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Saturday, 14 November 2015

मैं कैसे आता?



तोडा है दिल फिर से तुमने मेरा , क्या यह बात मैं सबको बतलाता .... अपने टूटे दिल के दुखड़े , अब किस किस को सुनाता ... जब तुने ना दी थी आवाज , फिर भला मै कैसे आता ?
मोहब्बत की उजड़ी मज़ार पे , उम्मीद का दिया कब तक जलाता ? तुम ही मुझे बता ,मेरे सनम ... इतनी रुसवाई के बाद , मै तेरे सामने कैसे आता?....

मुझे मंजूर था , तुझसे बेवफाई का तमगा .... जब तुमने ही कर दिया बेगाना , फिर कैसे अपना मुह दिखाता .... अपनी मोहब्बत की , जग हंसाई मैं कैसे करवाता ... सोचो मेरे हमदम , तेरे बिना बुलाये मै कैसे आता?.....

मेने पहले ही छोड़ दी थी , तेरे तन को पाने की उम्मीद .... सोचा था हकीकत में ना सही , ख़यालो में तो तू मेरी जीनत होगी ... तेरी इस नजरंदाजी का भी , मै बोझ कैसे उठता ..... सोचो मेरी धडकन ,तेरी तोहमत और हिकारत के बाद , मैं कैसे आता?...

क्या इस कदर कमजोर थी मेरी मोहब्बत , की तेरी बेवफाई से यूँ सरेआम पर्दा उठता .... जब तूने ही समझ लिया , मेरे सिसकते दिल के आंसू को जहर .... सोचो मेरी दिलरुबा , मैं तुझे कैसे यकीं दिलाता ... जब तक तू ना देती आवाज , फिर मैं कैसे आता ?

मैं तो सपनो में भी , तेरे दुश्मनों से ना रंजिश निभाता ... तेरी इस तोहमत पे मैं बस , मन ही मन मुस्कुराता ..... जब तूने ही ना समझे मुझे अपना हबीब ,फिर मैं यह किसेको समझाता.... सोचो मेरी जाने
मन्ना , किसे अपने दिल का हाल बतलाता ... जब तक तूझे ना होता ऐतबार , फिर मैं कैसे आता ?

मैं अब आया हूँ , तेरी उस अनजान , अनकही मोहब्बत की खातिर .... चांदनी रात के तेरे उस चुम्बन के नशे की खातिर ... कब तक होश में रहता , तेरे बदन की खुसबू से बचके ... अब आया हूँ फिर से , तेरी गली में परवाना बनके ....

मैं हूँ दीवाना , अपनी दिलरुबा से कैसे रूठा रहता ... हूँ तो मै परवाना, फिर जलती शमा से कैसे दूर रहता ?.. तूने फिर से बुलाये है मुझे , भले ही इशारो में ही सही..... मैं दौड़ा चला आए , फिर से होश खोने तेरे महकाने में वंही ...

By

Kapil Kumar