Monday 9 November 2015

ये कैसी सुहागरात ?




शादी हुई है तो निश्चित है सुहागरात भी होगी ...अब यह कोई किसे समझाए ....विवाह करते वक़्त , बातें  आपने सात जन्म का साथ निभाने वाली की है .....जिसमे ना जाने कितने कसमें  वादे खिलवाये गए ....” जन्मों जन्मों का बंधन बताया गया “ आदि आदि ....

हकीक़त में लड़का लड़की एक  दुसरे को ना तो जानते है और ना ही समझते है ...बस लेकर अगले दिन दोनों को छोड़ दिया जाता है एक  समुन्द्र में “जाओ जाकर अपनी किश्ती किनारे ले आओ” .....अब दो अनाड़ी जिन्हें एक  दुसरे के ना तो व्यवहार  का पता है ...ना ही भावना का ..बस लग जाते है अपने जिस्म की भूख को पूरा करने ...इसमें प्रेम और सम्मान कहाँ  है ?”

सच कहूँ  तो सुहागरात से ज्यादा बेशर्मी की कोई चीज़ हमारे समाज में नहीं है ...कितनी बेशर्मी से एक  युवा दम्पति को आप कमरे में भेज देते है ..जो एक  दुसरे से अच्छी तरह वाक़िफ़ नहीं है ....क्या करने ..सिर्फ सेक्स का खेल करने ..इससे ज्यादा कुछ नहीं ....

उसपर  शादी के दिन आए रिश्तेदार और भरा पूरा परिवार  ..... कोई एक  बार यह भी नहीं सोचना चाहता की दोनों की मानसिक हालत कैसी होगी ? दोनों अगले दिन कैसे अपने परिवार का सामना करेंगे ....क्या लड़का या नववधु अगले दिन अपनी नज़रें  घर वालों से मिला सकेंगें  ?.....

किसी किसी समाज में तो सुहागरात के बाद , बाकायदा चादर दिखाई की रस्म होती है , अब इससे ज्यादा ज़लील और अहमक़ रस्म हो सकती है भला ?

जो लम्हे किसी नव दम्पति के मधुर और व्यक्तिगत होने चाहिए ...वे  महज़ एक मज़ाक का विषय बनकर रह जाते है और लड़की जिसे ..जिस इन्सान के साथ जिन्दगी बितानी है ....

उसे, उस इन्सान के मन को  समझने से पहले उसका शरीर समझना पड़ता है .... दिल की केमिस्ट्री का पता भले सारी उम्र ना चले ....पर शरीर का फिजिक्स जरुर रटा दी जाता है ....

ऐसी जिस्मानी शुरुवात , क्या किसी प्रेम से भरे रिश्ते की हो सकती है ? जब किसी रिश्ते की बुनियाद ही सेक्स पर खड़ी की गई है ...फिर उसमे भावनाओं  का स्थान कहाँ और कैसे होगा ?... ”आज के समाज में आदमी, औरत को भोगने  की चीज़ समझता है और औरत भी इसे अपना नसीब  समझ अपने गृहस्थ जीवन की गाडी को जैसे तैसे खींचने लग जाती  है” .....

बातें हम अपनी संस्कृति , सभ्यता और वेद  पुराणों की करते है , जिन देवी देवताओ की हम दिन रात अर्चना करते है , उनके आगे शीश झुकाते है ...क्या उनमे से किसी का विवाह ..आज के समाज में निभाए जाने वाले तरीके से हुआ था? ...

जिस प्राचीन सभ्यता की हम दिन रात दुहाई देते है ..उसमे नारी को अपना वर खुद चुनने का अधिकार था ....वंहा औरत कोई भेड़ या बकरी ना थी ..जिसे अपनी सुविधा के अनुसार किसी के हवाले कर दिया जाता था ....

जब किसी रिश्ते में ना तो प्रेम होता है और ना ही सम्मान ...फिर आप ऐसी खोखली बुनियाद से.... ऐसे किसी समाज की कल्पना कैसे कर सकते है ....जिसमें  औरत को आदमी के बराबर सम्मान मिल सकता हो ....

फिर ऐसे में एक सभ्य समाज की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती ??.....

  By 
 Kapil Kumar



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