करता रहा इन्जार जिनके आने का अक्सर , ना जाने क्यों ,वोह ही मुंह मोड़ के चले गए... बीच राह में अक्सर, लोग मुझे अकेला छोड़ के चले गए ....
जब उम्र थी मेरी भी, किसी का हाथ पकड कर चलने की.. ऐसे वक़्त में भी मेरे हमदम, अपना हाथ झटक कर चले गए ......... बीच राह में अक्सर, लोग मुझे अकेला छोड़ के चले गए ....
कसमे वादे खाए थे जिसके लिए, वोह भी वक़्त आने पे बेगाने हो गए ... वादा किया था जिसने भी, कभी ना साथ छोड़ने का .... वोह भी जाने अनजाने में, मेरा दिल तोड़ के चले गए .... बीच राह में अक्सर, लोग मुझे अकेला छोड़ के चले गए ....
बनाया था मांझी जिस को, जीवन की नाव चलाने के लिए ... पकड़ा दी थी उसे दिल की पतवार, उम्र का सागर पार कराने के लिए ..... ऐसी बेवफाई हुई उनकी ,वोह नाव को किनारे पे ही डुबो के चले गए
....... बीच राह में अक्सर, लोग मुझे अकेला छोड़ के चले गए ....
रिश्तो की बैसाखी को भी ,पकड़ा रहा कई बरस तक यूँ कस कर .... सोचा था कर लूँगा इसके सहारे ही, अपना सफर कुछ कुछ घिसट कर .... बदनसीबी की बारिश इस पे भी,कुछ हुई भी जरा जमकर ... जिन्हें चलना सिखाया था हमने कभी ऊँगली पकड़कर.... वोह ही मेरी बैसाखी तोड़कर चले गए..... बीच राह में अक्सर ,लोग मुझे अकेला छोड़ के चले गए
हिमाकत की फिर से मेने, की उम्मीदों का चिराग जला लिया ... अपनी अंधी आँखों में मेने, किसी अजनबी नूर को बसा लिया .... जब पड़ी जरूरत उसकी मुझे , अंधियारे से निकलने के लिए ... ना जाने क्यों वो भी , अपनी चमक बुझा कर चले गए ..... बीच राह में अक्सर लोग मुझे अकेला छोड़ के चले गए ....
By
Kapil Kumar
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