थली और पहली खुराक ....

उसके फूले  और गठे हुए उरोज़  देखने में आम की तरह से लगते थे , जिस पर उसका निप्पल हल्के  लाल रंग की छोटी बेर जैसा सजा था ....उन्हें देख ऐसा जान पड़ता था जैसे उरोजों ने अपने अंदर रस का जखीरा छिपा रखा है , जो अपने अंदर सारी दुनिया की मिठास समेटे हो , मैं उन्हें हल्के  से दबोच कर ऐसे चूसने लगा ,जैसे कोई पागल , दीवाना, भूखा भेड़िया किसी मेमने के ताजा मीट को एक  ही झपट्टे में अपने शिकंजे में लेकर उसे अपने जबड़े में दबोच कर चबाने लगे ....

अब उसके उरोज मेरे सहलाने और चूमने से पहले से ज्यादा फूले और सख्त हो चुके थे , पर उनमे इतनी कठरोता फिर भी ना थी , जो मैंने  उस देहाती औरत के उरोजों में देखी  और महसूस की थी ... उत्तेजना में उसके सुनहरी रंग के उरोज तन कर पके हुए अलफांसो आम की तरह सख्त हो गए और उसका निप्पल अब गहरे लाल रंग की चेरी जैसा हो गया था, उस वक़्त यह तय करना मुश्किल था की आम में ज्यादा रस है या चेरी में ज्यादा कसक ...

फिर मेरी निगाहें  उसकी जांघो की तरफ गई तो देख कर दिल को एक  अजीब सी ख़ुशी मिली , उसकी जांघे केले के तने के जैसी चिकनी और भरी हुई थी ,उन्हें देख ऐसा लगता था जैसे उन पर कोई सुनहरी रंग का मखमली आवरण चढ़ा दिया गया हो , जब मैंने  उनपर हाथ फेरा तो उनकी चिकनाई से मेरा हाथ उपर से फिसलता हुआ सीधा नीचे  तक खुद बे खुद चला गया .... गोरे बदन की योनी पर हल्का सा सुनहरा रंग का गलीचा चढ़ा था , उसके आस पास के छोटे छोटे बाल बाल सुनहरे रंग के थे जिसपर उसके अंदर का भाग गहरे गुलाबी रंग के साथ दो हिस्सों में बंटा हुआ था ....ऐसा लगता था जैसे किसी सुनहरे कमल की पंखुडियो के अंदर कोई गुलाबी रंग का भंवरा कैद हो गया हो ....

आज से पहले जितनी भी लड़की/औरत देखि थी किसी की योनी में इस कद्र खूबसूरती ना थी , ना जाने क्यों गोरे रंग की देसी लड़की/औरत की योनी और उसके आस पास का हिस्सा अधिकतर हल्का काला या गहरे से सांवले रंग का होता और योनी के बिच का भाग गुलाबी रंग की की जगह हलके गुलाबी और भदरंग पीले रंग का मिला जुला रूप सा होता ....

उसने अपने शरीर पर साबुन लगाया और मैंने  उसके शरीर को अपनी बांहों में भर कर उसके चेहरे को चूमने लगा ,ऐसा करते हुए मैं फव्वारे  के नीचे  खड़े खड़े एक  मीठे से सकून  में खो गया ....हमारे शरीर की रगड़ से हम दोनों के बीच  में साबुन के बुलबुले बनते और फिर फ़ूट पड़ते ...अचानक उसने हँसते हुए मुझे अपने से अलग किया और बोली ,क्या सारा दिन ऐसे ही काटना है , कुछ करना नहीं है , यूँ तो शायद वह एक  पक्की मंझी हुई खिलाडी थी , पर हमारे खेलना का तरीका  भी उसके लिए नया था , इसलिए उसपर भी थोड़ी उत्तेजना हावी होने लगी ....

बाथरूम से निकल कर ,उसने पास पड़ा हुआ तौलिया  लेकर अपना बदन पोछा  और उसे अपने शरीर पर लपेट लिया , जब मैंने  अपने शरीर को पोंछना  चाहा तो वहां और कोई नया तौलिया  नहीं था , फिर मैंने  उसके पहले से इस्तमाल किये हुए किसी तौलिये  को उठाया और जैसे ही बदना पर रगडा ,तो उसमे से एक  अजीब से पसीने की बदबू आई , जिसे मैंने  नजरंदाज कर दिया और किसी तरह उसे गंदे से तौलिये  से अपने बदन को पोंछ  कर बिस्तर पर  आकर लेट गया ...

मुझे यूँ लेटा देख उसने एक  लंबी सी अंगड़ाई ली , उसकी आँखों से अब मस्ती और कामुकता की हल्की  सी चिंगारी निकल रही थी , शायद मेरे से पहले आने वाले उसके हमसफ़र  , अपना काम दो मिनट में निबटा कर चले जाते होंगे और शायद उसे अपने लेवल तक पहुँचने का कभी मौका ना मिलता हो , पर मैं ठहरा कंजूस , जो हर चीज को अच्छे से नापने और तोलने वाला था ...

वह पास पड़ी टेबल के पास गई और वहां पड़ी किसी लुब्रिकेंट क्रीम को लेकर उसने अपनी योनी पर लगा लिया और फिर अपने तौलिये  को शरीर से झटक कर कमरे के एक  कोने में डाल कर ,मेरे पास आकर बिस्तर पर लेट गई .... हम दोनों लेटे लेटे एक दूसरे  की बांहों में खो गए , पता नहीं मेरे दिल और दिमाग को अचानक एक अज़ीब  सा ख्याल आया ... मैंने  सोचा मैंने  नार्मल तरीके वाला सेक्स तो कई बार किया है , क्यों ना आज कुछ अलग किया जाये ..मैं उससे बोला मुझे डौगी स्टाइल से करना है ...मेरी बात सुन वह मुकराई  और डौगी वाली पोजीशन में आ गई... शायद वह मेरी जिन्दगी की सबसे अहमक और बेहूदा शंका रही होगी , जिसने ऐसा सोचने और करने पर  मजबूर किया , आज सोचता हूँ अगर वह ख़्यालात ना आता तो शायद मैं अपना वह अनुभव दुनिया के सामने ना ला पाता ....

जैसे ही वह अपनी पोजीशन में आई , मैं बिस्तर से उछल उसके पीछे पहुँच गया , जैसे ही मैंने  अपना बैलेंस बनाने के लिए उसके दोनों नितम्ब को अपने हाथों  से पकड़ा , की एक  तेज बदबू का झोंका मेरा दिमाग हिला गया , उसके नितम्ब के बीचों बीच पीछे से पोट्टी की तेज बदबू आ रही थी ...ऐसा लगता था मेरे आने से पहले वह पोट्टी कर रही थी और शायद जल्दी जल्दी में अच्छे से साफ़ करना भूल गई ..मेरा जोश ऐसे ठंडा हुआ जैसे उबलते दूध पर  किसी ने ढेर सारी बर्फ डाल दी हो ....

इतनी देर मेहनत करके मैंने  जो रबड़ी पकाई थी और जब उसे खाने का वक़्त आया तो पाया की उसमे मरी हुई मक्खी पड़ी है , अब मैं इतना लम्बा सफ़र  तय कर चूका था , वहां से खाली हाथ वापस लोटने का कोई मतलब नहीं था , मैंने  अपने ज़ज्बात और दिमाग को वहां से हटाया और उस मक्खी को निकाल फैंक कर उसी रबड़ी को खाने का मन बना लिया ....मैंने  किसी तरह अपनी उबकाई को काबू में रख अपने मुंह को दूसरी तरफ करते हुए  उसे सीधा नार्मल तरीके से लेटने को कहा और जल्दी से जल्दी अपने काम को अंजाम देने लगा और थोड़ी देर में हल्का हो उसके शरीर से दूर हट गया ...

उसने मुझे बड़ी हैरत से देखा , उसे कुछ समझ नहीं आया की जो घुड़सवारथोड़ी देर पहले मैराथन  दोड़ रहा था अचानक स्प्रिंट लगा कर क्यों भाग खड़ा हुआ ? ...मैंने  अपने कपडे पहने और बिना कुछ कहे सुने उसके कमरे से बहार निकल आया ...

रास्ते में लोटते वक़्त, गाड़ी चलाते हुए मेरा दिमाग एक  अजीब सी घिन्न और मीठे से सकून  के हिचकोले ले इधर से उधर घूम रहा था ... एक  तरफ उसके गोरे बदन की मस्ती जिसमे रबड़ी के स्वाद जैसा आनंद और सकूंन था ,तो दूसरी तरफ वह गन्दी बदबू जिसने मेरी मेहनत , उम्मीद ,जोश और उत्तेजना का क़त्ल सरे आम करके एक  ऐसी वितृष्णा  को मेरे दिमाग के अंदर भर दिया था, मुझे लगता था जैसे उत्तेजना से भरी घिन्न मेरे ज़हन  में हमेशा हमेशा के लिए कहीं रच बस गई है ...

...क्रमश :


By
Kapil Kumar 

Tuesday 13 September 2016

नारी की खोज – 12


अभी तक आपने पढ़ा नारी की खोज भाग –--1 से 11 तक में ...की मैंने बचपन से आज तक नारी के भिन्न भिन्न रूपों को देखा .......मेरे इस सफर की आगे की कहानी.....



गतांक से आगे .......

अगर किसी इन्सान से पूछा   जाये की उसका दूसरों के प्रति आकर्षण का क्या आधार या पैमाना है तो ...यह नारी और पुरुष में अलग अलग मिलेगा .... समाज के सामने अपने को आदर्शवादी , महापुरुष या देवी सिद्ध करने के लिए, कहने को कोई कुछ भी कह ले , पर ध्यान से देखे और समझेंगे तो पाएंगें  ....की.....

इस दुनिया में नारी , पुरुष के पैसे और सामाजिक मान सम्मान को सबसे ज्यादा अहमियत देती है , उसकी नज़र  में पुरुष की सुन्दरता या स्मार्टनेस की कोई बहुत ज्यादा कीमत नहीं  होती है , नारी के लिए पुरुष की अहमियत सिर्फ समाज में उसके रुतबे और वह कितना पैसे वाला है , इन दोनों के गठजोड़ से ही होती है ...पुरुष देखने में साधारण है पर वह अमीर और रुतबे वाला हो, तब भी यह दोनों बातें  नारी के मन के अंदर उसके लिए प्रेम और सम्मान उत्पन्न करने के लिए काफी है ...कहने को कोई कह सकता है की लड़कियां फिल्म स्टार पर उनकी स्मार्टनेस और शारीरिक  सुन्दरता के वशीभूत होकर आकर्षित होती है .. पर हकीकत में यह सिर्फ ऊपरी दिखावा भर है ..अगर यही लोग बिना पैसे और आम इन्सान होते तो उनके पीछे शायद कोई इक्की या दुक्की युवती ही उनकी दीवानी होती ...देखने की बात है क्रिकेटर , फूटबालर, टेनिस प्लेयर , जो बड़े नाम वाले है देखने में एक  आम आदमी जैसे साधारण होते है ..पर लड़कियां और औरतें  उनकी ऐसी दीवानी होती है जैसे वह कामदेव के अवतार है ..

इसके विपरीत पुरुष के लिए नारी के प्रति आकर्षण का सिर्फ एक  ही पैमाना या आधार है वह है उसकी सुन्दरता , नारी कितनी भी समझदार , काबिल ,पैसे और रुतबे वाली क्यों ना हो ..अगर वह सुंदर या आकर्षित नहीं तो पुरुष के मन में उसके लिए कोई आकर्षण नहीं , हाँ कुछ देर के लिए कोई आदमी किसी अमीर औरत से प्रेम करने का स्वांग जरुर भर सकता है ...पर यह प्रेम बिना सुन्दरता के ऐसे ही जैसे बिना नींव  की ईमारत ....जो कब किस हवा के झोंके से गिर जाये , कौन जाने ?....

इसके विपरीत अगर नारी सुन्दर है तो वह , कितनी भी अनपढ़ , मुर्ख या गरीब या किसी  भी जाति हो  , पुरुष को उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता , उसके लिए उसका सुन्दर या आकर्षित होना ही काफी है ....ऐसी ही उम्र के अलग अलग पड़ावो में मेरे मन ने’ नारी की सुन्दरता को अलग अलग आयामों में देखा और भोगा ...बितते वक़्त के साथ उसे नापने के नए पैमाने बने और उनमे नए नए कारण जुड़ते गए ....

बीवी अपनी नौकरी के सिलसिले में कुछ महीनो के लिए लन्दन चली गई , कहने को मैं घर में अब अकेला तो नहीं था , घर में सब लोग थे , माँ बहन , बाप , भाई और लड़का , पर जवानी में वह ठंडी राते तो बिस्तर पर  मुझे अकेले ही गुजारनी थी ...खुदा भी मेरी जवानी का वक़्त वक़्त पर  गाहे बगाहे इम्तिहान ले रहा था ...कभी मेरी नौकरी के सिलसिले में तो कभी बीवी की नौकरी के सिलसिले में हम दोनों एक दूसरे  से दूर रहते आये थे , तब मुझे लगता ऐसा क्यों है , पर उस वक़्त मुझे क्या मालुम था की जो हो रहा है वह अच्छा ही था , वह भविष्य में हम दोनों को एक  दूसरे  से लड़ने -झगड़ने और उबने से बचाए हुए था .....

बीवी के ना होने से बच्चे की जिम्मेदारी मेरे ऊपर और घर वालों पर  आन पड़ी , जब मैं जॉब के लिए जाता तो दिन में किसी तरह से घर वाले उसे संभाल लेते , पर मेरे घर में घुसते ही , वह मेरी जिम्मेदारी हो जाता , मेरी माँ जैसे मेरे आने का ही इंतजार करती की मैं कब आऊं  और वह कब अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो , ना जाने क्यों उसके मन में अपने पोते के प्रति जायदा मोह न था , शायद उसका मोह अपने बच्चो से ज्यादा सिर्फ अपने पति यानी मेरे पिता तक ही सिमित था ...माँ बेटे का रिश्ता सिर्फ एक दूसरे  की ज़रूरत पर ही टिका था ..... घर का खर्चा मेरे बूते चलता था इसलिए सबको जैसे तैसे मुझे और मेरे बच्चे को झेलना पड़ता , यहां एक  कहावत पूरी तरह से सिद्ध होती थी ....की ...दूध देने वाली गाय की लात लोग चुपचाप खा लेते है ...आने वाले वक़्त में ,मैं नारी की खोज करते हुए ,माँ बेटी के रिश्ते की एक  नयी परिभाषा देखने और समझने वाला था .....

आदमी का बीवी के साथ सेक्स और घर की सादी दाल रोटी , एक दूसरे  के जैसे पूरक है ....घर का खाना आप कितना भी खा लें  आपका पेट तो भरेगा पर आपको वह जल्दी से बोर भी कर देगा....ऐसे ही आप बाहर  का चटपटा खा ले आपको एक  थ्रिल मिलेगा पर मन में तृप्ति का आभाव रहेगा और मन में  हमेशा ऐसा लगेगा की कहीं  ना कहीं  कुछ छूट  गया है , इसका अनुभव मुझे भी नारी के एक  अलग रूप में हुआ ...

मुझे कभी कभी काम के सिलसिले में दिल्ली से मुरादाबाद तक जाना पड़ता था , उस रूट पर पर कंपनी की मोबाइल सर्विस का काम चला रहा था , तो मुझे साईट विजिट करने के लिए महीने में दो या तीन बार कंपनी के उस एरिया में लगने वाले मोबाइल टावर के काम को देखने जाना पड़ता , इस सिलसिले में एक  कंपनी की कार मिली हुई थी , उसका ड्राईवर मेरे साथ रहते हुए मुझसे कुछ ज्यादा ही घुल  मिल गया था ...हम दोनों कभी कभी कुछ फालतू की बात सफ़र  के दौरान कर लिया करते थे ...उन दिनों उसे पता था , कि मैं घर में अकेला हूँ ....

ऐसे ही बातों बातों में उसने जिक्र किया , सर आपने कभी किसी गाँव वाली के साथ कुछ किया है ...कुछ लोगो को उसकी यह बात आख़र सकती है ..पर जब आप किसी ड्राईवर के साथ काफी समय से घंटो सफर में अकेले रहे तो आपको , कुछ बातों  में समझौता करना पड़ता है , क्योकि लम्बे लम्बे ट्रिप में दोनों को वार्तालाप करने के लिए कुछ ना कुछ नज़दीकी रखनी पड़ती है .. यूँ तो मैं किसी और ड्राईवर के साथ ऐसी बात करने से परहेज करता , पर कई महीने से उसके साथ रहते हुए उसकी नियत  और गोपनीयता पर शक करने का कोई कारण नहीं था ....की वह हम दोनों के बीच होने वाली बात किसी और से कहेगा ...वैसे भी वह कंपनी का मुलाज़िम  नहीं था ...इसलिए उसके मुंह फाड़ने की स्थिति में उसे नौकरी से कभी भी बेदख़ल किया जा सकता था ....इसका अहसास उसे भी अच्छे से था ...

मैंने  भी झिझकते हुए कहा , क्या बात करता है ?  हम ठहरे शहर वाले , हमें कहाँ  कोई गाँव  वाली मिलेगी ? और वैसे भी मैं अपनी जिन्दगी में कभी किसी गॉव  में रहा नहीं , इसलिए ऐसा कुछ कभी हुआ नहीं , पर तूने ऐसा क्यों पूछा  , मैंने  उसकी तरह अचरज अचरज़  भरी नज़रों  से देखा और पुछा ? वह एक  कमीनी  सी मुस्कान बिखरते हुए बोला , बस साहब ऐसे ही पूछ लिया , आजकल आप अकेले हो , मेमसाहब हैं नहीं , तो आप कुछ मेजमोला कहीं  करते हो या नहीं और ऐसा कह वह अपने खींसे निपोरने लगा ....

उसकी बात सुन एक  बार को गुस्सा आया , फिर न जाने कैसे कहीं  अंदर से कई बरसों  से कॉलेज का सोया हुआ KK  बॉस जाग उठा , जिसमे सिर्फ मस्ती की बातें  होती , बिना यह समझे और जाने की सामने वाले की क्या हैसियत और औकात है ... मेरे मन के किसी कोने में नारी के शरीर की चाह गाहे बगाहे करवट ले रही थी , तो मैंने  भी उसका तीर उसकी तरफ मोड़ दिया और बोला , तेरा कोई जुगाड़ है तो बता और ऐसा कह  मैंने एक ग़हरी नज़र  उसकी तरह चुभो दी ...

उसने मेरे चेहरे की गंभीरता को पढ़ा और बोला , जब हम मुरादाबाद से लोटेंगे तो ऑफिस से पहले रास्ते में एक गाँव  है , वहां पर एक जुगाड़ है , मैं आपको दिखा दूंगा , ग़र आपको ठीक लगे तो बताना , उसकी यह बात सुन मेरी जिज्ञासा बढ़ने लगी की , उसे इस जुगाड़ के बारे में कैसे पता ... मैंने अधीर होते हुए अपने मन में उठने वाले सवालों की बौछार उसपर  कर दी ...उसने हँसते हुए कहा सर जी ,मैं तो यह सब शौक ज्यादा पालता नहीं , पर मेरा चाचा ज़रा ठरकी टाइप का है , उसका उस गाँव की किसी औरत से कुछ पुराना नाता है इसलिए मुझे यह पता है ...

ड्राईवर की बात सुन मुझे बड़ा गुस्सा आया और लगभग चीखते हुए बोला , अबे तेरा दिमाग ख़राब हुआ है , अब मुझे बुढिया ही मिलेगी और वह भी इस लेवल की ...उसने मेरी बात सुनी और झेंपते हुए बोला , अरे सर जी आप भी कैसी बात करते हो , भला आपके लिए कोई बुढिया क्यों सोचूंगा , उस बुढिया की एक  लड़की है , वह करीब 19/20 साल की है , मैं तो उसके बारे में कह रहा था ...

कुदरत का भी अज़ीब  नियम है आदमी की उम्र कितनी भी क्यों ना हो लड़की की उम्र उसे 18/22 के बीच ही चाहिए , लड़की की उम्र सुन मेरे मन में एक  चिंगारी सी जगी , मैं 30 बसंत देख चूका था , ऐसे में किसी मांसल और जवानी से लबलाबाते , हुस्न की कल्पना से शरीर में मस्ती की चींटियाँ रेंगने लगी ...मेरी आँखों में कामुकता की एक  चिंगारी सी निकली , जो चलती गाडी से बाहर  जाकर वीराने में छु मंतर हो गई ...क्योंकि मुझे पहले मुरादाबाद पहुंचकर ऑफिस का काम निबटाना था , ऐसे में उस ख्यालात को ज़ेहन में लाना निहायत ही बेबकूफ़ाना था ....मैंने  ड्राईवर से कहा , लौटते  हुए चल तेरे जुगाड़ को भी देख लेंगे ....

एक  दिन मुरादाबाद रुकने के बाद ऑफिस का काम जल्दी से निबटा कर हम दोनों दोपहर होने से पहले ही घर को लौट लिए ..गर्मी अभी शुरू नहीं हुए थी , मार्च का महिना था और मौसम अपनी हसीन जवानी को किसी तरह से गर्मी के चंगुल से बचाए हुए था , पर दोपहर दो बजे के बाद गर्मी का दानव बसंत ऋतु का चीर हरण करने में कामयाब हो ही जाता ....शाम के करीब 4 बजे , ड्राईवर ने गाडी किसी गाँव  के पास रोकी और बोला , सर जी यही वह गाँव है जिसका जिक्र मैंने  किया था ...यह गाँव  मेरे शहर से कोई 15/20 मील की दूरी पर  था ....ड्राईवर ने गाडी गाँव के बाहर  हाईवे पर एक  पेड़ के नीचे किनारे पर लगा दी ..क्योंकि गाँव का रास्ता वहां से एक  पगडंडी नुमा था जिसपर  गाड़ी का जाना असम्भव था , वहां  से हम दोनों पैदल गाँव  की तरफ चल दिए ....

किसी टेढ़े मेढ़े  रास्ते से होते हुए , हम दोनों एक  ऐसे मैदान के पास पहुंचे जहां कुछ झोपड़ियां  सी बनी हुई थी , एक  झोपडी नुमा घर के आगे आकर अभी हम रुके थे , की एक  बच्चा जो किसी हैंडपंप से पानी निकाल रहा था की जोर से चिल्लाया , अरी माँ देख भैया आये है ....उसकी आवाज सुन पास में से एक  औरत जो अपने बुढ़ापे के चंगुल में फंस चुकी थी अचानक से प्रगट हुई ,बुढिया जिसके मुंह  में पान ऐसे दबा था , जैसे वह उसके हर कतरे को आज जी भरकर चूसने वाली हो , उसने अपना गला खंगारा और मुंह  से पान थूकते हुए बोली , अरे भैया बड़े दिनों में आना हुआ और ऐसा कह वह  हम दोनों को झोपडी के अंदर ले गई .....

झोपडी अंदर से साफ़ सुथरी और काफी बड़ी थी , जिसके एक  कोने में एक  बड़ी सी चारपाई पड़ी थी और दूसरी तरह बैठने के लिए कुछ मोढ़े पड़े थे , हम तीनो एक एक मोढ़े  में धँस  से गए ...तभी ड्राईवर ने औरत को कोने में ले जाकर कुछ कानाफूसी की और मेरे पास आकर फुसफुसाया , आज तो कुछ काम बनेगा नहीं फिर कभी और दिन देखेंगे ...मैंने  भी मायूसी में गर्दन हिला दी , की तभी एक  19/20 साल की लड़की नुमा औरत ने झोपडी में प्रवेश किया ,जिसे लड़की कहीं से भी नहीं कहा जा सकता , वह देखने में पूरी तरह से खिली हुई युवती जैसी लगती थी ... वह एक  सस्ती सी साडी अपने बदन पर  लपेटे हुई  थी जिसका पल्लू बार बार उसके कंधे से सरक जाता और उसके भरे हुए उरोजों  की नुमाइश कर जाता था ... युवती लम्बे कद की और जिस्म से भरी पूरी मजबूत सी औरत मालूम पड़ती थी , उसने मेरी और ड्राईवर की तरफ मुस्करा  कर देखा और हम दोनों को भैया बोल कर नमस्ते कर दिया ...

युवती की आँखों में कुछ सवाल जैसे तैर रहे थे , उसे मेरे आने का मक़सद  कुछ समझ नहीं आया था , शायद मेरे जैसे लोग उस झोपडी में आते भी ना थे , उसकी नज़रों  को भांप , उसकी माँ ने कहा , अरे भैया आये है , इनके लिए कुछ चाय पानी तो करो , देखो भैया अपने साथ अपने साहब लाये है , यह हमारे राजू के लिए कुछ ना कुछ जरुर करेंगें  ....बुढिया की बात सुन मेरा सर चक्कर खाने लगा , यह क्या बोल रही है , तभी ड्राईवर ने अपनी जेब से 20 रूपए  निकला और लड़की को देकर बोला जा चाय ले आ , युवती ने झट नोट को उसके हाथ से झपटा और अपने ब्लाउज में खोंस लिया और एक  गहरी मुस्कान मेरी  तरफ उछाल दी और हँसते हुए चली गई ...

इस बार मैंने  उसे ग़ौर से देखा , तो लगा जैसे एक  पहाड़ी झरना , शहर की गलियों में घुसने  का असफल प्रयास कर रहा हो  , उसकी चाल में एक  बेपरवाह  मस्ती थी , चलते हुए उसके नितम्ब एक  सुर और ताल में झूमते से लगते थे , उसपर  उसके मुस्कराने का अंदाज एक  दम खिली हुई धुप की तरह गर्म जोशी से भरा लगता था , उसे यूँ जाता देख मेरा दिल सीने में उछलने और होंठों पर एक ख़ुशी सी  छाने लगी और मुझे अंदर ही अंदर कहीं से नारी के जिस्म की चाह होने लगी ...

युवती को यूँ टकटकी लगाये जाते देख , बुढिया समझ गई की , साहब अनाडी है और उसका पासा अपनी चाल चल चूका है .... बुढिया ने अपना गला खंकारा और ड्राईवर की तरफ इक कुटिल मुस्कुराहट उछाल दी , थोड़ी ही देर में एक 14/15  साल का लड़का उछलते हुए झोपडी में घुसा , उसे आया देख बुढिया ने उससे कहा अरे भैया आये है और देख दुसरे भैया तुझे शहर में अपनी कंपनी में नौकरी देंगे .....बुढिया की यह बात सुन मुझे कुछ समझ नहीं आया . मेने उसका दिल टटोलने के लिए पुछा , आजकल आप लोग क्या कम करते हो . मेरा यह कहना भर था , की बुढिया अपने दुखो और मुसीबतों का पिटारा खोल कर बैठ गई ...की उसका गुजरा मुश्किल से चलता है , आजकल उसे काम मिलना बंद हो गया है ..पहले वह कोई पत्थर घिसने या सिल बट्टे बनाने का काम करती थी , अब वह काम भी काफी दिनों से बंद हो गया है तो घर में रोजी रोटी चलाने के लिए लड़के को काम पे लगाना चाहती है ....मेने भी उसे दिलासा देने के लिए कह दिया , देखता हूँ मैं क्या कर सकता हूँ ...

अभी मैं बुढिया की राम कहानी सुन ही रहा था , की युवती एक  चाय की केतली और कुछ प्यालों के साथ झोपडी में आ गई , इस बार मैंने उसे कुछ ग़ौर से देखा , वह एक  अच्छे नाक नक्श , गरुएं  रंग और खुश मिज़ाज़  युवती थी , उसके चेहरे पर एक अनजानी सी मुस्कराहट  थी ...जिसमे कुटिलता थी या मासूमियत यह तय करना बड़ा मुश्किल था ... मैंने जैसे तैसे उसके द्वारा लाइ हुई चाय पी ,कि पहला  घूंट मुंह  में डालते ही ऐसा लगा ,की जैसे वह चाय कम एक  चीनी का शरबत है ,जिसमे हलके गर्म पानी के साथ सस्ती चाय पत्ती को मिला कर गर्म भर कर दिया था ...

थोड़ी देर इधर उधर की बात होने के बाद ड्राईवर ने मुझे वहां  से चलने के लिए कहा , मैं मायूसी में उसके साथ झोपडी से बहार निकल आया , वह युवती भी हमारे साथ उछलती कूदती सी हमें छोड़ने चली आई और मेरी तरफ अपनी तीखी नज़रों को गडा कर बोली , भैया अगली बार फिर आना और ऐसा कहकर झोपडी के अंदर उछलती सी चली गई ..

वहां से लौटते  हुए मेरा मन मायूसी के सागर में डूबा जा रहा था , मैंने अपनी बैचेनी पर काबू पाते हुए अपनी नाराज़गी  ड्राईवर पर उड़ेल दी , की तू तो बड़ी बड़ी हांक रहा था ...की साहब आपको यह दिलवाऊंगा  पर वहां तो कुछ भी नहीं हुआ ?....ड्राईवर ने एक  गहरी साँस ली और बोला साहब बात ऐसी नहीं है , मैंने  उसे झिडकते हुए कहा फिर कैसी है ?अबे , वह मुझे और तुझे भैया बोल रही थी , उसकी मांग में हल्का सा सिन्दूर भी था और उसका भाई नौकरी मांग रहा था , यह सब क्या चक्कर है ? ....

ड्राईवर ने एक  गहरी साँस ली और बोला , ऐसा है बुढिया बहुत पहुंची हुई चीज़ है , इसने दुनिया के दिखावे के लिए अपनी लड़की की शादी पास के गाँव में कर दी है , पर यह उसे उसके पति के पास नहीं भेजती है , वह इससे कभी कबार  इधर उधर से पैसे कमवा लेती है , जिसमे से आधे बुढिया और आधे लड़की रख लेती है , अगर यह अपने पती के पास चली गई तो , बुढिया का गुज़ारा  कैसे चलेगा और लड़की के हाथ भी कुछ नहीं आएगा , अब दोनों खुश है , समाज में दिखावे के लिए शादी कर दी है की कल कोई ऊंच  नीच हो जाये तो उसे यह उसकी ससुराल भेज देगी ...बाकी बची नौकरी की बात तो , ऐसा तो दिखावे के लिए कहना पड़ता है , वर्ना गाँव में लोग उससे पूछते तेरे घर कौन आया था और फिर बुढिया को आप से मिलाने के लिए कुछ कहानी तो गढ़नी थी वर्ना  वह भी आसानी से आप पर विश्वास नहीं करती ?

ड्राईवर ने आगे कहा की , बुढिया की एक  बार कुछ इस सिलसिले में ऐसे कुछ बदनामी हो गई थी , इसलिए अब वह अपने घर में कुछ नहीं करती , बस अपनी लड़की को बाहर  भेज देती है ...बाकी अगर आप उसके लड़के की नौकरी लगवा देंगे तो , आपका आना जाना लगा रहेगा और कोई शक भी नहीं करेगा , ड्राईवर की बातों  में दम था , क्योंकि गाँव  में गिनती के घर थे और सब एक दूसरे  की खोज खबर रखते थे और मौका देख सब लोग एक दूसरे  के घर में तांक- झांक भी कर लेते थे , ऐसे में इस तरह का खेल बहुत ही होशियारी और राज़दारी  से ही खेला जा सकता था ....

उस दिन तो मैं उसके गाँव से खाली लौट  आया , पर उस लड़की की मासूम सी हंसी जैसे मेरे पीछे पड गई , मुझे उसके गदराये हुए जिस्म को दबोचने की चाहत होने लगी , मेरे अंदर का कामी भेड़िया जैसे उसके जिस्म के अंग अंग को नोचने के लिए अपनी लार टपकाते हुए बैचेन होने लगा .....

अगले दिन ऑफिस में मैंने  ड्राईवर से कहा उससे मिलने का कोई जुगाड़ बिठाये , ड्राईवर भी मेरी बैचेनी देख मंद मंद मुस्कुराया और बोला , उसकी माँ ने मुझसे कहा था की भैया को बोलना वह अपनी गाडी में लड़की को अपने साथ बैठा  कर कहैं घुमा फिरा लाये ...ड्राईवर की बात सुन मेरा भेजा घूम गया , किसी नारी के साथ किसी बिस्तर में मौज़  मस्ती करना तो अलग बात है , पर उसके साथ बाहर  यूँ खुले में घुमने फिरने के नाम पर मुझे कुछ अजीब सा लगा , क्योकि उस गंवार लड़की को मैं बहार अपने साथ लेकर कैसे और कहाँ  जाता ? .... हम दोनों के कपड़ो , देखने में और भाषा में जमीन आसमन का अंतर था ....मैंने ड्राईवर से कहा , देख भाई घर तो मैं उसे ला नहीं सकता और उसे होटल लेकर जाना भी कुछ अजीब सा लगेगा ,ऐसा कोई कमरा मेरे पास है नहीं जहां इसे मैं ले जायुं , तो क्या किया जाए ...अभी मुझे उसके बारे में कुछ ज्यादा भी नहीं पता , ड्राईवर बोला... ऐसा करते है , आप दोनों कोई मूवी साथ में देख लो , उससे आपको उसका अंदाजा भी हो जायेगा और कुछ जान पहचान भी , फिर आप अपने आप देख लेना की आगे कब और कैसे क्या करना है , मुझे ड्राईवर का यह आईडिया अच्छा लगा , इसमें मुझे इसके साथ खुले में घुमने फिरने और दुनिया के सामने वाले वाले रिस्क से आजादी मिल रही थी .....


एक  दिन तय हुआ और मैं ,ड्राईवर के साथ पिक्चर देखने सिनेमा घर पहुँच गया ...मेरा अनुमान था , की मैं और वह युवती साथ साथ सिनेमा देखेंगें  और इसी बहाने मेरे कुछ मज़े  भी हो जायेंगें  और साथ में इससे कहीं  मिलने का जुगाड़ भी बना लूँगा ...जब सिनेमा हाल पहुंचा तो मेरा जोश जैसे उबलते दूध पर ठंडा पानी गिरता है जैसा  फुस्स होकर बैठ गया ... हाल के बरामदे में बुढिया जमीन पर  किसी औरत के साथ बैठी थी , जिसने गज भर का पल्लू अपने सर पर रखा हुआ था , मुझे आया देख बुढिया की आँखों में एक गहरी चमक उभरी , उसने औरत से कहा देख भैया आ गये ...औरत ने अपना पल्लू सरकाया तो , अंदर से उस लड़की का चेहरा झांकता हुआ दिखलाइ दिया , उसने कोई सस्ता सा ढेर सारा पाउडर अपने चेहरे पर मला हुआ था और होठों पर एक सस्ती सी हलके पीले रंग की लिपस्टिक लगा रखी थी , बची कूची कसर उसके माथे पर  सजी एक चवन्नी के साइज़ की लाल बिंदी उसकी बदसूरती में इजाफा ही कर रही थी ,उसपर  उसकी नाक में गोल सी लटकती हुई नथनी उसके गाँव के फैशन की कहानी अपने ही तरीके से आप कह रही थी और सबसे जायदा वाहियात उसके सर में पड़ा हुआ किलो भर का ऑरेंज रंग का सिन्दूर एक  लंबी सी सडक उसके सर के बीचों बीच बनाये हुए था , जो उसके गवाँरु पन की मुनियादी अपने ही तरीके से जोर शोर से कर रहा था .....

युवती को इस रूप में देख मेरा सारा जोश काफूर हो गया ,जहां पहली बार उसे देख मेरे मन में उसे पाने की इच्छा जगी थी , आज उसके इस रूप को देख मन में ऐसा लगा की इसके साथ खड़े  होने या हाल में बैठने से अच्छा है की मैं वापस घर लौट जाऊं  , पर अब इन लोगो को वापस कैसे भेजूं  ,इसी उधेड़बुन  में फंसे मेने सोचा चलो मूवी ही देख ली जाए ....

मुझे उन लोगो के साथ खड़े होने और बात करने में शर्म महसूस हो रही थी ... अगर उस वक़्त कोई मुझे ऐसी गवाँरु औरत के साथ देख लेता तो यही समझता की मैं अपनी काम वाली बाई को फिल्म दिखाने लाया हूँ ....ड्राईवर ने मुझे देखा और कहा साहब आप पैसे दे दो मूवी के टिकेट ले आऊं ...मैंने  पर्स से निकाल कर कुछ रूपये उसके हाथ पर रख दिए , उसे देख वह चौंका और  बोला अरे साहब इतने में चार टिकेट थोड़ी ना आएंगें  ? ड्राईवर का इतना कहना था की मैं चौंका और दहाडा , अबे  तू और बुढिया भी हमारे साथ देखोगे क्या .... वह हंसा और बोला , बुढिया अपनी लड़की को अकेले ना जाने देगी , आज वह पहली बार आप के साथ अकेली आई है , अगली बार आप उसे अकेले ले जा सकते हो ....मैंने  बिना चूं चपड किये उसे और पैसे दे दिए ..वह टिकेट ले आया और हम चारों सिनेमा हाल के अंदर चले गए ...

मेरे साथ चलते हुए उन  तीनो नमूनों को देख टिकट- चेकर ने मुझे कुछ अजीब सी नज़रों  से घूर कर देखा , जिसे मैंने  हवा में उड़ा दिया और ऐसा दिखावा किया जैसे यह लोग मेरे साथ नहीं है ....पर वह भी जानता था , की उन लोगो की औक़ात  उस सिनेमा का टिकट खरीदने की कहीं  से भी ना थी ....क्योंकि यह सिनेमा हाल काफी हाई क्वालिटी का था उस थिएटर में अधिकतर अंग्रेजी की फिल्में ही लगती थी ......

हाल के अंदर घुसते हुए मेरा दिल निराशा में डूब रहा था , की क्या क्या सपने बुने और क्या हो रहा था , मैंने  ड्राईवर को कहा तू जाकर दूसरी ओर बैठ और साथ में बुढिया को भी ले जा ... बुढिया तो पुरानी घाघ थी , वह हम लोगो के साथ ही चिपकी रही , ड्राईवर हाल के किसी कोने में चला गया , मैं , बुढिया और लड़की हाल के एक  अंधेर कोने में जाकर अपनी अपनी कुर्सियों  में समां गए ..... ......

हाल में एक  कोने में लड़की मेरे और उसकी माँ के बीच बैठ गई, मुझे इन सबसे एक  अजीब सी बैचेनी होंने लगी , कि किसी ने अगर मुझे इनके साथ देख लिया तो क्या होगा , थोड़ी देर तक मैं चुपचाप बैठा रहा और ऐसा दिखावा करने लगा जैसे मुझे नहीं पता वह लोग कौन है ? हाल में अभी भी हल्की लाइट जल रही थी , आते जाते लोग मुझे और उन दोनों को एक  अजीब सी नज़रों  से देखते थे , की हम लोग गलती से तो कहीं उस सिनेमाघर  में तो नहीं चले आये , मैं दिखावा करने के लिए अपनी गर्दन इधर उधर घूमाने लगा , जैसे की मैं उन लोगो से अनजान हूँ ......

जैसे ही हाल में अँधेरा हुआ और परदे पर फिल्म शुरू हुई , युवती ने अपना घुंघट हटा लिया और अपने पल्लू को कंधे के पीछे कर लिया ... अब उसका चेहरा हल्के अँधेरे में भी मैं आसानी से देख सकता था ...जैसे ही फिल्म का पहला सीन शुरू हुआ , की वह मेरी सीट की तरह झुक गई , की उसके गाल पर  लगे पाउडर की महक मेरे नथुनों में घुसने लगी , मेरा सर उसकी मोजुदगी में जैसे अपना आपा खोने लगा ,कहाँ पहले मैं उसके किसी गवाँर की पत्नी वाले रूप को देख झल्ला रहा था , अँधेरे में अब वह सिर्फ एक  नारी थी और मैं एक  कामी दुराचारी पुरुष , जिसे कामवासना की आग ने अपने लपेटे में लेना शुरू  कर दिया था .... मैं भी अपनी ही कल्पना में खोया हुआ उत्तेजना से भरा था की मैंने  अपना कन्धा उसके कंधे से चिपका दिया और उससे सट गया .. अब उसका गाल मेरे गाल को छु रहा रहा था .....

तभी मैंने  आवेश में आकर अपना गाल उसके गाल से रगडा ..की उसने अपने आँचल  को नीचे अपनी गोद में गिरा लिया , अँधेरे में भी सामने चलती फिल्म की हल्की  सी रौशनी में ब्लाउज में से झांकते हुए उसके उरोज़  जैसे मुझे खुला आमंत्रण दे रहे थे ... .मैंने अपनी नज़रें उसके बगल में बैठी उसकी माँ की तरफ घुमाई तो देखा , बुढिया का ध्यान सामने परदे पर लगा हुआ था , मैंने नज़रें  अपने आस पास दौड़ाई  तो पाया , सब लोग फिल्म में ऐसे खोये हुए थे की किसी को किसी की तरफ देखने की फुर्सत नहीं थी ...मैंने  हिम्मत करके अपना हाथ युवती की गोद में रख दिया , उसने भी अपना हाथ बढाकर मेरे हाथ को अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया ...अब वह मेरे और करीब आ गई ...मैंने  उसकी तरफ नज़र  उठा कर देखा तो ऐसा लगा जैसे उसका ध्यान सिर्फ सामने परदे पर है , मैंने आव देखा ना ताव , अपने होंठ खोले और उसके गाल को अपने होठों में भर लिया , युवती ने मेरी इस हरकत पर  कोई आपत्ति नहीं की , अपितु आगे झुक कर अपने गाल को मेरे मुंह  के और नज़दीक  ले आई , जिससे मैं उसके गाल को आसनी से चूम और चूस सकूँ ...

मेरे मुंह के अंदर उसके चेहरे का पाउडर जैसे घुल सा गया , मुझे मुंह  में कुछ अजीब सा लगा , पर उस वक़्त जोश के आगे होश नदारद हो चूका था और उस वक़्त इस हरकत का भी अपना एक अलग  मजा और उत्तेजना थी ...मैंने  घबराकर इधर उधर देखा की कोई हमें घूर  तो नहीं रहा , पर यह सिनेमा हाल काफी हाई क्वालिटी का था , जिसमे ऐसे लोग आते थे , जिन्हें सिर्फ अपने भर से मतलब होता था ...वैसे  भी वहां हिंदी फिल्म कभी कभी ही लगती थी ...अगर मैं इन माँ बेटी के साथ ना आता तो , शायद कोई इन्हें टिकट  भी नहीं देता ....फिर भी अगली सीट पर उसकी माँ बैठी थी और मैं उसके सामने ही उसकी बेटी से अपनी आधी अधूरी , कच्ची पक्की हवस पूरी कर रहा था ...मुझे अंदर से एक  ग्लानि  और अजीब से तनाव ने घेर रखा था ...

उस वक़्त मेरी हालत ऐसी थी , जैसे कोई आइसक्रीम के ऊपर गर्म गर्म चॉकलेट  का सिरप डाल दे ... अब आप सिरप की गर्म चुस्की से जीभ जलाते है या ठंडी ठंडी आइसक्रीम से अपने दांत को कडकडवाते है ....... यह फैसला आपके विवेक और शरीर को करना था ....की आप ज़मीर  की सुने या शरीर की ...

उसके गाल को चूमने के बाद मेरी उत्तेजना बढ़ने लगी , परदे पर क्या हो रहा था , इसकी मुझे तनिक भी खबर ना थी , मैं गरदन घुमाकर कभी उसे तो कभी उसकी माँ को तो कभी अपने अडोस पड़ोस  में देख लेता ...की कोई हमें घूर तो नहीं रहा ... की अचानक मैंने  उसके दांये उरोज़  को अपने हाथों की कैंची बनाते हुए बांये हाथ को दांयी बगल से निकालते हुए थाम लिया , ताकि सामने से देखने में ऐसा लगे जैसे मैं अपने हाथो को बाँध कर बैठा हूँ उसके उरोज़  को मैंने कस कर पकड लिया और ज़ोर से उसे दबाने लगा ...अभी मैंने उसे दबाया ही था की उसके मुंह से एक  सिसकी निकली , और उसकी माँ की आँखे जैसे अँधेरे में हम दोनों पर आकर टिकी और फिर परदे में विलीन हो गई ...उसे भी पता था , वहां क्या हो रहा है या उसे पता था फिल्म में क्या होगा , फिर भी यह सब मेरे लिए एक  अजीब सा अनुभव था ....किसी की बेटी के साथ रासलीला वह भी उसकी माँ के सामने एक अजीब सा लगने वाला और उत्तेजना से भरपूर अनुभव था .....

कुछ लोग भारतीय समाज में इस पर कोई मोरल सन्देश दे सकते है , पर विदेश में रहने वाला शायद इसे इतनी बड़ी बात ना समझे , क्योकि विदेश में रहने वाला तो अपनी बीवी की डिलीवरी  उसकी माँ के सामने करवा देता है ....फिर थोड़ी बहुत ऐसे चुम्मा चाटी और  चिपटा गिरी और खींचतान तो बहुत ही मामूली बात है ...पर उस वक़्त विदेश में क्या होता है , इसका गुमान मुझे कदापि ना था ,मैं शायद उस वक़्त, जाने अनजाने देश में रहते हुए ,पहले से ही विदेशी होने का अभ्यास कर रहा था .....

मैंने  जोश में उसके उरोज़  को एक  गेंद की तरह से अपनी पकड़  में लेना चाहा , पर यह क्या वह तो ऐसे अकड़े हुए थे , जैसे कोई पत्थर की गेंद हो .. मैंने अपनी तरह  से भरसक कोशिस की ,की उन्हें दबाऊं और थोडा सा गुदगुदा लूँ ..पर वह तो इतने सख्त थे , की मेरी लाख कोशिस के बाद भी मैं उन्हें टस से मस ना कर सका .... मेरी यह कोशिस देख युवती पर भी कुछ कुछ असर होने लगा , उसने अपना हाथ मेरे उस हाथ के ऊपर रख दिया , जिससे मैंने  उसके एक उरोज़ को दबोचा हुआ था मुझे ऐसा लगा जैसे किसी लोहे के शिकंजे ने मेरा हाथ आकर जकड़ लिया हो ... अब मेरे हाथ के नीचे  पत्थर की गेंद और ऊपर लोहे का शिकंजा कसा हुआ था ...मैंने  अपने हाथ को वहां से हटाने की भरसक कोशिस की , पर मेरी हल्की फुल्की ताकत से मैं अपना हाथ हिला भी ना पाया , वह युवती इतनी सख्त और ताकतवर होगी ऐसी  मैंने कभी कल्पना भी ना की थी ....दुसरे मेरा हाथ उल्टा था , जिससे मेरी पकड उतनी मजबूत नहीं बन पाई थी ...

उसके उरोजों  में जो सख्ती और नुकीलापन था , ऐसे मैंने  उस दिन से पहले कभी और उसके बाद आजतक किसी औरत में महसूस नहीं किया था ....उस वक़्त मुझे ऐसा महसूस हो रहा था ,जैसे कोई हल्का नुकीला सा पत्थर जैसे मेरे हाथ में जकड़ गया हो .......

मैं भी पुराना घाघ था ....उसकी ताकत को मैं यूँही अपने ऊपर चलने ना देता ....अपने हाथ को उसकी पकड से छुड़ाने के लिए मैं अपने मुंह को उसके चेहरे के करीब ले गया और उसके गाल को अपने दांत से काटते हुए उन्हें अपने होठों में भर लिया ओर उनपर  जीभ फिराने लगा , अचानक ऐसा होने से उसका ध्यान भटका और उसकी पकड थोड़ी सी ढीली पड़ी की मैंने अपना हाथ वहां से छुड़ा लिया... फिल्म में क्या हो रहा था , परदे पर क्या चल रहा था , इसका मुझे कोई गुमान ना था ...मैं तो उसके जिस्म का अपने तरीके से जी भरकर आनंद उस माहौल  में जितना ज्यादा हो सकता था लेना चाहता था ...

उसके गालों के पाउडर को जी भर कर मुंह में भरने और उसके उरोजों  की सख्ती को नापने के बाद अब मेरे अंदर उसके जिस्म को अंदर से टटोलने की इच्छा होने लगी ..... कहने को उसका ध्यान परदे पर था पर जैसे उसे मेरी हरकत का पहले से ही इल्म था .... मैंने अपना हाथ धीरे से उसकी गोद पर रखा जिसपर उसने कोई प्रतिक्रिया  नहीं दी .. ..फिर मैंने  झटके से उस हाथ को उसके पेट के ऊपर से फेरते हुए उसके पेटीकोट के अंदर डाल दिया ....मैंने  यह हिमाकत कर तो दी , पर सिनेमा हाल में ऐसी हरकत करना निहायत  ही बेवकूफी का काम था , अगर कोई देख लेता तो शर्तिया मुझे अपनी इज्जत का जलूस  निकलवा कर हाल से बाहर  जाना पड़ता ....पर वहां शायद , ऐसी हरकत करने वाले विरले ही आते होंगे ....उसने मेरी इस हरकत का मुझे मुंहतोड़  जवाब दिया और अपने हाथ से मेरा हाथ एक  ही झटके में तिनके की तरह से हटा दिया ....

मैंने भी हालत की नज़ाकत  को समझते हुए परिस्थिति से समझौता करना उचित समझा और अपना हाथ वहां से हटा कर उसके उरोजों पर फेरने लगा ..ऐसा महसूस होता था जैसे एक  कसी हुई गेंद को , मैं अपने हाथो से दबा कर उसकी मजबूती नापना चाहता हूँ ,मेरी भरसक कोशिस के बाद भी , मैं उसके उरोज़  को हल्का सा भी उसकी जगह से दबा ना सका ....

उस वक़्त मुझे क्या पता था की यह मेरी जिन्दगी का ऐसा पहला और शायद आखरी अनुभव होने जा रहा था ...जिसकी कल्पना सिर्फ वही कर सकता है , जिसने उसे भोगा हो ...

न जाने कितनी देर तक मैं उसके उरोजों  पर अपना हाथ फेरता रहा की शायद एक  बार उन्हें हल्का सा दबा लूँ ,पर ना उन्हें दबना था ना वो मुझसे उस दिन दबे ...मैं सोच रहा था ,अगर यह मुझे बिस्तर पर मिलती तो मेरा क्या हश्र होता , क्या मैं उसके उरोजों को ज्यादा अच्छी तरह से हैंडल कर पता या उसके साथ नर और नारी का सम्बन्ध किस हद तक जाता ....

बीच बीच में , मैं कभी उसकी नाभि के ऊपर हाथ फेरता और बदले में कभी कभी वह अपने गालों से मेरे गाल रगडती ,इसी आपाधापी में कब आधी फिल्म  ख़त्म हो गई मुझे पता भी ना चला और जब इंटरवल  हो गया और हाल की लाइट जली तब मुझे होश आया कि मैं कहाँ हूँ ... हाल की लाइट जैसे ही जली मैं अपनी सीट से उठा और बाथरूम चला गया , मैं नहीं चाहता था की कोई मुझे रौशनी में उसके पास बैठा देखे ... वैसे भी इतनी देर उसके साथ नूरा -कुश्ती करने के चक्कर में , मैंने अपने पेशाब को बहुत देर से रोके रखा था , अब मुझे उससे भी हल्का करना था ....

इंटरवल ख़त्म होने के बाद जैसे ही अँधेरा हुआ , मैं अंदर हाल में आकर अपनी सीट पर बैठ गया , मेरा यूँ जाना शायद उसे अखर गया था , जैसे ही मैं सीट पर आकर बैठा , वह मुझसे सट कर बैठ गई और अपने गाल को मेरे होठों से रगड़ने लगी ...अब वह भी अपनी तरफ से पूरा सहयोग देने को तैयार जान पड़ती थी .... मेरी मुसीबत अब कई सारी हो गई , एक  तो मेरे अंदर का मर्द मेरे सब्र का इम्तिहान ले रहा था और बार बार मुझे ललकार रहा था, दुसरे उसकी माँ की यदा कदा घुमती आँखे जैसे मुझे चिढ़ा सी जाती थी और तीसरा आस पड़ोस  के लोगो का अनजाना सा भय , कि कहीं  कोई देख ना ले और कुछ कह ना दे , अरे आप लोग सिनेमा हाल में क्या करते हो ?..

वह युवती मेरे और नजदीक चली आई की अब वह मेरी सीट की तरह इतना ज्यादा झुक गई की वह लगभग मेरी आधी सीट पर चढ़ सी आई , उसने अपनी बायीं टांग उठाई और उसकी कैंची बनाते हुए मेरी दायीं टांग को उसमे फंसा लिया ....अब मेरी हालती ऐसी थी ...की मैं चाहकर भी अपनी जगह से हिल नहीं सकता था ...उसका बांया गाल मेरे मुह के आगे था और उसकी कमर मेरी छाती को अपने पीछे ऐसे धकेले हुए थी , जैसे कोई आपकी गोद में आकर आधा सा ऐसे बैठ जाए और आप अपनी जगह से हिल ना सके ...जैसे वह अंदर ही अंदर चाहती थी की मैं उसके गालो को जी भरकर चुमू , चुसू और काट भी लूँ तो वह उफ्फ तक नहीं करेगी .....

यूँ तो मैं एक  अच्छा खासा ताकतवर आदमी था , पर उसकी ताकत के आगे , मेरी ताकत जबाब देने लगी , अब सिवाय उसके गालों को चूसने के मेरे पास कोई और विकल्प ना था , उसके होठों को चूमने की ना मैंने कोशिस की ना ही उसने ऐसा कुछ करने का प्रयास किया , शायद यह सब उसकी सेक्स की किताब में नहीं था , उसका बांया कन्धा मेरे दांये कंधे को दबाये हुए था , ऐसे में मेरा दांया हाथ भी उसकी पीठ के दबाब में आकर बेकार ही चूका था , मैं चाहकर भी अपने दांये हाथ को हिला नहीं सकता था ...मैंने अपनी टांग को उसकी टांग की गिरफ्त से छुड़ाने की भरसक कोशिस की पर वह तो उसे ऐसे जकड़े बैठी थी ,जैसे किसी अज़गर ने अपने कब्जे में किसी शेर को जकड़ लिया हो , जब मैं अपने को उसकी पकड से आजद ना कर सका , तो मैंने  उसके साथ कुछ बातें  करने का मन बना लिया और बेकार की बातों को धीमी आवाज में उससे खुस फुसर करने लगा ......की वह मेरे साथ कहीं अकेले घुमने चलेगी की नहीं , उसकी पसंद , ना पंसद आदि आदि ....

उस दिन मुझे अहसास हुआ , की देहाती औरत और शहर की औरत में क्या अंतर होता है ?.. उसका जिस्म मेहनत मजदूरी करते हुए ऐसा कस और तन गया था , की उसे भोगने के लिए उसके जैसा ही मजबूत और हिंसक आदमी बनना जरुरी था ...यूँ तो मैं अपने साथ के लड़कों  के मुकाबले अच्छा खासा तंदरुस्त और ताकतवर था , पर उसकी ताकत के आगे , मैं भी पसीना पसीना हो चूका था....सोचता हूँ काश आज ऐसा कुछ फिर से हो जाये तो मैं क्या अलग करूँगा ....

मुझे काफी देर जकड़ने के बाद उसने अपनी पकड ढीली कर दी और मैंने  मौका देखा अपना हाथ उसकी नाभि के पास ले जाकर उसके अंदर डाल दिया ... सीट पर बैठे होने कि  वज़ह से मेरा हाथ बहुत अंदर तक ना जा सका , सिर्फ उंगलिया कभी साडी के जोड़ पर  जाकर फंस सी गई ....इस वक़्त मेरे अंदर का मर्द जैसे उससे बदला लेने पर उतारू था , मैंने भी उसकी सीट पर झुकते हुए , अपना दांया पैर उसके बांये पैर के ऊपर चढ़ा कर वैसे ही कैंची डाल दी , जो उसने थोड़ी देर पहले मुझपर  डाली थी , मुझे लगा वह मेरे दबाब से हिल नहीं पाएगी , पर उसने तो एक  ही झटके में मुझसे अपने से यूँ आजाद करा लिया जैसे कोई बड़ी मछली आदमी के हाथ की गिरफ्त से फिसल कर निकल जाए ...हमारी यही छीना झपटी थोड़ी देर तक चलती रही , कुछ वक़्त बाद मैं भी इस अजीब से सेक्स से बोर हो गया , मेरे मुंह  में उसका पाउडर का कैसेला सा स्वाद और नथुनों में उसकी सांसो की महक और गर्मी जैसे पूरी तरह से घुल चूकी थी .... अब मुझे उसे पूरी तरह से हासिल करने की इच्छा होने लगी , पर सिनेमाहाल में यह सब मुमकिन ना था ....

अब मैंने  अपना थोडा सा ध्यान परदे पर  चलती हुई फिल्म पर  लगाया , तो ऐसा लगा की फिल्म जल्दी ही ख़त्म होने वाली है . मैंने  भी भागते भूत की लंगोटी समझ उसके गालों से अपने गालों को रगड़ा और उसके ऊपर  पूरी तरह से झुकते हुए उसके एक उरोज़ को अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया , मुझे जैसे अब किसी से कोई परवाह ना थी , क्योंकि जो होना था वह होने जा रहा था ...की .. अचानक से मेरे सब्र का बाँध टूट गया और मुझे अपनी पेंट में कुछ गीला गीला सा महसूस हुआ ...

जैसे ही मुझे इसका अहसास हुआ , मेरा दिल ,दिमाग और शरीर एक  अज़ीब से सकून  का अनुभव करने लगा ...तभी मैं अपनी सीट से उठा और उन तीनो को हाल में छोड़ सिनेमा हाल से बाहर  निकल गया ...उस वक़्त मेरा दिमाग सांय सांय की आवाज कर रहा था , सिनेमा हाल के अँधेरे से निकल कर जब मैं बाहर  के उजाले में आया तो , ऐसा आगा जैसे मेरा जिस्म एकदम  हल्का हो कर हवा में उड़ रहा है .... मेरी सांस तेज तेज चल रही थी और दिल के धडकने की आवाज दूर से ही सुनी जा सकती थी ...

यह अपने आप में एक विचित्र और उत्तेजना से भरपूर अनुभव था ...अगले दिन ड्राईवर ने मुझे प्रशन चिन्ह वाली नज़रों  से धूरा और पुछा , सर आप हम सब को छोड़ कर अकेला क्यों चले आये ....मुझे माँ बेटी को ऑटो में बिठकर भेजना पड़ा और कुछ खिलाना भी पड़ा ..मैंने बिना कुछ कहे कुछ पैसे उसके हाथ पर  रख दिए और बोला , इससे मिलाने  का जुगाड़ कैसे बनेगा ...ड्राईवर ने एक  गहरी साँस ली और बोला , की उसकी माँ ने कहा है , की भैया को बोलना , पहले कुछ रुपया मेरी नज़र करें और फिर मेरी लड़की को अपने साथ घुमाए फिराए , कुछ शोपिंग आदि करवाये  , तभी वह उसके साथ किसी कमरे या घर पर  जाएगी .... मैंने एक गहरी साँस ली , की इसे तो किसी होटल में ले जाया भी नहीं जा सकता , क्योकि उसकी चाल ढाल और कपडे देख कोई अँधा भी समझ जाएगा की हम क्या करने आये है ...

मैंने उस वक़्त ड्राईवर से कुछ ना कहा और इस जुगाड़ में लग गया की किसी तरह किसी अकेले कमरे या घर का बंदोबस्त हो जाए , इसी खोजबीन में लगे कुछ महीने बीत गए की , अचानक मैं अपनी नौकरी और घर बार सब कुछ छोड़ छाड़ कर , हमेशा हमेशा के लिए विदेश चला आया और जीवन भर उसके उरोजों  की कसावट को अपने ज़ेहन  में समटे हुए , फिर से किसी ऐसी नारी की खोज निकल पड़ा  ....

...क्रमश :

By
Kapil Kumar