Monday 21 March 2016

झुकी झुकी सी नज़रें ....


झुकी झुकी सी नज़रें  
अब खामोश हो चुकी है
 कितना प्यार है इनमें  
ऐसा कह कर वह थक चुकी है
 मेरे दिल की धड़कने तेरे इंतजार में 
जवानी से अब बूढी हो चुकी  है 
तू आएगी  कब ऐसा सोच कर 
वह थक चुकी है 
इंतज़ार  अब मौत का ही बाकी है
इंतजार में 
तेरे जिंदगी किस तरह से बीती 
अब यह बात बेमानी है...... 
किस उम्मीद पर  तेरा इंतजार करू 
जब यह साँस ही साथ छोड़ने लगी है
 तुझपे भरोसा तो मुझे अपने से ज्यादा है
 शायद तेरा  ग़म मुझसे ज्यादा भारी है 
यह बात अब मुझे अंदर से 
अब तोड़ने लगी है......

By
Kapil Kumar 

किसी मोड़ .....




कुछ गुलिस्तां में बहार नहीं आती  
वहां कांटे ही फूल का काम करते है 
 लोग कैक्टस को  कुछ भी  कह ले 
वही अक्सर लोगों को चुभ जाते है 
जब दिल में दर्द समा जाता है 
इश्क़ खुद बे खुद बाहर  निकल आता है
हम अक्सर इंतजार करते है उसका
जो हमसे दूर चला जाता है  
सीधी सी जिंदगी में ही अक्सर टेढ़े मोड़ आते है
जिन्हे हम कसकर पकड़ते है 
वही  किसी मोड़ पर छूट  जाते है !

By
Kapil Kumar 

Sunday 20 March 2016

My heart is a open garden


My heart is a open garden , 
you can come any time and have a visit,
I don't put any walls to break
 or 
cross to come near to me
I don't care what people think ,
 I want to keep my heart to be free

By
Kapil Kumar 

Friday 18 March 2016

वह बस इतना बोल देती ....


मेरे भटकते अरमानों को एक  नई दिशा में मोड़ देती
मेरी तन्हा रातों को नए ख़्वाबो से जोड़ देती
मेरी उदास दिन को हल्की सी मुस्कान से झिंझोड़ देती
काश  वह एक  बार मुझे अपना बोल देती
वह  बस इतना बोल देती ....

वह  मेरी होगी या नहीं यह बात कुदरत पर छोड़ देती

मेरी जिन्दगी के इन लम्हों को थोडा रस में भिगो देती
दो पल खुद भी जीती और मुझे भी जी लेने देती
प्यार की दो बातें  बस धीरे से बोल देती
काश वह एक  बार मेरी बनकर सोच लेती
वह  बस इतना बोल देती ....

मैंने  कब उससे पूरी जिन्दगी की ख़ुशी मांगी थी

मैंने  कब उसकी करुणा और त्याग की कीमत आंकी थी
मैंने  कब उसकी दोस्ती गहराई नापी थी
मैंने  कब उसके दिल को ठेस मारी थी
मैंने  तो बस उसके सहारे अपनी जिन्दगी संवारी थी
काश वह एक  बार मेरे दिल को अच्छे से तोल लेती
वह  बस इतना बोल देती ....

लिखी उसने हजार बातें  , सुनाये अपने दिलो ग़म  भी

मैंने  भी ना जाने कितने अफसाने किये उसके लिए भी
इन सब दर्दीली बातों के बदले
वह  अपने दिल में थोडा सा इश्क घोल लेती
मेरी प्रेम की हजार बातों के बदले
वह  थोडा सा अपने को ढीला छोड़ लेती
काश वह एक  बार मुझे भी आई लव यू बोल लेती
वह  बस इतना बोल देती ....

By
Kapil Kumar 

Sunday 6 March 2016

गुलामी के धागे ......


इंसान  के लिए मोहब्बत की जंजीरे तोड़ना  बहुत आसन है पर गुलामी के धागे तोड़ना  अत्यंत मुश्किल .....क्योंकि मोहब्बत की जंजीरे दिल से और गुलामी के धागे दिमाग से जुड़े होते है और दिल तोड़ना सबसे आसन काम है ....

अगर लोगों  से पूछा जाए की दुनिया में कौन से दो तरह के लोग है ? तो कुछ कहेंगें  अमीर - गरीब , कुछ का ख्याल होगा अच्छे - बुरे , कोई कहेगा आस्तिक - नास्तिक या छोटे - बड़े या कोई कहेगा कमजोर - ताकतवर , छोटा -बड़ा, अनपढ़ -समझदार ... पर मेरे अनुभव से यह छोटी केटेगरी है , प्रमुख है दुनिया में दो तरह के लोग है , वह  है मालिक और गुलाम  । क्योंकि गुलामी तो अमीर,ताकतवर और बड़े लोग भी करते है , अब एक  फ़कीर से लगने वाले बाबा के पैरों में ना जाने कितने अमीर , ताकतवर और पढ़े लिखे लोग भी लोट जाते है ..... अच्छे खासे पढ़े लिखे समझदार लोग अपने से थोड़े सुपीरियर इंसान की फालतू की जी हजुरी करने बैठ जाते है .... इसमें सोचने और देखने की बात यह है जो इंसान खुद गुलामी करता है , वह  दुसरो को भी गुलामी करने का उपदेश देगा और उनसे भी ऐसा करने की अपेक्षा रखेगा ...

यहां देखने और समझने की यह बात है गुलामी दो तरह की होती है मानसिक और शारीरिक , शारीरिक गुलामी मज़बूरी में तो मानसिक इंसान  खुद अपनी मर्जी से क़बूल  करता है ....जब जब सोचता हूँ की वह  पहला कैसा और कौन सा इन्सान होगा जो मालिक बना होगा और जिसने किसी को अपना गुलाम बनाया होगा ...आखिर कोई इन्सान किसी की गुलामी क्यों और कैसे कबूल कर लेता है,? सोचने की बात है जबकि दोनों ही इंसान  है ,फिर एक दूसरे  के  गुलाम क्यों है ? क्या गुलामी सिर्फ इंसानों तक ही सिमित है या यह जानवरों में भी ऐसा होता है ?....यहां  ध्यान रखने लायक बात यह है मालिक और लीडर में फर्क होता है .... लीडर से सहमत होना या न होना , उसके कार्य की समीक्षा करना या लीडर का चुनाव करना और योग्य होने पर उसे बदल देना , यह जनता के हाथ में है ...

इस बात को समझने और परखने के लिए मैंने  जानवरों के काफी विडियो देखी खासतौर से जंगली भैंसे  , हाथी , हिरण  , नील गाय , वोल्फ (भेड़िया  ) , शेर और हईना की ...इनका नाम मैंने  इसलिए लिखा क्योंकि  ,यह सब जानवर एक  पैक(छोटा समूह ) या बड़े समूह (हर्ड) में रहते है ....इनमे कोई एक  जानवर ग्रुप का लीडर होता है ....पर कोई किसी का गुलाम नहीं होता ....जानवरों में लीडर या मुखिया वही बनता है जो उनमे श्रेष्ठ , समझदार अनुभवी और सबसे ताकतवर होता है ....पर इंसान  तो जानवरों से भी गया गुजरा है , जो अपना लीडर इनमें  से किसी एक  विशेषता पर भी नहीं चुनता ....क्या आप लोगो को लगता है , की हमारे समाज में आज के लीडर , सबसे ज्यादा काबिल , समझदार या कुछ है ? तो शायद आपका भी जवाब होगा नहीं ?

फिर क्या कारण है की हम अपना लीडर या मुखिया किसी नाकाबिल इंसान  को बना लेते है ....असल में हम उन्हें लीडर नहीं अपना मालिक बनाते है और हम करते है उनकी गुलामी ....यही है मानसिक गुलामी , जिससे आजादी , सिर्फ इंसान  अपने आप पा सकता है , उसे कोई दूसरा आजाद नहीं करा सकता ....मालिक वह  शख्स होता है जो किसी भी तरह से क़ाबिल  नहीं है , जो कुछ नहीं करता , सिर्फ ऐशो आराम की जिन्दगी बिताता है....

शारीरक रूप से गुलाम लोगों  का मालिक उनका शारीरिक , मानसिक शोषण ही नहीं अपितु उनपर  अत्याचार भी करता है, वहीं दूसरी और गुलाम , वह  इन्सान है जो बंधा है अपने मालिक के रहमों  करम पर  उसकी दया की भीख पर . जिसमें कई बार गुलाम को ना तो आजादी से सांस लेने की इजाज़त  है और ना ही किसी तरह से कुछ और करने की ... पर गुलाम सब कुछ सहता है , उसे अपनी जिन्दगी की नियति समझ कर आखिर क्यों ? गुलामी भी तरह तरह की होती है ,जिसमे एक  इंसान  अपनी जरुरत के लिए या मज़बूरी में तो दूसरी तरफ सामाजिक बेडियो की खातिर गुलामी में बंध जाता है .....

क्यों कोई इन्सान अपनी गुलामी से आजाद नहीं होता ? सच कहूँ  दुनिया में अधिकतर लोग गुलाम जैसे ही होते है , उन्हें आजादी चाहिए ही नहीं होती , उन्हें हमेशा एक  मालिक की ज़रूरत  होती है , जो उनका इस्तमाल एक  गुलाम की तरह कर सके ....यह एक  कटु सत्य है की दुनिया में अधिकतर लोग गुलामी के लिए ही पैदा होते है और गुलामी करने को ही अपना सौभाग्य समझते है ......

क्योकि मानसिक गुलामी में सहूलियत है , पर आजादी में दर्द , परिश्रम और संघर्ष है ....आजादी सोचने , समझने को मजबूर करती है , आजादी बहुत पीड़ा देती है और गुलामी में सिर्फ बिना कुछ किये सब कुछ मिल सकता है , बशर्ते आप अपना आत्म सम्मान बेच दे ...

कितनी अजीब बात है , मोहब्बत की जंजीर कितनी भी मजबूत क्यों न हो , इन्सान उसे एक  झटके में तोड़ देता है , पर गुलामी के धागे कितने भी कमजोर क्यों ना हो , वह  उन्हें सारी उम्र नहीं तोड़ पाता , आखिर क्यों ?

आखिर क्या वजह है किसी इन्सान का दुसरे इन्सान का गुलाम बनने की ,जितना मुझे अनुभव हुआ , उसके अनुसार इंसान  के अन्दर दो चीज़ें  है जो उसे गुलाम बनाती है ,

पहली है डर और दूसरी है लालच .....

जब आप अपने ऊपर से विश्वास खो दे और यह भ्रम मन में पाल ले की सामने वाला आपका कुछ अहित कर सकता है या आप से कुछ छीन सकता है तो यह डर आपको उसकी गुलामी की तरफ ले जाएगा ...या फिर आपके मन में यह लालच समां जाए की सामने वाला आपको कुछ दे सकता है , तभी आप उसके पैरों  में लोट कर उसकी गुलामी करंगे ...

मुझे हैरानी होती है , की कैसे पढ़े लिखे समझदार , अमीर , ताकतवर लोग , क्यों और कैसे एक  गंदे से दिखने वाले , मोटे भैंसे  से , अनपढ़ जाहिल इन्सान के पैरो में लोट उसे अपना गुरु मान लेते है ...आखिर क्यों ?जिसके पास खुद के लिए कुछ नहीं है ...वह  आपको क्या देगा और सबसे बड़ी बात यह की आपको उससे कुछ चाहिए ही क्यों ? बस उनकी चिकनी चुपड़ी बाते , जिसमे सिर्फ सामने वालो को आने वाले भविष्य डर या लालच बेचा जाता है ... जब जब इन्सान अपने ऊपर से विश्वास खो देता है , उसे दुसरो के द्वारा शोषित होने से कोई नहीं रोक सकता ...

सबसे ज्यादा गुलामी हम रिश्तों में निभाते है , जिसमे समाज की मान मर्यादा का डर , तो कभी कर्तव्य के झूठे सब्जबाग , तो कभी नेकी का लालच देकर इंसान  को बहला फुसला कर गुलामी में बांध दिया जाता है ... गुलामी इन्सान के दिमाग की वह  स्थिति है , जो एक  बार उसके दिमाग में बैठ गई तो , फिर उसे वहां  से हटाना बहुत ही कठिन है ...गुलामी एक  ब्रेन वाश है , जो परमानेंट है , इसलिए इंसान  मोहब्बत की मोटी जंजीरों को कुछ पलो में तोड़ सकता है , क्योकि वह  दिल से जुडी है , पर गुलामी के धागे , सीधे दिमाग से जुड़े है , जिन्हें तोडना अत्यंत ही कठिन है ....

गुलामी करने वाला कभी यही स्वीकार ही नहीं कर पाता की वह  कब दुसरे के चंगुल में फंस चूका है , उसे लगता है वह  दुसरे की सेवा करके पुण्य कम रहा है और उसका मालिक उसकी इस सोच पर मन ही मन हँसता है .... मानसिक गुलामी भी कई तरह से की जाती है ,

जनूनी गुलामी ....इसमें सामने वाले के दिमाग में एक  विचार रोप दिया जाता है की , वह  इस दुनिया में किसी विशेष कार्य करने के लिए पैदा हुआ है और ऐसा करने से उसे स्वर्ग या जन्नत मिलेगी , अब यह विशेष कार्य क्या है , यह उसे तब बताया जाती है , जब वह  अपने दिमाग में यह भर चूका होता है , की उसे कुछ अलग करना है ...

ऐसे लोगो को हम जेहादी बोलते है ,दुनिया में फैला हुआ धर्म के ऊपर आतंकवाद , इस तरह के जुनूनी गुलामी का ही असर है , की लोग आत्मघाती हमें करते है और यह भी नहीं देखते की बेकसूर और निर्दोर्ष लोगो को पाने साथ मौत के मुँह में ले जा रहे है । 

ऐसा ही कुछ गुलामी का बीज हमारे भारतीय समाज में लडकियों के मन में बचपन से रोप दिया जाता है , उन्हें ऐसी ही शिक्षा देकर जवानी तक बड़ा किया जाता है , की सब कष्ट सहो , पर पति का घर मत छोड़ो ,चाहे वह  कैसा भी हो, उसी के घर में ही जन्नत या स्वर्ग है ....

डर की गुलामी .... दुनिया में जो पहला गुलाम बना होगा वह  जरुर दुसरे इन्सान से डरा होगा की यह मेरा कुछ अहित कर देगा , ऐसे गुलामों के दिमाग में एक  बीज रोप दिया जाता है की वह  अगर , बताये हुए रास्ते पर नहीं चलेंगे तो उनका बुरा वक़्त आजायेगा या अगले जन्म में उन्हें इसका दंड भोगना पड़ेगा ....

ऐसे गुलाम धार्मिक लोगो के चंगुल में फंसे रहते है , की अगर उन्हीने धर्म की पूजा अर्चना नहीं की तो भगवान या खुदा उनसे नाराज होकर उनका अहित कर देगा , इसलिए ऐसे गुलाम मानसिकता के लोग , अपने अनजाने डर से कर्मकांडी धार्मिक बन जाते है , जो सिर्फ खुदा के घर में तो नेक फ़रिश्ता होता है , पर हकीकत की दुनिया में वह एक  लालची और पापी इन्सान होता है ...उसे खुद पता होता है की , मैंने  कुछ गलत किया है या करता हूँ इसलिए , अपने आप को खुदा/गॉड/भगवान के दरवाजे पर दस्तक जरुर देने जायूँगा , ऐसे गुलामों  का फायदा खुदा के घर को चलाने वाले जी भरकर उठाते है ....

कितनी अजीब बात है इंसान  ने गुलामी के लिए सिर्फ इंसानों को ही नहीं , पत्थरों  , दीवारों और तो और लकड़ी के खम्भे तक को अपना मालिक बना लिया ....क्या इनमे से कोई किसी इंसान  का कुछ अहित कर सकता है या उसे कुछ दे सकता है ?...

दुसरे तरह  के गुलाम वह  लोग जो किसी की ताकत से भयभीत होकर उसकी गुलामी करते है की , उसके सहारे उन्हें भी अपनी गुंडागर्दी करने में आजादी रहेगी या दुसरे वोह लोग जो उनके द्वारा अपन अहित से डरते है , उनकी गुलामी क़बूल  कर लेते है ....देखने और समझने की बात यह है की दुनिया को बनाने वाला क्यों भला अपने बनाये बन्दों पर  जुल्म करेगा ...पर जिसे गुलामी करनी है वह  तो गुलामी करेगा , यह और बात है की उसने कभी अपने मालिक को भले ही कभी देखा ना हो ...

लालच की गुलामी .... शायद पहला गुलाम डर या लालच से बना हो , की अगर इन इन्सान के साथ मैं रहूँगा तो , मुझे बिना मेहनत के भोजन मिल जाएगा या मैं सुरक्षित रहूँगा ....धार्मिक गुलामी भी इसी तरह से की और करवाई जाती है ...

अंत में ....सच कहू तो बहुत कम इन्सान है जिन्हें अपने मानसिक और शारीरिक क्षमता पर विश्वास होता है .... जिस भी काम को करने में आपके आत्मसम्मान को चोट लगे और उस काम को आप किसी डर या लालच की वज़ह  से करे तो समझ ले , आपने उस इन्सान या वस्तु की गुलामी स्वीकार कर ली है ....

By
Kapil Kumar 

Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental”. Please do not copy any contents of the blog without author's permission. The Author will not be responsible for your deeds.

Tuesday 1 March 2016

घाटे का सौदा !!


अरे शर्माजी आपने सुना क्या ? क्या हुआ भाई?.. मिश्राजी हैरानी भरी नज़रों से देखते हुए बोले ? अरे सामने वाले गुप्ताजी ने मकान बेच दिया  ..क्या कह रहो ..अरे उन्हें क्या जरुरत पड गई ..इतना बड़ा कदम उठाने की ..मिश्राजी भड़कते हुए बोले ?

अरे आप भी ना कमाल करते हो मिश्राजी ....पहले आपको कोई खबर दो तो ...आप ..दुसरे पर  ही चढ़ जातो ....शर्मा जी ने कुछ नाराज़गी  भरे स्वर में कहा ...आप को शायद मालुम नहीं बहुत बड़ा घाटा हुआ गुप्ताजी को स्टॉक मार्किट में ..बस घाटा पूरा करने के लिए यह सब करना पड़ा ....


मिश्राजी ने पहले मन ही मन अपने मन को शांति प्रदान की ..फिर बड़े ही दार्शनिक अंदाज में बोले ...अरे यह स्टॉक मार्किट सब साला जुआ है ...आदमी एक  दिन में अमीर होना चाहता है ...अब भुगतो ....हम तो भाई ....

“कम खा ....चाहे ...गम खा”  की फिलोसोफी में विश्वास रखते है....... 

शर्माजी ने भी उनकी हाँ में हाँ मिलाई और बोले आप बिलकुल ठीक बोले ..यह साला ज्यादा के चक्कर में आदमी ...अपना सब कुछ लुटा देता है ...मैं वहां  से गुज़र  रहा था और सोचने लगा क्या मिश्राजी और शर्माजी का आंकलन  सही है ? ...फिर मैंने  इनकी जिन्दगी में झांकना शुरू किया तो देखा ... 

“हर आदमी जिन्दगी में जुआ खेलता है फर्क सिर्फ इतना है ...की पैसों  का दर्द हमें और दर्द से कुछ ज्यादा बड़ा लगता है”..... 

मुझे याद है ....वह  दिन जिस दिन मिश्राजी बड़े खुश नजर आ रहे थे ...मैंने  पूछा अंकल जी क्या बात है ..आज आपके चेहरे पर अलग ही नूर झलक रहा है ? तो मुझे डांटते हुए बोले ..अरे तुम लोग तो बस यूँही बड़ी बड़ी बाते करते रह गए ..देखो मेरी बेटी को उसने कॉलेज में टॉप किया है और अब IAS बनने की तैयारी कर रही है .....अब अंकल जी से क्या कहते ..कोशिस तो हमने भी पूरी की थी ..बस ... 

कभी खुदा तो कभी बिसाले सनम ना मिला ... 

और थक हार कर ...किसी मैनेजमेंट कॉलेज से MBA का डिप्लोमा ले..... गली गली धक्के खाने की मार्केटिंग की नौकरी पकड ली ...अब IAS तो हमारे ख्वाबों  की बात थी ...पर मिश्राजी की लड़की संगीता तो हमारे दिल की धड़कन  थी ...तो उनकी ख़ुशी मेरी ख़ुशी थी ...सोचा आज जान से जब मिलूँगा तो अपने हिस्से की मिठाई भी वसूल कर लूँगा ..... 

शाम को जब संगीता से मिला तो ..उसके पाँव जमींन पर ना पड़ते थे ..कॉलेज टॉप करने की खबर ने उसके अन्दर एक  जोश और नयी उर्जा भर सी दी थी...जो संगीता कल तक मेरे आगे कुछ दबी शांत सी रहती थी आज ख़ुशी में एक  चिड़िया की तरह चहक रही थी ..... 

ना जाने क्यों उसे इतना खुश देख मेरा मन अंदर ही अंदर डरने लगा ...उसकी आँखों की चमक में मुझे सपनों  के वे  महल तैरते दिखाई दिए ...जो मेरी मौजूदा हालत का मज़ाक उड़ा रहे थे .... 

मैं अपने ही सपनों  में खोया था ....रोज मैं बोलता था और संगीता सुनती थी...पर आज सिर्फ संगीता बोल रही थी और मैं एक  कमज़ोर  और हारे हुए खिलाडी की तरह उसकी बातें सुन रहा था .... जो सपना कल मैंने देखा था ...आज वही सपना पूरा करने का जोश संगीता की नसों में हिल्लोरे ले रहा था ....संगीता बड़े जोश में बोली ..कपिल बस आज से  IAS  की तैयारी शुरू और मुझे तुम्हारी किताबे और गाइडेंस की जरुरत पड़ेगी ...बस अपना समय मेरे लिए फ्री रखना ... 

उसकी यह मासूम बाते मेरे कानों में पिघले लोहे की तरह चुभने लगी .....शायद मेरी अपनी कुंठा या विश्वास की कमी या नाकामी थी ...जो संगीता के सपनों  की ऊंचाईयो को देख उनसे डरने लगी ... 

मैं बोला अरे क्यों अपना समय ख़राब करती हो....IAS  में सिलेक्शन कोई गारंटी नहीं ...उससे अच्छा होगा ..अगर तुम भी किसी मैनेजमेंट कॉलेज से किसी MBA या MCA कर लो .....तुम्हे तो किसी भी अच्छे कॉलेज में एडमिशन यूँही मिल जाएग ...कम से कम तुम अपने कमाने लायक योग्यता तो ले लोगी ... 

संगीता ने मुझे ऊपर से नीचे घूरा  और बोली बस तुम डरपोक के डरपोक रहना ...अरे जिन्दगी में कुछ बनने या पाने के लिए रिस्क तो लेना ही पड़ता है ...

उसकी बात में दम था शायद मैंने  अपने समय में अपना ध्यान एक  ही चीज पर  लगाया होता तो कामयाब होगया होता ....पर मुझे तो सेफ खेलने की आदत थी ...जब इंजीनियरिंग की तैयारी करनी थी तब ...कोचिंग के पैसे बचाने और 12  वी के बोर्ड एग्जाम पर  ज्यादा ध्यान देना ...बस इस चक्कर में इंजीनियरिंग में सिलेक्शन हो नहीं पाया और जब बी एस सी करके निबटा तो अपने को बेकार और बेरोजगार पाया .....कुछ और ना होता देख मैंने  पास की किसी कॉलेज में MBA में एडमिशन ले लिया था..... 

ना जाने उस दिन के बाद मेरे और संगीता के बीच एक  ऐसी दीवार खड़ी हो गई ..जो ना उसने गिरानी चाही और ना ही कभी मैंने  लांघने की कोशिश की ... 

मैंने  वक़्त से समझोता कर अपना ध्यान करियर में लगा लिया ..सोचा जब कोई अच्छी सी नौकरी होगी तब ही संगीता से शादी की बात करूँगा ...

देखते ही देखते कई साल गुजर गए ...कल तक ऊँचे ऊँचे सपनो के बादलो में उड़ने वाली संगीता नाकामियों के अंधेरो में घिर गई ...बड़ी कोशिस के बाद भी वह  आई ए एस  में सेलेक्ट नहीं हो पाई और इसी चक्कर में पड उसने ना तो किसी मैनेजमेंट कॉलेज में ना ही किसी इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन लिया ... 

IAS  के तीनो प्रयास ख़त्म करने के बाद ....जब संगीता ने अपने आस पास देखा तो उसे बहुत झटका सा लगा ..कल की कॉलेज टोपर संगीता आज इक बेरोजगार संगीता बन चुकी थी ...जो लड़के-लड़कियां उससे पढाई में मदद लेने आते थे ...आज बड़ी बड़ी कम्पनी में अच्छे अच्छे ओहदों पर  आसीन हो चुके थे ... 

कुछ तो संगीता की IAS  की पढाई ..कुछ मेरी अपनी करियर की उलझनों के कारण मैं भी उससे ज्यादा ना मिल पाता... 

एक  दिन यूँही संगीता के घर गया तो देखा ..वह  कुछ उदास सी बैठी हुई थी ...पूछने पर कहने लगी ...की IAS  के चक्कर में मैंने  ना तो कोई प्रोफेशनल डिग्री ली और ना ही किसी और नौकरी का प्रयास किया ...अब जब नौकरी के लिए कहीं  आवेदन करती हूँ तो ....सब जगह से रिजेक्शन आ जाता है ...की आपके पास कोई इंजीनियरिंग या मैनेजमेंट की योग्यता या अनुभव नहीं है ...... 

सोचती हूँ कोई भी कैसी भी नौकरी कर लू.... घर बैठे बैठे बोर होती हूँ ....अब मेरे पास तो कोई ऐसी योग्यता ही नहीं ..जिससे मुझे कोई अच्छी नौकरी मिल जाए ....बड़ी मुश्किल से किसी स्कूल से टीचर की नौकरी का इंटरव्यू आया और तनख्वा  भी बहुत कम है .... 

मैंने  संगीता को दिलासा दिलाया और बोला ...क्या फर्क पड़ता है जिन्दगी में हर कोई अपना रिस्क लेता है ..तुमने लिया ...अब सफलता या असफलता तो किस्मत की बात है .... 

संगीता ने मायूसी में सर हिलाया और बोली काश मैंने  भी किसी इंजीनियरिंग कॉलेज से कोई डिग्री ले ली होती.... तो मैं भी आज किसी अच्छी कंपनी में अच्छी तनख्वा पर अच्छे पद पर होती .....मेरा तो कितने ही बड़े बड़े इंजीनियरिंग कॉलेज सिलेक्शन हो गया था ...पर IAS  बनने की सनक में मैंने  अपना करियर दांव पर  लगा दिया!! .... 

धीरे धीरे हम दोनों का प्रेम फिर से परवाने चढ़ने लगा और एक  दिन मिश्राजी भी  हम दोनों की शादी के लिए रजामंद हो गए .... 

अचानक एक  दिन मिश्राजी हमारे घर आए और मेरे और संगीता का रिश्ता तोड़ दिया ..बोले बड़े अफ़सोस की बात है ....हमें अपने किसी रिश्तेदार के लडके के लिए संगीता का रिश्ता आया है .....घर बहुत ही अच्छा है ... 

जब मैंने  उस लड़के के बारे में पता किया तो मुझे हैरानी हुई ...की मिश्राजी जैसे समझदार इन्सान ने क्यों कर अपनी सुशील  और समझदार बेटी किसी ऐबी इन्सान को दे दी ...शायद लड़का मुझे ज्यादा पढ़ा लिखा और सबसे बड़ी बात मेरे से कई गुना अमीर घर का था .... 

शायद मिश्राजी को वह  रिश्ता मेरे रिश्ते से ज्यादा मुनाफे का सौदा लगा ... 

पर कुछ महीनो बाद जब मेरी संगीता से बात हुई तो मुझे पता चला की मिश्राजी ने गलत दांव  खेल दिया था ...जिसका नुक्सान उनकी बेटी चूका रही थी .... 

अभी मैं कुछ सोच विचार में डूबा हुआ था की ..शर्माजी का लड़का राजेश ..मेरे पास आकर बोला भैया ..लो मिठाई खाओ मेरी नौकरी लग गई है ... 

शर्माजी का लड़का राजेश हमारे साथ ही क्रिकेट खेलकर बड़ा हुआ था ..वोह अक्सर मुझ से अपनी समस्या शेयर का लिया करता था ...राजेश पढने में बहुत ही होशियार था ....कुछ साल पहले वह 10 वी में अच्छे नम्बरों से पास हुआ तो मैंने  उससे कहा आजकल कम्पटीशन का जमाना है ..तुम अभी से कोई अच्छी कोचिंग ज्वाइन कर लो ..जिससे तुम्हे IIT  की तैयारी के लिए अच्छा मार्गदर्शन मिल जाएगा .... 

उसने मेरी बात शर्माजी को बताई तो शर्माजी ने उसकी बात को हवा में उड़ा दिया ....मेरे काफी जोर देने पर  शर्माजी ने अपना रटा रटाया ..जुमला सुना दिया ....

अरे इसके फूफा को देखो ..हिंदी मध्यम में पढ़े ...फिर भी IIT में बिना किसी कोचिंग के सेलेक्ट हो गए थे ... अगर यह भी काबिल होगा तो इसका भी सिलेक्शन हो जाएगा .... मैं क्यों कोचिंग वालों को एक -दो लाख रुपया फ्री में दूँ ..

मैंने  अपनी तरफ से शर्माजी को खूब समझाया ...की हर बच्चे की अपनी सीमा होती है ...कभी किसी से तुलना करके ..हम उसकी योग्यता का आंकलन  नहीं कर सकते ..आज यह सिर्फ एक -दो  लाख की बात है ..कल अगर यह नाकाम होगा तो ..कम से कम राजेश के मन में मेरी तरह यह मलाल ना होगा ..की काश  मैं कोई कोचिंग कर लेता .... 

शर्माजी को मेरी बात ना सुननी थी तो ना उन्होंने सुनी ...राजेश भी जिद्दी था मेरे बहुत समझाने पर  की कि IIT  के अलावा किसी और कॉलेज में आवेदन कर ले ...पर उसने अपनी जिद्द में किसी और कॉलेज में अप्लाई ना किया ... 

बाप बेटे की जिद्द का परिणाम सुखद ना निकला ...राजेश का IIT  में सिलेक्शन नहीं हुआ और निराशा में उसने किसी पोलिटेकनिक स्कूल में डिप्लोमा में एडमिशन ले लिया ....

बाप बेटे के झगड़े  का यह परिणाम निकला ...उस दिन के बाद शर्माजी और राजेश में एक  चुप्पी की दीवार खाड़ी हो गई ...जो फिर कभी नहीं टूटी... 

शायद उस वक़्त शर्माजी ने एक लाख -दो रूपये तो बचा लिए ....पर बेटे के भविष्य को वह  रौशनी और दिशा ना दे सके जिसका वह  अधिकारी था ....

आज जब मिश्राजी और शर्माजी की बाते सुन रहा था ....तो मेरा मन मुझसे से बार बार यह प्रश्न  कर रहा था .... 

की जीवन में हम सब कहीं  ना कहीं  किसी ना किसी चीज पर जाने या अनजाने दांव लगाते है ...बस फर्क इतना है ...पैसो का खोना हमें दीखता है ...रिश्तो और भविष्य को हम तकदीर के भरोसे छोड़ देते है ..... 

By
Kapil Kumar 


Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental”. The Author will not be responsible for your deeds.