तुम हो मेरी धड़कन , फिर दुसरे के जिस्म में क्यों धडकती हो
तुम हो मेरी सांस , फिर क्यों इस तरह उखड़ती हो ?........
तुम्हें छूने की इज्जाजत भी मुझे नहीं
फिर मेरी बातो से क्यों मचलती हो ...
तेरे दिल में , जलता है दीपक मेरे प्रेम का
फिर यह उजाला , किसी और के लिए क्यों करती हो ......
तुम बहाती आसूं मेरी याद में
फिर भी इकरार करने से क्यों डरती हो ......
तुम हो मेरी सुबह , तुम हो मेरी शाम
फिर सूरज का उजाला कहीं और क्यों करती हो ....
तुम हो मेरी साकी , तुम हो मेरा जाम
फिर मेरे बहकने पर , क्यों बिगडती हो .......
तुम हो मेरी गजल , तुम हो मेरी शायरी
फिर मुझे अपनी , चिलमन से क्यों जुदा करती हो .......
तुम हो मेरी मंजिल , तुम हो मेरी हमसफर
फिर राह में किसी और का हाथ क्यों पकडती हो .......
तुम हो मेरी आरजू , तुम हो मेरी जुस्तजू
फिर किसी और के अरमान क्यों पूरे करती हो ....
By
Kapil Kumar
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