सोचता हूँ मैं ...
तुझसे मोहब्बत करके, मुझे क्या क्या मिलेगा
इस जिस्म को ,सकून तू देगी नहीं ,
सिर्फ दर्द ही मिलेगा ....
जिसका मरहम, तेरे पास है ही नहीं
ऐसा जख्म तुझसे, जरुर मिलेगा
तुझसे मोहब्बत करके.........
मुझसे ना मिलने के बहाने , तू हर दिन बनाएगी
कभी प्यार से तो कभी लताड़ से, मुझे डराएगी
इन सबसे भी ना बहला तो ,ज़माने का खौफ़ दिखाएगी
तेरी इन हरजाइयों का अहसास, हर दिन मुझे मिलेगा
तुझसे मोहब्बत करके.........
गमो को एक दिन, अपनी तक़दीर बना लूँगा
अपने आपको जीते जी, दोज़ख में जला लूँगा
ऐसी सौगातों का तोहफ़ा , जरुर यादगार मिलेगा
तुझसे मोहब्बत करके.........
रुसवाईयां भी दामन में ,सिमटी चली आएँगी
ज़लालत भी ख़ुशी से , मुझे गले लगाएगी
शहर का हर शख्स , मेरे नाम पर हंसेगा
तुझसे मोहब्बत करके.........
इन सबसे भी मैं ना माना, कल अगर
हो गया फ़ना तेरी मोहब्बत में, एक आशिक बनकर
मेरी मोहब्बत का और ही किस्सा, तू सबको सुनाएगी
हँसेगी महफ़िल में , अकेले में खुद को रुलाएगी
तेरे इन हालातों पर , मेरी रूह का दिल भी जलेगा
तुझसे मोहब्बत करके.........
By
Kapil Kumar
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