
बहुत आसान है, किसी से यूँ ही रूठ जाना... हंसी खेल है ,अपनी बातों से मुकर जाना ...
कभी गुजरोगे जब इन रास्तो पे , तब याद आएगा अपना फ़साना....
थक गया चल चल कर उन रास्तो पर , जिन पे किसी मंजिल का आसरा नहीं होता ....
जहां कभी जन्मी ही ना थी मोहब्बत , वहां नफरत का भी निशां नहीं होता ..... दुनिया से छिप छिप कर ढक रहा हूँ, अपने सड़ते रिसते जंख्मो को अभी भी …
सींच रहा हूँ उन रिश्तो को भी ,जिनके ठीक होने की कोई आस नहीं भी .... यदि होती किश्ती कागज की भी , तेरे साथ यह जिंदगी का सागर तर लेता ....
यह तो सिर्फ दिल्ल्गी की बात है , की मेने रंजिश तुमसे की है ....
मेरी इबारतों पे जरा गौर फरमाना , जिसमे सिर्फ तेरी ही इबादत की है .... कैसे तोड़ेगा वह दिल किसी का , जो समेट रहा हो टुकड़े ही अपने दिल का....
फिर भी इल्जाम मुझपर , की मैंने ही बेवफाई की है ...
कसमें वादे निभाने के लिए , सिर्फ एक शख्स ही काफी नहीं होता ,
गर तूने भी की होती मुझसे मोहब्बत ,
फिर , तेरे मेरे बीच ,यह पत्थर का आइना नहीं होता .
कभी गुजरोगे जब इन रास्तो पे , तब याद आएगा अपना फ़साना....
थक गया चल चल कर उन रास्तो पर , जिन पे किसी मंजिल का आसरा नहीं होता ....
जहां कभी जन्मी ही ना थी मोहब्बत , वहां नफरत का भी निशां नहीं होता ..... दुनिया से छिप छिप कर ढक रहा हूँ, अपने सड़ते रिसते जंख्मो को अभी भी …
सींच रहा हूँ उन रिश्तो को भी ,जिनके ठीक होने की कोई आस नहीं भी .... यदि होती किश्ती कागज की भी , तेरे साथ यह जिंदगी का सागर तर लेता ....
यह तो सिर्फ दिल्ल्गी की बात है , की मेने रंजिश तुमसे की है ....
मेरी इबारतों पे जरा गौर फरमाना , जिसमे सिर्फ तेरी ही इबादत की है .... कैसे तोड़ेगा वह दिल किसी का , जो समेट रहा हो टुकड़े ही अपने दिल का....
फिर भी इल्जाम मुझपर , की मैंने ही बेवफाई की है ...
कसमें वादे निभाने के लिए , सिर्फ एक शख्स ही काफी नहीं होता ,
गर तूने भी की होती मुझसे मोहब्बत ,
फिर , तेरे मेरे बीच ,यह पत्थर का आइना नहीं होता .
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Kapil
Kumar
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