Tuesday, 3 May 2016

नाकाम मोहब्बत


क्यों नाकाम मोहब्बत के नगमे गा रहा हूँ

जब किसी की मय्यत ही नहीं उठी

फिर किसके लिए आंसू बहा रहा हूँ

क्यों जीते जी अपनी जिन्दगी जहन्नुम बना रहा हूँ

क्यों नाकाम मोहब्बत के नगमे गा रहा हूँ....


क्यों इक सिरफिरी मग़रूर  माशूका के लिए

अपनी जिन्दगी जला रहा हूँ

जिसके सीने में दिल ही नहीं

क्यों उसे मोहब्बत सिखा रहा हूँ

क्यों नाकाम मोहब्बत के नगमे गा रहा हूँ....


क्यों आइने  से भी अपना चेहरा छिपा रहा हूँ

जब तू ही नहीं मेरे सामने

फिर किसके लिए अपने को सजा रहा हूँ

आजकल महफ़िलो में भी तन्हाई पा रहा हूँ

दिल तो नहीं है उदास फिर भी

क्यों नाकाम मोहब्बत के नगमे गा रहा हूँ....


By
Kapil Kumar

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