शायद शीर्षक देख आप में से कुछ लोग चोंके ..पर जीवन में हमने तरह तरह के दाता सुने जैसे कोई धन , जानवर (गाय , बकरी , घोडा ) , वस्त्र , जमींन , शेयर ,धातु , गहने आदि आदि दान में देता है और हमारे समाज में तो लड़की भी दान में दे दी जाती है जैसे देवदासी , और कई तरह की कुमारी या नन ...जो भगवान या गॉड की सेवा करने में अपना जीवन अर्पित कर देती है ...
शायद तरह तरह के भिखारी भी सुने हो ...खेर भिखारी थोडा तीखा शब्द हो जाता है इसे मेने जरूरतमंद से बदल देता हूँ .... मतलब तरह तरह के जरूरतमंद ....जो इस तरह का दान बड़े हंसी ख़ुशी ले लेते है ....अब इससे क्या फर्क पड़ता है की दान लेने वाले ....इन्सान , संस्थान या पूजा करने के स्थल हो..... कहने मतलब की इक दान देने वाला जिसे मैं दाता और दूसरा लेने वाला जिसे मैं जरूरतमंद कहता हूँ ...
अब यह अलग बात है कुछ दान मज़बूरी में , कुछ ख़ुशी से ..तो कुछ भगवान को प्रसन्न करने के लिए और कुछ अपनी श्रधा के कारण दिए जाते है ...पर लेने वाला इन्हें कभी ना नहीं करता .... शायद उन्हें इनकी हमेशा जरुरत रहती है ...
खेर ,इक दिन ऐसी घटना हुई जिसने मुझे सोचने पे मजबूर कर दिया ...क्या मैं भी इक जरूरतमंद या भिखारी हूँ ?
इक दिन रोजाना की तरह मैं अपने दोस्त अनिल के साथ मेट्रो से आ रहा था ..तो उस वक़्त रास्ते में देखा की ..इक हट्टा कट्टा आदमी पैर पसारे रास्ते बैठा था ..उसके पास इक डब्बा रखा था ..जिसपे “हेल्प” लिखा था ...मेने उसे देखा और मुंह बिचका कर अनिल से बोला ..देख कितना कामचोर है ...साला भीख भी मांग कर नहीं ले सकता ?
अनिल ने मुझे देखा और अपनी जेब से कुछ सिक्के निकाल कर उसके डब्बे में डाल दिए ... मुझे अनिल की यह हरकत बड़ी नागवार गुजरी .... मेने उससे लगभग लड़ते हुए कहा ..अरे उस हरामखोर को तूने पैसे देकर कामचोर और आलसी बना दिया ...
अनिल ने मुझे ऊपर से निचे घुरा और बोला ..मेने उसे सिर्फ वोह दिया जो मेरे पर फालतू था .... मुझे सिक्के जेब में खटक रहे थे और उसे उसकी जरुरत थी ....मेने उसे दे दिया अब इसे क्या फर्क पड़ता है की वोह कामचोर है या आलसी ? वैसे भी उन कुछ सिक्को से उसका पूरा काम तो नहीं चलेगा ...पर उसे उम्मीद रहेगी ..की उन सिक्को को देख और लोग भी शायद कुछ दे दे ...
दान देते वक़्त लेने वाला नहीं देखा जाता ...सिर्फ दे दिया जाता है ..उसके बारे में ज्यादा सोच विचार नहीं किया जाता ...अब इतने सारे दान रोज दिए जाते है ..क्या वोह सब लोग , संसथान और धार्मिक स्थल वाकई में जरूरतमंद होते है ?
लोग किसी धार्मिक स्थल को दान देते है या किसी को बचा कूचा भोजन या पुराने कपडे देते है ... क्या सब वोह इनके बिना नहीं रह सकते .....हम कई बार उसे दान नहीं सिर्फ अपना फालतू सामान समझ कर भी लोगो या संसथान को दे देते है और कई बार अपनी ख़ुशी से ...तो कई बार मज़बूरी में ..तो कई बार पुण्य कमाने के लालच के लिए देते है ...
अनिल बोला ..अच्छा चल देखते है की तू भी भिखारी है या नहीं ? मैं बोला अरे मैं भिखारी क्यों होता ? वोह हंसा और बोला अरे भिखारी नहीं बस जरूरतमंद समझ ले या इसे कह ले की तुझे भी किसी चीज की जरुरत है और वोह कोई तुझे मुफ्त में दे तो तू लेगा या नहीं ??.....
मैं बोला मैं क्यों लूँगा ..वोह हंसा और बोला.... अरे थोडा धैर्य रख ....अभी तो बहुत दूर जाना है ...और फिर हुई मेरे जीवन की इक अलग और थोड़ी से अजीब तर्क वितर्क की यात्रा .....
अनिल बोला ..तो बता ..क्या तू जीवन में खुश है? .. मैं बोला हाँ ...बस थोडा घर से परेशान हूँ ....तुझे तो सब मालूम है ..मेरी बीवी कैसी है और वोह अपने पत्नी वाले दायित्व सही ढंग से नहीं निभाती ....
अनिल बोला अच्छा जब तेरे घर खाना नहीं होता ..तब तू क्या करता है ? मैं बोला कभी अपने हाथ से बना लेता हूँ ..जब मूड ना हो तो बहार खा लेता हूँ ...उसने इक जम्हाई ली और बोला ....
अगर तेरी बीवी तुझे स्त्री सुख ना दे तो ?मैं बोला ठीक है .... मैं अपना काम किसी और तरीके से चला लेता हूँ ..वोह हंसा और बोला ...तू खाना खाने की तरह उसे बहार क्यों नहीं धुन्ड़ता?
मैं बोला ..अरे क्या बात कर रहा है ..अब ऐसे काम बहार करूँगा तो बीमारी लग जायेगी और अपनी भी कोई नैतिकता है या नहीं ?
अनिल बोला ..देख यही फर्क है ..तू बहार खाना खा लेता है ..क्योकि तू बनाना नहीं चाहता ...पर तुझे मालूम है की बहार के खाने से बीमार पड सकता है ..पर वोह रिस्क तू ले लेता है ..पर बहार की स्त्री का सुख नहीं लेता ..उसे नैतिकता से देखता है ...
पर कोई अगर तेरे पास चलकर आए तो ...तू क्या फिर नैतिकता का भाषण देगा ....मैं बोला ..मैं समझा नहीं ? वोह बोला... कोई कमसिन खुबसूरत लड़की खुद चलकर आए तो ..तब ...मैं बोला ...उसे भला मैं क्यों मना करूँगा ?...
अनिल बोला बस यही फर्क है ..कोई इन्सान किसी को कुछ न कुछ दे सकता है और दूसरा इन्सान किसी से कुछ ना कुछ ले सकता है ...हर इन्सान को हमेशा कुछ न कुछ देने या लेने की जरुरत होती है ...अब तुझे कोई भोजन दे या कपडे दे ..तू वोह किसी से ना लेगा ...क्योकि उसकी तेरी नजर में कोई कीमत नहीं ....पर कोई तुझे गाडी दान में दे तो शायद उसके लिए तू मन ना करे ..अगर कोई अपनी फैक्ट्री दान में दे तो तू मना तो क्या करेगा ?
कहने का अर्थ यह है ....की भिखारी तो हम सब है ..बस हमें हमारी जरुरत के दाता नहीं मिलते ..जो हमें हमारी जरुरत के हिसाब से दान दे सके .... मेरी नजर में भी तू इक हटा कट्टा भिखारी है ..जो अपना कटोरा लिए बैठा की ..आए कोई उसमे कुछ डाल कर चला जाए ...अब चोंकने की बारी मेरी थी ....मैं बोला भला उस कामचोर और मुझमे क्या समानता ?
अनिल हंसा और बोला ..बहुत बड़ी समानता है ...पर तू उसे देख और समझ नहीं पा रहा और शायद तुझे मुझ जैसा दाता भी नहीं मिला... जो तुझे बेपरवाह कुछ सिक्के दे दे ...अब मुझे गुस्सा आगया.... मैं बोला तेरा दिमाग ख़राब है ...उसने इक गहरी साँस ली और बोला ......
तू भी जीवन में कितनी चीजो के लिए तरस रहा है ..जैसे प्रेम के लिए ...क्या तू नहीं चाहता की कोई तुझे भी प्रेम करे ?... तुझे स्त्री सुख मिले ....पर उसे पाने के लिए तू क्या करता है ? कुछ भी नहीं ...ना तू बहार कंही आता ..ना जाता ...बाजारू औरत के पास तू जाना नहीं चाहता ..और कोई तुझसे प्रेम करे ऐसी मेहनत तू करता नहीं ...अब तू देखने में भी ठीक ठाक , अच्छा कमाने वाला ...फिर भी तू कुछ नहीं कर रहा ...बस अपना वक़्त उस इंतजार में काट रहा है ...की कोई आए और तुझे कहे की उसे तुझसे प्रेम है ...अब तेरे में और उस भिखारी में क्या फर्क है ?
उसे पैसे चाहिए ..वोह भी बिना मांगे और बिना मेहनत किये ..ऐसे ही तुझे भी प्रेम चाहिए ...अब तक कोई तेरे पास चलकर आई नहीं ...मतलब तेरे प्रेम के कटोरे में अभी कुछ पड़ा नहीं ...अब मेने तो उस भिखारी के कटोरे में ,कुछ सिक्के डाल दिए ..अब कोई सुन्दर स्त्री तेरे से कुछ मीठी मीठी बाते करे तो यह उसका.... तेरे जीवन में प्रेम के कुछ सिक्के डालना जैसा ही होगा ...
अब मुझे अनिल की बात समझ आई ..फिर मेने जब अपनी स्थिति का जायजा लिया तो मुझे भी लगा की.... मैं भी अपना प्रेम का कटोरा लिए जीवन में यूँही बैठा हूँ ...की कोई दानवीर सुन्दर स्त्री अपने प्रेम की कुछ बुँदे मेरे जीवन के डब्बे में डाल दे ....
मेने भी ठान लिया की .... मैं भी आज से प्रेम की भीख आवाज लगा कर मांगूंगा ...शायद कुछ और दाता का ध्यान मेरी तरफ चला जाये और शायद कोई रूपवान स्त्री अपने योवन के खजाने में से प्रेम का कुछ दान मुझे भी दे दे ?
इस दुनिया में मुझ जैसा भिखारी भी शायद ही कोई हो ....जो इतनी बेशर्मी से प्रेम का दान मांग रहा है ...वोह भी भी जोर जोर से आवाज लगाकर ...
अरे देवी .... कोई अपनी प्रेम की इक रात ही दान में दे दो .... वोह न हो सके तो ... कुछ मीठे मीठे चुम्बन दान में दे दो ...अरे यह ना हो तो कम से कम अपनी जवानी के दर्द का बोझ हल्का कर ...अपने कुछ मोहक स्पर्श या कुछ बड़े बड़े हग दे दो .......
भगवान आपका भला करे ..आपको इक काठ का उल्लू और खूब धनवान पति या प्रेमी इस जीवन में नहीं तो अगले जीवन में जरुर मिले ...
अब किस्मत की बात की शायद कभी किसी हसीना का दिल पसीज जाए और दान में मुझे भी कुछ ऐसा मिल जाए की मेरी दिवाली हो जाए ....
By
Kapil Kumar
Note: “Opinions
expressed are those of the authors, and are not official statements.
Resemblance to any person, incident or place is purely
coincidental.' Do not use this content without author permission”
No comments:
Post a Comment