गुलामी के धागे –1
कुछ दिन पहले मैंने एक ब्लॉग लिखा था जिसमे मैंने जिक्र किया की आखिर इन्सान गुलामी के धागों से क्यों बंधा रहता है ...आखिर वह क्या कारण है की गुलामी के धागे अत्यंत कमजोर होने के बाबजूद मोहब्बत की मजबूत जंजीरों से ज्यादा असरदार और टिकाऊ होते है ...इसी सोच को आगे बढाते हुए मैंने मानव विकास में उसकी सोच को अपने अंदाज में देखा और परखा जिसका विश्लेषण में यंहा पर कर रहा हूँ ... ....
जैसे के मैंने पहले भाग में लिखा था ...की इन्सान की दो कमजोरियां होती है जो उसे गुलामी की तरफ धकेलती है ...डर और लालच ...इसी कड़ी में मैंने मानव स्वाभाव की कुछ और कमजोरियों को भी जोड़ा है ...आखिर किसी कमजोरी का कोई ना कोई कारण अवश्य होता है ....मूलभूत रूप से हर इन्सान अपने अंदर कुछ गुण तो कुछ अवगुण लेकर पैदा होता है ....
अगर मानव विकास को देखे तो , दुनिया में होने वाले अपराध , अत्याचार और दुसरे कामो के पीछे यह मुख्य कारक है ...
१.लालच
२.इर्ष्या
३.अभिमान
४.गिल्ट
इन्सान की यह मुख्य कमजोरियां है जो उसके व्यवहार , चरित्र और गुण अवगुण को तय करती है .....लालच इन्सान को किसी चीज को बिना मेहनत किये पाने के लिए उकसाता है ..जिसमे ताकत होती है वह दुसरे से छीन लेता है , जो कमजोर होता है वह षड्यंत्र रचता है और फिर उसे पाने के लिए किसी भी हद तक चला जाता है ....दुनिया में कोई भी ऐसा इन्सान नहीं ,जिसे किसी तरह का लालच ना हो , हम सब किसी ना किसी स्तर पर इससे घिरे रहते है ...यह अलग बात है की उस चीज को पाने की ललक हमें कितना उसका दीवाना बनाती है या हम उसके लिए कितने अधीर होकर , उसे पाने का प्रयास करते है ....जब हम उसे पा लेते है .....उसके बाद यही लालच ..उसे बचा कर रखने के लिए हमारे मन में डर का बीज रोप देता है .....
लालच –डर को जन्म देता है ..अगर लालच मन से निकाल दे या दुसरे शब्दों में किसी चीज को पाने की लालसा छोड़ दे या उसे खोने का गम ना करे तो ...आप अपने दिल और दिमाग से डर को उखाड़ फकेंगें या वह आपके नजदीक फाटक भी नहीं पायेगा ...पर यह कैसे संभव हो ? यही हमारी यात्रा है ...शायद गीता का कहने का सार भी यही है कर्म करो फल की इच्छा ना करो , शायद कहने का सारांश यह था .....की फल के लिए लालच करते हुए कर्म मत करो ....कर्म को कर्तव्य समझकर करो .....ऐसा कर्म करने के बाद मिला फल आपके मन के अंदर किसी तरह का डर या भय पैदा नहीं करेगा .....क्योंकि आपपर फल के खोने , छिनने या दूर चले जाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा .....ऐसी स्थिति में आप उस फल को पा सकते है ...पर इन्सान के गुलाम मन में लालच का यह धागा जाने अनजाने उसे डर से जोड़े रहता है ....कुछ खोने का डर अप्रत्यक्ष रूप में अनजाने लालच को जन्म दे देता है .... लालच ही गुलामी का वह पहला धागा है जो और धागों के लिए रास्ता खोलता है ....
ईर्ष्या --- अवसाद और क्रोध को जन्म देती है ...काफी दिनों से मैं यह जाने को उत्सुक था आखिर ..कोई इन्सान सब कुछ होने के बावजूद भी असंतुष्ट है और कोई थोडा होने के बावजूद भी खुश है ...आखिर वह क्या कारण है जो किसी इन्सान को संतुष्ट या असंतुष्ट करता है ? .... ईर्ष्या एक ऐसा अवगुण है , जो इन्सान में उसके जन्म के साथ ही आ जाता है ..हर इन्सान के अंदर इस अवगुण का निवास है ....यह किस स्तर पर है ..बस यही तय करता है की वह इन्सान अपने जीवन में कितना संतुष्ट है .... ईर्ष्या यानी जलन , इन्सान के अंदर कई तरह के दूसरे विकार पैदा करती है , जैसे दूसरे का बुरा सोचना या करना , किसी को नीचा दिखाना , उसकी बुराई करना और जब जलन एक हद से ज्यादा बढ़ जाए तो इन्सान हैवान का रूप लेकर किसी भी हद तक चला जाता है ....यह जलन ही है , जो इन्सान को ज्यादा पाने के लिए उकसाती , जबकि उसे शायद उतने ज्यादा की जरुरत भी नहीं ....कैसी अजीब बात है ...यह अवगुण सिर्फ मनुष्य जाति में ही पाया जाता है ...पशु और पक्षी इस अवगुण से कोसों दूर है और यही वजह है की मनुष्य इस जगत का सबसे विनाशकारी प्राणी है , जो अपनी ही प्रजाति का खात्मा बिना किसी संकोच के करता है ......जलन में अँधा इन्सान अपने पास की ख़ुशी को छोड़ दुसरे के दर्द में अपनी ख़ुशी ढूंढता है ... यह एक तरह का मनोविकार है , जिसका कोई इलाज नहीं , कोई किससे ईर्ष्या यानी जलन करता है यह भी पूरी तरह से कहा नहीं जा सकता , क्योकि कुछ लोग बाहर वालों से तो कुछ घर वालो से मन ही मन ऐसा भाव पाल लेते है , भाई -बहन , पति -पत्नी आपस में तो कई बार लोग रिश्तेदारों और दोस्तों को खुश या उनकी तरक्की देख मन में एक तरह की जलन पाल कर अन्दर ही अन्दर कुढ़ने लगते है ... फिर एक दिन यह ईर्ष्या उनके दिल और दिमाग के अंदर इस कदर जड़े जमा लेती है की वह इसकी गुलामी में बंधे जाने अनजाने दूसरे का अहित करने लगते है और जब वह अपने षड्यंत्र में कामयाब नहीं हो पाते की सामने वाले का कोई अहित कर सके तब उनके मन में एक अवसाद या निराशा जन्म लेने लगती है , जो उन्हें जीवन की छोटी और आम खुशियों से भी महरूम कर देती है......
अभिमान--- विनाश को जन्म देता है ...इस प्राणी जगत में सिर्फ इन्सान ही ऐसा प्राणी है जिसके अंदर अभिमान नाम का कीटाणु बहुतायत पाया जाता है , यह एक खोज का विषय है की अभिमान का जन्म इन्सान के जन्म के साथ हुआ या इन्सान की बनाई सामाजिक संरचना ने इस अवगुण को उसके अंदर विकसित किया ...आखिर एक इन्सान दूसरे के सामने अपने को बड़ा , ऊँचा , काबिल , शक्तिशाली या गुणवान क्यों दिखाना चाहता है ? अभिमान यानी घमंड कैसे इन्सान के अंदर जन्म लेता है ? इसकी खोज की तो यह समझ आया , की जन्म से इन्सान के अंदर ऐसा कुछ नहीं होता , उसका माहौल और परवरिश उसके अंदर इस तरह की चीज़ें इन्सान के दिमाग में धीरे धीरे डाल देती है , जैसे किसी घर में बच्चो को ज्यादा लाड प्यार , उनकी हर जिद्द पूरी करना या बच्चे को उसकी काबलियत से ज्यादा सर पर चढ़ाना या फिर उसका फ़ालतू में गुण गान करना , धीरे धीरे उस बच्चे के दिमाग अपने अंदर अभिमान को जन्म देने लगता है ..कई बार यह क्रिया विपरीत स्थिति से भी उतपन्न हो जाती है , जैसे किसी के अहम् को ठेस पहुचना या उसे नीचा दिखाना आदि आदि ...इस अभिमान के चलते दुनिया में जाने कितने युद्ध और लड़ाइयाँ हुई , जिसमें एक इन्सान की झूठी शान या अभिमान ने कितने ही तख्तों ताज और देश के साथ लोगो को अपने अंदर लील लिया ....घमंड इन्सान के अंदर गुलामी का वह अद्रश्य धागा है , जो एक बार उसके मन मस्तिष्क में उलझ गया , फिर यह सिर्फ तबाही ही लेकर आता है ...क्योकि अभिमान या मद में चूर इन्सान , कभी भी सामने वाले के दुःख दर्द को नहीं समझ पाता....अभिमान गुलामी का वह धागा है जिसमे बंधा इन्सान खुद भी दुसरे की गुलामी करता है और दूसरों से भी ऐसा करने की अपेक्षा रखता है ....क्योकि ना तो उसके अन्दर किसी के लिए दया , करुना और स्वाभिमान होता है और ना वह इसे समझ पाता है ....
भय यानी डर ..... विकल्प की कमी.. यूँ तो मैंने डर का एक कारण लालच रखा , पर जब हमें कोई भी लालच नहीं है , फिर भी हम किसी अनजाने डर से पीड़ित है , तो इसकी वजह क्या है ? आखिर किसी इन्सान के मन मस्तिष्क में डर क्यों और कैसे पैदा होता है ? इसका मुझे एक कारण और समझ आया की , लोगो के मन मस्तिष्क में डर का एक कारण है , वह है विकल्प की कमी .....जब हमारे पास किसी चीज , रिश्ते या समस्या का विकल्प नहीं होता तो हमें उसके खोने या उसके द्वारा होने वाले नुकसान का अनजाना डर जकड़े रहता है ... जैसे किसी औरत को अपने पति के खोने का डर या उसके ना होने से होने वाली समस्या का डर (जैसे पैसे की तंगी , सामाजिक सुरक्षा आदि ) , किसी को जॉब छुटने का डर या दूसरी जॉब ना मिलने का अविश्वास , ऐसे ही किसी को पैसे या धन को खोने का डर या फिर उस धन को ना पा सकने का विश्वास ..अगर हम देखेंगें तो पायेंगें की अगर हमारे पास किसी चीज का विकल्प है तो उसके होने या ना होने या खोने या नष्ट होने का हमें डर नहीं लगेगा .....
अगर आपको यह पता हो की जिसने आपके ऊपर बन्दुक तनी है , उस बन्दुक में गोली नकली है या आप उस बन्दुक की गोली से मर नहीं सकते , तब आपको बन्दुक का डर नहीं लगेगा ...ऐसी ही किसी रिश्ते के टूटने का डर तभी तक है अगर ऐसा दूसरा रिश्ता जुड़ने का विकल्प आपके सामने नहीं है ...
डर ही इन्सान के मन मस्तिष्क का वह सबसे अहम धागा है जो आपको दूसरों की तरफ खींचता है या उससे जोड़ कर रखता है .... आप कई बार अनचाहे सम्बन्ध या किसी से अपना रिश्ता , दोस्ती आदि इन्ही जाने अनजाने डर की वजह से बनाये रखते है की , कल बुरा समय आने पर यह रिश्ता आपके काम आएगा ...अगर आपके पास उस सम्बन्ध या रिश्ते के विकल्प हो तो रिश्तों के होने या ना होने या टूटने का डर आपको नहीं होगा ....
गिल्ट यानि अपराधबोध ......जब किसी इन्सान ने किसी ऐसे इन्सान से गुलामी की अपेक्षा की होगी जो उसके मुकाबले हर तरह से काबिल , शक्तिशाली और गुणी था ..तब फिर कैसे एक मजूबत इन्सान किसी कमजोर की गुलामी के चंगुल में फंस जाता है ..इसका एक कारण है ...की सामने वाले के मन में एक अनजाने अपराधबोध के बीज को रोप देना , ताकि उस गिल्ट से पनपे पौधे को सींचते हुए इन्सान कभी सामने वाले के चंगुल से निकल ना पाए ....अगर हम जमींदारी वाली व्यवस्था में जाएँ तो समझेंगे की जमींदार पीढ़ी दर पीढ़ी कैसे कई कई परिवार को अपनी गुलामी में उलझाये रखते थे .....की उनके पूर्वजो का कर्ज उनकी आने वाली नस्लों को चुकाना है ...कभी किसी ने यह जाने की कोशिस नहीं की ..की वह कर्ज वास्तव में था भी की नहीं ..बस सब एक झूठे डर और लोक परलोक के अभिमान में उलझे उनकी जीवन भर गुलामी करते रहे ...क्योकि उनक मन में गिल्ट इतना घर जमा चूका था ..उन्हें लगता था जैसे गुलामी करके वह कोई पुण्य का काम कर रहे है और इस बहाने वह अपने पूर्वजों के कर्ज को चुकता कर रहे है ...अगर शांत दिमाग से सोचा जाए तो ..यह अपने आप में कितना हास्यपद है ...
गिल्ट पैदा करके शोषण करना अपने आप में एक कला है जिसका उपयोग आये दिन घर परिवार में होता है ..माँ बाप बच्चों का तो बच्चे माँ बाप का ऐसा शोषण करते है ....या फिर पति पत्नी एक दूसरे का ..उनकी कमियों को गिनाकर खुद को उसका विक्टिम बता कर सामने वाले का शोषण करते रहते है और दूसरा अपराधबोध से दबा कभी समझ ही नहीं पाता , की वह उस अपराध की अनजानी सजा काट रहा है ..जो उसने कभी किया ही नहीं .....जैसे बच्चों का माँ बाप को ताने देना की ...उन्हें अच्छा माहौल या सुविधा नहीं मिली ...पति का पत्नी को ..कहना की उसके आने से उसका व्यापार , कामकाज चौपट हो गया ..सास का बहु को कहना की वह उसके परिवार के लिए अशुभ है या उसके परिवार वालो ने शादी में उनकी इज्जत नहीं रखी ...या फिर बॉस का अपने जूनियर का यह कहकर शोषण करना की वह ज्यादा काबिल नहीं और वह उसे किसी तरह से झेल रहा है या बहन का भाई से प्रेम के नाम पर आदि आदि ऐसे उदाहरण है ..जिसमें दूसरे के मन में गिल्ट पैदा करके उसे गुलामी के धागों से बांध दिया जाता है ....
अगर कोई आपको आपकी कमियां दिन रात सिर्फ गिनवाए पर उन्हें दूर करने में सहयोग ना करे या आपके द्वारा किये काम में सिर्फ कमियां ढूंढे या आपके ऊपर किसी भी तरह का अनजाना दोष रोपित करे तो समझ ले , की सामने वाला आपको गिल्ट के जाल में उलझा कर अपना उल्लू सीधा कर रहा है ...अपने मन में विश्वास जगाये की ..आपके बारे में कोई कैसी भी राय बनाये आपको उसका फर्क नहीं पड़ना चाहिए जब तक सामने वाला आपको उसे सही करने का विकल्प ना सुझा दे ....
मोहब्बत में इन्सान के मन के अंदर ना तो गिल्ट , ना ही डर , ना ली लालच और ना ही किसी तरह का अभिमान होता है , इसलिए मोहब्बत की जंजीरे कितनी भी मजबूत क्यों ना हो ..वह गुलामी के धागों के आगे कमजोर पड जाती है ....
अपने मन में में झांके और देखे की आपके अंदर कौन कौन से गुलामी के धागे जाने अनजाने उलझे है ......अगर हो सके तो उन्हें अपने मन मस्तिष्क से उखाड़ फैंके , तभी आप एक सच्ची मोहब्बत की कद्र कर पायंगे या उसे अपने जीवन में आत्मसात कर पायंगे ....कभी भी अपने मन के अंदर डर और गिल्ट को पनपने ना दे , अगर आपको कभी ऐसा लगे की मेरी वजह से ऐसा हुआ तो , यह भो सोचना चाहिए की ...क्या आपके पास कुछ और करने का विकल्प था ..अगर नहीं तो फिर कैसा गिल्ट ? और इसी तरह अगर आपको किसी चीज या रिश्ते को खोने से होने वाले नुकसान का अंदाजा है और उसका विकल्प है तो फिर कैसा डर ???
By
Kapil Kumar
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