अपने उजड़े दिल का कारवां लिए जा रहा हूँ .... मैं तेरे शहर से बहुत दूर जा रहा हूँ .... मेरी बदनसीबी की परछाई भी ना होगी मयस्सर .... इसलिए तेरी नजरो से दूर जा रहा हूँ .... मैं तेरे शहर से ......
तेरी महफ़िलो के जले चिराग दिन और रात ... हर दिन तुझे मिले खुशियों की नयी सौगात ... ऐसी आरजू , मैं किये जा रहा हूँ ..... मैं तेरे शहर से ......
मेरी बेवफाई को तू , कुछ भी नाम दे देना .... भले ही मुझे कायर या हैवान कह देना ... अपनी मोहब्बत का खून अपने ही हाथो किये जा रहा हूँ ... मैं तेरे शहर से ......
तेरा महबूब , तुझे पलकों के झूले पे झुलाये ..... तेरे पांवों के निचे वोह फूलो की सेज सजाये .... करे इतनी मोहब्बत की, लैला भी देख जल जाए .... ऐसी खाव्हिशो का तोहफ़ा दिए जा रहा हूँ ... मैं तेरे शहर से ......
अब कभी तुझे , मेरी कमी ना महसूस होगी .... तू हर पल अपने महबूब की बांहों में रहेगी .... मोहब्बत की मय्यत की नज्मे गा रहा हूँ .... ऐसी दुआ मैं बस किये जा रहा हूँ .... मैं तेरे शहर से .....
कर दूंगा यह जिन्दगी तन्हाईयो के हवाले .... काट लूँगा वक़्त तेरे इंतजार में बीते हुए पलो के सहारे ..... अपनी नाकाम मोहब्बत के साथ जा रहा हूँ ... मैं तेरे शहर से .....
By
Kapil Kumar
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