Monday 13 November 2017

मेरा अक्श !

शरीर ना दिया तो क्या , बस दिल से दिल मिला लेती ...
मर जायूँगा एक दिन यूँहीं  इन्तजार में ,
तू अपने अहम् का घंटा बजाती रहना
चढ़ा देना अपनी मर्यादा का कफ़न,
इस बेनाम आशिक की लाश पर
फिर दफना देना उसे कहीं ,
अपने ग़रूर  की कब्र में ,
जब जब दिल में तेरे ,
यादों  का सावन लहराए
टपका देना दो आसूं, इस प्यासे आशिक के दामन पर
क्या लेकर जायेगी , इस समाज से
तू आखिर क्या है कीमत इस शरीर की,
ऐ मेरे इश्क के काफ़िर  खुद भी जल रही है
एक  झूठे रिश्तों के दोज़ख में मुझे भी जला रही है ,
अपने दर्द के शोले से क्या कंहू अब मैं तुझे ,
शब्द भी साथ नहीं देते लिखता हूँ ख़त  अधूरे से ,
वह भी पूरे नहीं होते
तू बस आकर मेरे सीने में यूँ दर्द उठाती रहना
मेरे सामने दिखा ले तू, कितनी भी बेरूख़ी
पर अपनी  इबादत में , मेरा ही अक्श तुझे पड़ेगा देखना
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शरीर ना दिया तो क्या , बस दिल से दिल मिला लेती ...
मर जायूँगा एक दिन यूँहीं  इन्तजार में ,
तू अपने अहम् का घंटा बजाती रहना
चढ़ा देना अपनी मर्यादा का कफ़न,
इस बेनाम आशिक की लाश पर
फिर दफना देना उसे कहीं ,
अपने ग़रूर  की कब्र में ,
जब जब दिल में तेरे ,
यादों  का सावन लहराए
टपका देना दो आसूं, इस प्यासे आशिक के दामन पर
क्या लेकर जायेगी , इस समाज से
तू आखिर क्या है कीमत इस शरीर की,
ऐ मेरे इश्क के काफ़िर  खुद भी जल रही है
एक  झूठे रिश्तों के दोज़ख में मुझे भी जला रही है ,
अपने दर्द के शोले से क्या कंहू अब मैं तुझे ,
शब्द भी साथ नहीं देते लिखता हूँ ख़त  अधूरे से ,
वह भी पूरे नहीं होते
तू बस आकर मेरे सीने में यूँ दर्द उठाती रहना
मेरे सामने दिखा ले तू, कितनी भी बेरूख़ी
पर अपनी  इबादत में , मेरा ही अक्श तुझे पड़ेगा देखना
by
Kapil Kumar

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