Sunday, 26 November 2017

I am only human




I am only human after all, don't keep a hold on me
I will make the mistakes, don't put the blame on me




whatever I try, someone gets dry
without fire even I was fried
no use to tell me again and again
I will not play this dirty game



I am only human after all, don't keep a hold on me
I will make the mistakes, don't put the blame on me...




I think that I will not do it again
how can I give you this pain
this is out of my control
A devil wakes up when I am on a roll
this is not my fault
I am a man at last



I am only human after all, don't keep a hold on me
I will make the mistakes, don't put the blame on me...




I try to be nice use my all wise
all my possible way to make you smile
But somehow something goes wrong
you have punished me for this too long
you must bend to bring this to at an end
take a moment to understand
don't forget for a while
you are my only life



I am only human after all, don't keep a hold on me
I will make the mistakes, don't put your blame on me...




I want to be human for the rest of my life
you choose me to make an angel for a try
I failed in this process to impress to you
How can I hurt you when I love you
you took this very serious to show me wrong
there was no reason to get along




You are only human after all, don't lose hold of me
I will make the mistakes, don't put your blame on me.......

By
Kapil Kumar

ज़िन्दगी का कैनवास .....

ज़िन्दगी का कैनवास .....
मायूस जिन्दगी के कैनवास पर
कुछ खुशियों  और गम की लकीरे खींच रहा हूँ
इन लकीरों से जो तस्वीर उभरी है
उससे मैं अपनी जिन्दगी का सच कह रहा हूँ
इन आड़ी तिरछी खुशियों  और ग़म  की लकीरों ने
एक ऐसा मासूम सा सच उकेरा है
जिसने इस तस्वीर के सच  को मेरे सामने यूँ बिखेरा है
देखता हूँ दूर से तो ,सब कुछ पूरा पूरा सा लगता है
तस्वीर में उभरता मायूस सा चेहरा भी प्यारा सा लगता है
जब जब इस तस्वीर के मैं करीब चला जाता हूँ
ना जाने क्यों इस तस्वीर में कुछ कमी सी पाता हूँ
लगता है जैसे कहीं  कुछ खाली सा रह गया
या फिर लगता है जैसे तस्वीर में कहीं  से रंग फीका हो गया
सोचता हूँ की यह खालीपन, अधूरी  खुशियों की लकीरों से है
या तस्वीर का अधूरापन ,मेरी जिन्दगी का  ही सूनापन है
या फिर मुझे कुछ ज्यादा ही रंगीन देखने की चाह है
या फिर इसकी कुछ और वज़ह है
कलम उठाकर सोचता हूँ की इस सूनेपन को मैं कुछ कम कर दूँ
कुछ  ख़ुशीयो की लकीरों  को उकेर के , इसके अधूरेपन को भर दूँ
या फिर किसी के प्यार और विश्वास के रंग  से इसके खालीपन को  भर दूँ
जैसे ही मैं जिन्दगी की तस्वीर में, कुछ और रंग भरता हूँ
इसे तो अब  मैं , पहले से कुछ और बदरंग  करता हूँ
तस्वीर का यह भद्दापन ना जाने क्यों
गम की छिपी हुई लकीरों को और चमका जाता है
अच्छी खासी तस्वीर को कुछ से कुछ कर जाता है ...
फिर सोचता हूँ की  उभरी हुई ग़म  की , इन लकीरों को ही  मिटा दूँ
तस्वीर को खुशियों की नयी लकीरों  से कुछ और  सजा दूँ
जैसे ही गम की लकीरों को मैं  तस्वीर से मिटाने लगता हूँ
तस्वीर पर  उभरे  हुए अक्श की पहचान गंवाने   लगता हूँ
है बड़ी उलझन की मैं यह समझ नहीं पाता
ना तो इसमें मैं ख़ुशीयो की लकीरें जोड़  सकता
ना
ही किसी के प्यार के रंग को और   भर सकता
और ना ही ग़म  की लकीरों को इसमें से हटा पाता ....
अब यह जिन्दगी  कुछ आधी अधूरी सी तस्वीर बनके रह गई है
जो जीवन के इस सच को पूरा बयां करती है
ना तो यह  जिन्दगी और ना ही कोई तस्वीर
अब मुझे मुक्कमल सी लगती है
शायद यह है देखने का नज़रिया अपना अपना
की जिन्दगी में ख़ुशी कम है या ग़म  ज्यादा
या फिर इसमें खुशियों की लकीरों क्यों कम है
या क्या  ग़म  की लकीरों पर   रंग है जरूरत से ज्यादा ??

मायूस जिन्दगी के कैनवास पर
कुछ खुशियों  और गम की लकीरें  खींच रहा हूँ
इन लकीरों से जो तस्वीर उभरी है
उससे मैं अपनी जिन्दगी का सच कह रहा हूँ

इन आड़ी तिरछी खुशियों  और ग़म  की लकीरों ने
एक ऐसा मासूम सा सच उकेरा है
जिसने इस तस्वीर के सच  को मेरे सामने यूँ बिखेरा है
देखता हूँ दूर से तो ,सब कुछ पूरा पूरा सा लगता है
तस्वीर में उभरता मायूस सा चेहरा भी प्यारा सा लगता है

जब जब इस तस्वीर के मैं करीब चला जाता हूँ
ना जाने क्यों इस तस्वीर में कुछ कमी सी पाता हूँ
लगता है जैसे कहीं  कुछ खाली सा रह गया
या फिर लगता है जैसे तस्वीर में कहीं  से रंग फीका हो गया


सोचता हूँ की यह खालीपन, अधूरी  खुशियों की लकीरों से है
या तस्वीर का अधूरापन ,मेरी जिन्दगी का  ही सूनापन है
या फिर मुझे कुछ ज्यादा ही रंगीन देखने की चाह है
या फिर इसकी कुछ और वज़ह है
कलम उठाकर सोचता हूँ की इस सूनेपन को मैं कुछ कम कर दूँ
कुछ  ख़ुशीयो की लकीरों  को उकेर के , इसके अधूरेपन को भर दूँ
या फिर किसी के प्यार और विश्वास के रंग  से इसके खालीपन को  भर दूँ

जैसे ही मैं जिन्दगी की तस्वीर में, कुछ और रंग भरता हूँ
इसे तो अब  मैं , पहले से कुछ और बदरंग  करता हूँ
तस्वीर का यह भद्दापन ना जाने क्यों
गम की छिपी हुई लकीरों को और चमका जाता है
अच्छी खासी तस्वीर को कुछ से कुछ कर जाता है ...

फिर सोचता हूँ की  उभरी हुई ग़म  की , इन लकीरों को ही  मिटा दूँ
तस्वीर को खुशियों की नयी लकीरों  से कुछ और  सजा दूँ
जैसे ही गम की लकीरों को मैं  तस्वीर से मिटाने लगता हूँ
तस्वीर पर  उभरे  हुए अक्श की पहचान गंवाने   लगता हूँ
है बड़ी उलझन की मैं यह समझ नहीं पाता
ना तो इसमें मैं ख़ुशीयो की लकीरें जोड़  सकता
ना ही किसी के प्यार के रंग को और   भर सकता
और ना ही ग़म  की लकीरों को इसमें से हटा पाता ....

अब यह जिन्दगी  कुछ आधी अधूरी सी तस्वीर बनके रह गई है
जो जीवन के इस सच को पूरा बयां करती है
ना तो यह  जिन्दगी और ना ही कोई तस्वीर
अब मुझे मुक्कमल सी लगती है
शायद यह है देखने का नज़रिया अपना अपना
की जिन्दगी में ख़ुशी कम है या ग़म  ज्यादा
या फिर इसमें खुशियों की लकीरों क्यों कम है
या क्या  ग़म  की लकीरों पर   रंग है जरूरत से ज्यादा ??
By
Kapil Kumar

Maybe I am foolish ???




Maybe I am foolish
Maybe I am blind

Why can't I see this you are not lying
Maybe I have fallen too much in love
Can't see that you are just humble
You told me very clearly on the turf
There is no possibility of binding between us
Why am I begging and making you cry
Your love is only for him who is fragile
Now, it seems so much true
Maybe I am a strong man without rule
Who internally cry

Maybe I am foolish
Maybe I am blind.....


Looking at you what I feel
Are you are an angel or a deceive
I don't believe in past life karma
You are devoted to this life dharma
You might be looking someone higher
I don't have that desire
But don't forget someone above us all
He will decide who will get to fall
Maybe something has left behind

Maybe I am foolish
Maybe I am blind.....

Sometimes I think you are lean
Next day I feel it is just a dream
How often I forget this
You are a person with a closed fist
Why am I counting on you
When this is just a mirage to get you
I am waiting for that day you may lose
Unknowingly that I have taken too much booze
Still, I am trying

May be I am foolish
May be I am blind.....


By
Kapil Kumar

भीगी भीगी पलकों पर ....

तेरे लिए हम क्यों तरसते रहे .....
भीगी भीगी पलकों  पर बिखरे थे दर्द तेरे
सूखे सूखे होठ जैसे भीगने  को तरसते रहे
सूनी सूनी आँखों ने, फिर से वही सवाल किये
जब देना ही  था दर्द मुझे , फिर
क्यों मुझ  झूठे दिलासे दिए
भीगी भीगी पलकों  पर ...
नाज़ुक कलाइयों   पर था जिंदगी का  बोझ
सख्त हाथों ने जैसे खोल दिए दिल के राज़ तेरे
उलझे उलझे से बाल तेरे ,पूछ रहे थे वह भी मुझसे
तुम तो चले गए मुझे हमेशा की तरह
यूँही मझधार में छोड़ कर,अपनी खुशियों के तले
वीरान आँखों में जीवन के सपनों  के दीये
क्यों  अब तक किसी के लिए यह  जलते  रहे
भीगी भीगी पलकों  पर ...
तेरी लड़खड़ाती चाल ने , आखिर मुझसे पूछ ही लिया
पकड़ोगे हाथ मेरा भी कभी
या तुम भी खड़े रहोगे  औरों  की तरह बुत से बने
अगर मैं लड़खड़ा कर गिर गई , फिर
क्या होगा तुम्हारी इन सख्त बाजुओं  का
जिन्हें तुमने रखा  है अपने शरीर से जकड़े हुए
भीगी भीगी पलकों  पर ...
बिन कहे तेरे हालत ने,  मुझे  कुछ ताने से दिए
यूँ  तो बहुत दावा करते हो मोहब्बत का
फिर काहे मुझे यूँ छोड़ कर अकेला चल दिए
क्यों आते हो तुम बार बार
फिर दे कर  चले जाते हो सपने हज़ार
जो ना तो मरने देते है मुझको,  बस रुलाते है दिन रात
काश  तुम भी जी लेते कुछ पल ,इन अँधेरी गलियों में मेरे साथ
क्या याद है तुम्हे ,तुम भी  यहां  हुए थे बड़े  कभी
भीगी भीगी पलकों  पर ...
तेरे लिए हम क्यों तरसते रहे .....
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तेरे लिए हम क्यों तरसते रहे .....
भीगी भीगी पलकों  पर बिखरे थे दर्द तेरे
सूखे सूखे होठ जैसे भीगने  को तरसते रहे
सूनी सूनी आँखों ने, फिर से वही सवाल किये
जब देना ही  था दर्द मुझे , फिर
क्यों मुझ  झूठे दिलासे दिए
भीगी भीगी पलकों  पर ...
नाज़ुक कलाइयों   पर था जिंदगी का  बोझ
सख्त हाथों ने जैसे खोल दिए दिल के राज़ तेरे
उलझे उलझे से बाल तेरे ,पूछ रहे थे वह भी मुझसे
तुम तो चले गए मुझे हमेशा की तरह
यूँही मझधार में छोड़ कर,अपनी खुशियों के तले
वीरान आँखों में जीवन के सपनों  के दीये
क्यों  अब तक किसी के लिए यह  जलते  रहे
भीगी भीगी पलकों  पर ...
तेरी लड़खड़ाती चाल ने , आखिर मुझसे पूछ ही लिया
पकड़ोगे हाथ मेरा भी कभी
या तुम भी खड़े रहोगे  औरों  की तरह बुत से बने
अगर मैं लड़खड़ा कर गिर गई , फिर
क्या होगा तुम्हारी इन सख्त बाजुओं  का
जिन्हें तुमने रखा  है अपने शरीर से जकड़े हुए
भीगी भीगी पलकों  पर ...
बिन कहे तेरे हालत ने,  मुझे  कुछ ताने से दिए
यूँ  तो बहुत दावा करते हो मोहब्बत का
फिर काहे मुझे यूँ छोड़ कर अकेला चल दिए
क्यों आते हो तुम बार बार
फिर दे कर  चले जाते हो सपने हज़ार
जो ना तो मरने देते है मुझको,  बस रुलाते है दिन रात
काश  तुम भी जी लेते कुछ पल ,इन अँधेरी गलियों में मेरे साथ
क्या याद है तुम्हे ,तुम भी  यहां  हुए थे बड़े  कभी
भीगी भीगी पलकों  पर ...
तेरे लिए हम क्यों तरसते रहे .....
By
Kapil Kumar

Tuesday, 21 November 2017

मोहब्बत का खरीददार ....

मोहब्बत का खरीददार ....
बेचने आया था मैं मोहब्बत, तेरे शहर के बाज़ार में
पर अफ़सोस इसका कोई खरीददार तक ना मिला
यूँ तो धडल्ले से बिक रही थी ,नैतिकता , इमानदारी , इंसानियत और वफादारी
ऊँचे ऊँचे दामो पर यहां  खुले आम
पर मोहब्बत को खरीदने वाला, कोई ग्राहक तक ना मिला
यूँ फैक कर अपनी मोहब्बत , मैं  वापस मायूस होकर चला ......
सबसे पहले तो मैंने  अपनी मोहब्बत का नज़राना  तुझे ही दिखाया
देखने और परखने के लिए ,तुझे अपना दिल चीर कर भी दिख लाया
इस पर  भी तुझे ,मेरी मोहब्बत के खालिस होने का यकीन नहीं आया
तुझे फिर मैंने  उसके कई और नज़राने  दिखाए
छिपे दिल के कुछ अहम, अनजाने राज बताये और समझाए
दिखाया की मेरी पाक मोहब्बत तेरे लिए कितनी महफूज’ है
शायद इससे ज्यादा बेहतर करना अब मेरे लिए मुश्किल है
पर तुझे भी मोहब्बत की जरूरत का अहसास ना हो सका
शायद तेरा  भरोसा मोहब्बत से पूरा है खो चूका
तू भी शायद, रम चुकी इस झूठी दुनिया की उलझनों में
फुर्सत नहीं है तेरे पास भी की रख सके
तू इस उल्फत को अपने दिल में कहीं  करीने से
यूँ तो मैंने  मोहब्बत का दाम तुझे बहुत माकूल लगाया था
तेरी कुछ मुस्कुराहट ,कुछ वादे और पलों  का साथ माँगा था
शायद तुझे यह दाम भी देना भी कबूल न हुआ
इसलिए हमारा सौदा ऐ मोहब्बत अंजामे मंजिल ना हुआ ....
फिर इस मोहब्बत को लेकर, मैं अपने रिश्तों  के घर गया
पर वहां तो कोई इसे, देखने परखने वाला भी ना मिला
सब सजे बैठे थे इस बाहरी दुनिया के दिखावे में
उन्हें कहाँ  थी फुर्सत और तहज़ीब  की इसे परख भी पाते
क्या लाया हूँ मैं देने तोहफ़ा , उनको नज़राने में ...
बिना उन्हें दिखाए और बताये मैं अपना माल समेट लाया
शायद उनको मेरे मोहब्बत बेचने का तरीका पसंद नहीं आया
मांग रहा था मैं उनसे सिर्फ कुछ भरोसे की झूठी बातें
समझ लो मुझे भी अपना, थोड़ी सी इंसानियत दिखा के
शायद उन्हें मेरी मोहब्बत की नुमाइश लग रही थी गैरज़रूरी
बदले में इसके कुछ भी देना, उन्हें अब मंजूर था नहीं
इसलिए मेरी मोहब्बत की टोकरी को, घर के बाहर  ही रखवा दिया
और बिना झिझक और शर्म के मुझे यह समझा भी दिया
जिस चीज को हमें लेना ही नहीं, उसकी बात क्यों करें
आये हो तो समझ लो , तुम अब ग़ैर हो चुके हो हमें
इसलिए हमे अपना समझ कर , कोई सौदा हमसे ना करें  ....
फिर इस बोझल हो चुकी मोहब्बत को लेकर बाजार मैं गया
सोचा था की किसी गरीब का कर दूंगा मैं आज कुछ भला
दे दूंगा उसे सारी मोहब्बत मुफ्त में, की उसका कुछ काम चल जायेगा
अब इसे वापस ढोकर कौन अपने साथ वतन ले जाएगा
हुस्न  के बाज़ार में बहुत सी लाचार ,मायूस और दिलजली अबलाएं  आई
लगता था जैसे जिन्दगी में अब तक , मोहब्बत की झलक भी उन्हें नसीब न हो पाई
मांग रहा था मैं उनसे ,मोहब्बत के बहुत ही थोड़े से दाम
ले लो मेरी सारी मोहब्बत ,बस दे दो कुछ पल का अहतराम
उन्होंने भी बड़े सकून से मेरी मोहब्बत को अच्छे से ठोका और बजाया
कइयो ने तो इसको काफी देर तक बदस्तूर  आज़माया
आखिर में सब का एक  ही जवाब आया
ऐ मोहब्बत बेचने वाले, तू गलत देश में आया है
कोई नहीं खरीदता अब मोहब्बत, यह तो फ़िजूल की माया है
इसे तो अब सिर्फ हम, फिल्मों और किताबों  में देखते या पढ़ते है
आज की दुनिया में भी भला , दो इन्सान किसी से मोहब्बत करते है
इंसानों में तो यह कब की बीती बात हो चुकी है
क्यों और कैसे हो सकती थी मोहब्बत दो इंसानों में
इस बात इस पर तो यह दुनिया हंसती है
तू हमें ऐसी तिस्ल्मी चीज का , फ़िज़ूल  में भ्रम ना करा
यह है अगर मुफ्त में भी , तब भी नहीं है हमारे पास वक़्त की
हम इसे आजमाये थोडा भी ज़रा  .....
होकर मायूस मैं मोहब्बत को वहीं  छोड़ कर चला आया
सोचा था किसी का भरोसा और कुछ हसीन पल, मैं भी कमा लूँगा
अपनी वीरान जिन्दगी के बुढ़ापे को, थोडा सा इन सबसे सजा लूँगा
अब शायद मुझे यूँ तड़पते  रहना पड़ेगा
जब होना पूंजी अपने पास किसी अपने के अहसास की
यह तो वही दिल ही जानता है की, ऐसे जीना भी एक सज़ा  है किसी की .....

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बेचने आया था मैं मोहब्बत, तेरे शहर के बाज़ार में
पर अफ़सोस इसका कोई खरीददार तक ना मिला
यूँ तो धडल्ले से बिक रही थी ,नैतिकता , इमानदारी , इंसानियत और वफादारी
ऊँचे ऊँचे दामो पर यहां  खुले आम
पर मोहब्बत को खरीदने वाला, कोई ग्राहक तक ना मिला
यूँ फैक कर अपनी मोहब्बत , मैं  वापस मायूस होकर चला ......

सबसे पहले तो मैंने  अपनी मोहब्बत का नज़राना  तुझे ही दिखाया
देखने और परखने के लिए ,तुझे अपना दिल चीर कर भी दिख लाया
इस पर  भी तुझे ,मेरी मोहब्बत के खालिस होने का यकीन नहीं आया
तुझे फिर मैंने  उसके कई और नज़राने  दिखाए
छिपे दिल के कुछ अहम, अनजाने राज बताये और समझाए
दिखाया की मेरी पाक मोहब्बत तेरे लिए कितनी महफूज’ है
शायद इससे ज्यादा बेहतर करना अब मेरे लिए मुश्किल है

पर तुझे भी मोहब्बत की जरूरत का अहसास ना हो सका
शायद तेरा  भरोसा मोहब्बत से पूरा है खो चूका
तू भी शायद, रम चुकी इस झूठी दुनिया की उलझनों में
फुर्सत नहीं है तेरे पास भी की रख सके
तू इस उल्फत को अपने दिल में कहीं  करीने से
यूँ तो मैंने  मोहब्बत का दाम तुझे बहुत माकूल लगाया था
तेरी कुछ मुस्कुराहट ,कुछ वादे और पलों  का साथ माँगा था
शायद तुझे यह दाम भी देना भी कबूल न हुआ
इसलिए हमारा सौदा ऐ मोहब्बत अंजामे मंजिल ना हुआ ....

फिर इस मोहब्बत को लेकर, मैं अपने रिश्तों  के घर गया
पर वहां तो कोई इसे, देखने परखने वाला भी ना मिला
सब सजे बैठे थे इस बाहरी दुनिया के दिखावे में
उन्हें कहाँ  थी फुर्सत और तहज़ीब  की इसे परख भी पाते
क्या लाया हूँ मैं देने तोहफ़ा , उनको नज़राने में ...

बिना उन्हें दिखाए और बताये मैं अपना माल समेट लाया
शायद उनको मेरे मोहब्बत बेचने का तरीका पसंद नहीं आया
मांग रहा था मैं उनसे सिर्फ कुछ भरोसे की झूठी बातें
समझ लो मुझे भी अपना, थोड़ी सी इंसानियत दिखा के
शायद उन्हें मेरी मोहब्बत की नुमाइश लग रही थी गैरज़रूरी
बदले में इसके कुछ भी देना, उन्हें अब मंजूर था नहीं
इसलिए मेरी मोहब्बत की टोकरी को, घर के बाहर  ही रखवा दिया
और बिना झिझक और शर्म के मुझे यह समझा भी दिया
जिस चीज को हमें लेना ही नहीं, उसकी बात क्यों करें
आये हो तो समझ लो , तुम अब ग़ैर हो चुके हो हमें
इसलिए हमे अपना समझ कर , कोई सौदा हमसे ना करें  ....

फिर इस बोझल हो चुकी मोहब्बत को लेकर बाजार मैं गया
सोचा था की किसी गरीब का कर दूंगा मैं आज कुछ भला
दे दूंगा उसे सारी मोहब्बत मुफ्त में, की उसका कुछ काम चल जायेगा
अब इसे वापस ढोकर कौन अपने साथ वतन ले जाएगा
हुस्न  के बाज़ार में बहुत सी लाचार ,मायूस और दिलजली अबलाएं  आई
लगता था जैसे जिन्दगी में अब तक , मोहब्बत की झलक भी उन्हें नसीब न हो पाई
मांग रहा था मैं उनसे ,मोहब्बत के बहुत ही थोड़े से दाम
ले लो मेरी सारी मोहब्बत ,बस दे दो कुछ पल का अहतराम
उन्होंने भी बड़े सकून से मेरी मोहब्बत को अच्छे से ठोका और बजाया
कइयो ने तो इसको काफी देर तक बदस्तूर  आज़माया
आखिर में सब का एक  ही जवाब आया
ऐ मोहब्बत बेचने वाले, तू गलत देश में आया है
कोई नहीं खरीदता अब मोहब्बत, यह तो फ़िजूल की माया है

इसे तो अब सिर्फ हम, फिल्मों और किताबों  में देखते या पढ़ते है
आज की दुनिया में भी भला , दो इन्सान किसी से मोहब्बत करते है
इंसानों में तो यह कब की बीती बात हो चुकी है
क्यों और कैसे हो सकती थी मोहब्बत दो इंसानों में
इस बात इस पर तो यह दुनिया हंसती है
तू हमें ऐसी तिस्ल्मी चीज का , फ़िज़ूल  में भ्रम ना करा
यह है अगर मुफ्त में भी , तब भी नहीं है हमारे पास वक़्त की
हम इसे आजमाये थोडा भी ज़रा  .....

होकर मायूस मैं मोहब्बत को वहीं  छोड़ कर चला आया
सोचा था किसी का भरोसा और कुछ हसीन पल, मैं भी कमा लूँगा
अपनी वीरान जिन्दगी के बुढ़ापे को, थोडा सा इन सबसे सजा लूँगा
अब शायद मुझे यूँ तड़पते  रहना पड़ेगा
जब होना पूंजी अपने पास किसी अपने के अहसास की
यह तो वही दिल ही जानता है की, ऐसे जीना भी एक सज़ा  है किसी की .....
By
Kapil Kumar