मेरे इन आंसुओ की, कुछ कीमत तो लगाओ ... मेरे इन आंसुओ की, कुछ कीमत तो लगाओ ... वोह दिन रात बहते है जिसके लिए .... उसे इक बार , मेरे पास तो बुलाओ ... मेरे इन आंसुओ की, कुछ कीमत तो लगाओ ...
मेरे टूटे दिल के टुकड़े , यूँ जमींन पे ना फैलाओ.... बहुत नाजुक है पावं उसके , वोह उनसे कंही छिल ना जाए .... उन्हें उसके पावं के निचे से हटाओ ...... मेरे टूटे दिल के टुकड़े , यूँ जमींन पे ना फैलाओ....
मेरे बिखरे सपनो को , यूँ फिर से सजाओ .... सोती है वोह गहरी नींद में .... उसे , उन्हें जी भरके दिखाओ ... मेरे बिखरे सपनो को....
मेरे दर्द के किस्से , खुलेआम यूँ मत सुनाओ .... झूम रही है अभी वोह , उमंगो की तरंग में .... उसे भूले से भी मत रुलाओ ..... मेरे दर्द के किस्से....
मेरे जीवन के पतझड़ को , उससे दूर कंही ले जाओ
.... वोह नाच रही है सावन के मौसम में ..... उसकी जीवन की महकती बगिया को , मुझ जैसे पतझड़ से बचाओ ...
मेरी नाकाम मोहब्बत के अफसाने ,उसे मत सुनाओ .... अभी भी खिली हुई है , उसकी जवानी .. उसकी बहार को , यूँ मत रुलाओ... मेरे इन आंसुओ की, कुछ कीमत तो लगाओ .....
Kapil Kumar
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