Wednesday 26 October 2016

मेरा चाँद



तू देखती है क्यों चाँद को यूँ छिप छिप  कर
एक  बार अपना मुखड़ा देख ले मेरी आँखों में जी भरकर……

आज तुझे तो देख चाँद भी शरमाएगा 
यूँ बिना पर्दा ना जा, फिर वह कैसे घटाओं  से बाहर  आएगा……

मुझे एतराज़ है तेरी इस नादानी पर
कैसे बढ़ जायेगी मेरी उम्र तुझे यूँ भूख प्यासा रख कर…..

तेरे रसीले होंठ तो मेरे तरसते लवो का जाम है
जब यही है प्यासे तो फिर किसे आराम है ...

तेरे चेहरे का नूर ही तो मेरे अंधियारे का उजाला है
जब तू है भूखी प्यासी, फिर कैसे हो सकता मेरा गुज़ारा है…..

आ मेरी बांहो में आ जी भर कर प्यार करे
इस लंबी उम्र पर है धिक्कार जो तुझे मुझसे यूँ दूर करे ….

साथ साथ जीने के लिए ही तो बने है यह सारे अफ़साने
फिर मुझसे दूर जाने के क्यों बनाते ही नए नए बहानें  ….

छोड़ अपनी ज़िद  , अब तो मेरे करीब आ जा
तेरे दो पल के साथ के लिए कर सकता हूँ पूरी जिंदगी का सौदा ...

By
Kapil Kumar 

No comments:

Post a Comment