Wednesday, 29 June 2016

छोटी सी ख़ुशी ....



मेरी एक  छोटी सी ख़ुशी , जो बड़े से झूठ से थी जुडी ....
इस झूठ के सहारे , मैं जिन्दगी के कुछ पल हंस कर गुजार रहा था
कभी अपने दिल की कह लेता , तो कभी उसके दिल की सुन लेता
ना तो मैं उसे कभी कुछ दे पाया और ना ही उसके दिल का दर्द समझ पाया
फिर मैंने  उसके साथ हर लम्हा बड़ी शिद्दत से जिया
मैं चाहता रहा सिर्फ अपने अरमानो की ख़ुशी 
जो शायद उसके किसी दर्द से थी जुडी .....

बेरहम वक़्त को मेरा , यह मुस्कराना  भी पसंद ना आया
इसलिए तो इस नियति ने मुझे ,उससे हज़ारों  मील दूर मिलाया
मेरी चाहते थी बड़ी सीधी सादी, जिसे वह कभी कबूल ना फरमाती
मेरी वह मासूम छोटी सी ख़ुशी
जो उसे देती रही एक  हलकी सी कंपकंपी ....

मेरे बस में होता तो हर ख़ुशी का लम्हा उसपर  संजो देता
दुनिया की हर ख़ुशी देकर शायद मैं, अपने पर ही अहसान करता
काश उसके दिल में भी, मेरे इस अहसास का थोडा इल्म होता
मेरी तो ख़ुशी थी उसकी हर ख़ुशी में ,ना की अपना दिल बहलाने में  
तब शायद वह इतने जोर ना देती, मुझे अपने से दूर यूँ भगाने में 
मेरी वह खामोश सी ख़ुशी , जो उसे लगी बड़े से झूठ से जुडी ....

मेरा दिल मुझसे पूछता है हर बार 
क्यों झूठे से ही होता है हर किसी को ऐतबार
हम मोहब्बत करते है जिनसे , उन्ही से क्यों बेवफाई पाते है
जिनके कदमों  में रखते है दिल , वही हमारा दिल क्यों तोड़ जाते है
क्यों हम एक  छोटी सी ख़ुशी के लिए अक्सर बड़े झूठ बोल जाते है
मेरी वह मासूम सी ख़ुशी , जो उसके दिल में दर्द बनकर जा चुभी
मेरी वह एक छोटी सी ख़ुशी , जो बड़े से झूठ से यूँ अनजाने में जुडी ....

जिसके लिए मैं लड़ा इस दुनिया और समाज से
वही छोड़ गया मुझे अकेला मझधार में
मुझे परवाह नहीं थी के मेरे दिल  ने क्या पाया या खोया
फिर मेरा दिलबर क्यों इस हिसाब में पड़कर रोया
मेरी वह अनजान सी चाहत , मेरे अस्तित्व से थी जुड़ी 
उसके बिना कैसे जियूं , बड़ी मुश्किल थी मेरे लिए वह घड़ी 
इसलिए मैंने एक   मासूम सा झूठ उसे कह सुनाया
पर उस झूठ ने ही मुझे उसके सामने रुसवा कर दिया
वह करीब तो आई नहीं , पर  झूठ ने  हमेशा के लिए उससे दूर कर दिया
मेरी एक  छोटी सी ख़ुशी , जो बड़े से झूठ में  यूँ जुड़ गई  ....

By
Kapil Kumar

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