Thursday 24 November 2016

तू मिली भी तो इस तरह से ......



तू मिली भी तो इस तरह से ......

तू मिली भी तो इस तरह से ,की  तुझे जी भरकर देख नहीं पाया

कैसे कुम्लाहा रही है धीरे धीरे, यह चाह कर भी कह नहीं पाया

तू मिली भी तो इस तरह से, कुछ चाह कर भी कह नहीं पाया ....


तू किस कदर जकड़ी है , अपने रिश्तो की जंजीरों में

बेबसी और समाज की कि उंची दीवारों की शहादतों में

तेरी इस क़ैद  को देख , जैसे मेरा दिल जिस्म से निकल आया

कैसे कर दूँ अपनी मोहब्बत का इज़हार    , यह मैं समझ नहीं पाया

इन सब के बीच जैसे तेरा सिन्दूर उभर आया

तू मिली भी तो इस तरह से, कुछ चाह कर भी कह नहीं पाया ....


दिल में थी बहुत उमंग तेरी नरगिसी सी आँखों में झाँकने की

थी बड़ी चाहत तुझे बांहों में भर कर चूमने की

सोचा था लहराती जुल्फों की थोड़ी सी तारीफ़ कर दूँ

कैसे खिलते गुलाब से कपोल है उनकी गहराई भर लूँ

इन अहसासों को मैं ,बड़ी मुश्किल से कुचल पाया

तू मिली भी तो इस तरह से, कुछ चाह कर भी कह नहीं पाया ....


थी बड़ी चाहत की कुछ ऐसी गुफ़्तगू कर लूँ

कुछ अपने दिल की तो कुछ तेरे दिल की सुन लूँ

चूम कर तेरे होठों को  थोड़ी सी मस्ती कर लूँ

भर कर तुझे बांहों में , कुछ जिस्म में गर्मी भर लूँ

ऐसे ख्यालातों को भी मैं , कुछ तवज्जो  नहीं दे पाया

तू मिली भी तो इस तरह से, कुछ चाह कर भी कह नहीं पाया ....


देखा तो तेरा बदन मैंने  सिर्फ एक  झरोखे से 

नापा भी आँखों का पैमाना बस छलकते जाम से

कितनी मतवाली है तेरी चाल और कितने कठोर है तेरे यह ढाल

इसका फैसला मैं कर नहीं पाया

तू मिली भी तो इस तरह से, कुछ चाह कर भी कह नहीं पाया ....


तेरी बेतरबा हंसी की वह मीठी सी खनक

मेरी हर बात पर  शर्माने और इतराने की हनक

बात बात पर  मुझे छेड जाने की सनक

इन अहसासों को जैसे मैं , कोई अल्फाज़ दे नहीं पाया

तू मिली भी तो इस तरह से, कुछ चाह कर भी कह नहीं पाया ....


फिर भी तुझसे मिलकर जैसे जिन्दगी ने एक  नया गीत गया

भटकते मुसाफिर को भी मिलेगी मंजिल ,ऐसा उसे अहसास आया

प्यासे तरसते लवों पर  , तेरी मीठी मुस्कान का सकून आया

जो जिन्दगी चल रही थी धीरे धीरे , उसमे जैसे एक  जोश आया

एक  दिन तू होगी मेरी , यह अहसास जैसे उभर आया

तू मिली भी तो इस तरह से, कुछ चाह कर भी कह नहीं पाया ....

By
Kapil Kumar 



Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. The resemblance to any person, incident or place is purely coincidental”. The Author will not be responsible for your deeds.


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