कपिल ,का बुड्ढा , जर्जर शरीर , जो मात्र एक कंकाल का ढेर था ........ बिस्तर के एक कोने पर सिमटा सा पडा था... डॉक्टर आकर उसे अपनी तरफ से आखिरी बार देख चूका था और इशारों ही इशारों में वह उसकी आने वाली मृत्यु का संदेशा दे गया था ।.....
कपिल ने जोर से एक गहरी साँस ली और जोर से आवाज लगाई..... "रागिनी"... “रागिनी”! वह अपने लम्बे लम्बे काले रेशमी बालो को नहाने के बाद तौलिये से फटकार रही थी..... की उसके कानों में कपिल की आवाज पड़ी...वोह दौड़ती हुयी आई और बोली .......कैसे हो जी, उसने कपिल का हाथ अपने हाथों में ले लिया और बोली..... सब ठीक हो जायेगा!...
कपिल ने संतुष्ट भाव से एक फीकी मुस्कान से उसे निहारा और यमराज के साथ जाने की तैयारी शुरू कर दी । उसकी आँखे मुड़ने से पहले, उसे उस अतीत में ले गई.... जब उसका, रागनी से पहला परिचय हुआ था!! .......
अचानक किसी के खिलखिलाने की आवाज सुन, निढाल और निश्चल बैठा कपिल का मन, जैसे चौंक उठा ..उसे लगा !
जैसे कोई झरना अपना अस्तित्व पहाड़ो से तुड़ाकर, इस गली में ले आया हो !!.....
जब उस नवयौवना ने बड़ी ही मीठी झिडकी में उस बच्चे को डांटा .... तो...ऐसा लगा जैसे किसी मधुर अमृत वाणी की बौछार हो गई हो।.....
उसने उत्सुकतापूर्व जब अपनी खिड़की से बहार झाँका तो पाया, सामने वाले बंगले के आँगन में एक युवती किसी बच्चे से खेल के ऊपर झगडा रही थी। अचानक युवती ने बच्चे के पीठ पर एक धोल जमायी और हिरणी की भांति कुचालें मार कर घर के अन्दर भाग गई । बच्चा उसके पीछे पीछे दीदी दीदी कहता हुआ चला गया ।युवती तो चली गई पर न जाने उसकी इस भोली हरकत ने.....
कपिल की रेगिस्तान जैसी जिन्दगी में सावन के आने की घोषणा सी कर दी !!!!!.......
रोज किसी न किसी बहाने कपिल उसे कनखियों से निहार लेता । एक दिन जब वह अपनी पत्नी से झगड़ कर अवसाद सा मन लिए अपने घर की छत पर आया ....तो छत पर... उस युवती को यूँही टहलते पाया ।...आज, पहली बार उसे युवती को नजर भर देखने का मौका मिला ।......
वह 20 या 22 वर्षीय एक सांवले से रंग की ऊँचे कद की युवती थी ...... उसके नयन नखस तीखे , आँखे मृगनयनी जैसी ,गर्दन सुराहीदार और काया छररी थी । उसके पतले पतले नाजुक होंठ गुलाब की पन्खुडी की भांति प्रतीत होते थे......... उसके कमर तक फैले काले रेशमी बाल एक नागिन की भांति उसके सुराहीदार गर्दन से होते हुए उसके वक्षस्थल को ढकते हुए नाभि के पास आकर लहरा रहे थे ।उसकी सांवली त्वचा धुप में सोने की तरह चमक रही थी ।
उसके हलके गुलाबी कपोल एक छोटा सा उभर लिए थे...... जिस पर वह , जब मंद मंद मुस्कुराती तो उसके गालो में पड़ने वाले छोटे छोटे गड्ढे किसी का भी चैन लुटने के लिए तैयार बैठे जाते.... उसका उभरा वक्षस्थल ,नाजुक पतली सी कमर और भरे हुए कुल्हे उसके पूर्ण रूपवती होने की घोषणा कर रहे थे ।……
ना जाने.... उसके निर्दोष सौंदर्य में क्या जादू था की कपिल उसे टक टकी लगाये देखता रहा ।
अचानक से किसी की चुभती नज़रों को देख युवती शरमा कर वहां से भाग गई । अचानक उसके जाने से कपिल के मन को ग्लानि हुई की एक शादीशुदा होते हुए ! वह क्यों? किसी परायी स्त्री को घूर रहा था । घर में आकर भी न जाने क्यों कपिल का मन उस युवती के सौंदर्य के वशीभूत हो बार बार उसके अक्स का ख्याल ले आता । कभी कभी वह युवती, जब अपने आँगन में गुनगुनाती तो कपिल के कानो में, ऐसा स्वर आता जैसे के वीणा के तार एक मीठी धुन बजा रहे हो .......
अचानक से किसी की चुभती नज़रों को देख युवती शरमा कर वहां से भाग गई । अचानक उसके जाने से कपिल के मन को ग्लानि हुई की एक शादीशुदा होते हुए ! वह क्यों? किसी परायी स्त्री को घूर रहा था । घर में आकर भी न जाने क्यों कपिल का मन उस युवती के सौंदर्य के वशीभूत हो बार बार उसके अक्स का ख्याल ले आता । कभी कभी वह युवती, जब अपने आँगन में गुनगुनाती तो कपिल के कानो में, ऐसा स्वर आता जैसे के वीणा के तार एक मीठी धुन बजा रहे हो .......
यूँही एक दिन बातों ही बातों में उसकी पत्नी ने बताया की सामने कोई नवविवाहित जोड़ा रहने आया है । उसका पति किसी अखबार में काम करता है और युवती का नाम "रागिनी " है ।जैसा नाम वैसे ही गुण यह सोच कपिल मन ही मन बुदबुदाया.....
अक्टूबर की हलकी ठंडी के वक़्त, एक अलसाई सी दोपहर का वक़्त था कपिल अपने घर के आँगन में कुर्सी डाले किसी किताब में मग्न था ।की उसके कानों में अचानक एक सुरीली आवाज आई ।....
क्या आपकी पत्नी घर पर है ?जब कपिल ने नजर घुमा कर देखा तो उस युवती को ,जिसका नाम रागिनी था अपने सामने खड़ा पाया । वह बोला, वह किसी काम से बाजार गई है । कपिल ने युवती से उसके आने का कारण पुछा, तो, उसने कहा , उसके घर में गैस ख़तम हो गयी है और नया सिलिंडर उसे लगाना आता नहीं है.... तो क्या वह ....उसके घर आकर यह काम कर देगा ।
अँधा क्या चाहे दो आँखे वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए... कपिल ने कहा, चलिए मैं आपकी मदद कर देता हूँ ।ऐसा कह कपिल युवती के पीछे पीछे उसके घर चल दिया, किचन में जाकर उसने खाली सिलिंडर को अलग कर, भरा हुआ सिलिंडर चुल्हे में लगा दिया। रागिनी ने उसे धन्यवाद दिया।.....
पड़ोसी औपचारिकता के नाते उसने कपिल से चाय के लिए पूछ लिया और कपिल का बावरा मन सही ग़लत का ख्याल किये बगैर हाँ कर बैठा....रागिनी . उसे बैठक में बिठा, किचन में चाय बनाने चली गई | कपिल खाली इधर उधर नजरे घुमाने लगा तो उसने कमरे में एक अलमारी में ढेरों साहित्य की किताबें और साथ में कई तरह की नयी नयी वैज्ञानिक खोजों से सम्बंधित किताबों का एक विशाल संग्रह देखा ।.....
रागिनी हाथ में चाय की ट्रे लेकर आई तो उसका ध्यान भंग हुआ । चाय की चुस्की लेते लेते दोनों बातो बातो में मशगुल हो गये , दोनों ने साहित्य , विज्ञान , अध्यात्म न जाने कितने ही विषयों पर गहरी चर्चा की , ऐसे लगता था जैसे दो आत्माए आज अपना परिचय कर रही हैं ... अचानक कालबेल के बजने से दोनों का ध्यान भंग हुआ , भारी कदमों की आवाज के साथ , एक आदमी घर के अन्दर आया । उसने प्रश्नचिन्ह निगाहों से कपिल और युवती को घूरा । युवती ने हडबड़ा कर उस आदमी से जो की उसका पति था कपिल से यह परिचय कराया ।......
यह मेरे पति अशोक है ।और यह हमारे सामने वाले घर में रहते हैं जिन्होंने आज मेरी मदद सिलिंडर को चुल्हे में लगाने में की ... अशोक ने बड़े ही रूखे ढंग से कपिल से हाथ मिलाया और बिना कुछ कहे अन्दर चला गया । न जाने क्यों ....कपिल को लगा रागिनी अन्दर ही अन्दर कुछ डरी डरी सी है ।.....
कपिल ने रागिनी से विदा ली और वहां से वापस अपने घर आ गया पर लगता था अपना दिल “रागिनी " के पास छोड़ आया!....अगले कुछ दिनों तक कपिल को फिर उस रागिनी के दर्शन नहीं हुए|.....प्रेम ....किसी सीमा-बंधन, देश,मजहब,आयु ,जात पात और उम्र से बंधा नहीं होता ....वह तो एक बिंदास , आजाद , बेख़ौफ़ ,अल्हड मस्त मौला है ..... कपिल का रागिनी से सामना यदा कदा कभी सब्जी वाले के ठेले पर , कभी दूध के बूथ पर तो कभी यूँही सडक पर निकलते -जाते हो जाता!....
दोनों एक दूसरे को अंजान समझ आगे तो बढ़ जाते पर हमेशा पीछे कुछ छूट जाता , उनका प्रेम... बिना किसी भाषा के, मिलन के बावजूद, दिन पर दिन गहरा होता गया..... एक बीमार होता तो ना जाने कैसे दूसरा बैचेनी महसूस करता.... एक मुस्कराता तो दूसरा खुद ब खुद खिल खिला उठता!!...न जाने किस आकर्षण के तहत दोनों एक दूसरे के शरीर से दूर होते हुए भी मन और आत्मा से करीब होते चले गए और बिना किसी रिश्ते में बंधे....वह एक अदृश्य बंधन में बंधते चले गए !.......
जिसकी पहचान आज तक ,इस जगत में ना तो उन मासूमों को, ना किसी और को थी????...
जब नदी में उफान आ जाये तो वह सागर से मिलने को बैचेन हो जाती है.. जब जब सागर की विवशता बढ़ जाती है...तो... वह सुनामी का रूप धारण कर नदी को खोजने खुद निकल पड़ता है!......
एक दिन यूँही बाजार में सब्जी लेते हुए कपिल को रागिनी फिर मिल गयी, इस बार कपिल ने दिल कड़ा करके उससे पुछा... रागिनी जी कैसी हैं आप ? .....रागिनी ने बड़े ही रूखे स्वर में जवाब दिया... ठीक हूँ .... न जाने उस जवाब में क्या दर्द था... की... कपिल पूछ बैठ... क्या आपके पति को उस दिन मेरा आना अच्छा नहीं लगा?...उस पर रागिनी ने कोई जवाब नहीं दिया और जाने के लिए मुड़ी ही थी की... उसकी गर्दन पर एक गहरा निशान देख कपिल चौंक उठा !!.. उसने पूछा रागिनी जी... यह कैसा निशान, क्या आपको चोट लगी है ?.....
न जाने कपिल की बातों में क्या जादू था या रागिनी से किसी ने भी अभी तक उसकी हालत के बारे में नहीं पुछा था.... वह सिसक सिसक के रोने लगी....कपिल के कई बार बार पूछने पर.... उसने बताया की उसका पति उसे , एक पागल की भांति चाहता है , वह उसका किसी से बात करना तक गंवारा नहीं कर सकता और गुस्से में हिंसक हो जाता है । जब उसका गुस्सा ठंडा होता है तो वह उसके पाँव पकड़ लेता है ।
कपिल को रागिनी की यह हालत देख उसके पति पर बहुत गुस्सा आया और बड़े ही क्षोभ भरी आवाज में उसने पुछा...,आप ऐसे कैसे जी लेती है??....
रागिनी ने हँसते हुए कहा..... उसने अशोक के साथ विवाह किया है और उसका धर्म है की वह ... सात जन्म तक उसकी ही बनके रहेगी और अपने सेवा भाव से उसके क्रोध को कम करके उसे वह नेक इंसान बना देगी , उसके लिए भले ही उसे कितनी भी प्रताड़ना , कष्ट , आभाव और दुःख झेलने पड़े !! ....
एक इतनी खुबसूरत ,पढ़ी लिखी , नेक , चरित्रवान स्त्री क्यों और कैसे?आज के ज़माने में किसी के जुल्म सितम का सामना कर रही है.......यह रहस्य कपिल की समझ में ना आया ????
कपिल ने रागिनी को समझाने की बहुत कोशिस की... पर... उसने उसकी एक न सुनी....कपिल के बार बार कहने पर.... रागिनी झल्ला पड़ी और बोली तुम मेरे क्या लगते हो?... तुम्हारी मेरे प्रति इतनी हमदर्दी का क्या कारण है ?...कपिल.....उसके इस प्रश्न से निरुतर होगया!.....
शब्द जैसे उसके कंठ में अटक के रह गए....उसने बड़ी बेबस निगाहों से रागिनी को देखा और रुंधे गले से बोला....
मैं जानता हूँ, तुम और मैं शादी के बंधन में किसी दूसरे से बंधे है, पर है तो वह बंधन ही, तुम जिसे धर्म, संस्कार और परम्परा का नाम दे रही हो.... वह सिर्फ... इस जगत में शरीर तक सिमित है उसके बाद क्या?.....
क्या है विवाह? .....सिर्फ कुछ शब्द...किसी अग्नि के सामने बोल देने से, क्या दो आत्माएं एक दूसरे की हो जाती हैं? यह कैसा ज्ञान है.....जो यह कहता है की, प्रेम तो सिर्फ आत्मा से होता है!.......फिर विवाह के नाम पर, किसी को शारीरिक हक़ देने से, क्या आत्मा का हक खुद ब खुद मिल जाता है ?......
तुम्हारे पति ने, तुम्हे विवाह नाम के सौदे के तहत सिर्फ ख़रीदा है.... जिसे वह अपने जीवन की शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा कर सके....क्या तुम्हारे और उसके शारीरक मिलन से आत्माओ का मिलन हो गया???? क्यों...तुम्हारे बिना बोले, मैं तुम्हारे दिल का हाल पढ़ लेता, क्यों.... दर्द मेरे दिल में उठता और तड़प तुम्हे होती?... हमारा -तुम्हारा सम्बन्ध तो जन्मों का है.... हमें इस मिथ्या जगत के प्रमाण की प्रमाणिकता की आवश्यकता नहीं!!!..
इस समाज की सरंचना इन्सान की खुशियों के लिए की गयी है और यह समाज हमारी खुशियों के लिए हैं... न की हम समाज की खुशियों के लिए!!!!....
इस पर रागिनी ने खीज़ कर कहा मैं अपने पति से बहुत प्यार करती हूँ और यही मेरा धर्म है और मुझे अपना धर्म अपनी म्रत्यु तक निभाना है !!!!!!....... कपिल.... उसकी बात हंसी में उड़ाते हुए बोला......
विवाह के नाम पर, निभाने को मजबूर,यह यह कैसा प्रेम धर्म है?...जो सिर्फ शरीर से शुरू होता है और बाते इसमें सात जन्मो और आत्माओ के मिलन की होती हैं!!!! जिसे तुम प्रेम कह रही हो वह सिर्फ एक गुलामी है....तुम्हारे अन्दर संस्कार के नाम पर बेड़ियाँ इतनी जकड दी गई हैं.... कि... तुम अपने पति की सिर्फ इक शारीरिक जरुरत भर हो!!! .....
क्या तुम्हारा मन उसके बगैर बैचन होता हैं ? क्या दर्द उसे हो तो तकलीफ तुम्हे होती है ? क्या वह भूखा -प्यासा हो तो शारीर तुम्हारा तडपता है ?....
रागिनी उसके इस प्रश्न से निरुतर हो गई और बोली मुझे अपना धर्म निभाना है और अगर तुम मुझसे सच्चा प्रेम करते हो तो तुम यह शहर छोड़कर चले जाओगे। और तुम भी अपने गृहस्थ धर्म का पालन पूरी निष्ठा से करोगे।.....
कपिल रुंधे गले से बोला,..... अगर मेरे जाने से और मेरे ऐसा करने से तुम्हे ख़ुशी मिलती है तो मैं ऐसा ही करूँगा!!!....पर मेरी एक बात याद रखना , अगर मेरा प्रेम सच्चा है तो तुम मुझे जीवन में एक बार किसी न किसी मोड़ पर फिर मिलोगी और यह कह....कपिल भारी मन से...."रागिनी " को अपने पीछे सिसकता हुआ छोड़ चला गया!!!!....
गंगा का पथ, कितना भी पथरीला, दुर्गम और लम्बा क्यों ना हो, अंत में वह सागर की ही होती हैं!!.......
सर्दी का प्रकोप कम हो चूका था और मौसम में थोड़ी खुश्गवारी आ गई थी । शाम का वक़्त था..... पंछी और पथिक दोनों ही थके मांदे अपने अपने आशियानों की तरफ लौट रहे थे।.....कपिल धीरे धीरे अपना कदम बढाता हुआ अपने होटल की तरफ जा रहा था।..... जवानी उसका दामन छोड़ कर जा चुकी थी , उसके सर के बाल उसके रिश्ते नातो की तरह अपना दामन वक़्त आने पर छोड़ छोड़ कर जा रहे थे .... जो बच गए थे वह भी और रिश्तो की तरह अपना रंग बदलने को मजबूर थे।.... कपिल कई सालो बाद , किसी बहुत ही जरुरी काम से हिंदुस्तान आया था.... रागिनी से आखिरी मुलाकात के बाद , उसका मन दुःख और विषाद से इतना भर गया, की, उसने देश छोड़ने का फैसला ले लिया और हमेशा हमेशा के लिए हिंदुस्तान छोड़ कर चला गया था ।......
मन के किसी अनजान कोने में, इस उम्मीद के साथ की रागिनी से उसकी मुलाकात हो जाएगी, वह वापस उसी शहर में आया था।...पर यह शहर तो पूरी तरह बदल चूका था..यहाँ पहचानने लायक ऐसा कुछ न था !जिसे कपिल अपनी अतीत की यादों से मिला सके।....आज उसका ,इस शहर में आखिरी दिन था.... कल सुबह की फ्लाइट से उसे वापस जाना था ।.... कई दिनों की भाग दौड़ के बाद उसके मन ने भी मान लिया था... की, रागिनी से मुलाकात अब इस जन्म में संभव नहीं.......??
अचानक किसी को देख वह ठिठक पड़ा।....ऐसा लगा जैसे प्रक्रति ने खुद सामने आकर उसके पतझड़ जैसी जिन्दगी में बेमौसम की बहार ला दी।...उसे सामने से रागिनी आती दिखाई दी।.... उसकी कमजोर होती आँखों ने बार बार मल मल कर देखा, जो वह देख रहा है..... क्या वह सत्य है?....
पर सत्य तो अटल है,चंद्रमा सूर्य को कुछ वक़्त ले लिए ग्रसित जरुर कर सकता है पर सूर्य ग्रहण का अंत भी शीध्र हो जाता है ।.......उसने धीमी आवाज से पुकारा .....रागिनी....ओ रागिनी जी ।.....
वह युवती, जो कभी खूबसूरती की इबादत लिखती थी आज सिर्फ इतिहास के पन्नों में दर्ज होकर रह गयी थी...... उसने अपना चश्मा निकला और लगा कर देखा तो उसके मुंह से अनान्यास ही निकल पड़ा । अरे आप और यहाँ ..... आप कहाँ चले गए थे??... उसके बाद कभी आपके दर्शन नहीं हुए... हमने ऐसा भी नहीं कहा था की आप सारी उम्र हमारा मुंह ही न देखते??.... और उसने अपने सारे शिकवे और शिकायते एक ही साँस में कह डाली ।......कपिल कुछ न बोला और एक टक उसे देखता रहा......
जैसे कोई प्यासा लम्बे रेगिस्तान का सफ़र कर के आया हो और एक शीतल झरने से अपनी जन्म जन्म की प्यास बूझा रहा हो!!!...... कपिल ने रागिनी को गौर से देखा,...
जो चंचल, शोख और नादान युवती वह कुछ वर्षो पहले छोड़ कर गया था... उसका वह ,लेश मात्र भी अब शेष न थी । उसके लम्बे काले रेशमी बाल, ना जाने कब, छोटे से मर्द्नुमा बालो में तब्दील हो चुके थे... आँखों के नीचे छोटे छोटे काले धब्बे ,उसके हलके से मेकअप का मजाक उड़ाते लगते थे,... जिन कपोलों को देख कभी कपिल का इमान डोलता था,आज उनकी जगह मात्र रह गयी थी.... उसका मांसल शरीर अपना स्थान छोड़ सिर्फ हड्डियों को ढकने भर का काम कर रहा था ... लगता था.... वक़्त और दुनिया के साथ साथ प्रक्रति भी जैसे उसकी सौत बन गयी थी।.......
कपिल ने भरे हुए गले से पुछा कैसी हो?... रागिनी ने एक फीकी हंसी हँसते हुए कह....मजे में हूँ और पुरानी वाली शोख अदा में बोली.... "मस्त" हूँ .......तुम यहां कैसे, और इतने दिन कहाँ थे?? रागिनी ने पुछा..... कपिल बोला सब बताता हूँ....... चलो कहीं थोड़ी देर बैठ जाये ।
रागिनी बोली .......मेरा घर पास में ही है ...चलो चलकर वहीँ चाय पीते है और ऐसा कह वह कपिल का हाथ पकड उसे खींच कर ले गयी।....कपिल, एक शराबी की तरह जिसे अपने उपर कोई नियंत्रण ना हो की भांति उसके साथ हो लिया ।
एक बिल्डिंग, जिसके निचले माले पर एक दुकान और उपर के माले पर एक छोटा सा घर था , वह वहां आकर रुक गयी । कपिल ने झिझकते हुए पुछा, क्या तुम्हरे पति को अच्छा लगेगा??.... रागिनी ने बिना जवाब दिए कहा, ऊपर चलो और सीडी चढ़ते चढ़ते वह बोली... नीचे मैंने एक ऑफिस खोल रखा है, मैं एक "N .G .O " के लिए काम करती हूँ जिसमे हम बेबस , बेसहारा महिलाओ की मदद करते है..... उपर में अकेले रहती हूँ ।....
और तुम्हरे पति, और और रिश्तेदार उनके क्या हाल है??.. कपिल ने एक ही सांस में पूछ डाला ।....
रागिनी ने कपिल को पहले इक नजर जी भरकर देखा और चिढाने वाले अंदाज में बोली!! ...
"जनाब" बूढ़े तो हो गए, पर याददाश्त अभी तक बाँकि है और ऐसा कह हंस दी, लगता था जैसे आज वह जन्म जन्म के बाद खुल कर हंस रही हो ।उसने कपिल से कहा वह इत्मीनान से बैठे और चाय बनाने चली गयी ।...
"जनाब" बूढ़े तो हो गए, पर याददाश्त अभी तक बाँकि है और ऐसा कह हंस दी, लगता था जैसे आज वह जन्म जन्म के बाद खुल कर हंस रही हो ।उसने कपिल से कहा वह इत्मीनान से बैठे और चाय बनाने चली गयी ।...
कपिल का बैचेन मन तो सिर्फ उसको जी भर कर देखना चाहता था, सारी मान मर्यादा को भूल.... वह , रागिनी के पीछे पीछे चला आया ।उसे किचन में आया देख... रागिनी ने कुछ नहीं कहा और थोड़ी देर बाद ,बोली, मेरे पति मुझसे अलग दुसरे मकान में एक स्त्री के साथ रहते है। .....
तुम अकेले यहां और तुम्हरे माथे पर यह सिंदूर का यह कैसा निशान? कपिल ने एक ही साँस में सब पूछ डाला ।....
रागिनी ने कपिल की तरफ देखा और अपना मुंह घुमा लिया और बोली.... वह मुझे अपनी पत्नी भले ही न समझे, पर मैं... तो उन्हें, अभी तक अपना पति मानती हूँ । उनके इस व्यवहार से दुखी हो कर "पिताजी" नहीं रहे.... यह कह रागिनी सिसकने लगी, कपिल ने रागिनी के आंसू पोछे और उसका चेहरा अपने हाथो में लेकर पुछा.... तुम्हारे बहन-भाई और रिश्तेदार उनका क्या हाल है ?...
सब धीर धीर अपनी जिन्दगी में वयस्त हो गए.. शुरू शुर में सब थोडा बहुत हाल चाल पूछ लेते थे!! धीर धीरे सब को वही पुरानी कहानी लगती और मुझे भी सबकी जूठी तसल्ली से चिढ होती, इसलिए बस साल में एक बार मिलना जुलना होता है! मैंने तो अपना जीवन अपनी जैसी दुखयारी औरतो की सेवा में लगा दिया है यह कह ,रागिनी थोडा पीछे हट गयी ।.....
कपिल से उसके आगे न कुछ सुना गया और न ही देखा गया.... वह आगे बढा और उसने रागिनी को अपने आलिंगन में ले लिया ....जब कपिल ने रागिनी को अपनी बांहों में लेना चाहे तो उसने छिटकते हुए कहा ,यह क्या करते हो..... यह कैसा बंधन ?...
कपिल ने उसकी बात को अनसुना करते हुए उसे अपनी बांहों की गिरफ्त में लेते हुए उसके अधरों पर अपने अधर रख दिए और बोला, यह बंधन नहीं मुक्ति है!!!.... जिस रिश्ते को तुम अब तक निभा रही थी , बंधन वह था.......
नदी का सागर में मिलना निश्चित है, यह बात अलग है ,कोई नदी पर बांध बना कर ... उसका मालिक कुछ पल के लिए हो जाये.... पर अंत में, नदी को सागर में आकर मिलना ही पड़ता है । नदी, सागर से मिलने के लिए अपना मार्ग खुद ढूंड लेती है....
एक आत्मा दूसरी आत्मा की तलाश तब तक करती है जब उसमे मिल कर अपने अस्तित्व को न मिटा दे,इसी का नाम मुक्ति है और इस् लिए प्रेम को "अमर" कहा जाता है.....
ऐसा कह उसने अपने अधरों का दबाब उसके अधरों पर बढ़ा दिया । जब दो प्यासे बादल मिलते हैं तो घनघोर वर्षा होती है...... पर , आज तो, वर्षो बाद दो प्यासी आत्माओं का मिलन हो रहा था , लगता था वक़्त जैसे थम गया हो , दोनों के शरीर आलिंगन बंध हुए एक दूसरे को जकड़े खड़े थे ।....
उनकी आँखों से अविरल आंसू धारा बहे जा रही थी,प्रेम की गंगा जो इतने वर्षो तक अपना पथ भूल चुकी थी! आज अचानक, सागर में मिलकर पूर्ण संतुष्टि का अनुभव कर रही थी।.....
आंसुओ की बहती धारा से उन दोनों के मन के साथ तन के वस्त्र भी पूरी तरह भीग चुके थे| लगता था जैसे संस्कारो और परम्पराओ की जंजीरों को तोड़, दोनों एक दूसरे में हमेशा के लिए समा जाना चाहते हों |
कुछ देर बाद जब दोनो वापस, इस मिथ्या जगत में आये तो.... कपिल ने , रागिनी के कुछ जरुरी कपडे समेटे और उसे अपने साथ ले , एक अनजान गंतव्य की ओर निकल पड़ा ।......
By
Kapil Kumar
Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.' ”
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