तारीफ़
कौन जाने किसी की तारीफ़ हम कर बैठे यूं अनजाने मे
वो समझ बैठे इस हरक़त को आशिकाने मे
लगा दी हम पर पाबंदी उन्होने तारीफ़ करने की
हम तो कर रहे थे दिल्लगी बैठ कर मयखाने मे
अब उनके हुक्म की तामील सर झुका कर करेंगे
वो अब चाहे धक्का भी देदे अपने आशियाने से .....
By
Kapil Kumar
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