तू मेरी धड़कन है या मेरी चलती साँस ,
तू मेरी जिन्दगी है या फिर जीने की आस....
तू मेरी महबूबा है या खोया हुआ प्यार ,
तू मेरी ज़ुस्तज़ू है या मेरा आने वाला कल ....
कैसे तुझे रख सकता हूँ एक पल के लिए भी दूर ,
तू होती है जब उदास तो मैं हो जाता हूँ गुमसुम ....
अब यह रूठना झगड़ना छोड़ दे,
आ तुझे मैं चुम्म लू......
तू अपनी यह ज़िद्द छोड़ दे ।
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Kapil Kumar
मोहब्ब्त का मंदिर यूँ तोड़ कर ना जा
आशिक के सीने में बेवफाई का खंजर घोप कर ना जा
अभी तो सजी है हमारे इश्क़ की महफ़िल
उसे यूँ छोड़कर ना जा
डरता हूँ बस इन तन्हाइयों से मैं आज भी
मुझे यूँ अकेला छोड़कर ना जा .....
हिम्मत है बहुत की पहाड़ों को लांघ लू
जरुरत पड़े तो दरिया को भी फाड़ दूँ
सहरा भी मुझे अब थका नहीं सकता
कोई मौत का मंजर मुझे डरा नहीं सकता
डरता हूँ बस इन तन्हाइयो से मैं आज भी
इनके हवाले मुझे यूँ छोड़कर ना जा
ऐ मेरे सितमगर मेरा दिल तोड़ कर ना जा
मुझे यूँ अकेला छोड़कर ना जा ......
ना तो हम दोनों के बीच कोई झगड़ा हुआ
ना ही अब मैंने कोई फ़साद किया
फिर तेरे दिल में यह कैसा अज़ाब हुआ
अगर हूँ मैं गुनहगार तेरी मोहब्ब्त का
तो मेरी सजा मुक़र्रर करके जा
हो सके तो मुझे दफ़न करके जा
पर मुझसे यूँ मुंह मोड़ कर ना जा
डरता हूँ बस इन तन्हाइयों से मैं आज भी
मुझे यूँ अकेला छोड़कर ना जा ......
अगर जाना ही है तुझे मुझसे दूर
कम से कम कुछ ऐसे बहाने बना कर जा
मेरे दिल को सकून के कुछ अफ़साने दिला कर जा
रखूँगा मैं चिराग़ आँधियों में भी जलाकर
आँखे खुली मिलेंगी तेरे ही इंतजार में अक्सर
उलझा कर रखूँगा मौत के फ़रिश्तों को भी बहला कर
तू बस आकर इस शमा को बुझा कर जा
डरता हूँ जीने से अब तो मैं सितमगर
मुझे यूँ अकेला छोड़ कर ना जा......
सहरा =रेगिस्तान , अज़ाब = तकलीफ़
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Kapil Kumar
हर बार जुदाई के नए नए सबब बन गए ,
कभी मेरी ख्वाहिशें तो कभी तेरा ग़रूर तन गए
यूँ तो हम रह नहीं सकते थे दो पल भी जुदा ,
फिर भी मिलते मिलते ना जाने कितने जन्म गुजर गए
अपने नाकाम इश्क़ की वज़ह से हम ज़माने में जुदा हुए
जब मरे तो जलकर इन फिजाओ में दोनों एक हो गए .....
तेरे इश्क में इस जग में बदनाम हुए तो क्या
पहले तो सिर्फ आम थे फिर ख़ास हो गए
यह और बात है की तूने भी मेरे इश्क की कद्र नहीं की
फिर भी हम गली गली आवारा आशिके आम हो गए ....
जो ना थे क़ाबिल भी तेरी सूरते दीदार को
वे इस ज़माने में तेरे खाविंद हो गए
कैसे की होगी हिमाक़त उसने तुझपे हुक्म चलाने की
हम तो बादशाह थे जो तेरे एक इशारे पे गुलाम हो गए.... .
अदावत थी इस ज़माने की हवाओ को भी हम से
जो चेहरा हमने छिपाया था चिलमनों के पीछे जतन से
वो हमारे हटते ही बाज़ारे आम हो गए
हमें रह गया इल्म एक नाकाम इश्क का बाँकी
वो जैसे सब हमारी रूह के नाम हो गए ....
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Kapil Kumar
आजकल कोई ऐसा होगा जो शायद लीगो के बारे में ना जानता हो , जिनके छोटे बच्चे है वे तो इनसे भली भांति परिचित होंगे की , कैसे छोटे छोटे टुकडो को जोड़कर किसी आकर में ढालकर कुछ बनाया जा सकता है ....आज जब मैं किसी सवांद के ऊपर सोचने बैठा तो लगा की जैसे हम सब बड़े तो हो गए , पर जज़्बात के मामले में हम शायद बच्चे ही है ....बस फर्क इतना है बच्चे खेल खेल में कुछ चीजो को जोड़कर अपनी मन चाही शेप बनाते है और हम वयस्क लोग अपनी जरुरतो , सिद्धांतों , उम्मीदों और जज़्बातों को जोड़ कर रिश्ते बना लेते है ....
मैंने बच्चों को लीगो बनाते और खेलते देखा है और उस अनुभव के बाद ही मैंने ऐसा पाया की अब आप कुछ बच्चो को लीगो के डब्बे दे दे जिसमे एक जैसे ही सारे लीगो पीस हो ...पर देखेंगें की हर बच्चा उन टुकड़ों को अपनी मर्जी से जोड़ता है और एक से दिखने वाले लीगो , अलग अलग बच्चे से भिन्न भिन्न शेप वाली शेप पाते है , कोई बच्चा हवाई जहाज तो कोई घर , तो कोई कुछ बनाता है कुछ बच्चे बहुत अच्छी शेप तो कुछ बच्चे कोई भी शेप नहीं बना पाते ...
इस खेल खेल में आप बच्चो की मनोवृति भी देख सकते है , कौन सा बच्चे अपने दिमाग से , कौन सा दूसरे को देख कर अपने निर्णय लेता है ....यहाँ पर एक चीज और मैंने देखी की कुछ बच्चे लीगो बॉक्स में दिए हुए चित्र देख कर अपनी अपनी शेप बनाते है और कुछ बच्चे ऐसे भी होते है जिन्हें अपने लीगो से मतलब नहीं वह सिर्फ दूसरे के बने देख कर खुश हो जाते है और कुछ बच्चे ऐसे भी होते है जो दूसरे के बने लीगो को देख कर कुढ़ते है ....उनमे से कोई उन्हें तोड़ने में तो कोई उन्हें चुरा कर अपना बताने की फ़िराक में लग जाते है...बच्चे इस खेल खेल में अपनों को दुसरे से तुलना भी करने लगते है कुछ बच्चे दुसरे का बना देख अपने को उससे कमतर या ज्यादा अक्लमंद समझते है ....
खैर यह सब कहने और लिखने का तात्पर्य यह था की हम और बच्चे एक से ही है ...फर्क इतना है वे खेलने के लिए लीगो पीस को जोड़ते है , हम अपनी जिन्दगी को बसर करने के लिए रिश्ते नाते जोड़ते है ...
हम में से कुछ लोग अपनी समझ बूझ से अच्छे से दिखने वाले मजूबत रिश्ते बना लेते है , कुछ बड़ी कोशिस के बाद भी किसी रिश्ते को नहीं बना पाते , कुछ समाज की तय की गई मान्यताओ और परम्परा पर चलकर रिश्ते बनाते और निभाते है भले ही वे उन्हें ज्यादा पसंद ना हो पर एक तय हुए मार्ग पर चलना उन्हें जायदा सुविधाजनक लगता है , कुछ लोग अपने रिश्तो की परिभाषा अपने मन से गढ़ते है और कभी उसे पूरा तो कभी अधुरा बना कर छोड़ देते है ...कुछ लोग दुसरो को देख कुढ़ कर उन्हें जीवन भर सिर्फ तोड़ने का काम करते है....
जैसे लीगो के बॉक्स में अलग अलग तरीके के पीस होते है वैसे ही इन्सान की जिन्दगी में उसकी जरूरतें , ख्वाहिशे भी अलग अलग होती है ...आमतौर पर हर इन्सान की अपना जीवन बसर करने की यह साधारण सी जरूरते है जैसे शारीरिक , मानसिक ,भावनात्मक , सामाजिक , आर्थिक ,व्यवाहरिक और आत्मिक ...
अब हम इन जरुरतो को ऐसा समझे जैसे यह लीगो के अलग अलग पीस है ...कहने का मतलब है एक वयस्क इन्सान पर अपने जीवन रूपी शेप को बनाने के लिए शारीरिक , मानसिक ,भावनात्मक , सामाजिक , आर्थिक ,व्यवहारिक और आत्मिक जैसे लीगो के पीस है जिनसे हमें अपने रिश्तो का निर्माण करना है .....
अब यह हमारी प्रकृति पर निर्भर करता है की हम अपने जीवन में किसे पसंद करते और किसे प्राथमिकता देता है....जैसे बच्चे लीगो बनाते हुए अपनी पसंद से लीगो के पीस चुनते है और फिर उन्हें अपने मन के अनुसार उसी प्राथमिकता से जोड़ते है ...कुछ बच्चे पूरी आकृति तो कुछ अधूरी सी बना कर खुश हो जाते है ....
आप सब को पढ़ कर लगा होगा की लीगो और जिन्दगी में भला क्या कनेक्शन है ? ..शायद है भी , अब यह आपके सोचने और देखने पर निर्भर करता है की आप चीजे कैसे देखते और लेते है , मैं इसके बारे में एक केस स्टडी करके समझाऊंगा ...
कपिल और रागिनी दो वयस्क है , जो अपनी तन्हा जिन्दगी में भटकते हुए एक दूसरे से आ मिले , जहां कपिल को रागिनी से मोहब्बत की दरकार है , वहीं रागिनी कपिल से अपना रिश्ता सिर्फ दोस्ती तक सिमित रखना चाहती ...दोनों एक दूसरे से रिश्ता तो रखना चाहते है पर अलग अलग तरीके से ...पर क्यों ? ..दोनों की सोच अलग क्यों है , वह क्या कारण है की , दोनों अपने अपने रिश्ते की अलग परिभाषा लिखना चाहते है ? इस मानसिकता को हम समझेंगें ...अपने लीगो के उदाहरण से ...
कपिल के जीवन में उसकी जरूरतों की प्राथमिकता का क्रम ऐसे है पहले मानसिक फिर भावनात्मक ,शारीरिक ,आर्थिक , व्यवहारिक ,आत्मिक ..आदि ...उसके लिए अपने जीवन में सामाजिक जरूरत सबसे कम और मानसिक जरूरत सबसे ज्यादा जरुरी है ...अब कपिल जब अपने जीवन में इन ज़रूरत रूपी लीगो को जोड़ेगा तो उसकी शेप कुछ और होगी .....क्योकि उसकी नज़रों में समाज , व्यवहार और आत्मिक जरूरतों की कीमत कम है या यह कह सकते है यह उसकी पहली पसंद की चीज़ें या बच्चो की भाषा में कहे तो उसके पसंदीदा लीगो के पीस नहीं है ...
इसके विपरीत रागिनी के जीवन में उसकी जरूरतों की प्राथमिकता का क्रम ऐसे है पहले आत्मिक , सामाजिक , भावनात्मक ,व्यवाहरिक , मानसिक , आर्थिक ...आदि ..अब वह जब इन जरूरत रूपी लीगो के पीस जोड़ेगी तो उसके जीवन की शेप कुछ और होगी .....क्योकि उसकी जरूरतों में शारीरिक सबसे पीछे है ...
यहां ध्यान देने वाली एक बात है की ...फिर भी दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित है ....पर दोनों के बीच एक फासला है ...जहां कपिल रागिनी को अपने जीवन में लाना चाहता है , वहीं रागिनी पहले अपने सामाजिक कर्तव्य को निभाने के बाद ही अपने बारे में सोचना चाहती है ....
यहां पर एक रोचक बात यह है ..की दोनों की लीगो की शेप (यानी जीवन रूपी जरूरतों से बना जीवन )अलग अलग है, फिर भी दोनों एक दूसरे से जुड़ना चाहते है आखिर क्यों ?
क्यों की दोनों की शेप अधूरी है ...दोनों के जीवन की शेप में एक जरुरत है जो उनके पास नहीं है और वह दोनों एक दूसरे से पूरी करना चाहते है वह है भावनात्मक और मानसिक जरूरतें ...जो दोनों एक दूसरे के द्वारा पूरी कर सकते है ... इसलिए जहां रागिनी सिर्फ दोस्ती तक सीमित रहकर सोचती है ..क्योंकि इसमें उसे शारीरक कर्तव्य से आजादी है वहीं कपिल उसे अपने जीवन में लाना चाहता है ताकि वह रागिनी को शारीरक और भावनात्मक रूप में भी हांसिल कर सके ...
हमारे जीवन में हमारी कुछ जरूरते होती है जिन्हें हम खुद अपने आप से पूरी नहीं कर सकते ...जब हमारी यह जरूरतें दूसरे से पूरी होने की हमें उम्मीद होने लगती है , तब हम उस इन्सान के प्रति आकर्षित होते है या उससे अपना किसी तरह का रिश्ता बनाते है ...जब तक हमें ऐसी किसी जरूरत पूरी होने का विश्वास नहीं होता ..तब तक हमारा उस इन्सान से रिश्ता भी नहीं बनता ...
कहने का अर्थ यह है की ...इन्सान का हर रिश्ता उसकी जरुरत और मतलब की बुनियाद पर ही टिका होता है , जैसे ही यह बुनियाद हटी , रिश्ता खत्म ..यह और बात है की वाह बुनियाद , आत्मिक ,आर्थिक , मानसिक या फिर भावनात्मक जरुरत हो ...पर इनमे से एक के बिना दुनिया में दो इंसानों के बीच कोई रिश्ता संभव नहीं ....
कपिल और रागिनी अपने जीवन रूपी जरूरतों को जोड़ कर अपने जीवन को एक शेप दे चुके है ...दोनों के करीब होते हुए भी एक ना होने की वजह दोनों की अलग अलग प्राथमिकताएँ है ..जब तक दोनों अपनी प्राथमिकताओं से समझौता नहीं करते , तब तक दोनों यूँही एक दुसरे से गिले शिकवे करते रहेंगे ...
इस दुनिया में हर इन्सान अपनी जरूरतों को एक क्रमांक यानी नंबर देकर ही अपने जीवन में रिश्ते बनाता और बिगाड़ता है ....सबकी अपनी अपनी प्राथमिकताएँ होती है ...कुछ लोग रिश्ते बनाने में माहिर तो कुछ अनाड़ी होते है , जैसे की बच्चे लीगो बनाने में ...कुछ लोग दुसरे के बनाये रिश्ते तोड़ने में ही ख़ुशी महसूस करते है ...तो कुछ लोग अपने घर परिवार से रिश्तो को निभाने के आदर्श लेकर उन्हें अपने जीवन में अपनाते है और अपने जीवन को उसी रूप में ढालते है ....
जैसे कुछ बच्चे अपनी पसंद का लीगो बनाने में कामयाब तो कुछ असफल हो जाते है , वैसे ही हममें से कुछ अपने जीवन में अपने रिश्तो को मनचाहा स्वरूप दे पाते है और कुछ बहुत कोशिस के बाद भी कोई ठोस आकर नहीं बना पाते ....
क्योकि हमारी पसंद, जरूरते और प्राथमिकताएँ ही हमारी कामयाबी को तय करती है ...जैसे लीगो बनाने के लिए एक पीस का दूसरे पीस से जुड़ना आवश्यक है , ऐसे ही हमारी जरूरतों और पसंद का क्रमांक अगर सही ना हो तो हमारी जरूरते गलत आर्डर में जुड़ कर बिना शेप की बन कर रह जाती है और हम एक असफल इन्सान ...
इसलिए दुनिया में हर इन्सान अपनी प्राथमिकताओं से ही अपनी जरूरतों को निर्धारित करता है , कोई अच्छा पिता , तो कोई सफल बेटा तो कोई सिर्फ सच्चा प्रेमी बन कर खुश हो जाता है ....
सबकी अपनी अपनी प्राथमिकताएँ और जरूरते है .....ना कुछ सही है ना कुछ गलत ...फर्क इतना सा है की आप जिस शेप को बनाना शुरू करे ..बस उसे पूरी तरह से बना सके , यही कामयाब जीवन का मूलमंत्र है .....
नोट:- यह लेखक के अपने विचार है... किसी के ऊपर कोई भी चीज थोपने की कोशिश नहीं ....
By
Kapil Kumar