Showing posts with label आम सा ख़ास. Show all posts
Showing posts with label आम सा ख़ास. Show all posts

Saturday, 30 January 2016

आम सा ख़ास



कभी तो तुम आम इंसान में भी आम बन जाती हो 
कभी खासो से भी खास बन जाती हो  
ऋतू भी इतनी तेजी से नहीं बदलती 
 जितनी तेजी से तुम अपने मिज़ाज दिखाती हो 
मुझे समझ नहीं आता 
कि  जब यह आम इंसान है तो  
मेरे करीब क्यों नहीं 
अगर यह ख़ास है तो  
इसमें इतनी जिद्द और दूसरी कमजोरी क्यों रही 
इसलिए मैंने तुम्हें 
सिर्फ एक  आम सा ख़ास बनाया है  ।  
ख्यालों  में भी
मेरी बनकर रहना
क्यों तुम्हे पसंद नहीं आया है ?  

By
Kapil Kumar