Thursday 29 December 2016

तेरे आने का अंदेशा ....



किस किस बात के
शिकवे कितनी बार करूँ 

किस किस दर्द की
शिकायत किस किस के पास करूँ 

हैं मेरे सीने
में जख़्म ही कुछ ज्यादा 

किस किस की
मैं अब दवा करूँ ....

अब तो कुछ आदत
सी हो गई है 

इन ज़ख्मों  को
सीने में संजो कर रखने की 

है यह मुश्किल
अब मेरी ,किस को अपने पास रखूं 

और किस किस को
अपने से दूर करूँ ....


जब भी गिरता
है कोई अश्क तेरा 

मेरा दिल खून
के हजार आंसू  रोता है 

तू मेरी
मोहब्बत नहीं इबादत है 

तेरे सजदे के
बिना मेरा कब सवेरा होता है .....


कैसे काटू
मैं यह दिन जुदाई के 

बड़ी मुश्किल
से यह दिल बहल कर सोता है 

जिस्म को दे
दूँ झूठी तस्सली तेरे आने की 

पर अफ़सोस ,
रूह को नहीं अब होता भरोसा है ...
मेरी आशिकी को
जिस्म की चाह मत समझना 

मेरी मोहब्बत
को दीवानगी का आलम मत कहना 

यह फितूर नहीं
है अब मेरे बस का 

क्यों हर आहट

पर  तेरे आने का अंदेशा होता है ....

By
Kapil Kumar 

Sunday 18 December 2016

आधुनिक भारत का तुगलक - भाग 2




भारत सरकार  ने एक  दिन रात के 8 बजे घोषणा करके देश में चलने वाले 500 और 1,000 के नोट को अमान्य घोषित कर दिया ... अब यह फैसला कितने दिल और दिमाग से लिया गया है इसके परिणाम आने लगे है ...शर्म और दुःख की बात यह है की तुगलकी फरमान एक  के बाद एक ज़ारी है ...वर्तमान सरकार और नौकरशाही अपनी गलतियों से सबक ना लेकर एक के बाद एक  उल्ल ज़लूल   फैसला ले रही है , जिसमे ना तो कोई समझदारी है ना ही दूरदर्शिता ...

अगर आपने कोई फैसला लिया और उसके लागू करने में कोई चूक हुई तो उसे क़बूल  कीजिये ना की एक  गलती को छुपाने के लिए दूसरी फिर तीसरी गलती करके जनता को ग़ुमराह  मत कीजिये ...पर यह बात किसको और कैसे समझाई जाए जब ...समां ऐसा बना हो ...

“बर्बादे  गुलिस्तां करने को एक  ही उल्लू काफी था , अंजामे गुलिस्तां क्या होगा जब हर शाख पर  उल्लू  बैठा है “

नोटबंदी करने की हड़बड़ी में सरकार ने जो जनता की मुसीबत नाम का जिन्न भ्रष्टाचार  की बोतल से बाहर  निकाल दिया  है उसे अब वह किस तरह से अंदर घुसाए , ना तो उसे कुछ समझ आ रहा है ना ही उसे कुछ सुझाई दे रहा है ..असली समस्या यह है की झूठी शान और जिद्द  में घिरा व्यक्ति सिर्फ अपना ही घर बर्बाद नहीं करता वह अपने साथ आने रिश्तेदारों , अडोस -पड़ोस  सब को ले डूबता है ....

आधुनिक तुगलक की मंशा कितनी अच्छी थी या धूर्त यह तो आने वाला वक़्त बताएगा ...पर अभी के लिए हम मान ले की तुगलक ने जो किया देश और जनता की भलाई के लिए किया  ..पर उसका परिणाम क्या निकला उसके लिए एक  सवाल है , जिसे अपने दिल पर हाथ रख कर दे ....

आपने किसी  समझदार दोस्त के साथ बिजनेस किया और दोनों ने मिलाकर 5 लाख का प्रॉफिट कमाया , अब जब प्रॉफिट  बाँटने की बारी आई तो आपके दोस्त ने बईमानी करके 4 लाख खुद हडप लिए और 1 लाख आपको दिया ..आप उसे जीवन  भर  गाली दे रहे है ..की उस धोखेबाज़   ने धोखा दिया और घोटाला किया ....

अब आपने एक  मूर्ख  दोस्त के साथ बिजनेस किया जिसने आपको 2 लाख का घाटा दिया , जिसमे उसने थोड़ी सी बईमानी की और आपको 1.25 लाख का घटा दिया और खुद 75 हजार का घाटा लिया ..अब आप उसकी तारीफ़ करे और कहे की ..भाई यह कितना ईमानदार है ..इसने सिर्फ 25 हजार की बईमानी की ....

तो दोनों घटना आज के परिवेश के लिए है ...की पिछली  सरकार , पहला वाला दोस्त है और वर्तमान  सरकार दूसरा वाला दोस्त है , अब यह आपकी व्यापारिक सोच है की आप किसे इमानदार समझे और किसे बईमान....और किसके साथ व्यापार करने में समझदारी है ...

अच्छी खासी चलती और बढती हुई अर्थवयवस्था को गर्त में डालकर सरकार क्या हासिल करेगी यह तो शेखचिल्ली के सपने जैसा है ...जनता भी कितनी भोली है की अच्छे दिन आयेंगें  ..अरे जरा पुराने दिन को याद करो वह अच्छे थे या यह दिन ...पर कौन किसे और क्या समझाए , जब इन्सान अपनी ही बलि देने पर उतारू हो की उसे जन्नत का टिकेट मिलेगा , फिर ऐसे भक्त के लिए विलाप भी क्या और कैसे किया जाए ?

बात ब्लैक  मनी , आतंकवाद की हुई थी और आज दोनों ही अपने पूरे ज़ोर ख़रोश   में है ...पहले बैंक के बाबू इमानदारी से काम करते थे , सिर्फ इक्का दुक्का बैंक मेनेजर ही किसी तरह के घपले में लिप्त होता , अब आपने बैंक के बाबु , कैशियर को  भी सिखा दिया की बैंक में भी उपरी कमाई कैसे होती है ....धन्य हो प्रभु ..

आतंकवाद की घटना पिछले एक  महीने में किस रफ़्तार से बढ़ी है , यह भी देखने और समझने की बात है , उस पर तुर्रा यह है की सरकार  अपनी बेवकूफ़ी का प्रदर्शन घर में ही नहीं विदेश में भी जमकर कर रही है ...आपकी सेना ही सुरक्षित नहीं बाकी देश और जनता की सुरक्षा आप किस बूते करंगे , उसपर आपकी छाती है की सुकड़ती  तक नहीं ..बेशर्मी की हद यह है की गलती से सबक लेने के बजाय  दूसरो पर इल्ज़ाम डालना  ...यह सब पिछली  सरकार के 70 साल की गंदगी है ...

बहुत अच्छा भाई ...फिर पिछली सरकार के 70 साल का ही डिजिटल नेटवर्क है , रेल लाइन्स  है , बैंकिंग सिस्टम है , दूर संचार , मेट्रो सिस्टम , स्कूल , सड़क  , हॉस्पिटल , सरकारी वयवस्था , क़ानून , सेना , उसकी तोप , बन्दुक  , जहाज़   सब कुछ पिछली 70 साल की सरकार  का है ....फिर आप उसका इस्तमाल कैसे कर रहे है ...भाई बहुत खूब जो 70 साल में हुआ वह सब मुफ्त में और जो कुछ गलत हुआ वह उनकी गलती ....जब देश आजाद हुआ था , तब इस देश के पास क्या था और आज क्या है ?


इंडिया की इकॉनमी  1947 किस  दर्जे पर  थी और अब यह क्या ,कितनी बड़ी सेना थी आपकी 1947 में और उसके पास क्या था ? कितने घरों  में कार , टेलेफोन , टीवी था ?  जिस देश में एक  सुई तक ना बनती थी आज वह लड्कू विमान निर्यात करता है ...यह सब आपने दो साल में कर लिया ?  सरकार  और भक्तों की अक्ल और झूठ की कोई सीमा नहीं ...

बात करते है की हम फ़कीर है ....झोला लेकर निकले है ..भाई आप किसी टाटा बिरला की औलाद तो कल भी ना थे , आपके पास क्या था , आपने कौन सी डिग्री ऐसी ली थी की किसी कम्पनी में आप कोई डायरेक्टर होते  , या अपने कोई बिजनेस चला रखा था , फिर एक  फ़कीर के पास कुछ था खोने के लिए ? उसके पास जितनी अक्ल थी उसने लगा दी ....

आज की तारीख में डिजिटल इंडिया का सपना ऐसे ही है जैसे बिना पटरी के रेल दोडाना , पर क्या कर सकते है तुगलक की सरकार  है , ऊँचे और अच्छे विचार है , पर किसी प्रक्रिया  को लागू करने की अक्ल की कमी सब को ले डूबेगी ....

आप डिजिटल इकॉनमी की बात करते है ...किसके लिए ..90  करोड़  जनता यानी 70 % के पास  शाम तक होते होते एक  धेला  बचता नहीं , 1.5 % लोग  यानी 3 करोड़  लोग अपने पास एक  धेला रखते नहीं , क्योकि उन्हें अपने हाथ से खर्च करने की आदत नहीं है , उनके बिल तो उनके चमचे , असिस्टेंट या नौकर  या तो उनकी कंपनी के नाम या फिर सरकारी खाते से जाते है ..बची 15 से 20 % जनता जो मिडिल क्लास है ..सारा स्यापा उसे लेकर है ...भाई उनके लिए आपका आर्थिक ढांचा है , जो इतने बड़े बोझ को संभाल ले ...

क्रेडिट कार्ड कौन और किसे देगा , उसका कमीशन  किसे मिलेगा सिर्फ मल्टी  नेशनल को , उसकी क्रेडिट हिस्ट्री कौन और कैसे मैनेज होगी , साइबर क्राइम के केस में उपभोक्ता के हक़ के लिए क्या होगा ? है आपके पास इन सबके जवाब ?

उपभोक्ता क्यों क्रेडिट कार्ड से पेमेंट देकर 2.5 से 3% एक्स्ट्रा अपने ऊपर लोड ले , सेल टेक्स वसूलना सरकार की जिम्मेदारी है , उसमे उपभोक्ता क्यों सरकार के लिए अपनी कुर्बानी  दे , वैसे ही देश में पहले ही वेट , स्वच्छ भारत , सर्विस टैक्स के नाम पर  उसकी जेब काट ली जाती है ,एक  नया बोझ उसके जिम्मे और डाल दे ...यही वह इमानदार मिडिल क्लास है जो सबसे ज्यादा इनकम टैक्स देता है , अब उसकी बलि लेनी बाकी थी वह भी आपने अच्छी तरह से ले ली ....

एक  कुत्ता दुसरे कुत्ते का मांस  नहीं खाता यह सुना था पर देख लिया , जब सारे राजनितिक पार्टियाँ अपने चंदे के धन को सफ़ेद करने के लिए आज़ाद  छोड़ दी गई ...भाई शिकार तो सबको आम जनता रूपी मेमने का ही करना है ....

दूसरे  क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड की पेमेंट में बुजुर्ग , कम पढ़े लिखे लोगो के साथ जो हेरा फेरी होगी उसका जिम्मेदार कौन होगा ?  क्या सरकार  इन सबकी जिम्मेदारी लेगी और उनकी सहूलियत और सुरक्षा के लिए उपाय करेगी ?.. हालत देखते हुए तो यह शेखचिल्ली के सपने से कम नहीं है ....आप  से रिज़र्व बैंक से नोटों की सप्लाई तो कंट्रोल होती नहीं ....किस बैंक में कितना पैसा पहुंचा और किसको कितना मिला इसका हिसाब तो आपको पता नहीं ....आप चले है आम जनता के हिसाब का ठेका रखने ....

उसपर सरकार न होकर एक  चिट फण्ड कम्पनी लगती है जो अपनी लुभावनी स्कीम से लोगों  को लुभा रही है , यह पहली सरकार है जो अपने ज़रूरी  काम धाम छोड़ कर आये दिन , नए नए बम्पर इनामों की घोषणा कर रही है ..अरे आप स्विस अकाउंट वालो को पकड़ो , जिन्होंने लोन नहीं दिया उसकी उगाही करो , दुकानदार सेल टैक्स क्यों नहीं देता , उसका कारण जानो और सख्ती करो , नोटों का वितरण ठीक से क्यों नहीं उसका हल खोजो ...नहीं ....

सरकार और मशीनरी  सड़क पर  मदारी का खेल दिखने वाला जमूरा बन गई है ...जो बड़ी शान से अपनी नयी नयी गुलाटियों यानी स्कीमों को ऐसे दिखा रही है जैसे कितने बड़े काम की हों ...

अभी तक एक  बेसिक सा एप्लीकेशन तो इंडिया में है नहीं जो बाहर  के मुल्कों में बहुत ही कॉमन है , की आप घर बैठे अपने सेल फोन से अपना चेक जमा कर ले ....साइबर सुरक्षा के नाम पर चीन के बने सेल फोन आम जनता के बीच’ भरे पड़े है जिनमे कितने सारे वायरस है , हार्डवेयर सुरक्षा जैसी चीज से सेल फोन वास्ता नहीं रखते ...इसका कुछ  पता भी है इस  तुगलकी सरकार के आला अफसरों को ....ऐसे में डिजिटल करेंसी के पीछे अंधी दौड़ कितनी वाज़िब  है ?


अगर चीन का  हैकिंग सिस्टम अपनी नीचता पर  आगया तो आपके डिजिटल करंसी और इकोनोमी की जो वॉट  लगेगी , उसका जरा भी इल्म  है इस तुगलकी सरकार को ....यह कौन सी अल्क्ल्मंदी है की आप बिना ब्रेक की गाडी हाई वे पर  लेकर निकल जाए ..अगर एक्सीडेंट हुआ तो बोल दे 70  साल की गन्दी थी ...

डिजिटल इंडिया का सपना ऐसे ही जैसे तुगलक का दौलताबाद को दिल्ली बनाने का सपना था , दौलताबाद को राजधानी बनाना  इतना गलत नहीं था , जितना तुगलक की जिद्द की सारे दिल्ली बाले दिल्ली छोड़ दौलताबाद जाए और दौलताबाद , दिल्ली जैसा हो जाये ..ऐसे ही सारे भारत को डिजिटल इकॉनमी  बनाने का सपना भी तुगलकी सपना है ...

अगर यह सिर्फ शहरों के लिए होता तो भी समझ आता , एक  बेचारे दूर  दराज के गाँव में जहां लोग , बिजली और पानी जैसी मूल भूत सुविधाओं  से महरूम है आप उन्हें प्लास्टिक  के कार्ड पकड़ाएंगें  ..बहुत खूब ..

गर्मियों में दिल्ली जैसे शहर में बिजली की क्या सिथिति है उस वक़्त आपके डिजिटल नेटवर्क का क्या होगा , उसका प्लान भी बना लेते , बारिश में आम टेलेफोन लाइन में क्या होता है उसका भी कुछ सोच लेते , तब क्रेडिट कार्ड मशीन कैसे परिणाम देगी ,इतनी सारी इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजेक्शन  इतने कम समय में , कौन सा नेटवर्क इतना बोझ ले पायेगा इसका भी कुछ ख़्याल  कर लेते ...अब यह सब कौन सोचे ....बिजली , पानी , सड़क  , पुलिस  ,स्कूल , हॉस्पिटल बने या न बने ...बस क्रेडिट कार्ड जरुर बने ....

सरकारी जिद्द ऐसे है बस हमें तो अपनी डिजिटल इकॉनमी  की ट्रेन दौड़ानी है  ....पटरी हम बाद में डाल लेंगें  ...

By 
Kapil Kumar 

Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.' ”

आधुनिक भारत का तुगलक - भाग 1


भारत सरकार ने एक  दिन रात के 8  बजे घोषणा करके देश में चलने वाले 500 और 1,000 के नोट को अमान्य घोषित कर दिया ... अब यह फैसला कितने दिल और दिमाग से लिया गया है इसका फैसला वक़्त ही बताएगा , पर इस फैसले ने देश में जो हालात पैदा किये है , उसकी सही तस्वीर देखने और समझने के लिए हमें अपने आप से पूछना पड़ेगा की जो हुआ और जैसे हुआ क्या उससे बेहतर हो सकता था ? खैर  नोटबंदी की इस घटना को मैंने  अपने नज़रिये  से देखा और परखा ...इसी दौरान हुए अनुभव ने मुझे भारत के इतिहास और साहित्य की कुछ घटनाओं और कथाओं को मेरे ज़ेहन  में फिर से जिन्दा कर दिया ... हम इस नोटबंदी को भारत के इतिहास में हुई कुछ ऐसी घटना से तुलना करके देखते है , साथ ही इस से उपजी सामाजिक व्यवस्था  और लोगों की सोच और उनकी प्रतिक्रिया  को कथा के माध्यम से परखते और समझते है ...

कहने को भारत सरकार अपने फैसले को कालाधन , नकली नोट  भ्रष्टाचार और देश की सुरक्षा के लिए लिया गया फैसला बताती है , हो सकता है भारत सरकार ने इसी सोच को ध्यान में रख यह कड़ा  फैसला लिया हो , पर यह फैसला भारत के इतिहास में दर्ज मोहम्मद बिन तुगलक की याद दिलाने के लिए काफी है , जिसने अपनी गहन सोच और राजनितिक सूझ बुझ के चलते , देश में चमड़े के सिक्के चलाये और फिर उसका परिणाम क्या हुआ , यह इतिहास में दर्ज़  है , इतना ही नहीं उसने अपनी राजनितिक चतुराई का भरपूर इस्तमाल करते हुए , भारत की राजधानी दिल्ली को दौलताबाद शिफ्ट किया और उसके बाद जो देश में अफ़रातफ़री का माहौल  बना उसका परिणाम भी इतिहास में दर्ज़ है ..मोहम्मद तुगलक ने अपने फैसलों को उस वक़्त देश और जनहित में लिया गया एक कड़ा  कदम बताया , पर इतिहास बताता है की उसका फैसला कितनी समझ बूझ और परिपक्वता  से पूर्ण था ....आज भारत अपने उसी इतिहास को फिर से दोहराता लगता है ...एक  चलती फिरती , उभरती अर्थवयवस्था में ..इसी सोच और समझ बुझ से कितना बड़ा ब्रेक लगा है और उसके क्या दूरगामी परिणाम होंगे यह भारत के इतिहास में अवश्य लिखा जाएगा ...

सिर्फ अपनी जिद्द  , झूठी शोहरत  और चाटुकारों से घिरे  भारत के बादशाह ने आज फिर तुगलक को अपना अघोषित गुरु बना लिया है ....

मोहम्मद बिन तुगलक ने जो किया और उसके बाद इस देश की जनता ने जो कड़वे  घुट पिए ...वह एक  अलग तस्वीर है ...पर यही जनता कितनी मासूम है इसे हम एक  और नज़रिये  से देखे और समझेंगें  ...आजकल मीडिया में लोगो का इंटरव्यू बड़ी शिद्दत से दिखाया जाता है , की लोग बैंक के आगे खड़े होकर अपने ही पैसे के लिए भीख मांगते हुए भी बड़ी शान और फक्र से कहते है , बहुत ही अच्छा फैसला है , जबकि सच्चाई यह है , यह वही लोग है , जो कभी राशन की लाइन में खड़े होने पर  स्यापा करते थे और काला बाज़ारियों को दिन रात कोसते थे ,पर मौका लगते ही राशन का सामान बाजार में बेच देते थे , यह वही लोग है जो ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के लिए अंडर टेबल से काम चलाते है और इनमें से कितनो ने सही में ड्राइविंग टेस्ट दिया है , यह वही लोग है जो , जरा सी ट्रैफिक लाइट पर  खड़े होने पर गुस्से से लाल पीले हो जाते है और मौका देख लाल बत्ती धड़ल्ले से पार कर जाते है ....यह वही लोग है जो सडक दुर्घटना में तडपते हुए लोगों को सिर्फ इसलिए नहीं उठाते की कहीं  इनका महत्वपूर्ण समय बर्बाद ना हो जाए , यह वही लोग है जिनके सामने किसी की इज्जत लूटी जाती है और अपनी आंख फेर कर निकल जाते है , यह वही लोग है जो लाइन में खड़े होने जैसे संस्कारों से अछूते है ....पर आज बैंक के आगे खड़े होकर छाती ठोंक कर फक्र महसूस करते है ..

इस सन्दर्भ में इक कहानी याद आती है ...एक  मुर्ख किस्म का राजा था , जो अपनी जिद्द  , अजीबों गरीब शौक और अपने ऊल ज़लूल  फैसलों के लिए प्रसिद्ध था , एक  बार एक  शातिर और धूर्त किस्म का आदमी उसके दरबार में आया , उसके मन में राजा को लेकर एक  दबा हुआ विद्रोह था , उसने राजा को बेवकूफ बनाने और ठगने के लिए एक  स्वांग रचा ..वह राजा के दरबार में गया उसकी झूठी प्रसंशा में उसने बड़े बड़े कसीदे गढ़े , राजा अपनी शान , यश और चतुराई की झूठी प्रसंशा से फुला  ना समाया , जब राजा उस व्यक्ति के वाक्य जाल में उलझ गया तो उसने , एक  जालीनुमा चादर राजा को भेंट किया और बोला महाराज ,यह एक दैविक  चादर है , इस चादर की खूबी है , जो भी नंगा इन्सान इसे अपने ऊपर लपेट लेता है , वह दुनिया के विद्वान और समझदार इन्सान को नंगा दिखलाई नहीं देता ....अगर किसी को वह नंगा दिखलाई देता है इसका मतलब वह इन्सान मुर्ख और देशद्रोही है ....राजा के चतुर दिमाग में एक  विचार कोंध उसने सोचा क्यों ने इसे ओढ़ कर देखा जाए , की मेरे दरबार में कितने लोग विद्वान और कितने मुर्ख है ....उसने झटपट अपने सब कपड़े उतारे और उस व्यक्ति के द्वारा लाइ हुई जालीदार चादर ओढ़ ली ...

राजा ने जब चादर ओढ़ कर खुद को आईने के आगे देखा तो उसे अपने आपको नंगा देख कर बड़ी ज़िल्लत और शर्म महसूस हुई , पर अपनी झूठी आन , बान शान और विद्वान होने भ्रम ने उसकी आँखों पर पट्टी बाँध दी और वह बड़े फक्र से नंगा ही दरबार में चला आया और बड़ी शान से बोला देखो मैंने कितनी सुंदर दैविक  राजसी वस्त्र पहने है ...राजा को नंगा देख वह व्यक्ति मन ही मन बड़ा प्रसन्न हुआ पर उपरी दिखावे के लिए राजा की शान में झूठी तारीफ़ करते हुए बोला महारज सिर्फ एक विद्वान  ही आपके दैविक  राजसी वस्त्र को देख सकता है , जो मुर्ख और देशद्रोही है उसे आप सिर्फ चादर ओढ़े अर्ध नग्न दिखलाई देंगे ....राजा ने भी अहंकार में अपने दरबारियों से पुछा बताओ मेरे दैविक  राजसी वस्त्र कैसे है ?यूँ तो राजा के दरबार में मुर्ख , धूर्त , चाटुकार और विद्वान चारो किस्म के दरबारी और प्रजा मौजूद थे , पर राजा अपनी आत्म प्रसंशा  के मोह में इतना डूबा रहता था की उसे किसी का अपना प्रति हल्का सा भी विरोध न भाता , जो भी दरबारी उसके किसी फैसले से सहमती ना दिखाता , उसे अपने पद से हाथ धोना पड़ता या फिर उसे ऐसे किसी महत्वहीन पद पर डालकर हमेशा के लिए उसका मुंह  बंद कर दिया जाता , जहां वह अपने बीते हुए कल को याद करके सिर्फ आहे भर सकता ....

ऐसे में सिर्फ धूर्त , मक्कार और चमचों  का ही राजदरबार में बोलबाला था और इतना ही नहीं ऐसे लोगों ने जनता में भी ऐसा भ्रम फैला दिया गया था , की उनका राजा कितना प्रजा प्रेमी है और जब भी राजा कोई कठोर फैसला लेता है , वह जन हित के लिए ही होता है , ऐसे में जो धूर्त और चमचे किस्म के लोग होते वह राजा का गुण गान करके अपना कोई ना कोई फ़ायदा  किसी ना किसी तरह से उठा लेते और जो लोग राजा के फैसले की समीक्षा दिमाग से करते और राजा को उसके फैसले के विपरीत सलाह देते , उनपर राजा और उसके चमचे दरबारी देशद्रोह का मामला बनाकर उन्हें प्रताड़ित करते , ऐसे में एक  विद्वान दरबारी अपने आप को राजा के फैसले से दूर रखते और आम नागरिक सच्चाई जानते हुए भी राजा की हाँ में हाँ मिलाने में ही अपनी भलाई समझता ...सब दरबारियो और जनता को राजा सामने से पूरा नंगा नजर आ रहा था , पर किसी में इतनी हिम्मत ना थी की वह सच बोल कर राजा को बता सके की वह किसी देविक राजसी कपड़ो में नहीं लिपटा ....

राजा भी स्वंय जानता था की वह नंगा है , पर अपने को विद्वान समझने की जिद्द  ने उसे मूर्खों  का महाराज बनने पर  मज़बूर  कर दिया ....आज फिर से यही कहानी भारत के समाज में एक  बार फिर से जीवित हो गई है ......की जो हो रहा है वह कितना वाज़िब  है ...पर सच कहने की हिम्मत किसी में नहीं और जिनमे है , उन्हें राजा के धूर्त चमचे और बाकी लोग देश द्रोही या फिर कालेधन का सौदागर बताने से नहीं चुकंगे ....

यह तो बात हमने की राजा , उसके दरबारियों और प्रजा के संदर्भ में , की कई बार जल्दीबाजी में लिया गया फैसला अविवेक पूर्ण होता है या फिर उसे अमल में लाने का तरीका गलत होता है पर यह समीक्षा कौन और किसे समझाए ...अब हम चलते है एक  ऐसी कहानी की और जो आज के भारत की आर्थिक व्यवस्था को उस रूप में देखती है ....बहुत पहले की बात है ..एक  राजा था जिसका नाम चौपट था , उसके राज्य का नाम था अंधेर नगरी ....उस राजा के राज्य में एक  विचित्र आर्थिक नियम था , की उस राज्य में हर चीज टका सेर के भाव थी ...मतलब हर चीज का एक  ही भाव था , आप एक  सेर सोना ले ...तो भी टका और आप एक  किलो नमक ले तब भी टका ..या फिर आप एक  किलो मिठाई या लकड़ी कुछ भी सबका एक  ही दाम था टका सेर ...

अब सोचने में लगता है यह कैसे मुमकिन की हर चीज का एक  ही दाम हो ..कैसे नमक को सोने के बराबर , या लकड़ी को मिठाई के बराबर या बकरी और हाथी एक  ही दाम में बेचा जा सकता है ..कोई भी व्यक्ति कहेगा यह तो बिलकुल बेवकूफी भरा सिस्टम था ...पर अगर मैं कंहू की राज्य की जनता उसे बड़ा समझदारी भरा बता कर खुद को चौपट नगरी की प्रजा बोल कर गर्व का अनुभव करती थी ..तो शायद आप इसे न माने ...पर आज का भारत ऐसा ही है ...अब हर इन्सान को बैंक से बराबर पैसा मिलेगा ..चाहे वह 5 हजार रुपया कमाने वाला गंगू ठेले वाला हो या लाखों  की नौकरी करने वाला अफसर करमचंद हो ....सबको ATM ..से बराबर पैसा मिलेगा ..अब वह 100 रूपये वाला मज़दूर  हो या फिर 5 लाख रूपये का टैक्स देने वाला सेठ फकीर हो ...अब कितनी बड़ी समानता है ..की शादी में सबको सिर्फ 2.5 लाख मिलेगा ...अब यह और बात है की एक  आदमी जिसने हर साल टैक्स दिया और उसकी आमदनी सालाना 50 लाख है और उसके सिर्फ एक  संतान है और उसके विपरीत एक  ऐसा आदमी जिसके 5 संतान है और जिसकी कमाई 2 लाख सालाना है और जिसे सिर्फ शादी में 2.5 लाख खर्चने है अब उसकी शादी का बजट भी बराबर है ...तो यह हालत ऐसे ही ...की ..

अंधेर नगरी चौपट राजा टका सेर भाजी टका सेर खाजा ...


अब बात करते है लोगों की प्रतिक्रिया के ऊपर की लोग इस फैसले के समर्थन में क्यों है ...इस देश का सबसे बडा दुर्भाग्य है की यहां की आम जनता ..कभी दूसरे  को देख खुश नहीं होती , उनकी ख़ुशी अपने नुकसान से ज्यादा , पड़ोसी  , रिश्तेदारों और अपने ही दोस्तों का नुक्सान और तकलीफ देखने में होती है ..यही वज़ह  है आम आदमी अपने नुकसान और परशानी को न देख दुसरे के नुकसान में अपनी खोखली ख़ुशी ढूंड रहा है ...सबके अंदर एक  अनजाना संतोष है ...की उसके यहां  हराम की काली कमाई थी , जो डूब गई ...

यहां की जनता की सोच एक  बाल्टी में पड़े हुए केकड़े जैसी है जो इक दुसरे की टांग दबोचे पड़े रहते है ..वह ना तो खुद बहार निकलते है और न ही दूसरे  को बाल्टी से बहार निकलने देते है ....

इसकी एक  सच्ची और आँख देखी झलक , एक  सज्जन कह रहे थे ,अरे मेरा तो सिर्फ 5 हज़ार  था उसका तो मैं कुछ कर लूँगा पर पड़ोस के शर्माजी के पास  हराम का 5 लाख था वह डूब गया , उधर शर्माजी कह रहे है मेरा तो 5 लाख था , पर मेरे बड़े साहब वर्माजी तो खूब मोटा माल जमा करके बैठे है उनका 5 करोड़  था वह गया बट्टे खाते , मेरे 5 तो दो चार फर्जी कम्पनी के खातों  में खप जायंगे ...उधर वर्माजी कह रहे है मेरा क्या सिर्फ 5 पेटी , 3 तो पहले ही खपा दी , बची 2 उनका भी बैंक मेनेजर से 20% पर  काम हो जाएगा ..पर यह हमारे निगम का अध्यक्ष क्या करेगा , जिसके 500 पेटी है और अध्यक्ष कह रहा है मेरा क्या विधायक पर  ज्यादा है , विधायक कह रहा है मेरे पर  क्या सांसद पर  मुझसे ज्यादा है और संसद कह रहा है , अरे मुझे क्या फ़िक्र मैंने  तो पहले ही सारा माल ठिकाने लगा कर डॉलर में बदल लिया , बांकी को सोने और दूसरी बेनामी सम्पति में लगा दिया , सोचे तो वह लाला , जो काश में खेलते है और काश वाला लाला , हंस रहा है , अरे इतनी पेटी और खोखे तो कब के निबटा दिए ....सच तो यह ,जनता एक दूसरे  के नुकसान में अपनी झूठी ख़ुशी देख रही है ....खुद कितने परेशान  है उससे मतलब नहीं , पर दूसरा इनसे ज्यादा तकलीफ में है इसकी उन्हें ख़ुशी है ... 

सच बात यह है सरकार ने जो भी फैसला लिया उससे किसी को आपत्ति नहीं ..पर फैसला लेते वक़्त आने वाली समस्याओं  ना समझना और उनके सही विकल्प ना देना ही सबसे बड़ी मुर्खता और हठधर्मिता है ..सवाल यह है ..की इसके बाद क्या काला धन नहीं होगा ? क्या आतंकवाद नहीं होगा ? और सबसे बड़ी बात आपने इन सबको रोकने के लिए क्या कदम उठाये उसकी क्या तस्वीर है , यह भी तो जनता को समझा दीजिये ..आप अपनी जिम्मेदारी से भाग कर , अपनी गलती को जनता के गले डाल कर उसे झूठी देश भक्ति का लॉलीपॉप  दे रहे है .............

कोई सरकार से यह पूछे की नकली करेंसी छपती क्यों और कैसे है , आप उसकी रोकथाम के लिए अब क्या नया करेंगें  की आगे ऐसा ना हो , क्या आतंकवाद सिर्फ नकली नोटों से चलता है , काले धन की परिभाषा क्या है , कल तक स्विस बैंक वाला धन काला था , आज घर में रखा धन काला हो गया ?जिन्होंने यह गुनाह किया , आपने उनके खिलाफ क्या किया और कितने लोगो को पकड़ा , सिर्फ नोट बंद कर देने से यह समस्या वक्ती तौर पर  हल हो जाएगी ,पर कल क्या होगा ?...

अब यह फैसला अच्छा है या बुरा ,इसे कहने के लिए तो बहुत बातें  है ...पर मेरा सिर्फ एक  सवाल , अगर यह फैसला अमेरिका या किसी यूरोप के देश में होता तो , आप देखते की लाइन में नेता , अभिनेता और सारे प्रसिद्ध लोग लाइन में लगकर अपने अपने नोट जमा करवाते या बदलवाते ... ...और ऐसा करके देश के कानून का सम्मान करके खुद को भी गर्व से देश का एक  आम नागरिक कहते ...क्या आपने अभी तक एक  भी नेता (चाहे विधान सभा या लोक सभा या निगम ) के वर्तमान या पूर्व नेता , खिलाडी , फिल्म स्टार या किसी भी अमीर या थोड़े से प्रसिद्ध आदमी को लाइन में लग कर नोट जमा करवाते या बदलवाते देखा है ? अगर हाँ तो जरा पब्लिक से शेयर करे ...अगर अभी तक ऐसा आपने नहीं देखा तो आप अपने आप से पूछे , की क्या इन लोगो को अपने नोट नहीं बदलवाने या इनके पास ऐसे कोई नोट नहीं है ..अगर है तो इन्होने अपने नोट किससे और कैसे बदलवाए ? अगर बदलवाए तो कैसे ?जबकि नोट बदलवाने के लिए आप को खुद अपने सर्टिफिकेट के साथ बैंक के पास जाना होता है .....दूसरे  के आधार या पेन कार्ड का इस्तमाल करके नोट बदलवाना कितना उचित है ?क्या दुसरो से नोट बदलवाना या अपने जानपहचान के बैंक मेनेजर से पीछे से काम करवाना , फिर मीडिया में भाषण देना कितना उचित है ?

क्या ऐसे दोगले लोगो से आप देश में काल धन और भ्रष्टाचार  खत्म करने का सपना संजो रहे है ?कृपया जज़्बात से ज्यादा दिमाग का इस्तमाल करे और सोचे क्या कोई एक  भी अहम आदमी इस देश के लॉ एंड आर्डर को मानता है ? ऐसे में एक  स्वच्छ , साफ़ सुथरे , काला धन और भ्रष्टाचार  से मुक्त भारत का सपना ...सिर्फ सपना है ...जब यह लोग अपना इतना सा काम आम इन्सान की तरह तक नहीं कर सकते ..तो और क्या करते होंगे ....आगे आप समझदार है ....

By 
Kapil Kumar 

Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.' ”

Sunday 11 December 2016

मैं क्यों तड़पता हूँ ?


जो कभी ना
करती है मुझे दिल से याद 
जिसे कभी ना
सुनाई देती है मेरी फ़रियाद 
जिसे कभी करीब
से देखा ही नहीं 
ऐसे पत्थर की
मैं क्यों पूजा करता हूँ 
फिर ऐसे हरज़ाई
के लिए , मैं क्यों तडपता हूँ ?

मैं रात भर
जागूं या दिन भर रहूँ बैचैन 
बिस्तर पे
करवट बदलू या खो दूँ अपना चैन 
यूँ भटकूँ
अनज़ान राहों पर या पथरा दूँ अपने नैन 
उसे नहीं है
फ़िक्र मेरी की दे कुछ अपनी भी रैन
फिर ऐसे बेदर्द 
के लिए , मैं क्यों तडपता हूँ ? 


जिसमें अकड़  है इतनी की ऐंठन भी शर्मा जाये 
उसका दिल है इतना कठोर की पत्थर भी नर्म पड़ जाए 
उसके संकल्प के आगे तो अंगद भी हिल जाए 
जिसे कभी हुई ही ना मोहब्बत 
फिर ऐसी जोगन के लिए , मैं क्यों तड़पता  हूँ ? 

By 
Kapil Kumar 

Sunday 4 December 2016

ख़ामोश आँखें .......




तेरी आँखों की ख़ामोशीयां जैसे करती है मुझसे कुछ सवाल 
इनमे छुपा  है कितना प्यार , फिर भी मांगते हो मुझसे इक़रार ...........


तेरे सूखते होठ जैसे देते है मेरी हर बात का जवाब 
जब तक तुम इन्हें ना चूमोगे , यह कैसे होंगे लाज़वाब ..............


तेरे भरे हुए कपोलों की सुर्खिया , मुझे मांगती है यह
कैसा हिसाब
जब तक तुम इन्हें ना छुओगे , फिर यह कैसे रहेंगें  सुर्ख लाल ..............


तेरी लहराती जुल्फों की लटाओं को मैं
क्या दूँ जवाब 
जो बिखरी है मेरे इंतजार में , बनके एक  महकता शबाब .............


तेरे चेहरे की मुस्कान जैसे करती एक अनजाना  सा अहसान 
मेरी वफ़ा को तोलने वाले , कभी तू भी तो हो मुझपर  कुर्बान .............


तेरी आँखों का कजरारा , जिसने मुझे देखा और धिक्कारा 
हे भटकने वाले मुसाफिर , क्यों
ढूंढता  है तू कोई और सहारा ..............

तेरे माथे का लश्कारा , जैसे देता है मुझे कोई आवाज़ 
जिसकी फीकी पड़ती चमक , जैसे कहती है अब तो कर लो मेरा आगाज़ .......

By
Kapil Kumar 

Saturday 26 November 2016

मोहब्बत की जंजीर .....


कर ले तू भी सितम  
की हम भी आह ना करेंगें  ..
मेरी आह के शोले 
एक  दिन तेरी आँखों से 
शबनम बनकर ही गिरेंगें ....
तब  मुझे आवाज़ दोगी  
की अपना बना लो 
तब हम ख़ाक से 
 कौन सी  मोहब्बत का  एहतराम करेंगें ....
अभी तो तुम उलझ जाओ अपनी वफ़ा के धागों में
हम मोहब्बत की जंजीरों को यूँही नीलाम करेंगें ....

By
 Kapil Kumar 

Thursday 24 November 2016

मैं तेरे शहर से दूर जा रहा हूँ ......



ह  कौन सा दर्द है जो लिए जा रहा हूँ

तू है यहां  और मैं वहां  जा रहा हूँ .....
इसे मिलने के लिए बिछड़ने का बहाना समझूँ
या फिर हमेशा के लिए दूर जा रहा हूँ .....
तुझे भुलाने की कोशिशें की मैंने  हजार ,
बनाये कई अफ़साने की हो जायूँ दूर हर बार
हर बार दुरी ने जैसे खिंचा मुझे तेजी से तेरी तरफ
 हर बार ऐसे बिना मर्ज़  का दर्द लिए जा रहा हूँ ....

मैं तेरे शहर से दूर जा रहा हूँ ......

By
Kapil Kumar 

तू मिली भी तो इस तरह से ......



तू मिली भी तो इस तरह से ......

तू मिली भी तो इस तरह से ,की  तुझे जी भरकर देख नहीं पाया

कैसे कुम्लाहा रही है धीरे धीरे, यह चाह कर भी कह नहीं पाया

तू मिली भी तो इस तरह से, कुछ चाह कर भी कह नहीं पाया ....


तू किस कदर जकड़ी है , अपने रिश्तो की जंजीरों में

बेबसी और समाज की कि उंची दीवारों की शहादतों में

तेरी इस क़ैद  को देख , जैसे मेरा दिल जिस्म से निकल आया

कैसे कर दूँ अपनी मोहब्बत का इज़हार    , यह मैं समझ नहीं पाया

इन सब के बीच जैसे तेरा सिन्दूर उभर आया

तू मिली भी तो इस तरह से, कुछ चाह कर भी कह नहीं पाया ....


दिल में थी बहुत उमंग तेरी नरगिसी सी आँखों में झाँकने की

थी बड़ी चाहत तुझे बांहों में भर कर चूमने की

सोचा था लहराती जुल्फों की थोड़ी सी तारीफ़ कर दूँ

कैसे खिलते गुलाब से कपोल है उनकी गहराई भर लूँ

इन अहसासों को मैं ,बड़ी मुश्किल से कुचल पाया

तू मिली भी तो इस तरह से, कुछ चाह कर भी कह नहीं पाया ....


थी बड़ी चाहत की कुछ ऐसी गुफ़्तगू कर लूँ

कुछ अपने दिल की तो कुछ तेरे दिल की सुन लूँ

चूम कर तेरे होठों को  थोड़ी सी मस्ती कर लूँ

भर कर तुझे बांहों में , कुछ जिस्म में गर्मी भर लूँ

ऐसे ख्यालातों को भी मैं , कुछ तवज्जो  नहीं दे पाया

तू मिली भी तो इस तरह से, कुछ चाह कर भी कह नहीं पाया ....


देखा तो तेरा बदन मैंने  सिर्फ एक  झरोखे से 

नापा भी आँखों का पैमाना बस छलकते जाम से

कितनी मतवाली है तेरी चाल और कितने कठोर है तेरे यह ढाल

इसका फैसला मैं कर नहीं पाया

तू मिली भी तो इस तरह से, कुछ चाह कर भी कह नहीं पाया ....


तेरी बेतरबा हंसी की वह मीठी सी खनक

मेरी हर बात पर  शर्माने और इतराने की हनक

बात बात पर  मुझे छेड जाने की सनक

इन अहसासों को जैसे मैं , कोई अल्फाज़ दे नहीं पाया

तू मिली भी तो इस तरह से, कुछ चाह कर भी कह नहीं पाया ....


फिर भी तुझसे मिलकर जैसे जिन्दगी ने एक  नया गीत गया

भटकते मुसाफिर को भी मिलेगी मंजिल ,ऐसा उसे अहसास आया

प्यासे तरसते लवों पर  , तेरी मीठी मुस्कान का सकून आया

जो जिन्दगी चल रही थी धीरे धीरे , उसमे जैसे एक  जोश आया

एक  दिन तू होगी मेरी , यह अहसास जैसे उभर आया

तू मिली भी तो इस तरह से, कुछ चाह कर भी कह नहीं पाया ....

By
Kapil Kumar 



Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. The resemblance to any person, incident or place is purely coincidental”. The Author will not be responsible for your deeds.


Tuesday 22 November 2016

तुझे ऐतबार नहीं.....


तुझे ऐतबार नहीं मेरी वफ़ा
का , इसलिए तो अभी भी दामन थाम कर चलती है 

तुझे दोष क्यों दूँ तेरी बेवफाई का ,की तू अभी भी किसी और के दिल में  धड़कती है 

मुझे तो आदत है यूँ भी अपना सर झुकाने की , तेरे आगे झुक जाऊं तो फिर तेरी आह क्यों निकलती
है 

तू भी कुचल कर निकल जाना
मेरा दिल , बिना किसी अहसास के 
यह बात और है , की मेरे दिल
में धड़कन तेरे नाम की अब भी धडकती है .....


शायद मंजूर ना था , तुझसे
मेरा मिलना इस ऐले खुदा को 

ऐसा भी कभी होता है ,की सबके
घर में खिली सूरज की धुप हो 

पर किसी बदनसीब के घर ,
सिर्फ छाँव ही अपना दामन समेटती है ......


मेरा आना , चले जाना और
फिर से आना , तो जीवन का बस एक  नियम है 

इस नियम से ही तो हम सबका जीवन गतिमान है 

फिर तेरे सीने में क्यों
उठता यह अजीब सा तूफ़ान है 

की कहीं  उठते उमंग के
शोले , तेरे दामन को ना जला दे 

शायद तुझे ऐतबार मुझपर तो
है , पर खुद पर नहीं यक़ीन है .....


तेरी रुसवाई से मैं अपनी जिद्द  मिटा लूँ 

देकर तुझे दर्द मैं अपने
होठों पर  मुस्कान सजा लूँ 

ऐसी शाहदत मेरे बस में

नहीं है 

तू खुश रह अपने खवाबघर
में हमेशा 

मुझे तो वैसे
भी भटकने की आदत सी पड़ी है ......


गर मिला खुदा जन्नत में तो उससे इस बेरहमी  का हिसाब मांगूंगा 
तेरे बिना जीने से भी , क्या जहन्नुम की सज़ा बड़ी है 

है अगर जन्नत यही तेरे आशियाने की 

क्या उस जन्नत में तू
मेरी महबूबा बनकर खड़ी है 

जब तू ही नहीं इस जन्नत
में तो ,यह जन्नत नहीं दोज़ख है 

तो फिर दोज़ख की सजा ,
मेरे लिए क्यों हर जन्नत में भी बनी है ...


 By 
Kapil Kumar 

Wednesday 26 October 2016

नारी की खोज –15



अभी तक आपने पढ़ा नारी की खोज भाग -1 से  14 तक में ...की मैंने बचपन से आज तक नारी के भिन्न भिन्न रूपों को देखा .......मेरे इस सफ़र  की आगे की कहानी.....




गतांक से आगे .......

नारी का चरित्र क्या है , उसके दिल में कब कौन सा तूफ़ान छिपा है या फिर किसके लिए कितना गुबार है या प्रेम का लावा है कौन जाने , बचपन में कहीं  पढ़ा था , की, नारी को कोई आसानी से नहीं समझ सकता, कहते है उसे तो बनाने वाला ब्रह्मा तक नहीं समझ पाया तो आम इन्सान की बिसात ही क्या है ?क्या नारी का चरित्र वाकई में इतना जटिल है या लोगों के व्यवहार  और समाज ने उसे इतना जटिल बना दिया है ?....

मैं, यह बात बहुत दावे से तो नहीं कह सकता की मेरी जीवन यात्रा में मेरे संपर्क में आई नारियों  के चरित्र को मैं भली भांति समझ पाया, पर जितना भी मैंने  उन्हें करीब से देखा ,समझा और परखा , मैंने  उसके पीछे छिपे भाव को जानने और समझने की एक  कोशिस जरुर की और इसी खोज में मैंने  जाना की इस दुनिया को बनाने वाले ने नारी के रहस्यमय चरित्र की एक  झलक जाने अनजाने  हमें किसी और तरीके से दिखानी और समझनी चाही है .....

अगर हम नर और नारी दोनों को प्राकृतिक अवस्था यानी बिना कपड़ो के देखे तो एक  बात कोई भी आसानी से देख कर बता सकता है , की कौन उत्तेजित यानी कामुक अवस्था में है या उनकी क्या मनोस्थिति है ? नर यानी पुरुष का मर्दना अंग प्रकृति ने ऐसा लगाया है की , उसकी स्थिति देख कर, पुरुष के मन में उठ रहे कामुक विचारों को आसानी से समझा जा सकता है ...

किन्तु इसके विपरीत किसी नारी के जननांग  यानी उसकी योनी को देख कर उसकी मनोस्थिति का पता लगाना इतना आसान  नहीं है ....हक़ीक़त  में नारी का वह अंग प्रकृति  ने नारी के शरीर में इस तरह से सजाया है की पहली नज़र  में वह दिखता  ही नहीं है अगर कोई उसके बारे में जाना चाहे तो उसे नारी के दिल और शरीर दोनों को समझना पड़ेगा , तभी आप किसी नतीज़े  पर पहुँच सकते है ,की नारी की सच्ची मनोवस्था क्या है ? क्या वह कामुक अवस्था में है या फिर झूठा व्यवहार  दिखा रही है ....

मेरे अनुभव से यही है नारी के चरित्र को समझने का गुरु मन्त्र , कहने का तात्पर्य यह है , की नारी के मन में झांकना , उसके व्यवहार  को समझना और उसकी परिस्थिति का सही अवलोकन करने के बाद ही आप किसी नारी के चरित्र को समझ सकने की कल्पना कर सकते है , बिना यह सब समझे आपका निष्कर्ष अधूरा  ही कहलायेगा ... ..नारी के व्यवहार  को देख उसके चरित्र का आकंलन गलत हो सकता है ...

यह मेरी जीवन यात्रा है जिसे मुझे ही ख़त्म करनी  है ,अब इसमें कितने सीधे , टेढ़े और मोड़ आयंगे और मुझे वह क्या अनुभव देते जायंगे यही मेरी यात्रा है ....विदेश में ,धीरे धीरे मेरी जिन्दगी अपनी रफ़्तार से चलने लगी और देखते ही देखते कई साल बीत गए , बीवी, बच्चे के साथ मैं आम आदमी की की भांति घर गृहस्थी की  जिम्मेदारियों में कोल्हू के बैल की तरह घिसटना लगा ... उस वक़्त मुझे अपने अकेलेपन के वे दिन याद आते थे ,जब मैं श्रीधर के साथ आवारा बादल बन इधर से उधर भटकता रहता था ...अब यह सब बीते ज़माने की बात हो चुकी थी ....दिन रात की तू तू , मैं मैं और बिना बात के स्यापों में उलझ जिन्दगी जीते जी एक जहन्नुम में तब्दील हो चुकी थी ....

मुझे ऐसा लगता था जैसे मैं कभी अकेला इस दुनिया में रहा ही नहीं ,मैं दिन रात बच्चो और बीवी के लफड़ों और पचड़ों में उलझा रहता , बांकी  का वक़्त नौकरी की उलझन में गुज़रजाता , फिर भी कभी ना कभी किसी ना किसी बहाने अपनी जिन्दगी में आधी अधूरी सी झूठी ख़ुशी के पल ढूंड ही लेता ....

मेरे ऑफिस में साथ में काम करने वाले कुछ साथी लोग, शुक्र के दिन लंच में बाहर  किसी रेस्टोरेंट  में जाते थे , उस दिन सब लोग रिलेक्स के मूड में होते , की चलो काम का एक  हफ्ता ख़त्म हुआ और दो दिन का आराम शुरू होने वाला है , एक  दिन हमने ऑफिस से थोड़ी दूर एक  इंडो- पाक रेस्टोरेंट  में लंच खाने का प्रोग्राम बनाया , हम कोई 5/6 लोग दो गाड़ियों  में सवार लंच के लिए निकल पड़े ... गाड़ी पार्क करने के बाद हम करीब 3/4 लोग मस्ती में चलते हुए रेस्टोरेंट  की तरफ जा रहे थे , मैं कुछ अलग ही मूड में था इसलिए थोड़ा  ज़ोर ज़ोर  से गुन गुनाता हुआ जा रहा था , की अचानक सामने से एक  युवक और युवती आते हुए दिखलाई दिए ...युवक कोई 35/40 के बीच और युवती करीब 27/28 की उम्र की देसी सी लगने वाली लड़की थी ,जिसने अपनी तरफ से विदेशी जैसे दिखने की एक  असफल सी कोशिस की थी , उसे देख मुझे ऐसा लगा , इसे तो मैंने कहीं देखा है , पर अचानक से यूँ देखने पर याद नहीं आया की यह कौन है ?... उसने भी मुझे देखा और ऐसे मुंह  बिचका दिया की जैसे वह मुझे जानती तो है  पर पहचानती नहीं ...


उन दोनों के जाने के बाद , मेरे साथ वाले लड़कों ने मुझसे पुछा ,अरे , तू उन्हें क्यों घूर कर देख रहा था ? मैं बोला... यार यह लड़की कुछ जानी पहचानी सी लगती है , बस याद नहीं आ रहा , उन्होंने समझा की मैं बस ऐसे ही बहाना बना रहा हूँ , ख़ैर बात आई गई हो गई , हमने अपना लंच खत्म किया और रेस्टोरेंट  से बहार निकल आये , की वह लड़की फिर से दिखलाई दी , इस बार वह अकेली थी ...

मैंने  अपने दिमाग पर  ज़ोर  डाला तो मुझे याद आया , अरे यह तो वही रुख़्साना  है जो मेरे साथ 2/3 साल पहले AT&T  में काम करती थी ,मैंने  अपने साथ के लड़कों  से कहा अरे यह तो मेरे साथ पहले काम कर चुकी है और मुझे तो बहुत ही अच्छे से जानती भी है ... अभी हम बातें  ही कर रहे थे की  रुख़्साना हम लोगो की तरफ चली आई , इस बार मैंने  हिम्मत करके उससे पूछ लिया , अरे तुम वही हो ना , जो हमारे साथ उस ऑफिस में थी ...

उसने मुझे ऊपर से नीचे घूरा  और बोली , हाँ मैं तो वही हूँ , पर तुम अभी तक वैसे के वैसे ही लफंगे हो , यहां  भी सीटी बाज़ी से बाज नहीं आये , देखो कैसे लफंगो की तरह गाना गा रहे हो और ऐसा कह मेरी तरफ अपना मुंह बिचका कर निकल गई ...उसका इतना कहना था की मेरे साथ के लड़के मेरे पीछे पड़ गए और बोले , गुरु यह क्या मामला है , वह तो तुम्हे अच्छे से झाड पिला गई , मैंने एक  लंबी साँस ली और बोला , इसमें इसकी कोई गलती नहीं , इसका नाम  रुख़्साना  है और यह दिलजली है ... मेरी यह बात उनके समझ नहीं आई , मेरे साथ मेरा एक  करीबी दोस्त अमित भी था , ऑफिस में जब हम वापस आये तो वह मेरे पीछे पड़ गया और जिद्द  करके पूछने लगा , की  रुख़्साना  का क्या मामला था ?... मैंने  कहा मुझे अपने दिमाग पर  ज़ोर  डालने दे और फिर बताता हूँ ...

ऐसा कह मैं उन यादों  में खो गया जिन्हें मेने अपने दिल और दिमाग से ना जाने कबका उखाड़ कर फैंक दिया था ...पर  रुख़्साना  की इस हरकत ने जैसे सब कुछ फिर से जीवित कर दिया .....

अगर यादें  हसीन और दिल को सकून  देने वाली हो तो इन्सान उन्हें संजो के रखता है किन्तु यादें  कडवी , डरावनी और झिंझोड़ने वाली हो तो उन्हें इन्सान अपनी दिल और दिमाग से दूर रखने की हर संभव कोशिस करता है ....मुझे याद आने लगा की  रुख़्साना  से कैसे मुलाकात हुई थी .....

यह बात उन दिनी की है जब मैं अकेला रहता था और श्रीधर मेरा रूम पार्टनर था , उन दिनों हम सब अकेले , कुवांरे लड़के / आदमी ऑफिस की कैंटीन में लंच किया करते थे , बाकी लोग ऑफिस के पास अपने घरों  में चले जाया करते थे , एक  दिन हम 3 लोगो कैंटीन की किसी बड़ी सी टेबल पर  बैठे लंच कर रहे थे की , किसी के अचानक एक्सक्यूस मी कहने से हमारी बातचीत भंग हो गई .....

मैंने  गर्दन उठा कर देखा तो सामने एक  कुछ देसी विदेशी सी लगने वाली युवती खड़ी थी , उसने हमसे कहा की कैंटीन में सारी टेबल भरी हुई है , क्या वह हमारी टेबल पर हमारे साथ ज्वाइन कर सकती है ....हम तीन लड़के , जिसमे दो कुवांरे और मैं एक  अकेला शादीसुदा  , ऐसे में किसी खुबसूरत बला को भला कौन अपने गले ना लगाता ? हमने ख़ुशी ख़ुशी में गर्दन हिलाई और वह धम्म से टेबल से लगे सोफे पर धस गई , उस वक़्त मुझे क्या पता था , यह एक  ऐसी बला है जिससे पीछा छुड़ाने में " के के बॉस " को दांतों तले पसीना आने वाला था ....

युवती धम्म से सोफे पर  धंस गई और हम सबका बारी बारी से मुआयना करने लगी , जैसे कोई सरकारी अफसर अपने छापे के दौरान विभाग का करता है , उसने बताया की उसका नाम  रुख़्साना  है , वह पाकिस्तानी मूल की अमेरिकन नागरिक है .... देखने में  रुख़्साना करीब 24/25 की , मंझले  कद की युवती थी , उसका रंग कुछ कुछ सुनहरा और सांवले रंग का अजीब सा कॉम्बिनेशन था , देखने में वह ठीक ठाक सी लगती थी , पर ऐसा कोई आकर्षण उसमे मुझे ना लगा , जो मेरी यादों  में रच बस जाता ...

 रुख़्साना  ने बैठते ही जो बोलना शुरू किया , ऐसा लगा जैसे किसी रेडियो का बटन   ऑन  करके उसे छोड़ दिया गया हो , हमारे पल्ले उसकी आधी बातें  पड़ी , कुछ तो उसकी तेज रफ़्तार की अंग्रेजी और कुछ हम लोगो की सुस्त रफ़्तार की समझ ,एक  अज़ीब  सा घालमेल कर रही थी ...की अचानक मेरे मुंह  से कुछ हिंदी में निकला , फिर क्या था रुख़्साना हिंदी / उर्दू में शुरू हो गई ,उर्दू भले ही लिखने में अलग हो पर बोल चाल में हिंदी जैसी ही हो जाती है , अंग्रेजी या उर्दू दोनों ही बोलने में उसकी रफ़्तार का मुकाबला करना कम से कम हम सब के लिए असम्भव था ....

थोड़ी ही देर में उसने हम सबका इंटरव्यू ले डाला , की कौन क्या करता है और कौन कुवांरा है ...जब मेरी बारी आई तो मेरे साथ बैठे दोनों लड़के हंसने  लगे , रुख़्साना ने मेरी तरफ अपनी गोल गोल आँखे नचाते हुए पुछा तो हज़रत  , आप अपने बारे में कुछ नहीं बतायंगे ?

पता नहीं मेरे साथ बैठे लड़के क्यों हंस रहे थे ,की मैं संजीदा होते हुए बोला , “अरे मैं तो शादी शुदा हूँ “ मेरा इतना कहना था की साथ बैठे दोनों लड़के फिर हंसने  लगे , उनको हँसता देख रुख़्साना  ने अपनी कटीली आँखों में ज़हर  के तीर बुझाये  और मेरे तरफ व्यंग  बाण चलाते हुए बोली तो जनाब अब फ़रमायेगें  की , “मैं एक  बच्चे का बाप भी हूँ”.... .. और ऐसा कह वह उन दोनों के साथ ज़ोर ज़ोर  से हंसने  लगी .....

मैंने  गंभीर होते हुए कहा , हाँ यह भी सच है , चाहे तो इन दोनों से पूछ लो , साथ बैठे लड़के बोले , हाँ यह इकदम सही बोल रहा है और ऐसा कह वह फिर से हंसने  लगे ...रुख़्साना ने बात बदल दी और लग गई अपनी किसी राम कहानी को सुनाने , वह जब बोलना शुरू करती तो रूकती ना थी , उससे ज्यादा बोलने वाला शख्स  मैंने आजतक नहीं देखा ...हम सबने अपना अपना लंच खत्म  किया और रुख़्साना से विदा ली और अपनी अपनी सीट पर चले गए ...

दो दिन बीते की मेरे ऑफिस में फोन की घंटी बजी ,मैंने  जब रिसीवर उठाया तो , वहां से एक  युवती की आवाज सुनाई दी , जो मेरे लिए इकदम अनजान थी , मैं अभी कुछ कहता की उसना अपनी रामायण शुरू कर दी और उसी दौरन उसने मुझे एक  अच्छी खासी झाड़ भी पिला दी की , मैं दो दिन में उसे कैसे भूल गया , जब उसने मेरा भेजा अच्छे से चाट लिया तब समझ आया , यह तो रुख़्साना नाम की मुसीबत थी ...

अब हर तीसरे चौथे दिन रुख़्साना नाम का जंतु मेरा भेजा चाट लेता , मैं भी अकेला था , इसलिए टाइम पास करने में मुझे कोई ऐतराज़  ना लगा , अब यह मुसीबत भी अपनी तरह का एक  जूनून थी , दिल अंदर से बल्ले बल्ले करता की एक जवान खुबसुरत लड़की लाइन दे रही है पर दूसरी तरफ उसकी बुल्ली गिरी से डर भी लगता , रुख़्साना के इतना ज़्यादा बोलने से मेरा उसके प्रति एक नर और नारी वाला आकर्षण ना जाने कहाँ लुप्त हो गया , वह मेरे लिए सिर्फ अकेलापन में शोर करने वाला रेडियो बन गई थी ...ना जाने किस जोश में मैंने  उसे अपने घर का फोन नंबर दे दिया , शायद मैंने  सोचा की ऑफिस में चटने से अच्छा है , जब घर में बोर लगेगा, टाइम पास हो जाएगा ....अब रुख़्साना का आये दिन घर में फोन बजा देती , उसका पहला सवाल होता , तो..

आजकल क्या एक्टिविटीज चल रही है ,शाम का क्या प्रोग्राम है ? इस वीक एंड पर कहाँ जाने का प्रोग्राम बना रहे हो ?....

मुझे समझ ना आता की इन सब का क्या मतलब है , यह लड़की बस घुमने फिरने और इधर उधर की बातों में ही लगी रहती है , मेरा जवाब होता , इस हफ्ते कपडे धोने है , कारपेट पर वैक्यूम  करना है घर बहुत गन्दा है , कल ग्रोसरी लानी है , अगले  हफ्ते बाहर जाना है , आदि आदि ...शुरू शुरू में श्रीधर को उसकी बातों  में बड़ा मजा आता की , किसी लड़की का घर पर फोन आता है और उसे भी गुफ़्तगू करने का मौका मिल जाता ....धीरे धीरे श्रीधर भी उसकी बातें  सुन कर पक गया , एक  दिन मेरे साथ काम करने वाली एक  लड़की ने रुख़्साना के बारे में बताया की उसे काम से निकाल दिया गया है , क्योंकि उसने ऑफिस में सबका भेजा इतना चाटा की हर कोई उसे देख भाग खड़ा होता , वह लड़की बोली , यह तो गर्दन का वह दर्द थी , जिसका इलाज़  किसी के पास ना था ...मैं मन ही मन खुश हुआ , चलो मुसीबत से पीछा छुटा ....

इस बीच कुछ दिन बीत गए , की एक  दिन उसका फिर से फोन आगया और बोली , जल्दी से तैयार हो जाओ आज तुम्हें मेरे साथ एक  फॅमिली पार्टी में चलना है , वहां मैं तुम्हे कुछ बड़े बड़े लोगो से मिलवायुंगी ....मैं बोला , मेरे पास तो गाडी ही नहीं है मैं कैसे पहुंचूंगा ?.. वह बोली ऐसा है मैं तुम्हे घर से पिक कर लुंगी ...अब चौंकने  की बारी मेरी थी , मैं बोला , वह क्या है मेरी बीवी आने वाली है तो उस चक्कर में कुछ कर रहा हूँ ..मेरी बात सुन वह हँसते हुए बोली , अरे नहीं जाना तो मत जाओ , पर बहाने तो अच्छे बनाओ , मैं बोला नहीं सच में , मेरी बीवी आने वाली है ...मेरा तो एक  बच्चा भी है , आजकल वह लोग फ्लोरिडा में है , बस उन्हें लेने जाना है उसकी तैयारी में लगा था .....

मेरा इतना कहना था की रुख़्साना का स्वर अचानक से कसैला  हो गया उसने मुझे फोन पर  मेरी अच्छी खासी हज़ामत  बना दी , यू चीट ,धोखेबाज ,झूठे , फरेबी , स्क्रौंडल , और न जाने कौन कौन सी गाली जो सब उसे आती थी उसने सब मुझे दे डाली , अब मुझे समझ नहीं आया की मैंने  इसके साथ ऐसा क्या कर दिया ? जो यह मेरी इतनी इज्जत अफ़ज़ाई कर रही है , हक़ीक़त  में तो मैंने  उसके साथ चाय या कॉफ़ी तक भी ना पी थी ...बाकी की और बात की कल्पना ही मुश्किल है ...जब वह थक गई तो फोन से उसके रोने की आवाज आने लगी , तब मैंने  बड़े ही आराम से पुछा , भाई मैंने  तुझे कौन सा धोखा दे दिया ?....

वह बोली तुमने मुझ से यह बात क्यों छिपाई की तुम शादीशुदा और एक  बच्चे के बाप भी हो , अब चौंकने की बारी मेरी थी , मैं बोला अरे याद है जब हम पहली बार कैंटीन में मिले थे , मैंने  तो कहा था की मैं शादी शुदा और एक  बच्चे का बाप भी हूँ , इस पर रुख़्साना निरुत्तर हो गई और रुवांसे स्वर में बोली , वह तो मैंने  मज़ाक समझा था , तुम लोग बातें  ही कुछ ऐसी कर रहे थे ...थोड़ी देर के शिकायत और शिकवे के बाद उसने यह धमकी देते हुए रिसीवर रखना चाहा की यह मैंने  जानबूझ कर नहीं किया , वरना वह मुझे एक  लड़की को धोखा देने के जुर्म में अंदर करवा देती ...मैं भडकते हुए बोला , मैंने  तेरे साथ क्या कर दिया जिसे तू धोखा कह रही है , मैंने  तो आजतक तुझे फोन भी नहीं किया , मुझे तो तेरा नंबर तक नहीं मालूम , मेरी बात सुन उसने एक  दो गाली और दी , फिर फोन काट दिया ,मैंने  भी राहत की साँस ली और सोचा चलो मुसीबत से हमेशा के लिए पीछा छूटा ...


पर मुझे रुख़्साना का व्यवहार  समझ नहीं आया की उसने ऐसा क्यों किया , उसका मन होता वह फोन करती थी , खुद ही इधर उधर घूमने की बात करती , उसकी मेरी कभी कोई ऐसी एक  भी बात हुई जिसे मैं किसी खास या दोस्ती जैसे सन्दर्भ में भी रख सकता और उसपर  उसने हमेशा ऐसा बर्ताव  दिखाया जैसे मैं उसका ख़रीदा हुआ गुलाम हूँ , जब उसकी मर्ज़ी होगी , मैं हाज़िर  हो जायूँगा ...सिर्फ अपने बारे में सोचना की कब उसे क्या चाहिए .....मेरे लिए नारी का यह चरित्र अपने आप में एक अज़ब पहेली था , की वह क्या चाहती है , उसका व्यवहार  , उसके दिल और दिमाग दोनों से एकदम  जुदा था ....

इस बात को कुछ दिन /महीने बीत गए , मैं भी सब कुछ भूल भाल कर आम आदमी वाली घर गृहस्थी की जिन्दगी में रम गया ...की , एक  दिन फोन पर  फिर से रुख़्साना  अवतरित हो गई , उस वक़्त घर में कोई न था , बीवी बच्चे बाहर  पार्क में थे , उसने वही पुराने अंदाज में अपना घिसा पीटा डायलॉग मार दिया , हाँ तो आजकल क्या एक्टिविटीज चला रही है ? मैं बोला , अब समय ही कहाँ  मिलता है सब बीवी बच्चों के  चक्कर में निकल जाता है , रुख़्साना  बोली , मैंने  इसलिए फोन किया था की , आज कोई फॅमिली फंक्शन है तो तुम्हे लेने आ जाऊं  ? मैं बोला ... तूने तो पिछली बार मुझे ना जाने क्या क्या कहा था , अब तेरा मेरा क्या रिश्ता ? मेरी इस बात पर  वह रूवांसी हो गई और माफ़ी मांगने लगी ...

मैं बोला वह सब तो ठीक है पर अब मैं अकेला कैसे आ सकता हूँ ,मेरी बीवी बच्चे सब साथ में ही है , उन्हें अकेला छोड़ कैसे आऊं  ? वह बोली कोई बात नहीं तुम अपने बीवी बच्चो को भी साथ ले आओ , मुझे कोई आपत्ति नहीं है , मैं बोला मेरी बीवी ना मानेगी तो वह जिद्द  करते हुए बोली ,कहो तो मैं तुम्हारे घर आकर तुम्हारी बीवी से बात करूँ ,अब उसे कौन समझाता की उसे तो आपत्ति नहीं है , पर मेरी बीवी जो चंडी बनकर नाचेगी उसे कौन संभालेगा ?...

मैंने रुख़्साना  को टालने  के लिए कह दिया , भाई अब मुझे फोन मत करना , बेकार में इस बात को आगे बढाने से क्या फायदा और ऐसा कह मैंने  उसका फोन काट दिया ? उसके बाद थोड़ी देर तक फोन की घंटी बजती रही, फिर मैंने  रिसीवर उठकर लाइन को बिज़ी करके छोड़ दिया ...पर यह मुसीबत इतनी जल्दी मुझे छोड़ने वाली ना थी , रुख़्साना आए दिन अब ऑफिस में नंबर मिला देती , मैंने  उसे कई बार समझाया की भाई तेरे साथ में गठजोड़ नहीं बनेगा ? मेरे तो पहले ही एक  बीवी है ,तो वह बोली ,मुझे तुम्हारी बीवी के साथ रहने में कोई आपत्ति नहीं ,उसकी बातों  से ऐसा लगता था जैसे वह मेरी दूसरी बीवी बनने के लिए तैयार थी ....

उसकी बात सुन मेरे दिमाग के पुर्जे पुर्जे हिल गए अब उसे कौन समझाता की , मेरी रूह तो उसके नाम से ही कांपती है , उसकी आवाज सुन कर तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते है , अब उसके साथ घर में रहने की सोचने भर से किसी डरावनी फिल्म की याद आने लग जाती ......अब उसके बाद जब भी उसका फोन आता , उसकी आवाज सुन मैं रिसीवर रख भाग खड़ा होता , ऐसा लगता जैसे कोई भूतनी मेरे पीछे लग गई है , फिर कुछ महीनों  बाद  अचानक ही  उसके फोन आने  बंद हो गया और ऐसा कह मैंने एक  गहरी साँस ली और चुप होकर अमित की आँखों में देखने लगा ...

मेरी कहानी सुन अमित को एक  पल विश्वास न हुआ , वह बोला गुरूजी कुछ ऊँची हांक गए , वह तो ऐसे बात कर रही थी जैसे तुम उसके पीछे दीवाने थे , मैंने  अमित की आँखों में देखा और बोला , भाई वक़्त वक़्त की बात है ! 

“ कभी नाव पानी के अंदर तो कभी पानी नाव के अंदर हो जाता है “ और ऐसा कह मैंने  उस बात को वहीँ ख़त्म कर दिया ...

इन्सान की फ़ितरत भी अजीब है , जब हम किसी ऐसे इंन्सान को ठोकर मारते है जो हमारे पीछे दीवानों की तरह पड़ा हो तो हमें अपने अंदर एक गर्व महसूस होता है की , हम कितने स्मार्ट या आकर्षित हैं , पर वक़्त आने पर  उसी इन्सान की बेरुखी ना जाने क्यों अंदर ही अंदर हमारे अंदर एक  हलचल सी मचा देती है और इन्सान अपने आप से पूछने लगता है की , जो कल तक मेरे पीछे पागल दीवाना था , वह आज अचानक से इतना उदासीन क्यों हो गया , क्या मैं अपना आकर्षण खोने लगा हूँ ?

नारी का यह चरित्र मेरे लिए कुछ अजीब था , मुझे समझ नहीं आया की ,मैंने  कभी रुख़्साना में ना तो कोई दिलचस्पी ली , ना कभी इसके साथ कहीं बाहर  गया और ना ही मैंने  कभी इसे फोन किया , फिर भी इसकी गाली खाई और आज ऐसे दिखा रही थी जैसे मैं इसके पीछे पड़ा कितना बड़ा मज़नू था ...इसी कशमकश में पड़ा ऑफिस ख़त्म करने के बाद घर को चला आया ...घर पर  आया तो याद आया , अरे घर में तो कोई भी नहीं है ,बीवी बच्चे सब तो इंडिया में है , न जाने क्यों यह अकेलापन फिर से मुझे डराने लगा ....घर में पड़े पड़े जब मन किसी भी काम में ना लगा तो मैंने  अपने एक  कैनेडियन दोस्त रिकार्डो को फोन किया और बोला , यार बहुत बोर लग रहा है चलो आज कहीं  मस्ती करने चलते है ... रिकार्डो और मैं पहले एक  ही कंपनी में साथ काम करते थे , वह कुवांरा था और उन दिनों उसके पास टाइम पास का कोई ख़ास ठिकाना ना था उसने भी तुरंत फुरंत में अपनी गाडी उठाई और मेरे अपार्टमेंट में आ गया ....

रिकार्डो एक  28/30 साल का एक  आकर्षक युवक था , उसे भी मेरे साथ घुमने फिरने में मजा आता था, वह हमारे घर में सबसे अच्छे से घुला मिला हुआ था ,होने को तो वह गोरा था मेरी पर बीवी उसे जो भी खाने को देती वह पता नहीं कैसे सब कुछ खा लेता , अच्छा बुरा , इंडियन अंग्रेजी सब , उसने कभी उफ्फ तक ना की , दूसरे  मेरा लड़का उसे बहुत पसंद करता था , घर आते ही उसने पुछा बताओ कहाँ चलना है ? मैं बोला यार स्ट्रिप क्लब के बारे में सुना तो बहुत है , क्यों ना आज उसके दर्शन भी कर लिए जाए ?


मेरी फरमाइश सुन रिकार्डो ने एक  कुटिल मुस्कान मुझ पर  डाली , फिर ऊँची सी आह भरी और बोला , अगर मैं गलत नहीं हूँ ,तो , तुम तो एक  शादी शुदा आदमी हो , फिर स्ट्रिप क्लब जाने का क्या मतलब ? मैं बोला यार जब मैं कुवांरा था , तब स्ट्रिप क्लब मेरे देश में कंहा था , वैसे भी अब बीवी बच्चे सब इंडिया गए है , तो क्यों ना थोड़ी मस्ती कर ली जाए ..मेरी बात सुन रिकार्डो ने एक कुटिल मुस्कान मारी और सेल फोन से स्ट्रिप क्लब के एड्रेस ढूंढने  लगा ...उसने बताया घर से 20 मील की दूरी  पर दो स्ट्रिप क्लब है ..मैं बोला चल दोनों पर ही नज़र  मार लेते है और ऐसा कह , हम दोनों उसकी गाडी में सवार होकर निकल गए ...


करीब आधे घंटे की ड्राइव करने के बाद हम एक  स्ट्रिप क्लब पहुँच गए , रिकार्डो ने गाडी पार्क की और हम क्लब के सामने पहुँच गए , बाहर से देखने में यह एक आम सा रेस्टोरेंट   लगता था , जिस के साइन बोर्ड पर क्लब के नाम के साथ “जेंटलमैन क्लब “ लिखा था ...मैंने  नाम पढ़ा और रिकार्डो से बोला ,यहां जेंटलमैन क्लब क्यों लिखा है ? रिकार्डो हंसा और बोला , क्योंकि यहां हमारे तुम्हारे जैसे जेंटलमैन लोग जो आते है और ऐसा कह हम दोनों ज़ोर ज़ोर  से हँसते हुए क्लब में दाखिल हो गए .....

अभी क्लब में घुसते की दरवाजे पर  खड़े एक  हट्टे कट्टे मुस्टंडे ने ,जो शायद बाउंसर था , हमें रोक लिया और बोला अपनी आई डी दिखलाओ , मैंने पूछा आई डी किसलिए ?  , वह बोला देखने के लिए की तुम 18 साल से ऊपर  के हो या नहीं , इसपर मैंने  अपने टकले होते सर को उसके आगे किया और बोला , इससे बड़ी आई डी और क्या होगी ...मेरी इस बात पर  वह हंसा और हमें  अंदर जाने के लिए रास्ता देता हुआ बोला , नो फोटो , नो सेल फोन कॉल इनसाइड , हमने उसकी बात पर  सर हिलाया और दोनों अंदर चले आये ...


क्लब में अंदर घुसते ही मेरे होश उड़ गए , ऐसा कुछ माहौल  सिर्फ अंग्रेजी फिल्मों में देखा था , पर हकीकत  में तो यह उससे कंही ज्यादा उत्तेजक और रंगीन था , क्लब में कुछ अधेड़ उम्र के आदमी बैठे अपनी ढली हुई जवानी को खोज रहे थे ,क्लब में चारोँ   तरफ पूर्ण रूप से निर्वस्त्र नारियां उनके इर्द गिर्द मंडरा रही थी ...जिधर नज़र  उठाओ सांचे में ढली प्राकृतिक अवस्था में एक  से बढ़कर एक  हसीन , कमसीन ,दिलकश नारी के दर्शन उपलब्ध थे , क्या गोरी और क्या काली या कुछ और ....ऐसा माहौल  शायद जन्नत में भी ना होता होगा और इस दुनिया में भी कहीं  हो सकता है , इसकी कल्पना मेरे जैसे इन्सान को कदापि ना थी.....

क्रमश : ........ 

By
Kapil Kumar