बहुत पुरानी बात है , एक बार बोधिसत्व ने राज परिवार में जन्म लिया । उसी वक़्त, राजा के मंत्री के यंहा भी एक शिशु ने जन्म लिया ।कालांतर में इस शिशु का नाम "कपिल " रखा गया । दोनो बच्चों ने अपना शैशव काल एक साथ खेलते हुये गुज़ारा ।वक़्त के साथ बच्चे व्यस्क हो गए । बोधिसत्व ने राज पाठ सभाला तो "कपिल " को मन्त्री पद से नवाजा ।महाराज बोधिसत्व ने कभी मंत्री "कपिल " को अपना सेवक नहीं समझा , हमेशा उससे अपने परम सखा जैसा व्यव्हार और आदर दिया ।
राज दरबार में नाना प्रकार के दरबारी थे जो राजा का मनोरंजन करते और बदले में खूब धन दौलत पाते थे । पर महाराज ने यह कृपा मंत्री "कपिल " पर कभी नहीं की और महाराज की इस अनदेखी को मंत्री ने भी ज्यादा तवज्जो नहीं दी । पर वक़्त की आवश्यकताओ ने धीरे धीरे मंत्री के मन में यह संशय डाल दिया । की महाराज उसकी योग्यता का मूल्यांकन सही नहीं करते ! मंत्री के अन्दर चलने वाले इस अंतर्द्वंद को राजा बोधिसत्व ने पहचान लिया |
एक दिन राजा ने मंत्री से कहा , मंत्री जी आज आप हमारे साथ शाम भेष बदल कर राज भ्रमण पर जायेंगे " ! जो आज्ञा कह मंत्री ने शाम को अपना भेष बदल आने का वादा कर, वहां से विदा ली और शाम को दोनों एक सामान्य मुसाफिर का भेष धारण कर राज भ्रमण पर निकल पड़े ।
रास्ते में उन्हें एक आदमी दिखाई पड़ा जो सडक पर बैठा भीख मांग रहा था
राजन बोधिसत्व ने कहा ...मंत्रीजी, यह आदमी कल तक बहुत धनवान था पर इसने सारा धन व्यापार में खो दिया, अब यह दाने दाने को मोहताज़ है ।
कुछ दूर चलने पर उन्हें एक बहुत बड़ी दुकान पर एक सेठ बैठा दिखाई दिया । जिसके सामने नाना प्रकार के भोजन थे पर , वह उन्हें सिर्फ़ निहार रहा था , मंत्री ने पूछा , राजन , यह सेठ भोजन ग्रहण क्यों नहीं कर रहा । राजन ने उत्तर दिया............
इसका स्वास्थ्य इसे इसकी इजाजत नहीं देता , इसलिए यह सिर्फ देख कर प्रसन्न हो जाता है ।
थोडा दूर और चलने पर उन्हें एक ब्राहमण दिखाई दिया........., जो एक स्वान के मुंह में हाथ डाल उसके दाँत गिनने की चेष्टा कर रहा था ।
मंत्री के लिए यही दृश्य बड़ा ही विचित्र था।.......उसने प्रश्नवाचक नज़रों से राजन की तरफ देखा ? राजन बोधिसत्व ने मंत्री "कपिल" की जिज्ञासा शांत करते हुए कहा ......." मंत्रीजी " यह कल तक एक प्रकांड विद्वान था , अपने ज्ञान के नशे में इसने एक कुम्हार से शास्त्रात कर लिया और
उसमे "गधे " का अर्थ न बता पाने के कारण हार गया , तब से यह अपना मानसिक संतुलन खो चूका है ।
चलते चलते राजा और मंत्री शहर की सीमा के बहार जंगल तक आ गये ।अब तक रात का तीसरा पहर बीत चूका था और मंत्री का ध्यान वापस घर जाने को हो रहा था ,की दोनों की नज़र एक इन्सान पर पड़ी जो , बड़ी शीध्रता के साथ , हाथ में एक पोटली उठाये भगा जा रहा था । दोनों ने जब उसे ध्यान से देखा तो पता चला वोह राज्य का महामंत्री था , मंत्री "कपिल" का मुंह खुल्ला का खुल्ला रह गया , उसने राजन की तरफ देखा तो , राजा बोधिसत्व ने मुस्करा कर कहा , इस पर देश द्रोह का आरोप लगा था , जिसकी खबर शायद इसे लग गई है .....
कल इसे सबके सामने अपमानित न होना पड़े इसलिए यह सबकुछ छोड़ छाड़ कर देश छोड़ कर जा रहा है ।
राजा बोधिसत्व ने मंत्री से कहा....... तुम्हें हमने कभी अपने से अलग नहीं समझा.... बताओ........ तुम्हरे पास किस वस्तु की कमी है ? तुम्हारे पास भोजन ,वस्त्र , घर है ,तुम शारीरिक रूप से स्वस्थ भी हो............ तुम्हरी सलाह के बग़ैर हम कोई महत्वपूर्ण कार्य भी नहीं करते और तुम्हें सबसे ज्यादा मान -सम्मान भी देते हैं .............फिर भी तुम्हे किसी चीज की आवश्यकता थी तो तुम हमसे बोल सकते थे....... पर तुमने यह भाव रख की हम तुम्हारा ध्यान नहीं रखते करके हमारा दिल दुखा दिया है ।
इसलिए यह राज पाठ तुम्हे छोड़ हम सन्यास को जा रहे हैं ।
राजन की बात सुन मंत्री बड़ा लज्जित हुआ उसे अपनी गलती का तत्काल आभास हो गया वह बोला , महाराज मुझे क्षमा करे , वैभव को मैंने आपके स्नेह से ऊँचा स्थान दिया ।
जब आप ही नहीं तो ,यह राज पाठ अब मेरे किस काम का । क्या आत्मा के बैगर शरीर का कोई अर्थ है ?
बोधिसत्व ने कहा , मंत्री हमारा जाने का निश्चय तो अटल है.......... अगर तुम हमें यह बता सको की सबसे बड़ा "निर्धन" कौन था............ तो हम अपने गंतव्य की तरफ प्रस्थान करे............... जो आज्ञा कह.......... मंत्री कपिल ने कहना शुरू किया..................
महाराज...... सबसे बड़ा "निर्धन" मैं हूँ ......जो आपके सामने खड़ा है , बोधिसत्व ने रहस्यमयी मुस्कान भाव से पुछा ..... कैसे मंत्रीवर ?
मंत्री कपिल ने कहा , महाराज ................:
जिसने धन गंवा दिया उसने कुछ खो दिया , जो वह आने वाले समय में फिर पा सकता है ।.............
जिसने स्वास्थ्य खो दिया उसने थोडा ज्यादा खो दिया........... क्योंकि वह धन का उपयोग नहीं कर सकता............. पर थोडा परिश्रम से वह उसे वापस भी पा सकता है ।..................
जिसने "ज्ञान" खो दिया , उसके लिए धन ,स्वास्थय का होना न होना कोई मायने नहीं रखता , पर थोड़े यतन और जतन से उसकी प्राप्ति संभव है !
जिसने "चरित्र " खो दिया उसके लिए न तो धन ,स्वास्थय ,ज्ञान का कोई अर्थ ? अपने मूल और आचरण को सुधार कर.. इसकी प्राप्ति भी संभव है ।
पर.... सबसे बड़ा निर्धन तो मैं हूँ ......जिसने "प्रभु" को खो दिया अब मेरे लिए इस धन ,स्वास्थय ,ज्ञान, और चरित्र का होना न होना कोई मायने नहीं रखता" मेरी तो अब इस जन्म में मुक्ति भी संभव नहीं ।
बोधिसत्व "मंत्री" के ज्ञान से थोडा प्रभावित हुए और बोले.....
कमान से निकला तीर और जुबान से निकला वाक्य तो फिर भी बदला जा सकता है पर मन में आया भाव बदलना इतना आसन नहीं|................
अगर तुम्हे मुक्ति चाहिए तो तुम्हे इसके लिए प्रायश्चित करना होगा ।........ कैसा प्रायश्चित प्रभु "मंत्री" ने बड़ी दीन भाव से पुछा ?.......
तुम्हे मनुष्य योनी में एक "नास्तिक" के रूप में तब तक जन्म लेना होगा और बिना अपनी "आस्था " खोय और बिना कोई आडम्बर किये मुझे पाना होगा।
तभी तुम्हारी मुक्ति संभव है और ऐसा कह "बोधिसत्व" घने जंगलो के अंधरे में खो गए ।
Note:- मंत्री कपिल की मुक्ति कैसे होती है उसके किये पढ़ें
No comments:
Post a Comment