Thursday 5 January 2017

प्रेम की वज़ह


यह तेरे ही तो दिल का दर्द है , 

जो मेरे सीने में उठता है फिर इस दर्द को हम पिए , 
दोनों की ऐसी कौन सी सजा है ?
यह तेरा ही तो आँशु है , 
जो मेरी आँखों से बहते है फिर इस सजा को इस तरह काटे , 
ऐसा कौन सा गुनाह हमने किया है ?
यह तेरी ही रूह का तो आकर्षण है , 
जो मुझे तेरी तरफ खींचता है 
फिर मुझसे तू इस तरह से दूर जाए , 
ऐसी कौन सी मेरी ख़ता है ?
यह तेरा ही तो बनाया बंधन है ,
 जिससे मैं बंधा हूँ फिर मुझसे यूँ रुसवा होने की , 
यह किसके लिए तेरी वफ़ा है ?
यह तेरा ही तो मोह है , 
जिसके खातिर मैं तेरे पीछे पड़ा हूँ फिर मुझसे रूठ जाने की , 
यह कौन सी तेरी अदा है ?
यह तेरा ही तो जीवन है , 
जिसके सहारे चलती मेरी साँस है फिर इस बात को भूल जाने की , 
ऐसी कौन सी वजह है ?
यह तेरा ही तो शरीर है , 
जिससे मेरा भी दिल जुड़ा है फिर इस तरह से मुझे अलग करने की , 
यह किसके प्रेम की  वज़ह  है ?

By 

Kapil Kumar 

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