Sunday, 24 July 2016

गुलामी के धागे –3


गुलामी के धागे –1
गुलामी के धागे – 2


कुछ दिनों  पहले मैंने  ब्लॉग लिखा था जिसमें मैंने  जिक्र किया की आखिर इन्सान गुलामी के धागों से क्यों बंधा रहता है ...आखिर वे  क्या कारण है की गुलामी के धागे अत्यंत कमजोर होने के बाबजूद  मोहब्बत की मजबूत जंजीरों से ज्यादा असरदार और टिकाऊ होते है ...इसी सोच को आगे बढाते हुए मैंने  मानव विकास में उसकी सोच को अपने अंदाज में देखा और परखा जिसका विश्लेषण मैं यहां  पर कर रहा हूँ ... ....जैसे के मैंने  पहले दो भाग में लिखा था ...की इन्सान की कुछ कमजोरीयां होती है जो उसे गुलामी की तरफ धकेलती है ...डर गिल्ट,अभिमान ,इर्ष्या और लालच ...


इसी कड़ी में मैंने मानव स्वाभाव की कुछ और कमजोरियों  को भी जोड़ा है ...मेरे मन में हमेशा एक  बात घुमडती है की इन्सान और जानवर इस दुनिया में एक  साथ आये , फिर क्या वजह  थी की इन्सान , एक  अलग तरह का जानवर बन गया ..उसने अपने अंदर कुदरत के बनाए गुण और अवगुण के अलावा और चीज़ें  अपने व्यवहार  , चरित्र और स्वभाव  में क्यों और कैसे जोड़ी ? इसी खोज को आगे बढाते हुए , मैंने मानव स्वाभाव की कुछ और कमियों को देखा , समझा और परखा , जो इन्सान को गुलामी के धागों में अनजाने में लपेट देती है ....यहां पर एक बात यह समझने की है की गुलामी सिर्फ शारीरिक ही नहीं होती , मानसिक गुलामी शारीरिक गुलामी से ज्यादा घातक होती है ..ऐसे ही किसी इन्सान की गुलामी करना एक  बात है और अपने दिमाग को बंद करके किसी भी चीज का अनुसरण करना भी गुलामी ही है .....


चिंता –चिता के सामान है .... ऐसा मैंने  बचपन से सुना था , पर यह चिंता क्यों और कैसे पैदा होती है , इसकी खोज की तो जानकर हैरानी हुई की , ऐसा सिर्फ इंसानों में है , पशु , पक्षी सब इस समस्या से दूर है , फिर इन्सान के अंदर यह अवगुण कैसे और क्यों आ गया ?.... इन्सान ने अपनी खुशियों , सुख , दुःख और बुरे वक़्त को साझा करने के लिए इस समाज की रचना की, जिसमे उसे कुछ रिश्ते , कर्तव्य और नियम के अधीन बाँध दिया गया ....देखने और समझने की बात यह है की ऐसा पशु और पक्षियों में भी होता है , की जानवर एक  पैक या हर्ड में और पक्षी एक  झुण्ड में रहते है और अपने समाज के नियम को मानते है .... जैसे सबसे ज्यादा ताकतवर शेर, भेड़िया और जंगली कुत्ता अपने पैक का लीडर और पक्षियों में भी जो सबसे ज्यादा समझदार होते है वही अपने समूह का नेतृत्व  करते है ....पर चिंता जैसे किसी अवगुण से यह लोग पीड़ित नहीं है , फिर मनुष्य क्यों है ? ....

मेरे अनुभव में देखने और परखने में आया की इन्सान अपने वर्तमान में ना जी कर आने वाले भविष्य के लिए जीता है ..कितनी हैरानी की बात है जो अपने को प्राणी जगत में सर्वोत्तम बोलता है वही कुदरत के बनाये सिस्टम को समझकर भी अनजान है ...की भविष्य हमेशा अनिश्चित होता है ...फिर भी इन्सान भविष्य की चिंता में वर्तमान को बलि चढ़ाता है .....भविष्य की ग़ैरज़रूरी सोच ही इन्सान के मन और मस्तिस्क में चिंता का बीज बोती है ...पशु और पक्षी सिर्फ वर्तमान में जीते है , वह भी भविष्य के लिए चीज़ें जुटाते है और मेहनत भी करते है ..पर उसकी चिंता नहीं करते ..जैसे चिड़िया अंडे देने से पहले घोंसला  तैयार करती है , ऐसे ही और मादा जानवर अपने बच्चे देने से पहले एक  सुरक्षित स्थान की खोज में लग जाती है ....पर यह सब कर्म में विश्वास करते है ..ना की ख्याली सोच में ..इन्सान कर्म ना करके सिर्फ विचार करता है ...यह विचार उसके दिल और दिमाग में एक  ऐसा अवगुण रोपता है जिसे हम चिंता बोलते है ..अगर इन्सान सिर्फ अपने कर्म को अंजाम दे , तो चिंता उसके पास भी न फटके , पर हम कर्म से ज्यादा सिर्फ बातों में अपना समय नष्ट करते है ...इन्सान कर्म करने से पहले सोचता है , कर्म करते हुए और कर्म करने के बाद भी सोचता है ...की काश ऐसा होता या वैसा होता ...बस यह ऐसा या वैसा ही चिंता है ....

पर पशु या पक्षी अपने को सिर्फ कर्म तक ही सिमित रखता है ...मादा जानवर या पक्षी सिर्फ अपने बच्चो के बड़े होने तक उनकी परवरिश का जिम्मा लेती है , उसके बाद वह उन्हें आज़ाद छोड़ देती है ..पर इन्सान अपने सर पर  जिम्मेदारियों और जरूरतों का बोझ ढोता है , जिसमे कर्म कम , सिर्फ बातें ही बातें होती है , जो उसके दिमाग में चिंता को जन्म देती है ...अगर हम अपने आस पास देखे तो , हम जाने अनजाने  ऐसी बातो से चिंतित है जिनका हमारे ऊपर कोई वश नहीं और ना ही हम उसमे अपना कुछ योगदान दे सकते है सिवाय चिंता करने के .....


आपका बच्चा पढता नहीं है या उसके पास कोई नौकरी या रोजगार नहीं है , उसके भविष्य के लिए माँ बाप चिंतित है , जिसे कर्तव्य को अंजाम देना है ..उसे इसकी चिंता हो या न हो पर माँ बाप फालतू में दुबले  हुए जा रहे है , जबकि वह यह अच्छे से जानते है की , सारी जिन्दगी वह उसका बोझ नहीं उठा सकते या एक  समय के बाद वह दुनिया में अकेला होगा , पर उन्हें तो चिंता करनी है ....पत्नी पति की नौकरी तो , कभी उसके रोजगार को लेकर बस चिंतित है , करना उसे भी कुछ नहीं है सिवाय चिंता के ..क्योंकि जिसे करना है ..वह मस्त है या फिर जब आप खुद कोई जिम्मेदारी लेकर परिवार का बोझ नहीं उठा सकती तो , बेकार की चिंता का क्या अर्थ ?.....चिंता वह विचार है जो इन्सान खाली दिमाग की वजह से पैदा करता है , अगर आप अपने को किसी काम में वयस्त कर ले तो चिंता आपके पास फटकेगी भी नहीं .....पर चिंता ऐसी मानसिक गुलामी है जिसमें  , सिर्फ विचार है , मेहनत और कर्तव्य शून्य हैं ...


कुछ दिन पहले मेरी एक  मित्र के पति ने अपनी कंपनी में लड़ाई करके नौकरी छोड़ दी , अब पति ने अपने झूठे सम्मान या इज्जत या अपने स्वाभाव के कारण एक  फैसला लिया , पर घर में पत्नी इस चिंता में परेशान  की पति को दूसरी नौकरी कैसे मिलेगी , घर का खर्चा कैसे चलेगा ? यहां सोचने की बात यह है , जिसके जिम्मे यह जिम्मेदारी है अगर वही इन्सान गैरजिम्मेदारी करेगा तो इसमें आप क्या कर सकते है या तो आप खुद घर का बोझ उठाने के लिए तैयार रहे, क्योकि घर चलने की जिम्मेदारी आपने जब किसी को दे दी है और उसे आप लेना नहीं चाहते तो फिर यह मान कर चले की जो होगा देखा जायेगा पर हकीकत में हम , सिर्फ चिंता करते है , की सामने वाला कोई चमत्कार कर दे या वह हमारे विचार अनुसार चले , आप  हक़ीक़त में अगर उसे कुछ करना होता तो वह ऐसा कदम ही क्यों उठाता ? पर हम इस पर बेकार की चिंता करते है ....

ऐसे ही एक  बार मेरी एक  रिश्तेदार किसी दुसरे रिश्तेदार की सेहत को लेकर चिंतित थी , मैंने  उनसे कहा या तो तुम उसे देखने जाओ और अपने दिल को तसल्ली करो या फिर उसकी कुछ मदद करो या उसे ऑफर करो , बेकार में अपने घर बैठ कर चिंता के पुलाव पकाने  का क्या फायदा ?...इसमें ना उसका भला है ना आपका ....


कहने का सारांश यह है ..की आप या तो उस चिंता को दूर करने के लिए कुछ कदम उठाओ की उस चिंता की वजह ख़त्म हो , वरना उसके बारे में सिर्फ सोच विचार करना ..अपने आप को उसकी गुलामी में बाँधने से ज्यादा कुछ नहीं ? आप अपने आज को दुसरे के भविष्य की चिंता में अनजाने में नष्ट कर रहे है ...चिंता मानव मस्तिष्क की वह गुलामी है जो उसमे जकड़ गया ..समझो इस जीवन में उसका जीना  दुर्भर हो गया ...हमारे देश में औरते चिंता करने में सबसे अव्वल है ....देखा जाए तो चिंता करने का मतलब हम , अपने आपको लाचार , कमजोर और शोषित समझकर ही ऐसा विचार मन में पाल लेते है ....की ऊपर वाला कुछ चमत्कार कर देगा .....चिंता इन्सान का सबसे बड़ा रोग है ...जो इसमें जितना जकड़ता जाता है वह अपने जीवन के साथ साथ , अपने साथ के लोगो को भी एक  निराशा में धकेल देता है ...चिंता हमें बताती है की हम कितने लाचार , कमजोर और असहाय है ....ऐसा सिर्फ एक  गुलाम दिमाग ही सोच सकता है ....


प्रशंसक यानी फैन  --- फ्री के गुलाम ...अभी कुछ दिन पहले एक  हिंदी फिल्म देखि जिसमे हीरो के आने पर हाल में बैठे लोग सिटी और ताली बजा रहे थे ...मुझे समझ नहीं आया की ऐसा करने की क्या वजह है ..क्या वह उनका कोई अपना है ...पर शायद वह उसके फैन  थे ....ऐसे ही जब किसी लाइव शो में कोई सेलिब्रिटी  आता है और लोग बड़े जोर शोर से कहते है ..जी मैं आपका बहुत बड़ा फैन  हूँ ....


अगर हम सोचे तो शायद हमें इन्सान की इस सोच पर हंसी आये ...क्या कोई बता सकता है इस प्राणी जगत में इन्सान के अलावा कौन ऐसा प्राणी है जो अपनी ही प्रजाति के दुसरे जानवर या पक्षी का फैन  या प्रशंसक  हो ?...क्या कोई शेर , दुसरे शेर के पीछे ऑटोग्राफ लेने भागेगा , या एक  कौवा , दुसरे कौवे की शान में कसीदे पढ़ेगा ...अब ऐसे सोचे तो कितनी हास्यपद बात है ... पर इन्सान इस संसार का सबसे बड़ा गुलाम है जिसने , अपने को ऐसी ऐसी गुलामी की जंजीरों में लपेटा है की , उसे गर उसकी हकीकत दिखाई जाए तो वह शर्म से पानी पानी हो जाए ...


आपका कोई आदर्श है या आप किसी के फैन  है ..तो उस जैसा बनने की कोशिस करे , सिर्फ किसी के पीछे भागना , उनके लिए ताली बजाना और उनके कदमो में लोटने से आपको क्या हासिल होगा ..उन्होंने मेहनत की और एक  मुकाम हासिल किया और आप उनकी मेहनत में फैन  बनकर क्या हासिल करना चाहते है ? मुझे समझ नहीं आता की , कैसे कोई इन्सान दुसरे की कामयाबी पर खुश हो सकता है (या इर्ष्या कर सकता है )....किसी के अंदर  प्रतिभा थी , उसने उसके दम पर कुछ हासिल किया , इसमें उसके पीछे भागने या उसकी जी हजूरी  करना मेरी समझ से बाहर  है ....इन्सान दुसरे इन्सान के पीछे क्यों भागता है , जबकि वह इन्सान उसे कुछ नहीं देता सिवाय दुत्कारने  के ...फिर भी अधिकतर लोग किसी ना किसी के फैन होते है और उनके पीछे दीवानगी की हद तक पागल होते है .....एक  इन्सान का दुसरे इन्सान का प्रशंसक  होना ...इस मानव समाज की सबसे बड़ी गुलामी है .....शायद लोग अपने किसी विशेष नेता , अभिनेता , गुरु या खिलाड़ी  के पीछे भाग कर अपनी हीन भावना को पोषित करते है , जिसमे गुलामी का कीड़ा उनके दिमाग को चाट चूका होता है .....किसी के प्रशंसक  बने तो उसके आदर्श अपने जीवन में बनाये और निभाए भी ....सिर्फ उनके पीछे भागने या उन्हें पूजने से कुछ हासिल नहीं होगा सिवाय अपने दिमाग को गुलामी के धागे में उलझाने के .....


मान -सम्मान ,अपमान ...इस प्राणी जगत में सिर्फ इन्सान ही ऐसा जानवर है जिसके अंदर मान सम्मान जैसी बीमारी मोजूद है ...अगर ग़ौर से देखे तो क्या है मान सम्मान सिवाय खोखले दिखावे के ..जो लोग आज आपके सम्मान में सर झुकाते है , कल यही लोग वक़्त बदलने पर आपके ऊपर कीचड़ उछालने से नहीं चुकेंगे ...फिर भी इन्सान , दुसरे इन्सान के द्वारा किया गया नकली व्यवहार  देख कर मन ही मन प्रसन्न होता है .....कुछ लोग आपके आगे सर झुका दे या कुछ आपके आगे हेकड़ी दिखा दे , तो क्या फर्क पड जाएगा ? पर इन्सान के बनाये समाज में यह झूठी चीजे इन्सान को अभिमान और अवसाद के सिवाय कुछ नहीं देती ....यह ऐसी बीमारी है जो इन्सान को उसके बचपन से उसके घर , समाज वालो द्वारा उसके मन में जमा दी जाती है ....

देखने और समझने की बात है पशु कभी मान सम्मान या अपमान से अपनी जिन्दगी को प्रभावित नहीं होने देते ...शेर कितना भी ताकतवर क्यों ना हो ...जब जंगली कुत्तो का समूह उसके शिकार पर टूट पड़ता है , तब वह भी दुम दबा कर भाग जाता है ...इसे वह अपना अपमान नहीं समझता और न ही अपने इस व्यवहार पर  वह अपने मन में कोई निराशा या गिल्ट को जन्म देता ......


ऐसे ही जब एक  जवान और शक्तिशाली शेर , दुसरे पैक के शेर को ललकारता है , तो बुढा होता शेर लड़ने के बजाय , अपना सर झुका कर अपने पैक को छोड़ कर चला जाता है ..क्योकि लड़ने से उसे घायल होने का अंदेशा होता है और एक  बार जंगल में कोई जानवर घायल तो , कोई ना कोई उसका शिकार कर ही लेगा ..चाहे वह शेर ही क्यों ना हो ...पर इन्सान के अंदर अपनी हार को लेकर अपने सम्मान और अपमान के खोने या होने का डर सताता  है और इन्सान अपने दिल और दिमाग के अंदर एक  अवसाद या कुंठा को जन्म दे देता है ...


पशु दुसरे पशु द्वारा अपनी हार पर  ना तो अपमानित होते है और ना ही जितने पर किसी गर्व का अनुभव करते है ...उनके लिए किसी लड़ाई में हार जीत सिर्फ अपना अस्तित्व बचाने या भोजन के लिए ही होती है ...हाँ कई बार मादा के साथ सम्भोग के लिए जानवर एक  दुसरे के खून के प्यासे हो जाते है ...पर मान सम्मान जैसा अवगुण सिर्फ इन्सान के अंदर ही पाया जाता है ...यह इंसानी दिमाग की गुलामी का वह धागा है जो देखने में जितना नाजुक है पर अंदर से उतना ही मजबूत होता है .....मन सम्मान और अपमान , सिर्फ इन्सान के बनाये समाज के गुलामी के वह धागे है , जिनसे बांध कर इन्सान जाने अनजाने अपने अंदर झूठा अभिमान , घमंड , इर्ष्या , डर ,गिल्ट और अवसाद को जन्म देता है ...दुनिया में जितने भी दिखावे या झूठ है वही ..उनके पीछे सिर्फ मान सम्मान का डर ही है ....अपने मन में में झांके और देखे की आपके अंदर कौन कौन से गुलामी के धागे जाने अनजाने उलझे है ......अगर हो सके तो उन्हें अपने मन मस्तिष्क से उखाड़ फैंके , तभी आप एक  सच्ची मोहब्बत की कद्र कर पायंगे या उसे अपने जीवन में आत्मसात कर पायंगे ....

द्वारा
कपिल कुमार

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