यह कैसी मोहब्बत ....
पहले तुमने मेरे कान फोड़े की मैं सच्ची बात सुन ही ना सकू
अब क्यों मीठे गीत सुनाते हो , जब मैं सुन ही नहीं सकता
फिर यह कैसा अफ़सोस जताते हो .....
फिर तुमने मेरी ज़बान काटी की मैं तुम्हें कुछ कह ना सकू
अब क्यों मुझसे हमदर्दी के बोल सुनना चाहते हो, जब मैं बोल ही नहीं सकता
फिर क्यों यह आसूं बहाते हो .....
फिर तुमने मेरी आँख फोड़ी की मैं तुम्हारी हक़ीक़त से रूबरू ना हो सकूँ
फिर क्यों यह छद्म श्रृंगार सजाते हो , तुम्हें तो मैं अब देख भी नहीं सकता
फिर क्यों मुझे अपनी सुन्दरता की बातें बताते हो .......
फिर तुमने मेरे हाथ काटे की मैं तुम्हे यूँ बहकने से रोक ना सकूँ
फिर क्यों अपने हाथों से मुझे पकवान बनाकर दिखाते हो
मैं कितना लाचार हूँ , इन्हें खा भी नहीं सकता
फिर क्यों इस बात पर उदास हो जाते हो ...
फिर तुमने मेरे टाँगे तोड़ी की मैं तुम्हे गिरने से संभाल ना लूँ
अब क्यों अपनी पीठ पर मुझे उठाते हो
मैं कहीं अब चल फिर भी नहीं सकता
फिर क्यों इस बात का ग़म मनाते हो .....
फिर तुमने मेरा दिल चीरा की मैं इस दिल को तुमें कहीं दे ना दूँ
अब क्यों उसके रिसते खून को को बहने से बचाते हो
मैं तो अब साँस ले भी नहीं सकता
फिर क्यों मुझे जिन्दा करवाते हो ....
अब तो बस मैं एक सड़ी हुई लाश हूँ
फिर क्यों इसका बोझ उठाये इधर उधर मारे फिरते हो
जब मैं एक जिन्दा इन्सान था ,तब तुम्हे इल्म ही ना था
की मैं देख , सुन , बोल ,अहसास और मोहब्बत भी कर सकता हूँ
अब जब मैं सिर्फ एक मिटटी हूँ
फिर क्यों इसमें अपनी मोहब्बत को ढूंढने आते हो ...
By
Kapil Kumar
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