Wednesday, 26 October 2016

नारी की खोज –15



अभी तक आपने पढ़ा नारी की खोज भाग -1 से  14 तक में ...की मैंने बचपन से आज तक नारी के भिन्न भिन्न रूपों को देखा .......मेरे इस सफ़र  की आगे की कहानी.....




गतांक से आगे .......

नारी का चरित्र क्या है , उसके दिल में कब कौन सा तूफ़ान छिपा है या फिर किसके लिए कितना गुबार है या प्रेम का लावा है कौन जाने , बचपन में कहीं  पढ़ा था , की, नारी को कोई आसानी से नहीं समझ सकता, कहते है उसे तो बनाने वाला ब्रह्मा तक नहीं समझ पाया तो आम इन्सान की बिसात ही क्या है ?क्या नारी का चरित्र वाकई में इतना जटिल है या लोगों के व्यवहार  और समाज ने उसे इतना जटिल बना दिया है ?....

मैं, यह बात बहुत दावे से तो नहीं कह सकता की मेरी जीवन यात्रा में मेरे संपर्क में आई नारियों  के चरित्र को मैं भली भांति समझ पाया, पर जितना भी मैंने  उन्हें करीब से देखा ,समझा और परखा , मैंने  उसके पीछे छिपे भाव को जानने और समझने की एक  कोशिस जरुर की और इसी खोज में मैंने  जाना की इस दुनिया को बनाने वाले ने नारी के रहस्यमय चरित्र की एक  झलक जाने अनजाने  हमें किसी और तरीके से दिखानी और समझनी चाही है .....

अगर हम नर और नारी दोनों को प्राकृतिक अवस्था यानी बिना कपड़ो के देखे तो एक  बात कोई भी आसानी से देख कर बता सकता है , की कौन उत्तेजित यानी कामुक अवस्था में है या उनकी क्या मनोस्थिति है ? नर यानी पुरुष का मर्दना अंग प्रकृति ने ऐसा लगाया है की , उसकी स्थिति देख कर, पुरुष के मन में उठ रहे कामुक विचारों को आसानी से समझा जा सकता है ...

किन्तु इसके विपरीत किसी नारी के जननांग  यानी उसकी योनी को देख कर उसकी मनोस्थिति का पता लगाना इतना आसान  नहीं है ....हक़ीक़त  में नारी का वह अंग प्रकृति  ने नारी के शरीर में इस तरह से सजाया है की पहली नज़र  में वह दिखता  ही नहीं है अगर कोई उसके बारे में जाना चाहे तो उसे नारी के दिल और शरीर दोनों को समझना पड़ेगा , तभी आप किसी नतीज़े  पर पहुँच सकते है ,की नारी की सच्ची मनोवस्था क्या है ? क्या वह कामुक अवस्था में है या फिर झूठा व्यवहार  दिखा रही है ....

मेरे अनुभव से यही है नारी के चरित्र को समझने का गुरु मन्त्र , कहने का तात्पर्य यह है , की नारी के मन में झांकना , उसके व्यवहार  को समझना और उसकी परिस्थिति का सही अवलोकन करने के बाद ही आप किसी नारी के चरित्र को समझ सकने की कल्पना कर सकते है , बिना यह सब समझे आपका निष्कर्ष अधूरा  ही कहलायेगा ... ..नारी के व्यवहार  को देख उसके चरित्र का आकंलन गलत हो सकता है ...

यह मेरी जीवन यात्रा है जिसे मुझे ही ख़त्म करनी  है ,अब इसमें कितने सीधे , टेढ़े और मोड़ आयंगे और मुझे वह क्या अनुभव देते जायंगे यही मेरी यात्रा है ....विदेश में ,धीरे धीरे मेरी जिन्दगी अपनी रफ़्तार से चलने लगी और देखते ही देखते कई साल बीत गए , बीवी, बच्चे के साथ मैं आम आदमी की की भांति घर गृहस्थी की  जिम्मेदारियों में कोल्हू के बैल की तरह घिसटना लगा ... उस वक़्त मुझे अपने अकेलेपन के वे दिन याद आते थे ,जब मैं श्रीधर के साथ आवारा बादल बन इधर से उधर भटकता रहता था ...अब यह सब बीते ज़माने की बात हो चुकी थी ....दिन रात की तू तू , मैं मैं और बिना बात के स्यापों में उलझ जिन्दगी जीते जी एक जहन्नुम में तब्दील हो चुकी थी ....

मुझे ऐसा लगता था जैसे मैं कभी अकेला इस दुनिया में रहा ही नहीं ,मैं दिन रात बच्चो और बीवी के लफड़ों और पचड़ों में उलझा रहता , बांकी  का वक़्त नौकरी की उलझन में गुज़रजाता , फिर भी कभी ना कभी किसी ना किसी बहाने अपनी जिन्दगी में आधी अधूरी सी झूठी ख़ुशी के पल ढूंड ही लेता ....

मेरे ऑफिस में साथ में काम करने वाले कुछ साथी लोग, शुक्र के दिन लंच में बाहर  किसी रेस्टोरेंट  में जाते थे , उस दिन सब लोग रिलेक्स के मूड में होते , की चलो काम का एक  हफ्ता ख़त्म हुआ और दो दिन का आराम शुरू होने वाला है , एक  दिन हमने ऑफिस से थोड़ी दूर एक  इंडो- पाक रेस्टोरेंट  में लंच खाने का प्रोग्राम बनाया , हम कोई 5/6 लोग दो गाड़ियों  में सवार लंच के लिए निकल पड़े ... गाड़ी पार्क करने के बाद हम करीब 3/4 लोग मस्ती में चलते हुए रेस्टोरेंट  की तरफ जा रहे थे , मैं कुछ अलग ही मूड में था इसलिए थोड़ा  ज़ोर ज़ोर  से गुन गुनाता हुआ जा रहा था , की अचानक सामने से एक  युवक और युवती आते हुए दिखलाई दिए ...युवक कोई 35/40 के बीच और युवती करीब 27/28 की उम्र की देसी सी लगने वाली लड़की थी ,जिसने अपनी तरफ से विदेशी जैसे दिखने की एक  असफल सी कोशिस की थी , उसे देख मुझे ऐसा लगा , इसे तो मैंने कहीं देखा है , पर अचानक से यूँ देखने पर याद नहीं आया की यह कौन है ?... उसने भी मुझे देखा और ऐसे मुंह  बिचका दिया की जैसे वह मुझे जानती तो है  पर पहचानती नहीं ...


उन दोनों के जाने के बाद , मेरे साथ वाले लड़कों ने मुझसे पुछा ,अरे , तू उन्हें क्यों घूर कर देख रहा था ? मैं बोला... यार यह लड़की कुछ जानी पहचानी सी लगती है , बस याद नहीं आ रहा , उन्होंने समझा की मैं बस ऐसे ही बहाना बना रहा हूँ , ख़ैर बात आई गई हो गई , हमने अपना लंच खत्म किया और रेस्टोरेंट  से बहार निकल आये , की वह लड़की फिर से दिखलाई दी , इस बार वह अकेली थी ...

मैंने  अपने दिमाग पर  ज़ोर  डाला तो मुझे याद आया , अरे यह तो वही रुख़्साना  है जो मेरे साथ 2/3 साल पहले AT&T  में काम करती थी ,मैंने  अपने साथ के लड़कों  से कहा अरे यह तो मेरे साथ पहले काम कर चुकी है और मुझे तो बहुत ही अच्छे से जानती भी है ... अभी हम बातें  ही कर रहे थे की  रुख़्साना हम लोगो की तरफ चली आई , इस बार मैंने  हिम्मत करके उससे पूछ लिया , अरे तुम वही हो ना , जो हमारे साथ उस ऑफिस में थी ...

उसने मुझे ऊपर से नीचे घूरा  और बोली , हाँ मैं तो वही हूँ , पर तुम अभी तक वैसे के वैसे ही लफंगे हो , यहां  भी सीटी बाज़ी से बाज नहीं आये , देखो कैसे लफंगो की तरह गाना गा रहे हो और ऐसा कह मेरी तरफ अपना मुंह बिचका कर निकल गई ...उसका इतना कहना था की मेरे साथ के लड़के मेरे पीछे पड़ गए और बोले , गुरु यह क्या मामला है , वह तो तुम्हे अच्छे से झाड पिला गई , मैंने एक  लंबी साँस ली और बोला , इसमें इसकी कोई गलती नहीं , इसका नाम  रुख़्साना  है और यह दिलजली है ... मेरी यह बात उनके समझ नहीं आई , मेरे साथ मेरा एक  करीबी दोस्त अमित भी था , ऑफिस में जब हम वापस आये तो वह मेरे पीछे पड़ गया और जिद्द  करके पूछने लगा , की  रुख़्साना  का क्या मामला था ?... मैंने  कहा मुझे अपने दिमाग पर  ज़ोर  डालने दे और फिर बताता हूँ ...

ऐसा कह मैं उन यादों  में खो गया जिन्हें मेने अपने दिल और दिमाग से ना जाने कबका उखाड़ कर फैंक दिया था ...पर  रुख़्साना  की इस हरकत ने जैसे सब कुछ फिर से जीवित कर दिया .....

अगर यादें  हसीन और दिल को सकून  देने वाली हो तो इन्सान उन्हें संजो के रखता है किन्तु यादें  कडवी , डरावनी और झिंझोड़ने वाली हो तो उन्हें इन्सान अपनी दिल और दिमाग से दूर रखने की हर संभव कोशिस करता है ....मुझे याद आने लगा की  रुख़्साना  से कैसे मुलाकात हुई थी .....

यह बात उन दिनी की है जब मैं अकेला रहता था और श्रीधर मेरा रूम पार्टनर था , उन दिनों हम सब अकेले , कुवांरे लड़के / आदमी ऑफिस की कैंटीन में लंच किया करते थे , बाकी लोग ऑफिस के पास अपने घरों  में चले जाया करते थे , एक  दिन हम 3 लोगो कैंटीन की किसी बड़ी सी टेबल पर  बैठे लंच कर रहे थे की , किसी के अचानक एक्सक्यूस मी कहने से हमारी बातचीत भंग हो गई .....

मैंने  गर्दन उठा कर देखा तो सामने एक  कुछ देसी विदेशी सी लगने वाली युवती खड़ी थी , उसने हमसे कहा की कैंटीन में सारी टेबल भरी हुई है , क्या वह हमारी टेबल पर हमारे साथ ज्वाइन कर सकती है ....हम तीन लड़के , जिसमे दो कुवांरे और मैं एक  अकेला शादीसुदा  , ऐसे में किसी खुबसूरत बला को भला कौन अपने गले ना लगाता ? हमने ख़ुशी ख़ुशी में गर्दन हिलाई और वह धम्म से टेबल से लगे सोफे पर धस गई , उस वक़्त मुझे क्या पता था , यह एक  ऐसी बला है जिससे पीछा छुड़ाने में " के के बॉस " को दांतों तले पसीना आने वाला था ....

युवती धम्म से सोफे पर  धंस गई और हम सबका बारी बारी से मुआयना करने लगी , जैसे कोई सरकारी अफसर अपने छापे के दौरान विभाग का करता है , उसने बताया की उसका नाम  रुख़्साना  है , वह पाकिस्तानी मूल की अमेरिकन नागरिक है .... देखने में  रुख़्साना करीब 24/25 की , मंझले  कद की युवती थी , उसका रंग कुछ कुछ सुनहरा और सांवले रंग का अजीब सा कॉम्बिनेशन था , देखने में वह ठीक ठाक सी लगती थी , पर ऐसा कोई आकर्षण उसमे मुझे ना लगा , जो मेरी यादों  में रच बस जाता ...

 रुख़्साना  ने बैठते ही जो बोलना शुरू किया , ऐसा लगा जैसे किसी रेडियो का बटन   ऑन  करके उसे छोड़ दिया गया हो , हमारे पल्ले उसकी आधी बातें  पड़ी , कुछ तो उसकी तेज रफ़्तार की अंग्रेजी और कुछ हम लोगो की सुस्त रफ़्तार की समझ ,एक  अज़ीब  सा घालमेल कर रही थी ...की अचानक मेरे मुंह  से कुछ हिंदी में निकला , फिर क्या था रुख़्साना हिंदी / उर्दू में शुरू हो गई ,उर्दू भले ही लिखने में अलग हो पर बोल चाल में हिंदी जैसी ही हो जाती है , अंग्रेजी या उर्दू दोनों ही बोलने में उसकी रफ़्तार का मुकाबला करना कम से कम हम सब के लिए असम्भव था ....

थोड़ी ही देर में उसने हम सबका इंटरव्यू ले डाला , की कौन क्या करता है और कौन कुवांरा है ...जब मेरी बारी आई तो मेरे साथ बैठे दोनों लड़के हंसने  लगे , रुख़्साना ने मेरी तरफ अपनी गोल गोल आँखे नचाते हुए पुछा तो हज़रत  , आप अपने बारे में कुछ नहीं बतायंगे ?

पता नहीं मेरे साथ बैठे लड़के क्यों हंस रहे थे ,की मैं संजीदा होते हुए बोला , “अरे मैं तो शादी शुदा हूँ “ मेरा इतना कहना था की साथ बैठे दोनों लड़के फिर हंसने  लगे , उनको हँसता देख रुख़्साना  ने अपनी कटीली आँखों में ज़हर  के तीर बुझाये  और मेरे तरफ व्यंग  बाण चलाते हुए बोली तो जनाब अब फ़रमायेगें  की , “मैं एक  बच्चे का बाप भी हूँ”.... .. और ऐसा कह वह उन दोनों के साथ ज़ोर ज़ोर  से हंसने  लगी .....

मैंने  गंभीर होते हुए कहा , हाँ यह भी सच है , चाहे तो इन दोनों से पूछ लो , साथ बैठे लड़के बोले , हाँ यह इकदम सही बोल रहा है और ऐसा कह वह फिर से हंसने  लगे ...रुख़्साना ने बात बदल दी और लग गई अपनी किसी राम कहानी को सुनाने , वह जब बोलना शुरू करती तो रूकती ना थी , उससे ज्यादा बोलने वाला शख्स  मैंने आजतक नहीं देखा ...हम सबने अपना अपना लंच खत्म  किया और रुख़्साना से विदा ली और अपनी अपनी सीट पर चले गए ...

दो दिन बीते की मेरे ऑफिस में फोन की घंटी बजी ,मैंने  जब रिसीवर उठाया तो , वहां से एक  युवती की आवाज सुनाई दी , जो मेरे लिए इकदम अनजान थी , मैं अभी कुछ कहता की उसना अपनी रामायण शुरू कर दी और उसी दौरन उसने मुझे एक  अच्छी खासी झाड़ भी पिला दी की , मैं दो दिन में उसे कैसे भूल गया , जब उसने मेरा भेजा अच्छे से चाट लिया तब समझ आया , यह तो रुख़्साना नाम की मुसीबत थी ...

अब हर तीसरे चौथे दिन रुख़्साना नाम का जंतु मेरा भेजा चाट लेता , मैं भी अकेला था , इसलिए टाइम पास करने में मुझे कोई ऐतराज़  ना लगा , अब यह मुसीबत भी अपनी तरह का एक  जूनून थी , दिल अंदर से बल्ले बल्ले करता की एक जवान खुबसुरत लड़की लाइन दे रही है पर दूसरी तरफ उसकी बुल्ली गिरी से डर भी लगता , रुख़्साना के इतना ज़्यादा बोलने से मेरा उसके प्रति एक नर और नारी वाला आकर्षण ना जाने कहाँ लुप्त हो गया , वह मेरे लिए सिर्फ अकेलापन में शोर करने वाला रेडियो बन गई थी ...ना जाने किस जोश में मैंने  उसे अपने घर का फोन नंबर दे दिया , शायद मैंने  सोचा की ऑफिस में चटने से अच्छा है , जब घर में बोर लगेगा, टाइम पास हो जाएगा ....अब रुख़्साना का आये दिन घर में फोन बजा देती , उसका पहला सवाल होता , तो..

आजकल क्या एक्टिविटीज चल रही है ,शाम का क्या प्रोग्राम है ? इस वीक एंड पर कहाँ जाने का प्रोग्राम बना रहे हो ?....

मुझे समझ ना आता की इन सब का क्या मतलब है , यह लड़की बस घुमने फिरने और इधर उधर की बातों में ही लगी रहती है , मेरा जवाब होता , इस हफ्ते कपडे धोने है , कारपेट पर वैक्यूम  करना है घर बहुत गन्दा है , कल ग्रोसरी लानी है , अगले  हफ्ते बाहर जाना है , आदि आदि ...शुरू शुरू में श्रीधर को उसकी बातों  में बड़ा मजा आता की , किसी लड़की का घर पर फोन आता है और उसे भी गुफ़्तगू करने का मौका मिल जाता ....धीरे धीरे श्रीधर भी उसकी बातें  सुन कर पक गया , एक  दिन मेरे साथ काम करने वाली एक  लड़की ने रुख़्साना के बारे में बताया की उसे काम से निकाल दिया गया है , क्योंकि उसने ऑफिस में सबका भेजा इतना चाटा की हर कोई उसे देख भाग खड़ा होता , वह लड़की बोली , यह तो गर्दन का वह दर्द थी , जिसका इलाज़  किसी के पास ना था ...मैं मन ही मन खुश हुआ , चलो मुसीबत से पीछा छुटा ....

इस बीच कुछ दिन बीत गए , की एक  दिन उसका फिर से फोन आगया और बोली , जल्दी से तैयार हो जाओ आज तुम्हें मेरे साथ एक  फॅमिली पार्टी में चलना है , वहां मैं तुम्हे कुछ बड़े बड़े लोगो से मिलवायुंगी ....मैं बोला , मेरे पास तो गाडी ही नहीं है मैं कैसे पहुंचूंगा ?.. वह बोली ऐसा है मैं तुम्हे घर से पिक कर लुंगी ...अब चौंकने  की बारी मेरी थी , मैं बोला , वह क्या है मेरी बीवी आने वाली है तो उस चक्कर में कुछ कर रहा हूँ ..मेरी बात सुन वह हँसते हुए बोली , अरे नहीं जाना तो मत जाओ , पर बहाने तो अच्छे बनाओ , मैं बोला नहीं सच में , मेरी बीवी आने वाली है ...मेरा तो एक  बच्चा भी है , आजकल वह लोग फ्लोरिडा में है , बस उन्हें लेने जाना है उसकी तैयारी में लगा था .....

मेरा इतना कहना था की रुख़्साना का स्वर अचानक से कसैला  हो गया उसने मुझे फोन पर  मेरी अच्छी खासी हज़ामत  बना दी , यू चीट ,धोखेबाज ,झूठे , फरेबी , स्क्रौंडल , और न जाने कौन कौन सी गाली जो सब उसे आती थी उसने सब मुझे दे डाली , अब मुझे समझ नहीं आया की मैंने  इसके साथ ऐसा क्या कर दिया ? जो यह मेरी इतनी इज्जत अफ़ज़ाई कर रही है , हक़ीक़त  में तो मैंने  उसके साथ चाय या कॉफ़ी तक भी ना पी थी ...बाकी की और बात की कल्पना ही मुश्किल है ...जब वह थक गई तो फोन से उसके रोने की आवाज आने लगी , तब मैंने  बड़े ही आराम से पुछा , भाई मैंने  तुझे कौन सा धोखा दे दिया ?....

वह बोली तुमने मुझ से यह बात क्यों छिपाई की तुम शादीशुदा और एक  बच्चे के बाप भी हो , अब चौंकने की बारी मेरी थी , मैं बोला अरे याद है जब हम पहली बार कैंटीन में मिले थे , मैंने  तो कहा था की मैं शादी शुदा और एक  बच्चे का बाप भी हूँ , इस पर रुख़्साना निरुत्तर हो गई और रुवांसे स्वर में बोली , वह तो मैंने  मज़ाक समझा था , तुम लोग बातें  ही कुछ ऐसी कर रहे थे ...थोड़ी देर के शिकायत और शिकवे के बाद उसने यह धमकी देते हुए रिसीवर रखना चाहा की यह मैंने  जानबूझ कर नहीं किया , वरना वह मुझे एक  लड़की को धोखा देने के जुर्म में अंदर करवा देती ...मैं भडकते हुए बोला , मैंने  तेरे साथ क्या कर दिया जिसे तू धोखा कह रही है , मैंने  तो आजतक तुझे फोन भी नहीं किया , मुझे तो तेरा नंबर तक नहीं मालूम , मेरी बात सुन उसने एक  दो गाली और दी , फिर फोन काट दिया ,मैंने  भी राहत की साँस ली और सोचा चलो मुसीबत से हमेशा के लिए पीछा छूटा ...


पर मुझे रुख़्साना का व्यवहार  समझ नहीं आया की उसने ऐसा क्यों किया , उसका मन होता वह फोन करती थी , खुद ही इधर उधर घूमने की बात करती , उसकी मेरी कभी कोई ऐसी एक  भी बात हुई जिसे मैं किसी खास या दोस्ती जैसे सन्दर्भ में भी रख सकता और उसपर  उसने हमेशा ऐसा बर्ताव  दिखाया जैसे मैं उसका ख़रीदा हुआ गुलाम हूँ , जब उसकी मर्ज़ी होगी , मैं हाज़िर  हो जायूँगा ...सिर्फ अपने बारे में सोचना की कब उसे क्या चाहिए .....मेरे लिए नारी का यह चरित्र अपने आप में एक अज़ब पहेली था , की वह क्या चाहती है , उसका व्यवहार  , उसके दिल और दिमाग दोनों से एकदम  जुदा था ....

इस बात को कुछ दिन /महीने बीत गए , मैं भी सब कुछ भूल भाल कर आम आदमी वाली घर गृहस्थी की जिन्दगी में रम गया ...की , एक  दिन फोन पर  फिर से रुख़्साना  अवतरित हो गई , उस वक़्त घर में कोई न था , बीवी बच्चे बाहर  पार्क में थे , उसने वही पुराने अंदाज में अपना घिसा पीटा डायलॉग मार दिया , हाँ तो आजकल क्या एक्टिविटीज चला रही है ? मैं बोला , अब समय ही कहाँ  मिलता है सब बीवी बच्चों के  चक्कर में निकल जाता है , रुख़्साना  बोली , मैंने  इसलिए फोन किया था की , आज कोई फॅमिली फंक्शन है तो तुम्हे लेने आ जाऊं  ? मैं बोला ... तूने तो पिछली बार मुझे ना जाने क्या क्या कहा था , अब तेरा मेरा क्या रिश्ता ? मेरी इस बात पर  वह रूवांसी हो गई और माफ़ी मांगने लगी ...

मैं बोला वह सब तो ठीक है पर अब मैं अकेला कैसे आ सकता हूँ ,मेरी बीवी बच्चे सब साथ में ही है , उन्हें अकेला छोड़ कैसे आऊं  ? वह बोली कोई बात नहीं तुम अपने बीवी बच्चो को भी साथ ले आओ , मुझे कोई आपत्ति नहीं है , मैं बोला मेरी बीवी ना मानेगी तो वह जिद्द  करते हुए बोली ,कहो तो मैं तुम्हारे घर आकर तुम्हारी बीवी से बात करूँ ,अब उसे कौन समझाता की उसे तो आपत्ति नहीं है , पर मेरी बीवी जो चंडी बनकर नाचेगी उसे कौन संभालेगा ?...

मैंने रुख़्साना  को टालने  के लिए कह दिया , भाई अब मुझे फोन मत करना , बेकार में इस बात को आगे बढाने से क्या फायदा और ऐसा कह मैंने  उसका फोन काट दिया ? उसके बाद थोड़ी देर तक फोन की घंटी बजती रही, फिर मैंने  रिसीवर उठकर लाइन को बिज़ी करके छोड़ दिया ...पर यह मुसीबत इतनी जल्दी मुझे छोड़ने वाली ना थी , रुख़्साना आए दिन अब ऑफिस में नंबर मिला देती , मैंने  उसे कई बार समझाया की भाई तेरे साथ में गठजोड़ नहीं बनेगा ? मेरे तो पहले ही एक  बीवी है ,तो वह बोली ,मुझे तुम्हारी बीवी के साथ रहने में कोई आपत्ति नहीं ,उसकी बातों  से ऐसा लगता था जैसे वह मेरी दूसरी बीवी बनने के लिए तैयार थी ....

उसकी बात सुन मेरे दिमाग के पुर्जे पुर्जे हिल गए अब उसे कौन समझाता की , मेरी रूह तो उसके नाम से ही कांपती है , उसकी आवाज सुन कर तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते है , अब उसके साथ घर में रहने की सोचने भर से किसी डरावनी फिल्म की याद आने लग जाती ......अब उसके बाद जब भी उसका फोन आता , उसकी आवाज सुन मैं रिसीवर रख भाग खड़ा होता , ऐसा लगता जैसे कोई भूतनी मेरे पीछे लग गई है , फिर कुछ महीनों  बाद  अचानक ही  उसके फोन आने  बंद हो गया और ऐसा कह मैंने एक  गहरी साँस ली और चुप होकर अमित की आँखों में देखने लगा ...

मेरी कहानी सुन अमित को एक  पल विश्वास न हुआ , वह बोला गुरूजी कुछ ऊँची हांक गए , वह तो ऐसे बात कर रही थी जैसे तुम उसके पीछे दीवाने थे , मैंने  अमित की आँखों में देखा और बोला , भाई वक़्त वक़्त की बात है ! 

“ कभी नाव पानी के अंदर तो कभी पानी नाव के अंदर हो जाता है “ और ऐसा कह मैंने  उस बात को वहीँ ख़त्म कर दिया ...

इन्सान की फ़ितरत भी अजीब है , जब हम किसी ऐसे इंन्सान को ठोकर मारते है जो हमारे पीछे दीवानों की तरह पड़ा हो तो हमें अपने अंदर एक गर्व महसूस होता है की , हम कितने स्मार्ट या आकर्षित हैं , पर वक़्त आने पर  उसी इन्सान की बेरुखी ना जाने क्यों अंदर ही अंदर हमारे अंदर एक  हलचल सी मचा देती है और इन्सान अपने आप से पूछने लगता है की , जो कल तक मेरे पीछे पागल दीवाना था , वह आज अचानक से इतना उदासीन क्यों हो गया , क्या मैं अपना आकर्षण खोने लगा हूँ ?

नारी का यह चरित्र मेरे लिए कुछ अजीब था , मुझे समझ नहीं आया की ,मैंने  कभी रुख़्साना में ना तो कोई दिलचस्पी ली , ना कभी इसके साथ कहीं बाहर  गया और ना ही मैंने  कभी इसे फोन किया , फिर भी इसकी गाली खाई और आज ऐसे दिखा रही थी जैसे मैं इसके पीछे पड़ा कितना बड़ा मज़नू था ...इसी कशमकश में पड़ा ऑफिस ख़त्म करने के बाद घर को चला आया ...घर पर  आया तो याद आया , अरे घर में तो कोई भी नहीं है ,बीवी बच्चे सब तो इंडिया में है , न जाने क्यों यह अकेलापन फिर से मुझे डराने लगा ....घर में पड़े पड़े जब मन किसी भी काम में ना लगा तो मैंने  अपने एक  कैनेडियन दोस्त रिकार्डो को फोन किया और बोला , यार बहुत बोर लग रहा है चलो आज कहीं  मस्ती करने चलते है ... रिकार्डो और मैं पहले एक  ही कंपनी में साथ काम करते थे , वह कुवांरा था और उन दिनों उसके पास टाइम पास का कोई ख़ास ठिकाना ना था उसने भी तुरंत फुरंत में अपनी गाडी उठाई और मेरे अपार्टमेंट में आ गया ....

रिकार्डो एक  28/30 साल का एक  आकर्षक युवक था , उसे भी मेरे साथ घुमने फिरने में मजा आता था, वह हमारे घर में सबसे अच्छे से घुला मिला हुआ था ,होने को तो वह गोरा था मेरी पर बीवी उसे जो भी खाने को देती वह पता नहीं कैसे सब कुछ खा लेता , अच्छा बुरा , इंडियन अंग्रेजी सब , उसने कभी उफ्फ तक ना की , दूसरे  मेरा लड़का उसे बहुत पसंद करता था , घर आते ही उसने पुछा बताओ कहाँ चलना है ? मैं बोला यार स्ट्रिप क्लब के बारे में सुना तो बहुत है , क्यों ना आज उसके दर्शन भी कर लिए जाए ?


मेरी फरमाइश सुन रिकार्डो ने एक  कुटिल मुस्कान मुझ पर  डाली , फिर ऊँची सी आह भरी और बोला , अगर मैं गलत नहीं हूँ ,तो , तुम तो एक  शादी शुदा आदमी हो , फिर स्ट्रिप क्लब जाने का क्या मतलब ? मैं बोला यार जब मैं कुवांरा था , तब स्ट्रिप क्लब मेरे देश में कंहा था , वैसे भी अब बीवी बच्चे सब इंडिया गए है , तो क्यों ना थोड़ी मस्ती कर ली जाए ..मेरी बात सुन रिकार्डो ने एक कुटिल मुस्कान मारी और सेल फोन से स्ट्रिप क्लब के एड्रेस ढूंढने  लगा ...उसने बताया घर से 20 मील की दूरी  पर दो स्ट्रिप क्लब है ..मैं बोला चल दोनों पर ही नज़र  मार लेते है और ऐसा कह , हम दोनों उसकी गाडी में सवार होकर निकल गए ...


करीब आधे घंटे की ड्राइव करने के बाद हम एक  स्ट्रिप क्लब पहुँच गए , रिकार्डो ने गाडी पार्क की और हम क्लब के सामने पहुँच गए , बाहर से देखने में यह एक आम सा रेस्टोरेंट   लगता था , जिस के साइन बोर्ड पर क्लब के नाम के साथ “जेंटलमैन क्लब “ लिखा था ...मैंने  नाम पढ़ा और रिकार्डो से बोला ,यहां जेंटलमैन क्लब क्यों लिखा है ? रिकार्डो हंसा और बोला , क्योंकि यहां हमारे तुम्हारे जैसे जेंटलमैन लोग जो आते है और ऐसा कह हम दोनों ज़ोर ज़ोर  से हँसते हुए क्लब में दाखिल हो गए .....

अभी क्लब में घुसते की दरवाजे पर  खड़े एक  हट्टे कट्टे मुस्टंडे ने ,जो शायद बाउंसर था , हमें रोक लिया और बोला अपनी आई डी दिखलाओ , मैंने पूछा आई डी किसलिए ?  , वह बोला देखने के लिए की तुम 18 साल से ऊपर  के हो या नहीं , इसपर मैंने  अपने टकले होते सर को उसके आगे किया और बोला , इससे बड़ी आई डी और क्या होगी ...मेरी इस बात पर  वह हंसा और हमें  अंदर जाने के लिए रास्ता देता हुआ बोला , नो फोटो , नो सेल फोन कॉल इनसाइड , हमने उसकी बात पर  सर हिलाया और दोनों अंदर चले आये ...


क्लब में अंदर घुसते ही मेरे होश उड़ गए , ऐसा कुछ माहौल  सिर्फ अंग्रेजी फिल्मों में देखा था , पर हकीकत  में तो यह उससे कंही ज्यादा उत्तेजक और रंगीन था , क्लब में कुछ अधेड़ उम्र के आदमी बैठे अपनी ढली हुई जवानी को खोज रहे थे ,क्लब में चारोँ   तरफ पूर्ण रूप से निर्वस्त्र नारियां उनके इर्द गिर्द मंडरा रही थी ...जिधर नज़र  उठाओ सांचे में ढली प्राकृतिक अवस्था में एक  से बढ़कर एक  हसीन , कमसीन ,दिलकश नारी के दर्शन उपलब्ध थे , क्या गोरी और क्या काली या कुछ और ....ऐसा माहौल  शायद जन्नत में भी ना होता होगा और इस दुनिया में भी कहीं  हो सकता है , इसकी कल्पना मेरे जैसे इन्सान को कदापि ना थी.....

क्रमश : ........ 

By
Kapil Kumar 

No comments:

Post a Comment