अभी तक आपने पढ़ा (नारी की खोज भाग –1 , 2 , 3,4 ,5 ,6 और 7 में ) ...की मैंने बचपन से आज तक नारी के भिन्न भिन्न रूपों को देखा .......मेरे इस सफर की आगे की कहानी.....
गतांक से आगे .......
शायद ही कोई ऐसा इन्सान हो जो अपनी परिस्थिति और कुदरत की दी हुई नेमतों से अपने को धन्य मानता हो ... हम हमेशा उस सुख या चीज को देख दुखी होते है जो हमारे पास नहीं होती .... मैं भी अपने जीवन के भिन्न भिन्न पड़ावों पर , अपनी इन अपूर्ण इच्छाओं को लेकर अपनी किस्मत को कोसता रहा... पर यह नियति भी अजीब खेल खेलती है , अगर हम शिद्दत से इससे कुछ मांगे तो हमें जरुर मिलता है ...यह वक़्त के गर्भ में रहता है.... की हमारी इच्छा कब पूरी हो ,पर जब इच्छा पूर्ण होती है, तब हमें उसकी एक वाजिब कीमत भी चुकानी होती है .....
शायद मेरे ऊपर भी एक डेविल विश का साया है/था , जो जीवन में, मेरी मुरादे तो पूरी कर देता ....पर उसके बदले मेरा कुछ ना कुछ ले लेता । कभी वह सुख शांति के पल... तो कभी कुछ और ले लेता .....
जवानी के उस दौर में , जीवन में काफी चीज़ें थी , काम चलाऊ सी नौकरी ,जिसमे मेरे अकेले का गुजारा आराम से हो जाता । यौवन की हल्की फुल्की प्यास बुझाने के लिए साथ में एक सुन्दर गर्लफ्रेंड ....जिसके साथ जीवन के वे पल बड़े हसीन तरीके से कट रहे थे ....
कहाँ एक वक़्त था , मैं रोनी की बीवी को किस करने की सोच भी ना पाया था , बल्कि उसके साथ सोने के नाम से ही शरीर में चींटियाँ रेंगने लगती थी , कहाँ यह वक़्त था ,की एक खुबसूरत जवान जिस्म से मैं घंटो लिपटा रहता ... जीवन का वह हसींन दौर था , नारी के प्रेम और समर्पण के मामले में ,किस्मत मुझपर पूरी तरह से मेहरबान थी ,ऐसा लगता था , मैं जिस भी लड़की को चाहूँ , वह मेरी बाहों में आ सकती है ...
मैं और मीना दोनों एक दुसरे में इस कदर खो जाते थे , कई बार तो ऐसा होता की ...काफी देर तक चुम्बन लेने के कारण ....हम दोनों के होठ ....कई दिनों तक सूजे रहते ....
अगर उन दिनों चुम्बन लेने का कम्पटीशन होता , तो शायद हम दोनों उसमे अव्वल आते , जब जब मेरा उसका मिलन होता , हम दोनों घंटो होठों को जोड़े इतनी देर तक रहते ,की, उसकी साँस की महक, मेरे जिस्म के अन्दर इस कदर समा जाती थी ...की , उससे जुदा होने के बाद भी, कई घंटो तक ऐसा लगता था, जैसे मेरे नथुनों से उसकी सांस की गर्मी निकल रही हो .....
उस वक़्त , मेरे लिए यह सब बहुत ही साधारण बात थी , जीवन का वह अपना स्वर्ण काल था , उस वक़्त एक नहीं, कई कई लडकियों ने मेरे दरवाजे पर दस्तक दी ...
सुन्दर और सुशील लडकियों के सामने मैंने अपने करियर को प्राथमिकता दी और जो मेरे करियर में गति दे सकती थी , उनमे मैंने सुन्दरता ढूंढनी चाही ...
इन सबका यह नतीजा निकला , मैंने उन सब आवाजो को सुन कर भी अनसुना कर दिया .... ऐसे में, मेरे जीवन में रीना नाम का तूफान भी आगया ...
रीना की कहानी के लिए पढ़े ...”क्या तुम मुझसे शादी करोगे ?”.....
क्या तुम मुझसे शादी करोगे? --- भाग-1
क्या तुम मुझसे शादी करोगे? --- भाग- 2
उस वक़्त मुझे क्या पता था , की आने वाले दिनों में यही आवाज़ें और नारी की कोमलता , मेरे लिए सिर्फ एक याद बनकर रह जाने वाली थी ........ कुदरत की यह मेहरबानी एक दिन अपनी कीमत वसूलने वाली थी .....
एक वक्त में दो दो खुबसूरत लड़कियाँ मुझपर दिलो जान से फ़िदा थी और मुझे उनमे से एक को सेलेक्ट करना था ...पर मैंने भी... कुदरत की दी गई दोनों नेमतों को ठोकर मार दी , उस वक़्त मुझे अपने करियर से शिकायत थी , जिसमे मीना के आने के बाद एक ग्रहण सा लग गया था ...या उसके साथ जीवन की मस्ती में इस कदर डूबा की अपने करियर को ही डुबो बैठा .....जब मैं जागा , तब से बस, दिन रात इस चक्कर में रहता , की मुझे कहीं कोई अच्छी सी नौकरी मिले तो ,मैं इनमे से किसी एक का चुनाव करूँ ...
नारी के साथ, मेरा यह स्वर्ण काल अधिक दिन तक टिकाऊ ना रह सका ....जैसे हर चाँद को , अगले दिन सूरज की रोशनी के आगे नतमस्तक होना पड़ता है , वैसे ही बदकिस्मती के सूरज ने , मेरी खुशियों के चाँद को एक दिन निगल लिया ... जिस तेजी से, मीना से मेरी नज़दीकियां बढती जा रही थी ,साथ में उसका दबाब भी ...की... मैं उससे जल्द से जल्द शादी करूँ , क्योंकि मेरी वजह से उसकी काफी बदनामी हो रही थी । पर मेरी बहुत कोशिशो के बावजूद भी , मैं कोई ढंग की नौकरी नहीं ढूंड पाया , जिससे शादी के बाद, मेरा और मीना का खर्चा आराम से निकल आता ....
मैं नौकरी के लिए जितना प्रयास करता , असफलता उतनी ही तेज़ी से मेरे करीब आती , ना जाने कितने इंटरव्यू मैंने उस दौरान दिए , पर जैसे, मेरा भाग्य मुझसे रूठा हुआ था , मेरी असफलता ने ,मेरे अन्दर एक अनजाना सा डर और कुंठा को जन्म दे दिया , मुझे लगता ,मीना का साथ जब तक है, तब तक मेरे करियर में यह ग्रहण लगा रहेगा ....
मुझे अब मीना के साथ में, ना तो पहले जैसे आकर्षण लगता और ना ही कोई रोमांच , मेरा दिल और दिमाग हर वक़्त नौकरी के तनाव में डूबा रहता .....वह मुझसे लिपटी होती, तो मेरे दिमाग में नौकरी का भूत होता ....पता नहीं क्यों नौकरी और करियर को लेकर एक अनजाना सा डर मेरे अन्दर समाने लगा , मुझे मीना के चुम्बन और आलिंगन में जैसे एक नीरसता और बोरियत सी होने लगती ,मेरी इस बेरुखी को देख ,कई बार तो मीना मुझे उलाहने देने लगती , की मैं कुछ क्यों नहीं करता ?....शायद मेरी इस, बेरुखी या त्याग से खुश होकर कुदरती डेविल ने, आखिर मेरी विश पूरी कर ही दी....
डेविल ने मेरी विश तो पूरी की , की जल्दी ही मुझे एक अच्छी नौकरी मिल गई , पर कुदरत कभी भी, अपने ख़जाने से चीज़ें , हमें मुफ्त में नहीं देती , इसके बदले मुझे जीवन में , फिर कभी नारी की उस सुन्दरता , कोमलता और अहसास के दर्शन नहीं हुए ...
करियर ने तो अपनी गति पकड ली , पर उसके साथ जीवन में कई चीज़ें छुटती चली गई , पहले वह शहर छूटा , उसके साथ ही मीना का साथ भी छूट गया ...मीना की जुदाई ने शायद करियर की गति को बढ़ा दिया ....मुझे नौकरी तो अच्छी मिली , पर उसके सिलसिले में मुझे अक्सर टूर पर रहना पड़ता ,मेरे पाँव कभी जमीन पर ,तो कभी आसमान पर , तो कभी ट्रेन के अन्दर होते ... मेरी जिन्दगी एक खानाबदोश जैसी थी , जिसमे नाम था , पैसा था ...पर नारी और परिवार का सुख नदारद था ....इस दौरान मेने देश का कोना कोना खंगाला और एक लम्बा विदेशी टूर भी किया... अगर जीवन के इस दौर में मीना होती , तो शायद उसे,मुझपे अत्यंत गर्व होता और उसकी ख़ुशी का तो ठिकाना ही नहीं होता ....क्योंकि उस ज़माने में , हमारी कंपनी में विदेश जाने के लिए लोग , ना जाने कितनी तिगड़म और पापड़ बेलते थे ...
पर जीवन में कुछ पाने के लिए कुछ खोना क्या होता है , इसे मुझसे बेहतर कौन बता सकता है ...नौकरी के सिलसिले में देश विदेश भटकते हुए ,मैंने जीवन के कई भिन्न भिन्न पहलुओं को देखा , समझा और परखा ...
यूँ अकेले भटकते भटकते, नारी की चाह,मेरे जीवन की ना बुझने वाली प्यास बनकर रह गई ...
ऐसे ही एक बार, काम के सिलसिले में, मुझे ट्रेन से कोलकत्ता जाना हुआ , उस सफर के दौरान मुझे एक ऐसा अनुभव हुआ, जिसने नारी के स्वाभाव और चरित्र की एक नयी परिभाषा लिख दी .... उस सफर के अनुभव ने मेरे जीवन में ऐसी मृगतृष्णा को जन्म दिया , जिसने नारी के शरीर के सम्मोहन की ,एक कभी ना बुझने वाली प्यास को, हमेशा हमेशा के लिए मेरे तन और मन में बसा दिया ....
इस सफर की कहानी के लिए पढ़े “एक रात के हमसफ़र”.....
एक रात के हमसफ़र
जब करियर अपनी रफ़्तार से बढ़ने लगा ... तो पुराने रिश्तो का साथ छूटने लगा ,कल तक जो खुबसूरत बालाएं ,मेरे लिए पलके बिछाये बैठी थी , अचानक से मेरी जिन्दगी से एक एक करके दूर होने लगी ... तब मैंने भी सोचा , अब करियर अपने सही मुकाम की और है ,तो क्यों न शादी कर ली जाए ?.....
उस वक़्त मैं शायद भूल गया था , मैंने विश डेविल से ,अपने करियर के लिए खुशियों का सौदा किया था ...
शादी के बाद होने वाले सुख ,शांति और आराम के सपने, सिर्फ सपने बन कर रह गए , नौकरी के सिलसिले में, मैं अधिकतर घर से बाहर रहता और रही सही कसर मेरे जीवन के पहले विदेशी दौरे ने पूरी कर दी ....शादी के कुछ दिनों बाद ही मुझे, कुछ महीने के लिए विदेश जाना पड़ा ...
यूँ भटकते रहने की वजह से नयी नयी शादी का सरुर भी मुझपर ना चढ़ सका । नौकरी के सिलसिले में , मुझे अधिकतर घर से बाहर रहना होता था ..... इसलिए शुरुवात में अपनी पत्नी को भी ज्यादा समझने और परखने का मौका ना मिला , मैं समझता था , मेरे जीवन में अब तक जैसी लड़कियां आई है , यह भी वैसी ही होगी, पर मेरी यह गलतफहमी भी जल्दी दूर हो गई ...
जो आम औरत के गुण मीना या और मेरी जिन्दगी में आई और लडकियों में मैंने देखे थे , वह मुझे अपने हमसफर में ढूंढने से भी ना मिले ...
मैं एक ऐसा प्रेम पथिक , जिसने नारी से अपने रिश्ते की कल्पना सिर्फ प्रेम की आधरशिला पर रखी थी... पर यहां तो , वह आधार ही नदारद था ...
किसी नारी से लड़ना झगडा या उसे बुरा भला बोलना क्या होता है , यह मेरा जैसा कोमल ह्रदय प्रेमी कभी सपने में भी नहीं सोच सकता था । मेरे मन में नारी के लिए इतनी प्यास थी , की मैं उसे, अपने प्रेम से जीवन भर बुझाता, तो भी वह शायद कम ना होती ...एक वक़्त था , कहाँ मैं और मीना प्रेम के पंछी बन , घंटो गुटर गूं करते , वहीँ शादी के बाद मेरा, नारी से शारीरिक परिचय तो हुआ , पर उसमें प्रेमी प्रेमिका वाला सम्मोहन , आकर्षण और रिश्तों की गर्मी का नामोनिशान भी ना था ..... डेविल ने मेरी विश की काफी अच्छी कीमत वसूली थी ...
कभी कभी सोचता तो बहुत ही अजीब लगता की , जिससे कोई सामाजिक रिश्ता ना था , उसने मेरी भावनाओं का कितना ख्याल रखा था .... मीना के घर में सब मांसाहार करते थे ,परन्तु जब तक वह मेरे साथ थी, उसने कभी भी मांसाहार को छुआ तक नहीं .... इसके विपरीत मेरे हमराही को मेरी पसंद , ना पसंद और भावनाओ की कभी परवाह ही ना हुई .....
एक वक़्त था मैं और मीना घंटो आलिंगन में पड़े ,चुम्बन में खोये रहते थे ,अब मुझे चुम्बन से अजीब सी बैचेनी होती .....एक मीठे और गर्मजोशी से भरा चुम्बन भी मेरे लिए किसी अमृत से ज्यादा अमूल्य हो गया .... मेरा जैसा प्रेम पथिक , अनजाने में , जीवन के इस सफर में बिना मंजिल की राह में भटकने लगा ...जिन जिन बातो को मेने शादी से पहले कोई मूल्य ना दिया था ,अब अचानक से जैसे, वह अमूल्य होती जा रही थी .....
डेविल विश ने मुझे करियर के नाम पर वह सब कुछ दिया , जो मैंने मीना के साथ रहते हुए सोचा भी ना था , पर बदले में उसने मुझसे वह सब कुछ छीन लिया , जिसकी मैंने कल्पना भी ना की थी ....
टूरिंग वाली नौकरी से तंग आकर , मैंने फिर से डेविल विश की शरण ली , इस बार भी मेरी विश पूरी हुई , पर डेविल ने इसकी एक अलग कीमत मांग ली ...टूरिंग वाली नौकरी में कम से कम एक हफ्ते के बाद, कुछ दिनों के लिए घर तो आ जाता था... टूरिंग वाली नौकरी यह सोच कर छोड़ी की, एक स्थान पर टिक जाऊँगा । पर बदकिस्मती भी यहां आकर मंडरा गई ... नौकरी के सिलसिले में मैं कुछ महीनों के लिए , अपने घर परिवार को छोड़ कर, कई सौ मील दूर अकेला, अनजान शहर में, कुवांरो की तरह जीवन बिताने को मजबूर था ... बीवी अपनी नौकरी और बच्चे के चलते मेरे साथ आ नहीं सकती थी ....
मैंने अपने गुज़र बसर करने के लिए एक कमरा किराये पर ले लिया , क्योकि मुझे कुछ महीने में, काम पूरा करके हेड ऑफिस वापस अपने शहर आना था ... इसलिए पुरे परिवार को वहां लाने की कोई तुक ना था ...मुझे यूँ अकेला रहता देख , मेरा मकान मालिक , अड़ोस पड़ोस , सब लोग मुझसे पूछते की मैंने अब तक शादी क्यों नहीं की , मैं उनसे कहता की मैं शादी शुदा हूँ , तो उन्हें लगता , मैं उनसे पीछा छुड़ाने के लिए झूठ बोलता हूँ , वे पूछते ....
फिर तुम्हारी बीवी तुम्हारे पास क्यों नहीं रहती ? वह तुमसे मिलने क्यों नहीं आती ?
कई बार मेरे मकान मालिक ने , इशारों ही इशारों में अपनी लड़की का रिश्ता मेरे सामने पेश किया , जिसे मैंने मजाक में उड़ा दिया .....जीवन में एक चीज को लेकर ठराव बढ़ता था तो दूसरी जैसे हाथ से फिसलती जा रही थी , घर परिवार का सुख , शांति , सब हाथ से रेत की तरह फिसलने लगे ...मैं जीवन में फिर से , एक बार उसी मोड़ पर आकर खड़ा हो गया , जिसपर मैं कई साल पहले जवानी की दहलीज पर खड़ा था ....
अकेला, तन्हा....नारी के स्पर्श, आलिंगन , प्रेम से अति दूर ....अपनी रातें ... अकेले बिताने को मजबूर था ...
इसे मेरी किस्मत कहे या डेविल विश की मेरी आधी अधूरी सी इच्छा आने वाले समय में पूरी हो गई , जिसने मुझे नारी के रूप का एक अलग ही परिदृश्य दिया ....
क्रमश :......
By
Kapil Kumar
Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.' ”
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