मोहब्बत का खरीददार ....
बेचने आया था मैं मोहब्बत, तेरे शहर के बाज़ार में
पर अफ़सोस इसका कोई खरीददार तक ना मिला
यूँ तो धडल्ले से बिक रही थी ,नैतिकता , इमानदारी , इंसानियत और वफादारी
ऊँचे ऊँचे दामो पर यहां खुले आम
पर मोहब्बत को खरीदने वाला, कोई ग्राहक तक ना मिला
यूँ फैक कर अपनी मोहब्बत , मैं वापस मायूस होकर चला ......
सबसे पहले तो मैंने अपनी मोहब्बत का नज़राना तुझे ही दिखाया
देखने और परखने के लिए ,तुझे अपना दिल चीर कर भी दिख लाया
इस पर भी तुझे ,मेरी मोहब्बत के खालिस होने का यकीन नहीं आया
तुझे फिर मैंने उसके कई और नज़राने दिखाए
छिपे दिल के कुछ अहम, अनजाने राज बताये और समझाए
दिखाया की मेरी पाक मोहब्बत तेरे लिए कितनी महफूज’ है
शायद इससे ज्यादा बेहतर करना अब मेरे लिए मुश्किल है
पर तुझे भी मोहब्बत की जरूरत का अहसास ना हो सका
शायद तेरा भरोसा मोहब्बत से पूरा है खो चूका
तू भी शायद, रम चुकी इस झूठी दुनिया की उलझनों में
फुर्सत नहीं है तेरे पास भी की रख सके
तू इस उल्फत को अपने दिल में कहीं करीने से
यूँ तो मैंने मोहब्बत का दाम तुझे बहुत माकूल लगाया था
तेरी कुछ मुस्कुराहट ,कुछ वादे और पलों का साथ माँगा था
शायद तुझे यह दाम भी देना भी कबूल न हुआ
इसलिए हमारा सौदा ऐ मोहब्बत अंजामे मंजिल ना हुआ ....
फिर इस मोहब्बत को लेकर, मैं अपने रिश्तों के घर गया
पर वहां तो कोई इसे, देखने परखने वाला भी ना मिला
सब सजे बैठे थे इस बाहरी दुनिया के दिखावे में
उन्हें कहाँ थी फुर्सत और तहज़ीब की इसे परख भी पाते
क्या लाया हूँ मैं देने तोहफ़ा , उनको नज़राने में ...
बिना उन्हें दिखाए और बताये मैं अपना माल समेट लाया
शायद उनको मेरे मोहब्बत बेचने का तरीका पसंद नहीं आया
मांग रहा था मैं उनसे सिर्फ कुछ भरोसे की झूठी बातें
समझ लो मुझे भी अपना, थोड़ी सी इंसानियत दिखा के
शायद उन्हें मेरी मोहब्बत की नुमाइश लग रही थी गैरज़रूरी
बदले में इसके कुछ भी देना, उन्हें अब मंजूर था नहीं
इसलिए मेरी मोहब्बत की टोकरी को, घर के बाहर ही रखवा दिया
और बिना झिझक और शर्म के मुझे यह समझा भी दिया
जिस चीज को हमें लेना ही नहीं, उसकी बात क्यों करें
आये हो तो समझ लो , तुम अब ग़ैर हो चुके हो हमें
इसलिए हमे अपना समझ कर , कोई सौदा हमसे ना करें ....
फिर इस बोझल हो चुकी मोहब्बत को लेकर बाजार मैं गया
सोचा था की किसी गरीब का कर दूंगा मैं आज कुछ भला
दे दूंगा उसे सारी मोहब्बत मुफ्त में, की उसका कुछ काम चल जायेगा
अब इसे वापस ढोकर कौन अपने साथ वतन ले जाएगा
हुस्न के बाज़ार में बहुत सी लाचार ,मायूस और दिलजली अबलाएं आई
लगता था जैसे जिन्दगी में अब तक , मोहब्बत की झलक भी उन्हें नसीब न हो पाई
मांग रहा था मैं उनसे ,मोहब्बत के बहुत ही थोड़े से दाम
ले लो मेरी सारी मोहब्बत ,बस दे दो कुछ पल का अहतराम
उन्होंने भी बड़े सकून से मेरी मोहब्बत को अच्छे से ठोका और बजाया
कइयो ने तो इसको काफी देर तक बदस्तूर आज़माया
आखिर में सब का एक ही जवाब आया
ऐ मोहब्बत बेचने वाले, तू गलत देश में आया है
कोई नहीं खरीदता अब मोहब्बत, यह तो फ़िजूल की माया है
इसे तो अब सिर्फ हम, फिल्मों और किताबों में देखते या पढ़ते है
आज की दुनिया में भी भला , दो इन्सान किसी से मोहब्बत करते है
इंसानों में तो यह कब की बीती बात हो चुकी है
क्यों और कैसे हो सकती थी मोहब्बत दो इंसानों में
इस बात इस पर तो यह दुनिया हंसती है
तू हमें ऐसी तिस्ल्मी चीज का , फ़िज़ूल में भ्रम ना करा
यह है अगर मुफ्त में भी , तब भी नहीं है हमारे पास वक़्त की
हम इसे आजमाये थोडा भी ज़रा .....
होकर मायूस मैं मोहब्बत को वहीं छोड़ कर चला आया
सोचा था किसी का भरोसा और कुछ हसीन पल, मैं भी कमा लूँगा
अपनी वीरान जिन्दगी के बुढ़ापे को, थोडा सा इन सबसे सजा लूँगा
अब शायद मुझे यूँ तड़पते रहना पड़ेगा
जब होना पूंजी अपने पास किसी अपने के अहसास की
यह तो वही दिल ही जानता है की, ऐसे जीना भी एक सज़ा है किसी की .....
बेचने आया था मैं मोहब्बत, तेरे शहर के बाज़ार में
पर अफ़सोस इसका कोई खरीददार तक ना मिला
यूँ तो धडल्ले से बिक रही थी ,नैतिकता , इमानदारी , इंसानियत और वफादारी
ऊँचे ऊँचे दामो पर यहां खुले आम
पर मोहब्बत को खरीदने वाला, कोई ग्राहक तक ना मिला
यूँ फैक कर अपनी मोहब्बत , मैं वापस मायूस होकर चला ......
सबसे पहले तो मैंने अपनी मोहब्बत का नज़राना तुझे ही दिखाया
देखने और परखने के लिए ,तुझे अपना दिल चीर कर भी दिख लाया
इस पर भी तुझे ,मेरी मोहब्बत के खालिस होने का यकीन नहीं आया
तुझे फिर मैंने उसके कई और नज़राने दिखाए
छिपे दिल के कुछ अहम, अनजाने राज बताये और समझाए
दिखाया की मेरी पाक मोहब्बत तेरे लिए कितनी महफूज’ है
शायद इससे ज्यादा बेहतर करना अब मेरे लिए मुश्किल है
पर तुझे भी मोहब्बत की जरूरत का अहसास ना हो सका
शायद तेरा भरोसा मोहब्बत से पूरा है खो चूका
तू भी शायद, रम चुकी इस झूठी दुनिया की उलझनों में
फुर्सत नहीं है तेरे पास भी की रख सके
तू इस उल्फत को अपने दिल में कहीं करीने से
यूँ तो मैंने मोहब्बत का दाम तुझे बहुत माकूल लगाया था
तेरी कुछ मुस्कुराहट ,कुछ वादे और पलों का साथ माँगा था
शायद तुझे यह दाम भी देना भी कबूल न हुआ
इसलिए हमारा सौदा ऐ मोहब्बत अंजामे मंजिल ना हुआ ....
फिर इस मोहब्बत को लेकर, मैं अपने रिश्तों के घर गया
पर वहां तो कोई इसे, देखने परखने वाला भी ना मिला
सब सजे बैठे थे इस बाहरी दुनिया के दिखावे में
उन्हें कहाँ थी फुर्सत और तहज़ीब की इसे परख भी पाते
क्या लाया हूँ मैं देने तोहफ़ा , उनको नज़राने में ...
बिना उन्हें दिखाए और बताये मैं अपना माल समेट लाया
शायद उनको मेरे मोहब्बत बेचने का तरीका पसंद नहीं आया
मांग रहा था मैं उनसे सिर्फ कुछ भरोसे की झूठी बातें
समझ लो मुझे भी अपना, थोड़ी सी इंसानियत दिखा के
शायद उन्हें मेरी मोहब्बत की नुमाइश लग रही थी गैरज़रूरी
बदले में इसके कुछ भी देना, उन्हें अब मंजूर था नहीं
इसलिए मेरी मोहब्बत की टोकरी को, घर के बाहर ही रखवा दिया
और बिना झिझक और शर्म के मुझे यह समझा भी दिया
जिस चीज को हमें लेना ही नहीं, उसकी बात क्यों करें
आये हो तो समझ लो , तुम अब ग़ैर हो चुके हो हमें
इसलिए हमे अपना समझ कर , कोई सौदा हमसे ना करें ....
फिर इस बोझल हो चुकी मोहब्बत को लेकर बाजार मैं गया
सोचा था की किसी गरीब का कर दूंगा मैं आज कुछ भला
दे दूंगा उसे सारी मोहब्बत मुफ्त में, की उसका कुछ काम चल जायेगा
अब इसे वापस ढोकर कौन अपने साथ वतन ले जाएगा
हुस्न के बाज़ार में बहुत सी लाचार ,मायूस और दिलजली अबलाएं आई
लगता था जैसे जिन्दगी में अब तक , मोहब्बत की झलक भी उन्हें नसीब न हो पाई
मांग रहा था मैं उनसे ,मोहब्बत के बहुत ही थोड़े से दाम
ले लो मेरी सारी मोहब्बत ,बस दे दो कुछ पल का अहतराम
उन्होंने भी बड़े सकून से मेरी मोहब्बत को अच्छे से ठोका और बजाया
कइयो ने तो इसको काफी देर तक बदस्तूर आज़माया
आखिर में सब का एक ही जवाब आया
ऐ मोहब्बत बेचने वाले, तू गलत देश में आया है
कोई नहीं खरीदता अब मोहब्बत, यह तो फ़िजूल की माया है
इसे तो अब सिर्फ हम, फिल्मों और किताबों में देखते या पढ़ते है
आज की दुनिया में भी भला , दो इन्सान किसी से मोहब्बत करते है
इंसानों में तो यह कब की बीती बात हो चुकी है
क्यों और कैसे हो सकती थी मोहब्बत दो इंसानों में
इस बात इस पर तो यह दुनिया हंसती है
तू हमें ऐसी तिस्ल्मी चीज का , फ़िज़ूल में भ्रम ना करा
यह है अगर मुफ्त में भी , तब भी नहीं है हमारे पास वक़्त की
हम इसे आजमाये थोडा भी ज़रा .....
होकर मायूस मैं मोहब्बत को वहीं छोड़ कर चला आया
सोचा था किसी का भरोसा और कुछ हसीन पल, मैं भी कमा लूँगा
अपनी वीरान जिन्दगी के बुढ़ापे को, थोडा सा इन सबसे सजा लूँगा
अब शायद मुझे यूँ तड़पते रहना पड़ेगा
जब होना पूंजी अपने पास किसी अपने के अहसास की
यह तो वही दिल ही जानता है की, ऐसे जीना भी एक सज़ा है किसी की .....
By
Kapil Kumar