मैं हूँ इक फूल , किसी से कुछ कह भी नहीं सकता ... हर वक़्त मुस्कुराना
, जग को महकाना ही मेरा काम... इसलिए निकले आंसू अगर मेरे तो , मैं रो भी नहीं सकता .... मैं हूँ इक फूल , किसी से कुछ कह भी नहीं सकता
मेरी किस्मत भी अजीब , मैं खिला हूँ हर वक़्त चुभते कांटो के बीच ... फिर भी हूँ इतना नाजुक और हसीन , की ज्यादा दिन ... अपनी ही डाली पे ठहर नहीं सकता ,कोई आए मुझे नोचे या तोड़े बेदर्दी
से .... इतनी सी अपनी हिफ़ाजत भी , मैं किसी से कर नहीं सकता ... मैं हूँ इक फूल , किसी से कुछ कह भी नहीं सकता ...
क्या होगा मेरे खिलने से , यह भी मैं तय नहीं कर सकता ... चढ़ा दिया जायुंगा
किसी लाश पे , या किसी बाहुबली
की माला में.... किसी पीर फ़कीर की दरगाह पे , या फिर मंदिर की मूर्त पे ... कैसा होगा मेरा हश्र , यह मैं सोच भी नहीं सकता ..... मैं
हूँ इक फूल , किसी से कुछ कह भी नहीं सकता ...
हुई अगर किस्मत मेहरबान
तो , किसी हसीना की जुल्फों
में पनाह पा जायुं.... अपनी खूबसूरती
पे इतरायूँ
, या उस हसीना की जुल्फों
को ही सजायुं ... इसमें भी क्या बुरा है की , किसी बाई के कोठे पे ही सज जायुं... क्या पता किसी दिलजले आशिक के हाथ का, गजरा बनकर महक जायुं .... मैं यह सोचकर अपना दिमाग, इनपे खर्च कर नहीं सकता .... मैं हूँ इक फूल , किसी से कुछ कह भी नहीं सकता ...
मैं तो किसी सुहाग की सेज पे भी , दम तोड़ कर खुश हूँ .... कुचला जाऊंगा या मचला जायुंगा
बेदर्दी से , फिर भी मैं मस्त हूँ .... अगले दिन यही लोग मुझे , फिर से दुत्कार
कर फैंक देंगे ... इस हकीकत से मैं ज्यादा देर , मुह मोड़ नहीं सकता .... मैं हूँ इक फूल , किसी से कुछ कह भी नहीं सकता ...
मैं तो किसी सुहाग की सेज पे भी , दम तोड़ कर खुश हूँ .... कुचला जाऊंगा या मचला जायुंगा
बेदर्दी से , फिर भी मैं मस्त हूँ .... अगले दिन यही लोग मुझे , फिर से दुत्कार
कर फैंक देंगे ... इस हकीकत से मैं ज्यादा देर , मुह मोड़ नहीं सकता .... मैं हूँ इक फूल , किसी से कुछ कह भी नहीं सकता ...
आए दिलरुबा
उनकी देर से , भला इसमें मैं क्या कर सकता हूँ.... वोह नोचेंगे
इन्तजार में उसके , इक इक करके हर पंखुड़ी मेरी .... यह सोचकर भी , मैं अब नहीं डरता ... उनकी इन अदाओ पे , मैं हंस भी नहीं सकता .... मैं हूँ इक फूल , किसी से कुछ कह भी नहीं सकता ...
By
Kapil Kumar
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