मेरी मोहब्बत की ना सही , आँसुंओं की ही कुछ कीमत लगा लो ..
मुझसे मोहब्बत ना सही , बेवफाई ही कुछ ढंग से निभा लो .
कैसे करवाऊँ ऐतबार अपनी वफ़ा का
एक बार दोस्ती न सही दुश्मनी ही निभा लो ...
देख लेना तुमसे वह भी ना हो सकेगा
तुम्हारा दिल अंदर से खुद रो उठेगा
कि मैंने ऐसा क्यों करके भी सोचा
जो खुद जल रहा था मेरे दामन को बचाने के लिए
उसे ही मैंने खुद अपने हाथों से गहरे सागर में धकेला .....
By
Kapil Kumar
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