Friday, 17 June 2016

मेरी जिन्दगी मुझे अब छोड़ दे ....


मेरी जिन्दगी मुझे अब छोड़ दे 
यह सांस बस अटकी हुई
इस साँस को ही तोड़ दे......
मेरे दिल के जख्म है कुछ अध् पके 
इन जख्मों पर  भी तू नींबू निचोड़ ले .......

यह आइना पहले से चटका हुआ 
 आज इस आईने को भी तू तोड़ दे.....
मेरी जिन्दगी मुझे अब छोड़ दे.......


मेरे ख़्वाब  है कुछ आधे अधूरे से 
इन ख्वाबो में भी तू दहशत घोल दे.....
मेरी डगर पहले से ही थी कुछ कठिन 
उसमे भी तू कुछ अंधेर मोड़ जोड़ दे ...

मैं मुसाफिर हूँ एक  भटका हुआ 
मेरे पावों में कुछ और कांटे चुभो दे
मेरी जिन्दगी मुझे अब छोड़ दे.......

मेरे हमदर्द थे पहले ही कम 
अब कुछ और दुश्मन इनमे जोड़ दे...
जो मिले थे मुझे प्यार के दो पल 
उनमे थोड़ी सी नफरत घोल दे ....

गर मुस्कराने  मैं लगूं  तो 
गम को भी उसमे डुबो दे ...
मेरी जिन्दगी मुझे अब छोड़ दे.......


कोई हाथ पकडे अगर मेरा 
उस हाथ को भी तू तोड़ दे.....
मैं लड़खड़ा जाऊं संभलने के लिए 
तो एक  झटका तू भी उसमे ठोक दे .....

साँस मेरी उखड़ने लगी है 
अब इस सांस को ही रोक ले
मेरी जिन्दगी मुझे अब छोड़ दे.......

By
Kapil Kumar 

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