पंडितायन रामदुलारी बड़ी ही धर्म कर्म में विश्वास रखने वाली इक तेज तरार औरत थी ....जिसे अपने ब्राहमण कुल में जन्म लेने का बहुत अभिमान था ..इसी अभिमान के चलते वोह किसी भी छोटी जात वाले को जरा भी मुह ना लगाती थी ..सिर्फ बड़े बड़े सेठ , साहूकार और जमींदारो की औरते से उसका आना जाना और बोलचाल थी ...अपने से नीची जात वाले गरीब आदमी तो उसे फूटी आँख ना भाते...इसके विपरीत पंडित मेहनतीचन्द्र बड़े ही नेक और दयालु प्रकृति के इन्सान थे ...जो ब्राहमण कुल में पैदा होने के बावजूद भी किसी छोटी जात पात वाले को निचा ना समझते ...
उधर रामदुलारी के रास्ते में गलती से अगर कोई नीची जात वाला आजाता तो वोह अपना रास्ता ही बदल देती ..अगर कोई सामने पड जाता तो उसे सरे आम बददुआ दे देती की... की उसकी गन्दी छाया की वजह से उसे फिर से नहाना पड़ेगा .... धर्म कर्म की पक्की , दिन रात प्रभु की सेवा में तल्लीन रहने वाली रामदुलारी ....घर ग्रास्थी के नाम पे अपना अधिकतर समय माला जपने या लोगो को कोसने में बिताती ...
बच्चे और पति खाने के लिए दिन भर इधर उधर मारे मारे फिरते .... मजाल रामदुलारी की वोह चोके में झांक भी ले ....उसका दिल और दिमाग तो प्रभु की खोज में लगा रहता ..ऐसे में किस के पास वक़्त था ...जो मानव की भौतिक जरूरतों को पूरी करने के लिए ..प्रभु की आराधना में विध्न डालता ...
भुला भटका जब भी कोई जजमान मंदिर में पूजा या चढ़ावे में जो कुछ दे जाता ... पंडित और उसका बेटा उसे खा कर अपना दिन किसी तरह काट लेते.... मंदिर की पीछे बने इक टूटे फूटे कमरे में ही इस ब्राहमण परिवार का रेन बसेरा था....
पंडित मेहनतीचन्द्र भी अपनी ही दुनिया में मग्न रहते ....कोई भूले भटके पूजा करवाने मंदिर या उनकी चोखट पे आजाता ..तो उसकी पूजा आराधना वन्ही निबटा देते ...किसी के बहुत बुलावे पे ही उसके घर जाते ..वरना मंदिर के पिछवाड़े में लगे पीपल के पेड़ निचे चारपाई पे उंघते रहते ... उन्होंने भी कसम खाई थी की पंडितगिरी के सिवा कुछ और ना करेंगे ... भले ही भूखो मर जाए ...
गर्मियों के दिन थे दोपहर अभी चढ़ने को थी ..दींन दुनिया से बेखबर पंडित मेहनतीचन्द्र दिन दहाड़े खराटे ले रहे थे ...की ...
अचानक पंडिताईन रामदुलारी की चीख सुन पंडित का ध्यान भंग हुआ ....अपनी जगह से उंघते उंघते बोले ..अरे पंडिताईन काहे सुबह सुबह नींद ख़राब करती हो ?
पर रामदुलारी की चिल्लाहट थी की रूकती ना थी .... हाय हम बर्बाद हो गए का गला फाडू विलाप ..चारो दिशाओ में नगाड़े की भांति गूंज रहा था ....पंडित ने बड़ा जी कडा कर अपने शारीर को चारपाई से जमीं पर पटका और रामदुलारी की तरफ अपना रुख किया ..उनका दिमाग यह सोच सोच के परेशान था ....पंडिताईन की ऐसी कौनसी दौलत थी..जो उसकी लूट गई थी ??
पंडित को आया देख रामदुलारी चिल्लाते हुए बोली ..दिन भर सोते रहते हो ..कुछ भी ख्याल नहीं रखते ..हमारे तो नसीब ही फूट गए ...ले देकर दो सोने के सिक्के थे ...आज ही प्रभु के चरणों में चढ़ाये थे ...की इक सिक्का चोरी हो गया ....कितने जतन से संभल कर रखे थे ..की अपनी होने वाली बहु को मुंह दिखाई में देंगे ...
पंडिताईन की बात सुन पंडित का कलेजा धक् रह गया ...जमा पूंजी के नाम पे उसके पास बस यही दो सोने के सिक्के थे ..जो पिछले साल गावंके सेठ ने बड़े खुश होकर उसे दिए थे ....पंडित भी पंडिताईन के साथ विधवा विलाप में लग गया ...
देखते ही देखते यह खबर गावं में आग की तरह फ़ैल गई की... मंदिर से कुछ बहुत ही अनमोल चोरी हो गया है और पंडिताईन ने बहुत ही बड़ा श्राप उसे दिया है जिसने इसकी चोरी की है .... पंडिताईन तो यह भी कह रही है ...इस चोरी की वजह से पुरे गावं पे आफत आएगी ....
जितने मुंह उतनी बाते ....इक सिक्के की चोरी की खबर लोगो के द्वारा फैलते फैलते इक खजाने में बदल गई ....
देखते ही देखते यह खबर गावं के बुजर्गो तक पहुंची ..आनन फानन में पंचायत को बुला लिया गया और सब गावं वालो को फरमान जारी हुआ की ..सब अपने कामकाज छोड़ पंचायत में आए ... जो नहीं आएगा उसे ही चोर समझा जाएगा ...
गावं के जमींदार , ठाकुर, सेठ साहूकार , बनिया, किसान , मजदूर और सब नीची जात वाले आकर अपनी अपनी हैसियत के हिसाब से गावं के बीचो बीच बने पंचायत के आसन के आस पास विराजमान हो गए .....
पंचायत में इस मामले की चर्चा प्रारम्भ हुई ..की मंदिर में आज इक बहुत ही बड़ी चोरी हो गई है ..जिसका दुष्प्रभाव पुरे गावं को झेलना पड़ेगा ...अभी पंच इस विषय पे सलाह मशवरा कर ही रहे थी ....की पंडिताईन रामदुलारी का करूँण क्रदन उनके कानो में पड़ा ....
इक पंच ने हिम्मत करके पंडित से पुछा ...की मंदिर से क्या क्या चोरी हो गया है ? पंडित ने अपने जज्बातों को किसी तरह काबू में रख सिक्के के खोने की बात पंचायत को कह सुनाई ...
इक सिक्के भर के गायब होने से इतना बड़ा स्यापा ..देख पंचो और वंहा उपस्थित साहुकारो , बनियों और जमींदारो को बहुत गुस्सा आया ...की इक सिक्के भर के लिए उनके अमूल्य समय का नुकसान कर दिया गया ... उन्हें लगा था की मंदिर से कुछ बहुत ही अमूल्य चोरी हो गया है ....जिनकी उन्हें आजतक भनक ना थी ...
सबको पता था मंदिर में चुराने लायक ऐसा कुछ भी नहीं ...पर अफवाहों ने ऐसा बाजार गर्म किया था ...उन्हें भी लगा ....शायद कोई खजाना मंदिर में गडा था ..जिसे किसी ने चुरा लिया ....सब इक इक करके उठने लगे ...की ..अचानक सेठ फ़कीरचन्द्र को याद आया और पंडित मेहनतीचन्द्र से बोले ....
अरे पंडितजी ..यह वोह सिक्का तो नाही ..जो हमने अपने बेटे के जसुटन में छटी (जन्म के ६ दिन बाद वाले उत्सव )के वक़्त दिया था ....पंडित अपने आशुओ को काबू में रख बोला ..हाँ जजमान हाँ ..हमारी तो वही दौलत थी ..किसी ने इक सिक्का चुरा लिया ...सेठ फकीरचंद बोले ..अरे पंडितजी काहे दुखी होते हो ..हमसे और सिक्का ले लो और बात ख़त्म ...
सेठ की बात सुन पंडित और पंडिताईन की हिचकियाँ और जोर जोर से उठने लगी ..उनके रोने की आवाज और तीव्र हो गई ...वंहा बैठे लोगो को समझ ना आया ...की माजरा क्या है ?
पंचो ने इक सुर में कहा पंडितजी अब क्या समस्या है ...आपको सेठजी इक और सिक्का देने को राजी है ..आपका नुकसान पूरा ..बात ख़तम !!...
पंडित मेहनतीचन्द्र ने अपने आंसुओ को पोछा और बोला ..आप लोग उस सिक्के की महानता क्या समझेंगे ?.... वोह सिक्का तो रामराज्य के ज़माने का था ...उसकी कीमत तो अनमोल है ...
बस पंडित के मुंह से यह निकलना था ....सारी सभा में अफरातफरी मच गई ..सब लोग उस सिक्के की महिमा अपने अपने हिसाब से बखान करने लगे ...सेठ ने उतवाले होते हुए कहा ..अरे पंडित जी मेने तो २ सिक्के दिए थे ..क्या दोने ही ....??? ..पंडित ने सेठ की बात बीच में काट दी और बोला ...हाँ दोनों ही रामराज्य काल के सिक्के थे ...सेठ ने हडबडा ते हुए कहा ....अरे आपने मुझे बताया नहीं ...दूसरा सिक्का कंहा है ...क्या मैं दूसरा सिक्के देख सकू ?
पंडित मेहनतीचन्द्र ने पंडिताईन की तरफ इशारा किया ...उसने दूसरा सिक्का निकाल सेठ के हवाले कर दिया ...सेठ ने सिक्के को ऊपर निचे सब तरफ करके देखा पर उसे कुछ समझ ना आया ....पर भरी सभा में कुछ कहने की हिम्मत ना जुटा सका ..सेठ फ़कीर चन्द्र ने सिक्के को अपने सर आँखों से लगाया और पंचो के आगे कर दिया .....
अब सिक्का पंचो के आगे गया ...सबने उसे जांचा परखा ..पर उसमे ऐसी कोई विशेष बात नजर नहीं आई ...जिससे उसकी महानता सिद्ध होती ...पर किसी में पंडित की बात काटने की हिम्मत ना थी ..सबने सिक्के को हाथ जोड़े और सर माथे से लगा लिया ....अब सभा में बैठे लोगो में सिक्के को देखने की उत्सुकता जागी ....
सिक्के पंच के हाथो से होता हुआ गावं के बड़े जमींदार ठाकुर मुलायम सिंह के पास पहुंचा ....सिक्के को देख ठाकुर उछला पड़ा ..और चिल्लाते हुए बोला ...अरे सेठ जी ...यू सिक्का तो म्हारे पास था ....जिसे हमने फूलवती को दिया था ...इसे तो हम भली भांति पहचाने है ...
ठाकुर ने जोश में कह तो दिया ..पर फूलवती कौन थी यह किसी से छिपा ना था ..फूलवती गावं की इक अधेड़ उम्र की वेश्या थी ..जो गाने बजाने की आड़ में गावं के अमीरों के बिस्तर भी यदा कदा गर्म कर दिया करती थी ...वरना ऐरे गैरे को वोह अपने मुंह भी ना लगने देती ...
ठाकुर की बात अभी ख़त्म हुई ना थी ..की चारो तरफ थू थू होने लगी ...की प्रभु राम के काल का सिक्का ...वोह भी वेश्या के हाथो में ..यह ठाकुर ने कैसा घोर पाप कर दिया ...अपनी इज्जत की मिटटी पलीद होते देख ...ठाकुर दब दबी सी आवाज में बोला ..मेने तो इसमें कोनो खास बात ना दिखो ...तो मैं कैसे जाणतो ...की यू कोई बहुत पुराना सिक्को है ?
ठाकुर की बात सुन कुछ लोग उसकी हाँमें हाँ मिलाने लगे ...इक पंच पंडित मेहनतीचन्द्र से बोला ..अरे पंडितजी ..तुम्ही बताओ ..इस सिक्के में कौनसी ऐसी बात है ..जो तुम इसे रामराज्य का बताओ ?
पंडित ने अपने आंसू पूछे और बोला ....पंच जी ..ये दो सिक्के में इक कोनो कटो है ..जो रामराज्य के वक़्त के सिक्को में होता था ...और ऐसा कह पंडित दहाड़े मार मार कर रोने लगा ...की उसकी दौलत लुट गई ..जो हजार सिक्को में भी ना आएगी ..अब हजार सिक्के मुआवजे के भला कौन अपने पल्ले से देता ?
अब सिक्के के बारे जानने की सबकी जिज्ञासा बढ़ गई ..पंचो ने ठाकुर से पुछा ..यह सिक्के आपको कंहा से मिले ..लगता है ..पुरखो के खजाने में रहे होंगे ...ठाकुर ने अपनी ठेट बुधि पे जोर डाला ..उसे याद ना पड़ता था ....की खानदान की विरासत में उसे ऐसा कुछ मिला था ..शायद कोई कारिन्दा ..वसूली में यह सिक्के लाया था.....
अचानक ठाकुर का कारिन्दा बोला ...ठाकुर साहब यह सिक्को तो दुकान वाले लाला ने दिए थे ...अब दुकान वाले लाला नेकचंद की तरफ सबकी निगाहे मुड़ गई ...की लाला को यह सिक्के कंहा से मिले ?
लाला नेकचंद ने बहुत सोचा तो याद आया ....की इक दिन गावं के जमादार सुखीलाल उनसे दो सिक्के के बदले खूब सारा घी और शक्कर खरीद कर ले गया था ...यह सिक्के सुखीलाल ने ही उन्हें दिए थे ...उन्होंने उससे पुछा भी था की यह सिक्के तुझे कन्हा मिले तो ..उसने कहा था ...की उसे कंही दबे हुए मिले थे ....लाला ने सुखीलाल से सिक्के लेने के बाद उन्हें गंगा जल में धोया था ..पर लाला को क्या पता था ..की वोह सिक्के तो प्रभु का रूप है ...लाला अपना सर पीट रहा था ...की उसने सिक्के जमींदार को क्यों दिए ?
रामराज्य के सिक्के वोह भी इक अछूत ने छु लिए ...बहुत कलजुग हो गया ..अब तो पंडित के साथ साथ सेठ , पंच , लाला और सब ऊँची जात वाले थू थू करने लगे ....की इस बार कोई बड़ी विपदा इस गावं पे आएगी ...इतने कीमती और पवित्र सिक्के किसी अछूत ने छु लिए ..
हुकम जारी हुआ और जमादार सुखीलाल को धर दबोच कर लाया गया ...की ..उसे वोह सिक्के कंहा से मिले .... सब गावं वाले इक ही आवाज में चिल्ला रहे थे ..की सुखीलाल ने लाला नेकचंद से झूट बोला था की उसे सिक्के कंही पे दबे मिले ..जरुर यह किसी मंदिर के खजाने में होंगे ..जो इसने वंहा से चुरा लिए ...
जमादार सुखीलाल की जमकर धुनाई की गई ...उसे पता भी न था की असली माजरा क्या है और उन सिक्को में क्या राज है? ....उसने रोते बिलखते कहा ..हुजुर गलती हो गई ..यह सिक्के मुझे इक नाली में पड़े मिले थे ...जिनपे बहुत ही कीचड़ जमा था ..मेने बहुत कोशिश की ..पर वोह साफ़ ही न हुआ ..मेने अपनी घरवाली को जब यह सिक्के दिखलाये तो उसे समझ आया की यह सिक्के तो सोने के है ..उसने उन्हें साफ़ करने के लिए ...थोडा बहुत छिला और कुछ कोने काट दिए ..बस ...इसके आगे मुझे कुछ न मालूम ...
अब सिक्को के कोने कटे होने की बात सबको समझ आगई ..की वोह सिक्के कोई रामराज्य के ना थे बस आम से ही थी ...जो जमादार को किसी नाली में पड़े मिले थे ....
अचानक पंडित का लड़का दौड़ता हुआ आया और बोला ..अरे बापू यह सिक्का लो ...मुझे मंदिर में पड़ा मिला था ....
By
Kapil Kumar
Note: “Opinions
expressed are those of the authors, and are not official statements.
Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental. Do not
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