Sunday, 26 November 2017

भीगी भीगी पलकों पर ....

तेरे लिए हम क्यों तरसते रहे .....
भीगी भीगी पलकों  पर बिखरे थे दर्द तेरे
सूखे सूखे होठ जैसे भीगने  को तरसते रहे
सूनी सूनी आँखों ने, फिर से वही सवाल किये
जब देना ही  था दर्द मुझे , फिर
क्यों मुझ  झूठे दिलासे दिए
भीगी भीगी पलकों  पर ...
नाज़ुक कलाइयों   पर था जिंदगी का  बोझ
सख्त हाथों ने जैसे खोल दिए दिल के राज़ तेरे
उलझे उलझे से बाल तेरे ,पूछ रहे थे वह भी मुझसे
तुम तो चले गए मुझे हमेशा की तरह
यूँही मझधार में छोड़ कर,अपनी खुशियों के तले
वीरान आँखों में जीवन के सपनों  के दीये
क्यों  अब तक किसी के लिए यह  जलते  रहे
भीगी भीगी पलकों  पर ...
तेरी लड़खड़ाती चाल ने , आखिर मुझसे पूछ ही लिया
पकड़ोगे हाथ मेरा भी कभी
या तुम भी खड़े रहोगे  औरों  की तरह बुत से बने
अगर मैं लड़खड़ा कर गिर गई , फिर
क्या होगा तुम्हारी इन सख्त बाजुओं  का
जिन्हें तुमने रखा  है अपने शरीर से जकड़े हुए
भीगी भीगी पलकों  पर ...
बिन कहे तेरे हालत ने,  मुझे  कुछ ताने से दिए
यूँ  तो बहुत दावा करते हो मोहब्बत का
फिर काहे मुझे यूँ छोड़ कर अकेला चल दिए
क्यों आते हो तुम बार बार
फिर दे कर  चले जाते हो सपने हज़ार
जो ना तो मरने देते है मुझको,  बस रुलाते है दिन रात
काश  तुम भी जी लेते कुछ पल ,इन अँधेरी गलियों में मेरे साथ
क्या याद है तुम्हे ,तुम भी  यहां  हुए थे बड़े  कभी
भीगी भीगी पलकों  पर ...
तेरे लिए हम क्यों तरसते रहे .....
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तेरे लिए हम क्यों तरसते रहे .....
भीगी भीगी पलकों  पर बिखरे थे दर्द तेरे
सूखे सूखे होठ जैसे भीगने  को तरसते रहे
सूनी सूनी आँखों ने, फिर से वही सवाल किये
जब देना ही  था दर्द मुझे , फिर
क्यों मुझ  झूठे दिलासे दिए
भीगी भीगी पलकों  पर ...
नाज़ुक कलाइयों   पर था जिंदगी का  बोझ
सख्त हाथों ने जैसे खोल दिए दिल के राज़ तेरे
उलझे उलझे से बाल तेरे ,पूछ रहे थे वह भी मुझसे
तुम तो चले गए मुझे हमेशा की तरह
यूँही मझधार में छोड़ कर,अपनी खुशियों के तले
वीरान आँखों में जीवन के सपनों  के दीये
क्यों  अब तक किसी के लिए यह  जलते  रहे
भीगी भीगी पलकों  पर ...
तेरी लड़खड़ाती चाल ने , आखिर मुझसे पूछ ही लिया
पकड़ोगे हाथ मेरा भी कभी
या तुम भी खड़े रहोगे  औरों  की तरह बुत से बने
अगर मैं लड़खड़ा कर गिर गई , फिर
क्या होगा तुम्हारी इन सख्त बाजुओं  का
जिन्हें तुमने रखा  है अपने शरीर से जकड़े हुए
भीगी भीगी पलकों  पर ...
बिन कहे तेरे हालत ने,  मुझे  कुछ ताने से दिए
यूँ  तो बहुत दावा करते हो मोहब्बत का
फिर काहे मुझे यूँ छोड़ कर अकेला चल दिए
क्यों आते हो तुम बार बार
फिर दे कर  चले जाते हो सपने हज़ार
जो ना तो मरने देते है मुझको,  बस रुलाते है दिन रात
काश  तुम भी जी लेते कुछ पल ,इन अँधेरी गलियों में मेरे साथ
क्या याद है तुम्हे ,तुम भी  यहां  हुए थे बड़े  कभी
भीगी भीगी पलकों  पर ...
तेरे लिए हम क्यों तरसते रहे .....
By
Kapil Kumar

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