Tuesday, 5 January 2016

यादें......




जब दर्द, इस कदर बढ़ जाता है 
एक  वक़्त के बाद , दर्द खुद दवा बन जाता है 
आँसू  स्याही बन जाते है 
दिल के टुकड़े , इसमें डूब खुद कलम बन जाते है .....


टूटे टुकड़े इसमें रम कर ,नए नए अफसाने लाते है 
इन अफसानों  को समेटने के लिए 
तब यादें  किताब बन जाती है 
जो दर्द कल तक रुलाता था 
वही कल जीने का बहाना बन जाता है....... 

By
Kapil Kumar 

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