Monday 30 May 2016

मैं भी बच्चा बन जाऊँ ....


आज मुझे तू अपने आंचल में यूँ छुपा  ले , कुछ पल के लिए मैं भी बच्चा बन जाऊं 
यूँ तो मैंने  भोगा है यह जवां शरीर , शायद फिर भी इसके कुछ राज़  समझ पाऊं 
आज तेरी गोद में सर रख कर , मैं दुनिया के सारे गम भूल जाऊँ 
कुछ पल के लिए मैं भी बच्चा बन जाऊँ ....


अपनी आँखों को मैं कर लूँ बंद , एक  मीठी सी नींद में खो जाऊँ 
तू फेरे हाथ ममता का चेहरे पर,ऐसी भावना से मैं भर जाऊँ 
तेरे होंठ  जब छुए मेरे माथे को , प्रसाद किसी मंदिर का सा मैं पाऊं 
आज मुझे तू अपने आंचल में छुपा  ले , कुछ पल के लिए मैं भी बच्चा बन जाऊँ ....


तेरी आँखों में नशीली चमक नहीं ,तुझे एक  सच्ची सी ख़ुशी लौटाऊं 
तेरे आंचल में सिमटकर मैं भी , अपने अस्तित्व को जैसे भूल जाऊं 
तू करे कंघी अपनी उंगलियों से , मेरे बालों में ऐसे
सारे तनाव , चिंता और दुःख को अपने से दूर भगाऊँ 
तेरी फैले गेसुओं से मैं, एक  बच्चे की तरह से उलझ जाऊं 
तू छुपा  ले मुझे इस बेदर्द दुनिया से अपने आंचल में
कुछ पल के लिए मैं भी बच्चा बन जाऊं ....


करूँ शरारत मैं भी ऐसी , की अपने बचपन में लौट जाऊँ 
तेरी नाभि में अपनी छोटी ऊँगली को, मैं शरारत में धीरे से फिर से घुमाऊँ 
तू हो जाए नाराज ऐसे की, तेरा खोया प्यार मैं और पाऊँ 
तू चूमे मुझे समझ कर एक  बच्चा , ऐसी भोली हरकत मैं कर जाऊँ 
आज मुझे तू अपने आंचल में छुपा  ले , कुछ पल के लिए मैं भी बच्चा बन जाऊँ ....

By 
Kapil Kumar

Tuesday 24 May 2016

खोया अमृत मिल जायेगा .....


अपने चेहरे पर बस थोड़ी सी मुस्कान सजा लो 
बिखरे फूलों को एक  गुलदस्ता मिल जाएगा......  
अपनी अदाओं में बस थोड़ी सी शोखी मिला लो
किसी परवाने को शमा का ठिकाना पता लग जाएगा.....
अपनी जुल्फों को चेहरे से थोड़ा हटा लो
जैसे बादलों में नया चाँद खिल जाएगा.....
अपनी नज़ाकत  में थोड़ी सी नफ़ासत मिला लो 
जैसे डूबती किश्ती को किनारा मिल जाएगा ……..
अपने दिल में बस थोड़ा सा मुझे बसा लो
ऐसा लगेगा जैसी मुर्दे को नया जीवन मिल जाएगा.....
इस जाम को बस अपने होठों  से लगा लो
जैसे किसी प्यासे को कोई मयख़ाना  मिल जाएगा ….
अपनी तिरछी नज़रों  को थोड़ा सा घुमा लो 
 किसी भटके को मंजिल का पता मिल जाएगा......
अपने चेहरे से  ज़रा  यह नकाब हटा लो 
अँधेरे में जैसे कोई दीपक जल जायगा ......
अपनी  जुल्फों को थोडा सा लहरा लो 
सावन को आने का  संदेसा मिल जाएगा ......
अपने होठों  से मेरे होठ मिला लो 
मुझे जैसे खोया अमृत मिल जायेगा .....

By
Kapil Kumar 

Wednesday 18 May 2016

वह शाम ...


शाम ढलने लगी थी, कपिल अपनी पतली जैकेट में बदन को सुकोड़े चला जा रहा था !और अपने आप  को अन्दर ही अन्दर कोस रहा था की उसने आज weather  चैनल पर मौसम का हाल क्यों नहीं देखा ! नवम्बर की शाम थी और पारा अब 30o F से नीचे  आ चूका था और ऐसे में वह  पतली जैकेट सिर्फ  दिखावे का काम कर रही थी थी ।

घर आकर उसने हाथ मुंह धोने के बाद अपनी क्लोसेट से कपडे छांटने शुरू कर दिए और कुछ जैकेट और मोटे कोट निकाल कर अलग कर लिए, की उसकी नज़र एक  पुरानी सी जैकेट पर पड़ी । यह जैकेट उसने करोल बाग से अपने पहले यूरोप ट्रिप के लिए खरीदी थी ।  आज की ठण्ड ने पेरिस की उस सुहानी शाम की याद ताजा कर दी ! जिसे न जाने वोह कब का भूल चूका था उस जैकेट को देख उसका मन एक  मीठी सी याद में खो गया । 

   आपने अगर शहर देखे है तो उनकी शामें भी देखी  होंगी । और पेरिस की शुक्रवार की शाम तो इन सबसे जुदा होती है । जैसे शुक्रवार को, दिल्ली  की शाम ,आपको बदहवास  परेशान लोगो मिलेंगें  , मुंबई में भागते गिरते  लोगो का रेला  , न्यू यॉर्क में वक़्त से ज़्यादा तेज़  चलती भीड़ ,  सन फ्रांसिस्को में उदास मायूस चेहरे , L .A में ठन्डे कठोर ,पत्थर जैसे लोग , लन्दन में ट्राफिक के जाम से परेशान भीड़ और जुरिख में हल्की  कंपकपाती ठण्ड की वीरानी ।

 पर पेरिस में शाम सुहानी, रूहानी, मस्त, अलहड़ और रोमांटिक होती है ।  अधिकतर यूरोपियन शहरो में Friday को आधा दिन होता है और लोग दुपहर 2 बजे तक घर आकार आराम फरमाते है । पर पेरिस के लोग, शाम होते ही सज़  धज कर निकल पड़ते है अपनी जिंदगी  को दोबारा से “जवान " करने ।जवान हो, अधेड़ हो, बुजर्ग या बच्चा सब आपको एक  ड्रेस कोड में दिखाई देंगे ।

 लड़कियां ,औरते लम्बी घुटनों तक मिडी या काला इवनिंग गाउन या स्कर्ट साथ में  सफेद या पिंक ब्लाउज में उसके ऊपर काला जैकेट या पतला कोट या चुनरी जैसा कुछ डाल  कर निकलती है इस वक़्त उनका मेकअप देखने लायक होता है!  लिपस्टिक, गहरे रंग की लाल या हलके कथई रंग से मैच करती हुयी और आँखे एक  करीने से सजी हुयी ! जिनपर  हल्का सा मस्कारा उनकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देता है ।आदमी अधिकतर इवनिंग सूट में, जो की काले रंग की पेंट और कोट के साथ सफ़ेद शर्ट और लड़के नील रंग की जींस के साथ leather जैकेट में बड़े शान से निकते है ।

 ऐसी ही सुहानी शाम कपिल और स्टेला हाथो में हाथ डाल कर टैक्सी में बैठे थे ।  स्टेला का सर कपिल के कंधो पर झुका हुआ था और कपिल एक  गहरी सोच में डूबा हुआ बाहर  छुटते इस पेरिस के नज़ारे को देख रहा था । लोगो के चेहरे खिल खिला रहे थे और कपिल का मन उदासी में डूबा हुआ था आज पेरिस में उसकी आखरी शाम थी और कपिल, स्टेला के साथ टैक्सी में बैठा हुआ पेरिस के चार्ल्स दी गुले एअरपोर्ट जा रहा था ।

एअरपोर्ट पहुँच कर मैंने  (कपिल) चेकिंग विंडो से अपना बोर्डिंग पास लिया और स्टेला मेरा लगैज  खींच  कर अपने साथ ले आई |सारा लगैज  जमा कराने के बाद मेरे हाथ में सिर्फ एक  छोटा सा बैग और बोर्डिंग पास था ।स्टेला ने मुझे देखा और मैंने  उसकी न समझ मे आने वाली आँखों में !  उसका चेहरा थोडा सा कठोर और मायूस लग रहा था ! उसकी आँखों के रंग पढ़ते पढ़ते मैं उस अतीत में खो गया जब वह  मुझे पहली बार मिली थी ।

पेरिस में हम दो लोग एक  बड़े प्रोजेक्ट की ट्रेनिंग के लिए अपनी कंपनी की तरफ से आये थे । हमारा होटल पेरिस   के मेट्रो स्टेशन Mairie d'Issy के पास था ! यहां  से हम लोग दो मेट्रो पकड और एक  inter city express बदल कर Massy-Palaiseau जाते थे । सोम से शुक्रवार तो बड़े आराम से कट जाता पर फ्राइडे शाम, शनिवार और इतवार काटना मुश्किल होता ।

यह पहला शनिवार था,इसी शनिवार को बहुत बोर लग रहा था ! तो सोच क्यों ना  पेरिस को ही देखा जाये और ऐसा सोच , मैं  मेट्रो पकड Palace of Versailles देखने आ गया । मैं पैलेस के अन्दर घुसा ही था की एक  निहायत ही खुबसूरत लड़की जो 5.7 फीट के करीब होगी । एक  टाइट सी जींस में, अपने कंधे से थोडा नीचे   झूलते बालो को हिलाती हुई ,जिनके ऊपर उसका एक  बड़ा सा गोगल  अटका हुआ था आकर मेरे बगल में खड़ी हो गयी । उसको देख मेरी आँखे चमकी और उसके शरीर का मुआयना मेरी X-ray जैसी आँखों ने एक  सेकंड में कर डाला , वह  फ्रेंच में  बोली , “Hey” “ coma tale woe “ (आप कैसे हैं ) इसे आगे वह  कुछ बोले , मैंने  उसे समझा दिया भाई मेरा फ्रेंच से दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं
“ हाँ अंग्रेजो की थोड़ी बहुत  गुलामी जरुर की है! “

मेरी इस बात पर वह  बहुत जोर की हंसी और फिर अंग्रेजी में हमारी बात चीत शुरू हो गयी ।

असल में हम दोनों कुछ ऐसे मनहूस दिन आगये थे । उन दिनों पैलेस के कुछ हाल बंद थे, जिनमे सिकंदर और नेपोलियन से सम्बंधित दुर्लभ चीजे थी ।बड़ी ही मायूसी से मैं बोला यार इतनी दूर चलकर आया और यह भी पूरा देखने को नहीं मिला, उसने अपना परिचय देते हुए कहा उसका नाम "स्टेला" है वह यहां  की सिटी यूनिवर्सिटी में बायो मेडिकल में मास्टर कर रही है बातों ही बातों में उसने बताया की उसके मां ब्राजीलियन और पिताजी पोलिश है !

  वहां  अधिकतर लोग फॅमिली या फ्रेंड के साथ थे, सिर्फ मैं और स्टेला ही अकेले थे। मैंने  उसे कहा वह  तो यहां  रहती है तो क्यों ना  मुझे इस जगह के बारे में बताये ! उसने मुझे एक  नज़र  भर के देखा और मुस्करा  कर बोली  “ हूँ “ फिर अपनी एक  आँख दबा दी, उसकी इस हरकत से मैं समझ गया वह  मेरी मनसा समझ चुकी है । मैंने  भी बड़े ढीट वाले भाव से अंज़ान  बन उसे देख सिर्फ मुस्करा भर  दिया ।हम दोनों साथ चलते चलते पैलेस के एक बड़े से गार्डन में आ गये, यह बहुत ही खुबसूरत जगह है जिसके एक  तरफ झील और दूसरी तरफ पैलेस की दिवार और एक  तरफ पत्थर का आंगन है । घूमते घूमते वक़्त का पता ही न चला शायद । 

जब हम सफ़र हसीन हो तो रास्ते छोटे और वक़्त कम हो जाता है ।

अपने बावरे मन को संभाले मैंने  अभी तक उसे जी भर कर भी नहीं देखा था, मैं नहीं चाहता था वह  मुझे बहका हुआ समझ यहीं  से टाटा बाय बाय न कर दे ।तभी स्टेला बोली अरे मुझे कोक पीना हैं चलो किसी वान्डिंग मशीन के पास चलते हैं, मैं बोला अरे छोड़ो  तुम्हारे लिए वान्डिंग मशीन यहीं  ले आता हूँ , तो बड़े ही सरप्राइज वाले भाव में बोली कैसे ? 

   मैंने अपने कंधे से अपना बैग पैक उतरा और उसमे से कोक की कैन का पैकेट बहार निकाल कर उसके आगे रख दिया ।उसने massy (थैंक्स) बोलते हुए अपने सुर्ख लाल होठों  से लगा लिया और इसी बहाने मुझे उसे जी भर कर देखने का मौका मिल गया । मेरे बैग में कुछ चिप्स और कुकीज़  थे जो मैंने  उसे पेशे खिदमत कर दिए । असल में लंच पर पैसे न खर्च हो इसलिए यह सामन होटल से पैक करके चला था ! वह  मेरी इस ज़र्रानवाज़ी  से बहुत खुश हई और लगे हाथ उसने एक “Kiss” हमारे गाल पर रख दिया । हमारी हालत तो 10 पैग लगे शराबी की सी हो गयी ।

    फिर तो गप्पों  का जो दौर शुरू हुआ की बता नहीं सकते !  हम ठहरे निपट “U.P” वाले हाथ पकड़ो तो गले लिपट जाये | मैंने  अचानक नोटिस किया की उसकी आँखों का रंग कुछ बदला बदला सा है ।तो मैंने  पूछा स्टेला तुम्हारी आँखे दोपहर  में कुछ "हेज़ल" कलर की थी पर अब कुछ और रंग की है तो उसने हँसते हुए कहा मेरी आँखे वक़्त , मूड और मौसम के हिसाब से रंग बदल देती है शाम को यह हलकी नीली और जब मैं गुस्से में हो तो हलकी पीली हो जाती है अधिकतर यह "हेज़ल" कलर में रहती है।

हमने गिरगिट को रंग बदलते सुना था पर औरत का रंग बदलना यह कुछ नया था !

 इस कमबख्त रात को आकर हमारी हसीन शाम को चुराना ही था । पैलेस का क्लोजिंग टाइम हो गया था और हम दोनों पैलेस के बाहर  आ गये ।जब मेट्रो के पास आए तो हमने उससे पूछा की किस डायरेक्शन वाली मेट्रो पकडोगी बोली , आधे रास्ते तो कॉमन है उसके बाद तुम्हारा रास्ता अलग  और मेरा अलग ।मेट्रो में सवार होकर पेरिस के मेट्रो स्टेशन Montparnasse आ गये ! यहां  से हमारा रास्ता अलग था । बड़ी हिम्मत करके स्टेला से पूछा की दोबारा मिलने का कोई चांस है ?

तो बहुत जोर के हंसी बोली " Catch me ,if you  can? " , मैं बोला "where I can ?" बोली "lourve " और ऐसा कह निकल गयी । हमारे अनाडी मन ने सोचा बोली "love " & "lourve " .

बड़े उछलते कूदते अपने होटल पहुंचे, हमारा पार्टनर बोला  "क्या भाई बहुत खुश हो " कोई लड़की पट गयी , और जोर जोर से हंसने  लगा ....उसकी हंसी देख हमें अपनी माली  हालत और अपनी शक्ल  पर ध्यान गया और मन बोला "बेटा कपिल कुमार " तुमसे
 आज तक तो " विद्यावती  और सुशीला कन्या पाठशाला " की लड़की तो पटी नहीं और चले हैं सीधे इंटरनेशनल "आशिक" बनने ?

 अगर उस दिन "शेखचिल्ली" जिन्दा होता तो यही कहता बेटा
"तू तो मेरा भी बाप है “।

अगला दिन रविवार था और हमें इश्क का 100o  बुखार था, सुबह सुबह पहुँच गए "Lourve” म्यूजियम ", सोचा था कितना बड़ा होगा  हाथ पाँव   मारेंगें  तो कहीं ना कहीं  खोज ही लेंगे ।

हाय री किस्मत !  यह तो इतना बड़ा निकला की होश उड़ गए , पहले लाइन ही इतनी लम्बी उसपर  40 फ्रंक्स (250 रूपय in 1994 ) का टिकट  ! खेर दिल थाम कर अन्दर गए, पर ढूंढे तो ढूंढे कहाँ ?

पूरा म्यूजियम छान  मारा , पर उसका नामोनिशान नहीं ?

 जब 2/3 घंटे होगये तो सोचा चलो अब इस सड़ी हुयी जगह (हमें म्यूजियम बहुत बोर करते है और शायद हमने गलती से स्टेला को बोल दिया था) पर अपना इतवार बलिदान करे ।

शाम हो चुकी थी और हम घुड़दौड़ के जुआरी की तरह अपने पैसे और वक़्त हार कर म्यूजियम की टिकट  पर अपना गुस्सा निकाल रहे थे । की किसी ने पीछे से आकर हमें जकड लिया और दो चार पप्पी ”Kiss” हमें रसीद कर दी ।

 जब तक होश संभालते की हमारी आँखों पर हाथ रख बोली "who is here?" 

अब हमारी हालत तो ऐसी की “फटा हुआ लॉटरी  का टिकट  असली हो और हम उसे फाड़ते  हुए बच गए |” हमने शिकायतों का पोटला खोल उसके आगे रख दिया ! जितनी हम शिकायत करते उतनी  "Kisses”   हमारी हो जाती । ख़ैर वहाँ से वह  हमारा हाथ पकड बोली ,चलो कुछ खा ले ।और हम उसके पीछे पीछे हो लिए । कुछ तंग गलियों से गुजरने के बाद एक  ऐसे बाजर में पहुंचे जन्हा पर सिर्फ "मछली , केकड़ा ..." आदि आदि थे |

 हमारी तो सांस आनी बंद हो गयी और वह  तारीफ पर तारीफ कर रही थी । हमने हिम्मत करके उसे बता दिया भाई आप खाना चाहे तो खा ले पर हम तो यहां  खा ना पाएंगे ।

स्टेला चौंकी  !

 "Why not?”

हम बोले हम तो शाकाहारी है,भाई हमने जिन्दगी में अंडा ही अभी खाना शुरू किया है यही हमारी आखरी और पहली मंजिल है ।उसने एक  गहरी सांस ली और बोली , मैं अपना पैक करा लेती हूँ उसके बाद तुम्हरे लिए कुछ रास्ते  से ले लेंगे ।

उसके बाद हम दोनों ने पेरिस की वह  हसींन  शाम बाजार में इधर उधर घूम कर , क्लब में कॉफ़ी पी पी कर और गप्पे मार कर  गुजारी ।रात होने को थी तो उसने हमें हमारी मेट्रो में बिठा का अगले saturday को मिलने का वादा कर रुख़्सत  कर दिया । हमने पुछा कैसे मिलेंगें  तो बोली अगले Saturday " Notre Dame " पर  और वही पुराना डायलॉग " Catch me ,if you  can? " और ऐसा कह निकल गयी । बार बार कोशिस की उसका पता मिल जाये, कोई फ़ोन नंबर, पर उसने कुछ न दिया और हर हफ्ते किसी न किसी जगह हम मिलते | न तो हमारे होटल में आती और न ही अपना पता बताती |

    हमारे 8 हफ्ते कैसे निकल गए हमें पता भी न चला और वह  मनहूस घडी भी आ पहुंची जब हमें वापस हिंदुस्तान जाना पड़ रहा था ।एअरपोर्ट पर हमारी फ्लाइट का अनाउन्समेंट हो रहा था , और हम एक  हाथ में अपना बैग  लिए और दूसरा   हाथ  स्टेला के कंधे पर रखे जा रहे थे स्टेला का एक  हाथ हमारे कमर पर था | जब फ्लाइट में बैठने का वक़्त आया और हम अपने प्लेन की तरफ बढ़ने लगे तो उसने हमें जोर से आखिरी hug दिया और साथ में एक  लम्बी “french kiss” और बोली , तुम अब जा रहे हो और शायद तुमसे जिन्दगी में कभी मुलाकात न हो पर एक  सच तुम्हे बता दें  |          

 हम वह नहीं है जो दीखते है और जो हैं वो बता नहीं सकते इसी में तुम्हारी और हमारी सुरक्षा है |अब तुम सीधे जाओ और हमें मुड़कर मत देखना और ऐसा कह उसने हमें प्लेन की तरफ जाने वाले गलियारे में धकेल सा दिया और हम धीरे धीरे क़दमों  के साथ प्लेन में आकर बैठ गए ।

 एक  आवाज़ आई

 "Hey Dad! Where are you?"

तो देखा हमारा छोटा लड़का हमारे कमरे के पास खड़ा हमें घूर रहा है ।

By
Kapil Kumar 

Sunday 15 May 2016

क्यों मेरा दिल अकेला है....



लहराती , बलखाती हरी हरी घास के साथ झूमते पेड़ों का मेरे पास एक  घेरा है
नाचती गाती कई तरह की चिड़ियों का इन पेड़ों पर भी रैनबसेरा है
उछलती, फुदकती पेड़ो के बीच गिलहरियों का भी डेरा है
मेरे घर के आँगन को सर्दी की धुप ने अपने मखमली आंचल में समेटा है
इतने सब है मेरे दिल बहलाने के साथी
फिर भी क्यों मेरा दिल अकेला है ......


उड़ती फिरती है रंगबिरंगी तितलियाँ मेरे चारो ओर 
उनके पीछे गाते भँवरे खिलती कलियों का करने चित्तचोर 
मधुमखियों ने भी फूलों से अपना भाई चारे का नाता जोड़ा है
कार्डिनल अपनी कूक से , फिंच अपने फूंक से और स्पैरो अपनी कूद से
हर दिन मेरे आँगन में करती एक  नया सवेरा है
यह सब है मेरी खुशियों के साथी
फिर भी क्यों मेरा दिल अकेला है ......


दिन में सूरज ने आकर अपनी दोस्ती का रंग जमाया
जब गया वह थक मुझे बहला कर , तब चाँद अपनी मुस्कराहट  लेकर आया
सितारों ने भी मेरे आँगन में, जमकर अपना रंग बिखेरा है
बेपरवाह गाते जुगनूओं ने जैसे कोई नया राग छेड़ा है
यह सब लुभाते है मेरे दिल को
फिर भी क्यों मेरा दिल अकेला है ......


डेफोडिल और क्रोकस लुटा चुके है मुझ पर  अपनी मुस्कान
अब मुझे मुस्कराहट  देने का काम टूलिप और अरलिया  पर छोड़ा है
गुलाब की कलियों ने ,आईरिस के खिलने के बाद अपने को नए रूप रंग में संजोया है
इनकी जवानी के बाद, आँगन को महकाने का काम डहेलिया और लिली पर भरोसा है
मेरे आँगन में खुशबु का ठेका  हाइअसिन्थ ने  लाइलक के हाथो से पियोनिया को सौंपा है
इतनी सतरंगी रौशनी और खुसबू को देख , हर किसी का मन मयूर यहां डोला है
सारे फूल चाहते है की ,मैं भी उनकी तरह हर वक़्त खिलखिला कर मुस्करायूँ 
ना जाने किस मायूसी ने आकर मुझको घेरा है
फिर भी क्यों मेरा दिल अकेला है ......


पहाड़ियां भी मुझसे दूर से शर्मा कर नज़रें  मिलाती है
उड़ते आवारा बादलों  को जैसे चुपके से मेरे घर का पता बताती है
हर पंछी ने जैसे मुझसे अपना कोई ना कोई नाता जोड़ा है
कभी कभी तो हिरणियों  ने भी आकर मुझे झिंझोड़ा है
आजा घूल मिल जा हम सब में इन वादियों का तू बेटा है
जैसे पूछते है सब मुझसे क्यों सोचता है की तू अकेला है
फिर भी मुझे क्यों जीवन में लगता अँधेरा है
मैं भी ना जाने क्यों हर पल कुछ ना कुछ सोचता
मुझे है किसी का इंतजार
शायद इसलिए मेरा दिल अकेला है ......

By
Kapil Kumar 


कार्डिनल 



फिंच                                                               
स्पैरो                                     




                                                                                                                                   
डेफोडिल




                                                                                                                                              क्रोकस           





टूलिप





                                                           


अरलिया                                                  






आईरिस                                                             
डहेलिया                                           





 लिली                                                               

                                                   




हाइअसिन्थ



लाइलक [बकाइन                                            






                                                                                                                                                                                                                       

पियोनिया


                                                                                                                       

मेरा दिल का घर


मेरा टूटा फूटा दिल का घर, अपने आप में जुदा है
कहने को तो है परिवार की एक  छत
पर टूटी फूटी कई अंह की छतों में बंटा है ......


इन टूटी छतों का बोझ ढोती , कुछ उम्मीदों की दीवारें है
जो जाने अनजानें  दूसरी छतों से भी जुड़ी है ......
इन झुकती सी छतों के नीचे , कुछ दबे हुए
जज्बात ,आक्रोश और ख्वाहिशों  की साँसे हर दिन सिसकती है ......


कभी वह इन दीवारों का , तो कभी छतों की मजबूती का इम्तिहान ,
अपने तरीके से गाहे बगाहे लेती है .....
हर कोई इसमें रहने वाला ,अपनी उम्मीदों की दीवार  में ,
बेदर्दी से अपनी ख्वाबो की कीले ठोकता है.....
बिना यह जाने और समझे ,की इस दिवार के पीछे
कोई दूसरा भी गहरी नींद में सोता है.....
यह और बात है की ,इस दर्द और चुभन का अहसास ,
सिर्फ इस घर को होता है .....


कहने को तो सब अपनी अपनी छत के मालिक है ,
पर जब बात आती है घर की मरम्मत की,
वह अकेला सिर्फ अपनी किस्मत पर रोता है ......
इस घर में रहने वाले अपनी मर्जी से आते जाते है
मन हुआ कभी उनका, तो देदी झाड़ू
वरना अकसर गंदगी ही फैलाते है ......


जब डर लगता है उन्हें अकेलेपन के अँधेरे से
बस तभी मोहब्ब्त का दिया जलाते है .....
अक्सर घर अपनी बदहाली पे रोता है
क्योंकि यहां रहने वाला हर शक्श इसे
बस कुछ वक़्त गुज़ारने  का घर समझता है .....


मैं डरता हूँ अक्सर सोचकर यह बात
कब तक यह घर सहता रहेगा, ऐसी बिन मांगी सौगात .....
जब एक  दिन उम्मीदों की दीवारे ,
अपने अहं के बोझ से टूट कर गिर जाएंगी ....
रहने वालो का तो पता नहीं
इस घर को जरूर तबाह कर जाएंगी ...

By
Kapil Kumar 

Wednesday 11 May 2016

आत्मा किसी और के नाम हो......


तू मेरे अँधेरे जीवन करती रौशनी है 
या मेरी बुझती आँखों का नूर 
तेरे आने से ही बंधी है मेरी साँसों को आस होकर मजबूर 
तेरी जुल्फे है या फैली घटा का साया 
जिसने दिया है , तड़पे रेगिस्तान को हरा होने का नया लुभाया 

तेरी आँखे है या किसी मयख़ाने का जाम
इनमे डूब कर कर लूँ , थोड़ी देर मैं भी आराम 
तेरे होठ है या किसी रूहानी शर्बत  का जाम  
इन्हे जी भरकर चुम कर , मैं भी कर लूँ  अपना जीवन भर का काम 

तेरा आगोश है या जन्नत का झूला 
 इसमें लेट कर ,मैं अपने सारे दर्द और ग़म  गया भूला 
तुझे पाने के बाद , फिर कौन सी हसरत है बाकी 
तेरे साथ कुछ पल जीने के हर कीमत है नाकाफी 

कौन कमबख्त  चाहता है , करोड़ो का जैकपोट
तेरा साथ मिले तो , यह है सबसे बड़े ख़जाने  का प्लाट 
सारे जीवन की खुशियों से भी है भारी
जब तेरे जैसी हो मेरे साथ नारी 

आ मुझे कबुल कर , इस दुनिया को छोड़ दूँ 
तेरे लिए तो मैं इस जमाने से भी मुंह मोड़ लूँ  
तेरे आगोश के आगे ज़न्नत  भी है फीका 
बस बसा ले मुझे तू अपने दिल में मुझे समझ कर एक  लतीफ़ा

तेरे चेहरे के सामने हर नज़ारा  हो जाता है धुंधला
तू है मेरी रौशनी , जिसने किया है मेरा जीवन उजला 
मेरी धड़कन , कब मेरे सीने में आकर धडकोगी 
इतनी देर मत कर देना 

कि  यह जिस्म सिर्फ फ़िज़ाओं में भटकता रह जाए 
हमारा वज़ूद  सिर्फ इस शरीर से है
कौन जाने कल आत्मा किसी और के नाम हो ! 

By
Kapil Kumar

Tuesday 3 May 2016

अहं का पेड़


बचपन की बातें अक्सर  जवानी में उभर आती है

कोई हमें हंसाती है तो कोई आँखे नम  कर जाती है

ऐसी ही तेरी नादानी मुझे आज भी याद आती है

जब कुछ अध् पके से फल और अपनी शान के लिए

अपनी सहेली के बहकावे में आकर

बिना सोचे समझे झट पेड़ पर चढ़ जाती थी

फल तो तू बहुत तोड़ लेती थी

पर नीचे  आते हुए घबराती थी .......


ऐसे में तेरी सहेली , सारे फल समेट कर चुपके से निकल जाती थी

उसको जाते देख तू घबराहट में रोने लग जाती थी

बचपन की वह  भोली शरारत जवानी में भी तुझपर  चढ़ी है

कल तक तू कुछ फलों  के लिए पेड़  पर चढ़ जाती थी

आज तू अपने दिल को झूठी तसल्ली देने के लिए

अहं  के पेड़ पर चढ़ी है .......


इस पेड़ पर  तुझे ,कुछ पलो की झूठी ख़ुशी तो मिली है

पर नीचे  उतरते हुए तू डरने लगी है

अहं के पेड़ के नीचे  तुझे अवसाद की घाटी नजर आती है

जिसपर गिरने की कल्पना से ही तू पलके भिगोने लगी है

कोई नीचे  तेरी हंसी को समेटे खड़ा है

यह वह  नहीं जो तुझे अकेला छोड़कर चला है .....


मैं तुझे यूँ ऊपर से नीचे  ना गिरने दूंगा

ना ही मैँ  तुझे इस अहं  के पेड़ पर अटका रहने दूंगा

मेरा हाथ तुझे नीचे  उताराने  के लिए इंतजार में है

पर यह बात तू कभी ना भूलना

हर काम का एक  वक़्त मुक़र्रर  होता है

उसके बाद उसका होना सिर्फ वादा भर  निभाना होता है

इन झूठी शान और ख़ुशी के लिए

इस अहं  के पेड़ पर चढ़ना छोड़ दे

कभी असली ख़ुशी से दुसरो के दिल को भी तोल दे ...


By
Kapil Kumar

नाकाम मोहब्बत


क्यों नाकाम मोहब्बत के नगमे गा रहा हूँ

जब किसी की मय्यत ही नहीं उठी

फिर किसके लिए आंसू बहा रहा हूँ

क्यों जीते जी अपनी जिन्दगी जहन्नुम बना रहा हूँ

क्यों नाकाम मोहब्बत के नगमे गा रहा हूँ....


क्यों इक सिरफिरी मग़रूर  माशूका के लिए

अपनी जिन्दगी जला रहा हूँ

जिसके सीने में दिल ही नहीं

क्यों उसे मोहब्बत सिखा रहा हूँ

क्यों नाकाम मोहब्बत के नगमे गा रहा हूँ....


क्यों आइने  से भी अपना चेहरा छिपा रहा हूँ

जब तू ही नहीं मेरे सामने

फिर किसके लिए अपने को सजा रहा हूँ

आजकल महफ़िलो में भी तन्हाई पा रहा हूँ

दिल तो नहीं है उदास फिर भी

क्यों नाकाम मोहब्बत के नगमे गा रहा हूँ....


By
Kapil Kumar