कभी तो तुम आम इंसान में भी आम बन जाती हो
कभी खासो से भी खास बन जाती हो
ऋतू भी इतनी तेजी से नहीं बदलती
जितनी तेजी से तुम अपने मिज़ाज दिखाती हो
मुझे समझ नहीं आता
कि जब यह आम इंसान है तो
मेरे करीब क्यों नहीं
अगर यह ख़ास है तो
इसमें इतनी जिद्द और दूसरी कमजोरी क्यों रही
इसलिए मैंने तुम्हें
सिर्फ एक आम सा ख़ास बनाया है ।
ख्यालों में भी
मेरी बनकर रहना
क्यों तुम्हे पसंद नहीं आया है ?
By
Kapil Kumar

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