अभी तक आपने पढ़ा (नारी की खोज भाग –१ और २ में ) ...की मेने बचपन से आज तक नारी की भिन्न भिन्न रूपों को देखा .......
नारी की खोज --- 1
मेरे इस सफर की आगे की कहानी.....गतांक से आगे .......
जीवन का वोह सुहाना सफर था ....आप जवान हो ...आपके साथ खुबसूरत गर्लफ्रेंड हो ....नौकरी आपकी ठीक ठाक चलती हो ...सब कुछ था ....पर ऐसा लगता था जैसे इक खालीपन है ...उस ज़माने में हम दोस्त लोग गर्लफ्रेंड को सहेली बोलते थे ....मेरी सहेली जिसका नाम मीना था ...उसके साथ शाम के कुछ पल बिताने के लिए जो पापड़ में उस ज़माने में बेलता था ...शायद आज के युवा उन्हें पढ़ या सोच कर ही हँसे ......
मैं और मीना इक ही office में थे ....इसलिए हमें बाते करने का अवसर तो मिलता था ...पर उस वक्त किसी और तरह की हरकत करने की हिम्मत ना तो मीना में होती ...ना ही मुझमे ....हम दोनों ऑफिस से बहार कुछ पलो के लिए मिलते ....मीना शाम को ...ऑटो से घर जाती थी ...वोह शाम को ऑफिस से घर जाते वक़्त ...बिच रास्ते किसी पार्क के पास उतर जाती..वंहा मैं उसका इंतजार कर रहा होता ...
वंहा हम दोनों प्रेम के पंछी बन थोड़ी देर गुटर गु करके ...वापस अपने अपने घरो लौट जाते .....इक दिन मेने हिम्मत कर मीना को चूम लिया ....
मेरी इस नापाक हरकत पे वोह बिफर पड़ी और मुझे इक लम्बा सा लेक्चर मोरल , भारतीय संस्कृति और पुरुष समाज को ऊपर दे दिया ...की मैं कैसे उसके शरीर का दीवाना हूँ....इन बातो का मुझे पहले से कुछ अंदाजा था..तो मुझे बुरा नहीं लगा ...पर मेरे होश तब उड़ गए ..जब उसने अपने सेक्स ज्ञान से मुझे परिचित कराया ...
अरे अब मैं प्रिगनेंट हो जाउंगी ....मुझे यह सुन ..हंसी भी आई और उसकी अक्ल पे तरस भी ...मैं बोला किसी कॉलेज में बायोलॉजी पढ़ कर आई हो ...की ....चूमने से औरत प्रिगनेंट हो जाती है ?...फिर मेने जोश में कहा ..
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हद कर दी ...”KK बॉस” की गर्लफ्रेंड और इतनी घटिया नॉलेज ....उसने मुझे सकपकाते हुए देखा .... और बोली .....”KK बॉस”...इसका क्या मतलब ?
मेने कहा वोह भी बतायुंगा...पहले यह बता ...तुझे पता भी है बच्चा कैसे पैदा होता है ? उसपर वोह शर्मा गई और बड़े झिझकते हुए बोली .....
जब आदमी और औरत की शादी होती है .....तब बच्चे होते है .....वाह क्या ज्ञान पाया है ....
फिर मेने पुछा ..अच्छा यह बता ..बच्चा कंहा से होता है ?...इस बात पे उसना बड़ा संजीदा चेहरा बनाया और बोली ....जानते हो मुझे यह बात अभी १/२ साल पहले ही पता चली ...जब दीदी के लड़की हुई और ऐसा कह मीना ने मुझे धीरे से कान में बताया ....की वोह पहले समझती थी ...की बच्चा वंहा से आता है ....
मीना की बात सुन मेरा भेजा घूम गया ....मुझे समझ ना आया ...की वोह दुनिया की सबसे मासूम , अनाड़ी और बेवकूफ लड़की है या मुझे दुनिया का सबसे बड़ा गधा समझ रही है....
कैसे किसी 21/22 साल की लड़की को सेक्स का इतना भी बेसिक ज्ञान ना होगा ??.....पर उसकी इस बात पे मुझे अपने हॉस्टल की कुछ यादे ताजा कर दी ...तभी मीना बोली यह ...”KK बॉस” का क्या चक्कर है ??....उसके इस सवाल पे मैं अपने ...”KK बॉस” बनने की दास्तान मीना को सुनाने लगा ......
अगर आप इंडिया के किसी भी मेडिकल या इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़े है तो यह बात आपको मालूम होगी
....की जब आप इन कॉलेज में नया प्रवेश/ एडमिशन लेते है
...तब पहला महिना फ्रेशेर की रैगिंग का होता है
...
मैं जब कॉलेज पहुंचा ..तो अधिकतर मेरी साथ के लड़के भोले भाले मासूम किस्म के थे या मेरी भाषा में ...
वो नए नए चूजे थे .....जो अपनी मम्मा मुर्गी का हाथ छुड़ा कर...उनके साये से दूर ....अपने घर नाम के दबड़े से पहली बार खुली हवा में आए थे ...
उन्हें ना तो जिन्दगी का और ना ही बाहरी दुनिया की आवो हवा का अता पता था ....अधिकतर डरपोक , दबे झुके से मासूम से बच्चे थे ...दूसरी तरफ हम जैसे कुछ खुर्राट थे ...
जिन्होंने बचपन से ही हॉस्टल की आबो हवा में साँस ली थी ...जिन्हें ज़माने ने ठोकर मार मार कर चलना सिखाया था ....
हर प्रोफेशनल कॉलेज (मेरे समय में )में उन दिनों इक टाइप की रैगिंग बहुत मशहूर थी .....की सारे नए बच्चो को बुला कर नंगा करवा कर उनकी परेड निकल वाई जाती थी....
सब बच्चो को मालूम था ..इक दिन रैगिंग का वोह काला दिन जरुर आएगा ...जब सबके ...कपडे सबके सामने उतरेंगे .....सारे सीनियर बड़ी बेताबी से इस दिन का इन्तजार करते थे ...की कब वोह जूनियर की परेड निकाल कर उनपे अपनी सीनियरटी की परमानेंट धोंस जमा दें ....
इक दिन वोह मनहूस दिन भी आगया ...जिस दिन हॉस्टल में सीनियरस का यह फरमान जारी हुआ ...की आज रात ठीक 12 बजे .. हॉस्टल की सारी लाइट बंद रहेंगी और सब जूनियर सिर्फ अंडरवियर पहनकर हॉस्टल के आंगन में खड़े हो जाये....12 बजने से कुछ समय पहले ..पूरा हॉस्टल गुप्प अँधेरे में डूब गया और कुछ लोग आकर सब जूनियर के कमरों के दरवाजे खडकाने लग गए .....
सारे जूनियर बच्चो को उनके क्लास के रोल नंबर के हिसाब से लाइन में खड़ा कर दिया गया ....कुछ चालू बच्चे इधर उधर छिपे गए थे ....पर उन्हें ढूंड निकाला गया और पकड घसीट कर लाया गया...कुछ रोये चिल्लाये ....कुछ न विरोध किया ...तो बेदर्दी से पिटे भी गए......
थक हार कर सब रात के अंधरे में सिर्फ अंडरवियर में खड़े हो गए ...चारो तरफ गुप्प अँधेरा था ...कोई किसी की शक्ल अच्छे से नहीं देख सकता था ....कभी कभी सीनियर की कडकती और कुछ बच्चो की मिमयाने की आवाज आती थी ......कुछ सीनियर हाथ में टोर्च लिए ताकीद कर रहे थे की कोई बच्चा मिस तो नहीं है ....जो बच्चे लोकल अपने घर भाग गए थे ...उनका नाम ब्लैक लिस्ट में डाला जा रहा था ...उनकी जबरदस्त धुनाई का प्रोग्राम उनने ही बैच के लोगो द्वारा सीनियर ने फिक्स किया हुआ था ....
जब सारे बच्चे आंगन में इकठा हो गए तो ...कुछ सीनियर ने इक जूनियर को अपने पास बुलाया और उसके हाथ में इक स्केल (नापने का फीट्टा) देकर बोला ...अब असली काम शुरू होता है ...
कुछ सीनियर का इक ग्रुप ...हाथ में टोर्च लेकर पहले रोल नंबर के पास पहुंचा ....जूनियर लड़के के हाथ में इक स्केल था.... सीनियर ने जूनियर लड़के के अंडरवियर पे टोर्च मारी और बोला ....डाउन ...उसने निर्देश का पालन किया और उसका अंडरवियर निचे होगया ..साथ वाले जूनियर ने उसे स्केल हाथ में दिया और बोला ...अपना नाप कर बता ...फिर उसकी नपाई को जूनियर द्वारा परख सीनियर ने इक कापी में नोट कर लिया ....
अधिकतर बच्चो ने डर कर अपना नाप शराफत से दे दिया ...तो कुछ ने इक/दो थप्पड़ पे ..किसी ने दो चार पे ...तो किसी का जबरदस्ती नाप ले लिया गया......
कुछ हंस रहे थे..कुछ गुस्से में थे...कुछ रो रहे थे..पर हमाम में सभी नंगे थे ...
जब सबकी नपाई पूरी हो गई ...तो उनमे सबसे ज्यादा लम्बाई वाले को “PLD” (प्रचंड
*** धारी) की उपाधि से और सबसे छोटे वाले को “लुल्ली” की उपाधि से समान्नित किया गया....
जब उन दोनों लडको को अंडरवियर पहना कर रौशनी में लाया गया...तो सब उन्हें देख हैरान हो गए ....जो लड़का देखने में छोटा ,दुबला ,पतला और सा मरियल था ...वोह कॉलेज में हमारे बैच का “PLD” था और जो देखने में लंबा चोडा और हटा कट्टा था ...वोह दूसरी उपाधि पाए हुए था ....
इक का सीना गर्व से और चेहरे पे मुस्कान थी तो दूसरा शर्म से रो रहा था ...यह नजारा देख सब अपनी शर्म , गुस्सा और आक्रोश त्याग उस वक़्त का आनन्द ले रहे थे .....इसके बाद सब जूनियर की नंगे करके हॉस्टल में परेड निकाली गई और सीनियर द्वारा रैगिंग के ख़त्म होने की औपचारिक घोषणा कर दी गई ....
रैगिंग तो ख़त्म हो गई पर ...पर अपने पीछे कुछ खट्टे मीठे अनुभव छोड़ गई ....जो बच्चे कल तक इक दुसरे से शरमाते या झिझकते थे ....अब इक दुसरे से काफी खुल और घुल मिल गए थे ...उस दिन मेने भी जिन्दगी का इक नया सबक सिखा...की ....
आदमी जिसके साथ चाय या कॉफ़ी पीता है...उसे वोह थोडा सा जानता है......जिसके साथ वोह सिगरेट पीता है ...उसके साथ वोह हंस बोल लेता है...... जिसके साथ वोह दारू पीता है ...उसे वोह अपना दोस्त मान लेता है.....पर.....
जिसके सामने आप नंगे हो जाते है ...उसके साथ आपका संबध बहुत गहरा और अन औपचारिक हो जाता है ..शायद यही वजह है ...हॉस्टल की दोस्ती कभी किसी से भुलाये नहीं भूलती ...
जिस बच्चे को “लुल्ली” की उपाधि मिली थी ...वोह उस दिन के बाद से बड़ा संकोची हो गया ...इक दिन यूँही ...जब मैं उसके कमरे में किसी काम से गया तो ......वो बहुत ही दुखी और उदास बैठा था ....
मैं अपने कॉलेज में थोड़े ही समय में काफी पोपुलर हो चूका था ....कुछ हम हाजिर जवाब...तो कुछ पुराने खिलाडी थे ...जो इस तरह की जिन्दगी को पहले जी चुके थे ....
लुल्ली का असली नाम “रोहन था ...वोह मुझसे बड़े झिझकते हुए बोला..... यार मेरी तो जिन्दगी बर्बाद हो गई ....मैं अब पढ़ लिख कर क्या करूँगा? ...मुझे कुछ समझ ना आया ..वोह क्या और क्यों कह रहा है ? .......मेरे कुरेदने पे वोह रोते हुए बोला
......
अरे मेरा कितना छोटा है ...मै कैसे सेक्स करूँगा और कैसे अपनी बीवी को संतुष्ट कर पाऊंगा??....
उसकी बात सुन मेने उसे ऊपर से निचे देखा और जोर से हंसा ....मेरी हंसी देख वोह और रोने लगा ....मै उसे दिलासा दिया और समझाते हुए बोला ...तुझे यह सब कैसे पता ? उसपे उसने मुझे सडक छाप कुछ इश्तिहार दिखाए ....उन्हें देख मै उसे समझाते हुए बोला ...देख यह सब निम हाकिम है !!......तुने अपनी बीमारी में आज तक दवा किस से ली है....किसी डॉक्टर से या हाकिम से? ...वोह बोला हमेशा डॉक्टर से ली ...तो फिर इन हाकिमो की बातो में क्यों अपने टसुये बहा रहा है ....मेने उसे समझना शुरू किया ..देख...
जिस तरह किसी की टांग बड़ी...किसी की छोटी ...किसी का हाथ बड़ा या छोटा ...या किसी का कद तो ...ऐसे ही यह भी शरीर का इक अंग भर है ...जो कुदरत ने सबके लिए अलग अलग साइज़ का बनाया है ...अब वोह किसी से बड़ा या छोटा है .....उसका कोई अर्थ नहीं!!!....
इसपे वोह बोला ....पर ...मेने तो सुना है ......की जिसका जितना बड़ा होता है उतना ही अच्छा होता है .....मै बोला अच्छा यह बता ...की....
अगर तू कद में लम्बा हो तो.... क्या ज्यादा तेज और देर तक दौड़ेगा?.....
कद का दौड़ने से कोई ताल्लुकात है या नहीं ?....उस पर वोह बोला.. नहीं...
यह तो दोड़ने वाली की प्रैक्टिस, मेहनत और शरीर पर निर्भर करता है...की वोह कितना तेज और कितनी दूर दौड़ सकता है ....
मेरे काफी समझाने पे... उसे मेरी दलील समझ आई और उसने अपने आंसू पोछे.....पर मेरे दिल के कोने में यह बात अटक कर रह गई ....की वास्तव में “साइज़ इज मेटर” का फोबिया क्यों और कैसे है? .....
उस दिन के अनुभव के बाद ..मेने जीवन में इक बात अच्छे से समझी की मर्दों के लिए दुनिया का सबसे बड़ा ,कॉमन और पोपुलर काम्प्लेक्स या फोबिया या मनो ग्रंथि यह है
....की...“हर पुरुष यह सोचता है
...उसका पुरुष वाला भाग ..दुसरे पुरुष के मुकाबले छोटा है....क्या वोह औरत को पूर्ण संतुष्टि दे सकता है या नहीं?
“........
कितनी बड़ी विडंबना है ...की ....जो नारी पुरुष को कामी , दुराचारी और हवस का दरिंदा बोलती है ....वही पुरुष सारी जिन्दगी इस ग्रंथि , मानसिक वेदना और डर में जीता है ...की ....क्या वोह अपनी फीमेल पार्टनर या पत्नी को सेक्स में पूर्ण संतुष्टि दे सकता है या नहीं ?......
शायद यह फोबिया या ग्रंथि नारी ने मर्दों के अंदर उनकी नकेल कसने के लिए डाली.....की कैसे इक कमजोर प्राणी(नारी) अपने से कई गुना ताकतवर जानवर(पुरुष) को मानसिक रूप से कमजोर बना कर अपने वश में रखे ......
शायद जब इक औरत किसी मर्द से “साइज़ इज मेटर” कहती है ...तब वोह अपने अंदर की उस अबला औरत के जुल्मो का प्रतिशोध ले रही होती है ...जो उसने इस पुरुष प्रधान समाज से पाए होते है .....
मेरे इस ज्ञान की खबर हॉस्टल में आग की तरह ना जाने कैसे फ़ैल गई?? ....कुछ लड़के जो जवानी का लड़कपन करते थे ...ढके छिपे मुझसे अपनी परेशानी का हल मांग लेते और मैं भी अपनी दादागिरी और झूटी शान में उन्हें इक से बढ़ कर इक बाते बताता ..देखते ही देखते मेरा नाम कॉलेज में “KK बॉस “ के नाम से प्रसिद्ध हो गया ....
कॉलेज में मेरा इक बहुत अच्छा दोस्त था ..जिसका नाम था सुनील त्रिपाठी ...जिसे हम सिर्फ त्रिपाठी कह कर पुकारते थे ...इक दिन बातो ही बातो में वोह बोला ...यार घुटनों में बड़ा दर्द हो रहा है ....मैं बोला क्या हुआ ..तो उसने झिझकते हुए कहा .....यार इस बार छुट्टियों में किसी औरत के साथ जमींन पे ही सो गया या ...उस जोश में घुटने फूट गए ...साले दर्द कर रहे है ....
उसकी बात सुन मुझे बड़ा झटका लगा .....मैं बोला ..अबे तू इतनी सी उम्र में वेश्या के पास चला गया ??
मेरी बात सुन वोह जोर से हंसा और बोला ...तो तू कौन सा दूध का धुला है ? तू भी तो इन सब कामो में एक्सपर्ट है...तभी तो तुझे यह सब पता है ... की ...अब चोंकने की बारी मेरी थी ...जिस ज्ञान के बल मैं आज तक कूद रहा था ...की कॉलेज में मेरा नाम है हूँ ...असल में वोह तो बदनामी थी.... .जो आग की तरह .....हर तरफ फ़ैल चुकी थी ...मेने अपना सर पकड लिया ...उस दिन पता चला ....क्यों .....
भारत के समाज में सेक्स के ऊपर बाते करना आवंछित है ...आप जिस किसी का भी इस मामले में भला करोगे ...वोह ही लोग आपको ही पीठ पीछे ग़लत और गंदा इन्सान बोलेंगे!!....
अब तो तीर कमान से निकल चूका था ...मेने उसे समझाया....
भाई मेने सिर्फ थ्योरी पढ़ी है ...प्रैक्टिकल नहीं किया ...उसके लिए लैब कभी मिली ही नहीं!! ...
मेरे लाख कसम खाने के बाद भी त्रिपाठी को मेरी बात पे विश्वास ना हुआ ....की......
कैसे इक लड़का ...जिसने आज तक किसी नारी को छुआ तक नहीं....वोह कैसे नारी के बारे में इतनी गूढ़ बाते जान सकता है?? .....
अब जब हम बदनाम हो गए ....तब समझ आया ...की लड़कियां क्यों मुझे देख कर अपना सर झुका लेती है ....कुछ लडकियों के चमचो ने हमारे ज्ञान की चर्चा ...कुछ और अंदाज में गर्ल्स हॉस्टल में भी कर दी थी .....
मेने त्रिपाठी से कहा.... यार ...यह तो बड़ा ग़जब हो गया ...
साला हमने होटल में पानी भी नहीं पिया और दुनिया दावत खा-पी कर बिल हमारे नाम का काट गई !!!
त्रिपाठी... बोला ...बॉस इस बार की गर्मी के छुट्टी में मेरे साथ घर चलो..... तुम्हे भी प्रैक्टिकल करा ही दे और ऐसा कह उसने अपने खींसे निपोर दिए ...मेने भी ज़ी कडा करके इस बार की गर्मियों में उसके गावं जाने का वादा कर दिया ....त्रिपाठी बोला..इक बात सच सच बता.... तुझे इतना सब कैसे मालुम है ?
त्रिपाठी की यह बात सुन मैं उसे अपने बचपन के उस दौर में ले गया ....जब मेने बचपन में और बच्चो की तरह ....बालभारती/चंपक/नंदन/लोटपोट और कॉमिक्स की जगह .....
डॉक्टर कोठारी की “सेक्स और समस्याए” पढनी शुरू की थी .......क्रमश :
By
Kapil Kumar
Kapil Kumar
Note: “Opinions
expressed are those of the authors, and are not official statements.
Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.' ”
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