इंसान के लिए मोहब्बत की जंजीरे तोड़ना बहुत आसन है पर गुलामी के धागे तोड़ना अत्यंत मुश्किल .....क्योंकि मोहब्बत की जंजीरे दिल से और गुलामी के धागे दिमाग से जुड़े होते है और दिल तोड़ना सबसे आसन काम है ....
अगर लोगों से पूछा जाए की दुनिया में कौन से दो तरह के लोग है ? तो कुछ कहेंगें अमीर - गरीब , कुछ का ख्याल होगा अच्छे - बुरे , कोई कहेगा आस्तिक - नास्तिक या छोटे - बड़े या कोई कहेगा कमजोर - ताकतवर , छोटा -बड़ा, अनपढ़ -समझदार ... पर मेरे अनुभव से यह छोटी केटेगरी है , प्रमुख है दुनिया में दो तरह के लोग है , वह है मालिक और गुलाम । क्योंकि गुलामी तो अमीर,ताकतवर और बड़े लोग भी करते है , अब एक फ़कीर से लगने वाले बाबा के पैरों में ना जाने कितने अमीर , ताकतवर और पढ़े लिखे लोग भी लोट जाते है ..... अच्छे खासे पढ़े लिखे समझदार लोग अपने से थोड़े सुपीरियर इंसान की फालतू की जी हजुरी करने बैठ जाते है .... इसमें सोचने और देखने की बात यह है जो इंसान खुद गुलामी करता है , वह दुसरो को भी गुलामी करने का उपदेश देगा और उनसे भी ऐसा करने की अपेक्षा रखेगा ...
यहां देखने और समझने की यह बात है गुलामी दो तरह की होती है मानसिक और शारीरिक , शारीरिक गुलामी मज़बूरी में तो मानसिक इंसान खुद अपनी मर्जी से क़बूल करता है ....जब जब सोचता हूँ की वह पहला कैसा और कौन सा इन्सान होगा जो मालिक बना होगा और जिसने किसी को अपना गुलाम बनाया होगा ...आखिर कोई इन्सान किसी की गुलामी क्यों और कैसे कबूल कर लेता है,? सोचने की बात है जबकि दोनों ही इंसान है ,फिर एक दूसरे के गुलाम क्यों है ? क्या गुलामी सिर्फ इंसानों तक ही सिमित है या यह जानवरों में भी ऐसा होता है ?....यहां ध्यान रखने लायक बात यह है मालिक और लीडर में फर्क होता है .... लीडर से सहमत होना या न होना , उसके कार्य की समीक्षा करना या लीडर का चुनाव करना और योग्य होने पर उसे बदल देना , यह जनता के हाथ में है ...
इस बात को समझने और परखने के लिए मैंने जानवरों के काफी विडियो देखी खासतौर से जंगली भैंसे , हाथी , हिरण , नील गाय , वोल्फ (भेड़िया ) , शेर और हईना की ...इनका नाम मैंने इसलिए लिखा क्योंकि ,यह सब जानवर एक पैक(छोटा समूह ) या बड़े समूह (हर्ड) में रहते है ....इनमे कोई एक जानवर ग्रुप का लीडर होता है ....पर कोई किसी का गुलाम नहीं होता ....जानवरों में लीडर या मुखिया वही बनता है जो उनमे श्रेष्ठ , समझदार अनुभवी और सबसे ताकतवर होता है ....पर इंसान तो जानवरों से भी गया गुजरा है , जो अपना लीडर इनमें से किसी एक विशेषता पर भी नहीं चुनता ....क्या आप लोगो को लगता है , की हमारे समाज में आज के लीडर , सबसे ज्यादा काबिल , समझदार या कुछ है ? तो शायद आपका भी जवाब होगा नहीं ?
फिर क्या कारण है की हम अपना लीडर या मुखिया किसी नाकाबिल इंसान को बना लेते है ....असल में हम उन्हें लीडर नहीं अपना मालिक बनाते है और हम करते है उनकी गुलामी ....यही है मानसिक गुलामी , जिससे आजादी , सिर्फ इंसान अपने आप पा सकता है , उसे कोई दूसरा आजाद नहीं करा सकता ....मालिक वह शख्स होता है जो किसी भी तरह से क़ाबिल नहीं है , जो कुछ नहीं करता , सिर्फ ऐशो आराम की जिन्दगी बिताता है....
शारीरक रूप से गुलाम लोगों का मालिक उनका शारीरिक , मानसिक शोषण ही नहीं अपितु उनपर अत्याचार भी करता है, वहीं दूसरी और गुलाम , वह इन्सान है जो बंधा है अपने मालिक के रहमों करम पर उसकी दया की भीख पर . जिसमें कई बार गुलाम को ना तो आजादी से सांस लेने की इजाज़त है और ना ही किसी तरह से कुछ और करने की ... पर गुलाम सब कुछ सहता है , उसे अपनी जिन्दगी की नियति समझ कर आखिर क्यों ? गुलामी भी तरह तरह की होती है ,जिसमे एक इंसान अपनी जरुरत के लिए या मज़बूरी में तो दूसरी तरफ सामाजिक बेडियो की खातिर गुलामी में बंध जाता है .....
क्यों कोई इन्सान अपनी गुलामी से आजाद नहीं होता ? सच कहूँ दुनिया में अधिकतर लोग गुलाम जैसे ही होते है , उन्हें आजादी चाहिए ही नहीं होती , उन्हें हमेशा एक मालिक की ज़रूरत होती है , जो उनका इस्तमाल एक गुलाम की तरह कर सके ....यह एक कटु सत्य है की दुनिया में अधिकतर लोग गुलामी के लिए ही पैदा होते है और गुलामी करने को ही अपना सौभाग्य समझते है ......
क्योकि मानसिक गुलामी में सहूलियत है , पर आजादी में दर्द , परिश्रम और संघर्ष है ....आजादी सोचने , समझने को मजबूर करती है , आजादी बहुत पीड़ा देती है और गुलामी में सिर्फ बिना कुछ किये सब कुछ मिल सकता है , बशर्ते आप अपना आत्म सम्मान बेच दे ...
कितनी अजीब बात है , मोहब्बत की जंजीर कितनी भी मजबूत क्यों न हो , इन्सान उसे एक झटके में तोड़ देता है , पर गुलामी के धागे कितने भी कमजोर क्यों ना हो , वह उन्हें सारी उम्र नहीं तोड़ पाता , आखिर क्यों ?
आखिर क्या वजह है किसी इन्सान का दुसरे इन्सान का गुलाम बनने की ,जितना मुझे अनुभव हुआ , उसके अनुसार इंसान के अन्दर दो चीज़ें है जो उसे गुलाम बनाती है ,
पहली है डर और दूसरी है लालच .....
जब आप अपने ऊपर से विश्वास खो दे और यह भ्रम मन में पाल ले की सामने वाला आपका कुछ अहित कर सकता है या आप से कुछ छीन सकता है तो यह डर आपको उसकी गुलामी की तरफ ले जाएगा ...या फिर आपके मन में यह लालच समां जाए की सामने वाला आपको कुछ दे सकता है , तभी आप उसके पैरों में लोट कर उसकी गुलामी करंगे ...
मुझे हैरानी होती है , की कैसे पढ़े लिखे समझदार , अमीर , ताकतवर लोग , क्यों और कैसे एक गंदे से दिखने वाले , मोटे भैंसे से , अनपढ़ जाहिल इन्सान के पैरो में लोट उसे अपना गुरु मान लेते है ...आखिर क्यों ?जिसके पास खुद के लिए कुछ नहीं है ...वह आपको क्या देगा और सबसे बड़ी बात यह की आपको उससे कुछ चाहिए ही क्यों ? बस उनकी चिकनी चुपड़ी बाते , जिसमे सिर्फ सामने वालो को आने वाले भविष्य डर या लालच बेचा जाता है ... जब जब इन्सान अपने ऊपर से विश्वास खो देता है , उसे दुसरो के द्वारा शोषित होने से कोई नहीं रोक सकता ...
सबसे ज्यादा गुलामी हम रिश्तों में निभाते है , जिसमे समाज की मान मर्यादा का डर , तो कभी कर्तव्य के झूठे सब्जबाग , तो कभी नेकी का लालच देकर इंसान को बहला फुसला कर गुलामी में बांध दिया जाता है ... गुलामी इन्सान के दिमाग की वह स्थिति है , जो एक बार उसके दिमाग में बैठ गई तो , फिर उसे वहां से हटाना बहुत ही कठिन है ...गुलामी एक ब्रेन वाश है , जो परमानेंट है , इसलिए इंसान मोहब्बत की मोटी जंजीरों को कुछ पलो में तोड़ सकता है , क्योकि वह दिल से जुडी है , पर गुलामी के धागे , सीधे दिमाग से जुड़े है , जिन्हें तोडना अत्यंत ही कठिन है ....
गुलामी करने वाला कभी यही स्वीकार ही नहीं कर पाता की वह कब दुसरे के चंगुल में फंस चूका है , उसे लगता है वह दुसरे की सेवा करके पुण्य कम रहा है और उसका मालिक उसकी इस सोच पर मन ही मन हँसता है .... मानसिक गुलामी भी कई तरह से की जाती है ,
जनूनी गुलामी ....इसमें सामने वाले के दिमाग में एक विचार रोप दिया जाता है की , वह इस दुनिया में किसी विशेष कार्य करने के लिए पैदा हुआ है और ऐसा करने से उसे स्वर्ग या जन्नत मिलेगी , अब यह विशेष कार्य क्या है , यह उसे तब बताया जाती है , जब वह अपने दिमाग में यह भर चूका होता है , की उसे कुछ अलग करना है ...
ऐसे लोगो को हम जेहादी बोलते है ,दुनिया में फैला हुआ धर्म के ऊपर आतंकवाद , इस तरह के जुनूनी गुलामी का ही असर है , की लोग आत्मघाती हमें करते है और यह भी नहीं देखते की बेकसूर और निर्दोर्ष लोगो को पाने साथ मौत के मुँह में ले जा रहे है ।
ऐसा ही कुछ गुलामी का बीज हमारे भारतीय समाज में लडकियों के मन में बचपन से रोप दिया जाता है , उन्हें ऐसी ही शिक्षा देकर जवानी तक बड़ा किया जाता है , की सब कष्ट सहो , पर पति का घर मत छोड़ो ,चाहे वह कैसा भी हो, उसी के घर में ही जन्नत या स्वर्ग है ....
डर की गुलामी .... दुनिया में जो पहला गुलाम बना होगा वह जरुर दुसरे इन्सान से डरा होगा की यह मेरा कुछ अहित कर देगा , ऐसे गुलामों के दिमाग में एक बीज रोप दिया जाता है की वह अगर , बताये हुए रास्ते पर नहीं चलेंगे तो उनका बुरा वक़्त आजायेगा या अगले जन्म में उन्हें इसका दंड भोगना पड़ेगा ....
ऐसे गुलाम धार्मिक लोगो के चंगुल में फंसे रहते है , की अगर उन्हीने धर्म की पूजा अर्चना नहीं की तो भगवान या खुदा उनसे नाराज होकर उनका अहित कर देगा , इसलिए ऐसे गुलाम मानसिकता के लोग , अपने अनजाने डर से कर्मकांडी धार्मिक बन जाते है , जो सिर्फ खुदा के घर में तो नेक फ़रिश्ता होता है , पर हकीकत की दुनिया में वह एक लालची और पापी इन्सान होता है ...उसे खुद पता होता है की , मैंने कुछ गलत किया है या करता हूँ इसलिए , अपने आप को खुदा/गॉड/भगवान के दरवाजे पर दस्तक जरुर देने जायूँगा , ऐसे गुलामों का फायदा खुदा के घर को चलाने वाले जी भरकर उठाते है ....
कितनी अजीब बात है इंसान ने गुलामी के लिए सिर्फ इंसानों को ही नहीं , पत्थरों , दीवारों और तो और लकड़ी के खम्भे तक को अपना मालिक बना लिया ....क्या इनमे से कोई किसी इंसान का कुछ अहित कर सकता है या उसे कुछ दे सकता है ?...
दुसरे तरह के गुलाम वह लोग जो किसी की ताकत से भयभीत होकर उसकी गुलामी करते है की , उसके सहारे उन्हें भी अपनी गुंडागर्दी करने में आजादी रहेगी या दुसरे वोह लोग जो उनके द्वारा अपन अहित से डरते है , उनकी गुलामी क़बूल कर लेते है ....देखने और समझने की बात यह है की दुनिया को बनाने वाला क्यों भला अपने बनाये बन्दों पर जुल्म करेगा ...पर जिसे गुलामी करनी है वह तो गुलामी करेगा , यह और बात है की उसने कभी अपने मालिक को भले ही कभी देखा ना हो ...
लालच की गुलामी .... शायद पहला गुलाम डर या लालच से बना हो , की अगर इन इन्सान के साथ मैं रहूँगा तो , मुझे बिना मेहनत के भोजन मिल जाएगा या मैं सुरक्षित रहूँगा ....धार्मिक गुलामी भी इसी तरह से की और करवाई जाती है ...
अंत में ....सच कहू तो बहुत कम इन्सान है जिन्हें अपने मानसिक और शारीरिक क्षमता पर विश्वास होता है .... जिस भी काम को करने में आपके आत्मसम्मान को चोट लगे और उस काम को आप किसी डर या लालच की वज़ह से करे तो समझ ले , आपने उस इन्सान या वस्तु की गुलामी स्वीकार कर ली है ....
By
Kapil Kumar
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