यह तेरे ही तो दिल का दर्द है ,
जो मेरे सीने में उठता है फिर इस दर्द को हम पिए ,
दोनों की ऐसी कौन सी सजा है ?
यह तेरा ही तो आँशु है ,
जो मेरी आँखों से बहते है फिर इस सजा को इस तरह काटे ,
ऐसा कौन सा गुनाह हमने किया है ?
यह तेरी ही रूह का तो आकर्षण है ,
जो मुझे तेरी तरफ खींचता है
फिर मुझसे तू इस तरह से दूर जाए ,
ऐसी कौन सी मेरी ख़ता है ?
यह तेरा ही तो बनाया बंधन है ,
जिससे मैं बंधा हूँ फिर मुझसे यूँ रुसवा होने की ,
यह किसके लिए तेरी वफ़ा है ?
यह तेरा ही तो मोह है ,
जिसके खातिर मैं तेरे पीछे पड़ा हूँ फिर मुझसे रूठ जाने की ,
यह कौन सी तेरी अदा है ?
यह तेरा ही तो जीवन है ,
जिसके सहारे चलती मेरी साँस है फिर इस बात को भूल जाने की ,
ऐसी कौन सी वजह है ?
यह तेरा ही तो शरीर है ,
जिससे मेरा भी दिल जुड़ा है फिर इस तरह से मुझे अलग करने की ,
यह किसके प्रेम की वज़ह है ?
By
Kapil Kumar
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