झुकी झुकी सी नज़रें
अब खामोश हो चुकी है
कितना प्यार है इनमें
ऐसा कह कर वह थक चुकी है
मेरे दिल की धड़कने तेरे इंतजार में
जवानी से अब बूढी हो चुकी है
तू आएगी कब ऐसा सोच कर
वह थक चुकी है
इंतज़ार अब मौत का ही बाकी है
इंतजार में
तेरे जिंदगी किस तरह से बीती
अब यह बात बेमानी है......
किस उम्मीद पर तेरा इंतजार करू
जब यह साँस ही साथ छोड़ने लगी है
तुझपे भरोसा तो मुझे अपने से ज्यादा है
शायद तेरा ग़म मुझसे ज्यादा भारी है
यह बात अब मुझे अंदर से
अब तोड़ने लगी है......
By
Kapil Kumar
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