अपनी इबादत का इक मौका तो दे, करता हूँ कितनी मोहब्बत उसको भी आजमा कर देख.... बैठा हूँ तेरे इंतजार में लहरों के सहारे , कम से कम किनारे पे आकर तो देख.... अपनी इबादत का इक मौका तो दे ........
देखे होंगे तूने दुनिया के रंग अनेक , मैं तो बस रंगा हूँ तेरे ही रंग में रे ... हो सके तो मुझको भी आजमा कर देख , नहीं बदलूँगा अपना रंग यह वादा रे .... अपनी इबादत का इक मौका तो दे........
नहीं आसां है यूँ किसी पे यकीं आना , जब हर तरफ ताक में बैठा हो दुश्मन ज़माना... मुझ भी तुझको है यह समझाना ... हर आदमी नहीं होता सिर्फ हुस्न का दीवाना ... मुझसे भी थोड़ी सी दोस्ती निभा कर तो देख ..... अपनी इबादत का इक मौका तो दे........
तुझे डर है कंही मैं तुझे रुसवा ना कर जायुं ,औरो की तरह मझधार में छोड़कर ना चला जायुं .... अपने इस शक को भूला कर तो देख , बंदा हूँ मैं अलग ,यह मैं कैसे समझायूँ .... अपनी आँखों से वोह पर्दा हटा कर तो देख .... अपनी इबादत का इक मौका तो दे........
मुझे नहीं पता कैसे मैं अपनी खुशियाँ तुझे दे दू , हो सके तो तेरे गम मै ले लू... बस इतनी सी गुजारिश है मेरी , मुझे अपने नजदीक आने तो दे मुझे अपनी पलकों पे बिठाने तो दे , मुझे अपनी सांसो में बसाने तो दे ... इक बार अपना साथी बना कर तो देख , करता हूँ कितनी मोहब्बत उसको भी आजमा कर देख.... अपनी इबादत का इक मौका तो दे........
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Kapil Kumar
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