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Friday, 18 December 2015

तुम ऐसा क्यों करती हो.........



तुम हो मेरी धड़कन , फिर दुसरे के जिस्म में क्यों धडकती हो 
तुम हो मेरी सांस , फिर क्यों इस तरह उखड़ती हो ?........

तुम्हें  छूने की इज्जाजत भी मुझे नहीं 
फिर मेरी बातो से क्यों मचलती हो ...


तेरे दिल में , जलता है दीपक मेरे प्रेम का 
फिर यह उजाला , किसी और के लिए क्यों करती हो ......


तुम बहाती आसूं  मेरी याद में
फिर भी इकरार करने से क्यों डरती हो ......


तुम हो मेरी सुबह , तुम हो मेरी शाम 
फिर सूरज का उजाला कहीं  और क्यों करती हो ....


तुम हो मेरी साकी , तुम हो मेरा जाम 
फिर मेरे बहकने पर  , क्यों बिगडती हो .......


तुम हो मेरी गजल , तुम हो मेरी शायरी 
फिर मुझे अपनी , चिलमन से क्यों जुदा करती हो .......


तुम हो मेरी मंजिल , तुम हो मेरी हमसफर 
फिर राह में किसी और का हाथ क्यों पकडती हो .......


तुम हो मेरी आरजू , तुम हो मेरी जुस्तजू 
फिर किसी और के अरमान क्यों पूरे  करती हो .... 

By
Kapil Kumar