Monday 9 November 2015

आखरी ख़त... प्रेम का !! ...




प्रिये,
मैं जब , हमारे मन मिलन के मंदिर में आया तो तुम्हे ना पाकर मेरी आँखे उदासी के समुन्दर में डूब गई ....ना जाने क्यों ,हमेशा से ,मेरे मन में इक अनजानी आशंका अपना डेरा जमाये रहती थी की, इक दिन तुम मुझे यूँ मझदार में छोड़ कर चली जाओगी ....

शायद मेरे अनजाने भय ने, अपना चमत्कार दिखाया और वैसा ही हो गया जिसका डर मुझे हमेशा से सालता था ...की ..इक इक दिन तुम मुझे बिना बताये, मेरी नजरो से अचानक ओझल हो जाओगी....

मेने कितने सपने संजोये थे ..की तुम्हारे साथ स्विट्ज़रलैंड की वादियों में तो कभी विएना की झील में नौका विहार करूँगा ...तो कभी हम दोनों, दुनिया की नजरो और गमो से दूर, रिओ के किसी अनजाने समुंद्री बीच पे इक दुसरे के साथ अटखेलियाँ करंगे ...

हाय री किस्मत सब उम्मीदों और कल्पनाओ के सपने ...समुंद के किनारे बने घरोंदो की तरह तहस नहस होकर बिखर गए ...यूँ तो मेरे सपनो के घरोंदो से तुम्हे पहली भी अच्छी खासी अदावत  रहती थी .... जो तुम उन्हें जाने अनजाने अपने जिद्द , धीटता और अटल इरादों की तेज लहरों से समय समय पे तोडती रहती ... और मैं फिर भी दीवानगी के आलम में डूबा उन्हें हर बार पहले से ज्यादा मजबूत और बड़ा बनाता रहता ....

पर शायद , इस बार ...अब मुझमे इतनी हिम्मत , ताकत और सब्र नहीं बचा ..की किनारे की रेत को मुट्ठी में जकड़ कर ... फिर से इक्टठा करके ...फिर से सपनो के  नए घरोंदे को बना सकू ...

मैं अपने टूटे दिल को किसी तरह संभाल कर और मजबूत कर यह ख़त लिखने का दुस्साहस कर रहा हूँ ..अगर मेरे ख़त से तुम्हे किसी तरह की ठेस या पीड़ा पहुंचे तो मुझे इक पागल , आवारा और दीवाना समझ कर माफ़ कर देना ....

मुझे नहीं मालुम, मेरे इस ख़त का क्या हश्र होगा ...वोह तुम्हारी नजरो को इनायत करेगा या तुम उसे बेरुखी से यूँही किसी कोने में डाल दोगी या उसे बिना खोले ही किसी कचरे के डब्बे में फैंक दोगी या फिर अपने गुस्से में उसके टुकड़े टुकड़े कर हवा में उड़ा दोगी या फिर अपने सहेलियों में इसे इक मजाक का विषय बना कर चटकारे ले लेकर पढ़ोगी ...

खेर तुम जो भी फैसला लोगी अच्छा ही होगा ...क्योकि मेरी ख़ुशी तो सिर्फ तुम्हारी ख़ुशी में ही है ....अगर तुम इसे पढने की इनायत बक्शो तो शायद मुझे कुछ समझ पाओ ...

यूँ तो पहले भी तुम मुझसे अक्सर, किसी ना किसी बात पे रुष्ट होकर , मुझे अकेला छोड़ जाती थी ... मैं हर बार तुम्हारे सामने झुकते हुए तुम्हे मना लाता और तुम भी थोड़ी नजाकत और नखरो के बाद मान जाती ...हम फिर से अपनी अपनी रूहानी दुनिया में खो जाते ...यह जानते हुए भी की मेरी और तुम्हारी दुनिया इस धरती के दो धुर्वो की दुरी पे है ......

पर इस बार मैं तुम्हे मनाने ना आयूंगा ...मेरा यह ख़त मेरी तरफ से मेरा आखरी प्रयास है, अपने प्रेम की बुझती लौ को थोड़ी देर तक जलाते रखने का ...हर बार की तरह.... इस बार भी मैं तुम्हारा मिलन मंदिर में इंतजार करता रहा, करता रहा , सोचा तुम अब आओगी , तब आओगी ..पर तुम ना आई ...मुझे नहीं पता इस बार तुम मुझसे क्यों और कैसे रुष्ट हो गई ?

मैं रात भर करवट बदल बदल कर सोचता ..शायद आज की रात तुम आओ और तुम्हारे इंतजार में आधी आधी नींद में जागकर तारे देखता ....शायद उसे मेरा भेजा हुआ सन्देश, चाँद से मिल जाए .... पर तुम्हे ना आना था ना तुम आई ....

अब मेने भी अपने दिल को समझा लिया , की शायद मेरी किस्मत में किसी का प्यार ही नहीं ...फिर तुमसे ही क्यों उम्मीद रखू....तुमसे पहले ना जाने कितनी बार यह दिल टुटा ...ना जाने किस किस का मेने कितना इंतजार किया ...लगता है ...इस जन्म में शायद इंतजार ही मेरी साधना है ...शायद मुझे इस साधना में अभी और कष्ट झेलने और देखने बाकी है ...

मेरे मन में तुम्हारे प्रति कोई वैमनस्य , क्रोध या अफ़सोस नहीं है ...मै धन्य हूँ की मुझे जीवन भर ना सही पर कुछ वक़्त के लिए ही सही तुम्हारा साथ तो मिला ...

मुझे नहीं पता....की मेरी पूजा में कंही कमी रह गई थी या तुम्हे प्रेम की देवी बनाने की मेरी चेष्टा बचकानी थी ? फिर भी मैं तुम्हारा उम्र भर के लिए शुक्रगुजार हूँ की ...तुमने मुझे कुछ दिनों के लिए ही सही.. वोह असीम ख़ुशी , उत्तेजना , होसला और मनोबल दिया ..जो मैं जिन्दगी की लड़ाई में लड़ लड़ कर , थक कर ,कंही खो चुका था ....

तुम जब तक मुझे ना मिली थी ..मेरी जिन्दगी इक वीरान रेगिस्तान की तरह थी .... तुम्हारे आने के बाद इसमें हुई उम्मीदों की बारिश की बोछारो ने इसे हरा भरा बनाया ....जन्हा कल तक सन्नाटे का आलम था .... तुमसे मिलने के बाद वंहा उत्तेजना और उम्मीदों का नाकिल्स्तान गुलजार होने लगा ...जंहा उमंगो की नदी सुख कर अपना दम तोड़ चुकी थी ..वंहा उल्लास का सागर हिल्लोरे लेने लगा था... तुम्हारे पल पल के साथ की ख़ुशी में, मेरा आँगन इतना रोशन हो गया था ...की लगता ही नहीं था जैसे यंहा कभी निराशाओ और बदहाली का कोई रेगिस्तान भी था ....

अब तुम चली गई हो ...मुझे नहीं पता की ... चीज़े फिर से शायद वैसी हो जाए ....पर मैं कोशिस करूँगा ...की इस बार ,इस सदमे से उबर जाऊं ...यूँ तो पहले भी किसी रीना , मीना , अर्चना , शालिनी , टेलर और जेनिफर ने मुझे बीच राह में अचानक अकेला छोड़ दिया था ......तुम्हारे इस तरह से जाने के लिए, मैं तुम्हे कसूरवार नहीं ठहरायूँगा ?...  

शायद मेरी नियति में भी यही लिखा है ...जब जब जिसका मुझसे मोह भंग हो जाता या मैं उनके काम का ना रहता वोह मुझे इस्तमाल करने के बाद छोड़ देते...फिर तुम कैसे इन सबका अपवाद होती ?

अब नाव का ईस्तमाल सिर्फ नदी पार करने के लिए होता है ..उसे अपने साथ घर थोड़ी ही लाया जाता है .... यह और बात है की .... मुझसे ...किसी को अपने फायदे का तो किसी को वक़्त का  ..तो किसी को अपने मोक्ष का लक्ष्य ढूंडना था ....

शायद हमारा मिलना ही इन जालिम नक्षत्रो के अनुकूल ना था ..वरना हम दो विपरीत ध्रुवो में रहने वाले ....तुम अपने परलोक को सुधारने में व्यस्त और मैं इस लोक को भोगने वाला कैसे और क्यों मिले यह भी इक राज रह गया ...

तुम आत्मा परमात्मा , लोक परलोक और सूक्षमता को खोजती रही और मैं अपनी स्थूलता में उलझा उसमे तुम्हे धुन्ड़ता रहा ...ढूंड हमें दोनों ही रहे थे  ..मैं तुम्हे और तुम किसी और को ...

मुझे यह तो नहीं पता ...की तुम किस लोक से आई और किस लोक में जाना चाहती थी ...पर मेरा लोक परलोक तो सिर्फ तुम्हारे इर्द गिर्द ही था ... तुम्हे तन और मन से पाना ही मेरे लिए सूक्ष्म और स्थूल दोनों था ...तुम जीवन में आत्मज्ञान और खुद को समझने में लगी रही और मैं तुम्हे .....मेरी मंजिल तुम थी और तुम्हारी मंजिल कुछ और .....

शायद तुम्हारे मन में सूक्ष्मता इतनी समां गई की ...तुम्हे मेरे स्थूल शरीर की भावनाये और जरूरत, गैरजरूरी और बचकानी लगती होंगी ...तुम्हे मेरी मोहब्बत पे हंसी आती होगी .... और शायद तुम्हे मेरी ईबादत इक मक्कारी और फ़रेब  लगती होगी ?....

हम दोनों भी कितने अजीब और अलग थे ...तुम मुझे संत बनाना चाहती थी और मैं इंसान बनने की असफल कोशिस कर रहा था...

तुम अपने संकल्प से कष्ट ,आभाव और दुःख को अपने जीवन की चुनौती समझ कर हंसी हंसी झेलती रही .. .वन्ही मैं जीवन में नयी नयी उमंगो को खोजता ...की अगर जीवन में सुख , भोग और विलासता  नहीं तो ..फिर जीवन का अर्थ ही क्या है ...ना तुम गलत थी ना मैं ?

अब ,मेने भी ठान लिया है की ...अब जब तुम नहीं हो ...मैं भी तुम्हारी याद में, रातो को करवट बदल बदल कर नहीं जागूँगा ...अपने ऊपर किसी गम के बादल को मंडराने नहीं दूंगा ...अपनी बची कुची जिन्दगी को ... जीवन के हर रास रंग में डुबो कर पूरी शिद्दत से जियूँगा ...क्यों की इस बार मुझे विश्वास है ...मैं गलत नहीं हूँ ....

इस बार मेरे दिल पे कोई बोझ नहीं ..की मेने तुम्हे अनजाने में कोई कष्ट या किसी तरह का दुःख पहुँचाया .... यह तुम्हारा फैसला है ..इसलिए उसका सम्मान करते हुए ....मैं अपनी बाकी बची जिन्दगी ,जिन्दादिली से जियूँगा .....

भविष्य में अगर ....तुम्हारा मन बदल जाए और तुम मेरे पास वापस आना चाहो ....तुम्हे हमारे मन मंदिर का पता मालूम ही है .... पुरानी मोहब्बत की खातिर ...मैं कुछ  दिन सुबह को तुम्हारी राह देखूंगा... अगर तुमने, मुझसे कभी प्रेम किया होगा तो... तुम अवश्य आओगी ....वरना मै इसे, अपने इक असफल प्रेम की अधूरी दास्तान समझ कर ...अपने दिल के किसी कोने में हमेशा हमेशा के लिए दफ़न कर दूंगा ....

मेरा हाथ तुम्हारे हाथ को थामने के लिए हमेशा तत्पर रहेगा .....

अगर जीवन में कभी अँधेरा इतना बढ़ जाए की तुम्हे अपने साए से भी डर लगने लगे ...तुम अपने को अकेला और  कमजोर समझने लगो  .... कोई तुम्हारा साथ दे या ना दे ...पर मेरा हाथ तुम्हारा इंतजार करता मिलेगा .... भले ही वोह जीवन का कोई सा भी पड़ाव हो ...

आशा है तुम अपने जीवन में खुश सुखी खुश खुश  रहोगी ....

तुम्हारा आवारा ... पागल ..दीवाना ...

 By 
Kapil Kumar


Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental”. The Author will not be responsible for your deeds.



No comments:

Post a Comment