लहराती , बलखाती हरी हरी घास के साथ झूमते पेड़ों का मेरे पास एक घेरा है
नाचती गाती कई तरह की चिड़ियों का इन पेड़ों पर भी रैनबसेरा है
उछलती, फुदकती पेड़ो के बीच गिलहरियों का भी डेरा है
मेरे घर के आँगन को सर्दी की धुप ने अपने मखमली आंचल में समेटा है
इतने सब है मेरे दिल बहलाने के साथी
फिर भी क्यों मेरा दिल अकेला है ......
उड़ती फिरती है रंगबिरंगी तितलियाँ मेरे चारो ओर
उनके पीछे गाते भँवरे खिलती कलियों का करने चित्तचोर
मधुमखियों ने भी फूलों से अपना भाई चारे का नाता जोड़ा है
कार्डिनल अपनी कूक से , फिंच अपने फूंक से और स्पैरो अपनी कूद से
हर दिन मेरे आँगन में करती एक नया सवेरा है
यह सब है मेरी खुशियों के साथी
फिर भी क्यों मेरा दिल अकेला है ......
दिन में सूरज ने आकर अपनी दोस्ती का रंग जमाया
जब गया वह थक मुझे बहला कर , तब चाँद अपनी मुस्कराहट लेकर आया
सितारों ने भी मेरे आँगन में, जमकर अपना रंग बिखेरा है
बेपरवाह गाते जुगनूओं ने जैसे कोई नया राग छेड़ा है
यह सब लुभाते है मेरे दिल को
फिर भी क्यों मेरा दिल अकेला है ......
डेफोडिल और क्रोकस लुटा चुके है मुझ पर अपनी मुस्कान
अब मुझे मुस्कराहट देने का काम टूलिप और अरलिया पर छोड़ा है
गुलाब की कलियों ने ,आईरिस के खिलने के बाद अपने को नए रूप रंग में संजोया है
इनकी जवानी के बाद, आँगन को महकाने का काम डहेलिया और लिली पर भरोसा है
मेरे आँगन में खुशबु का ठेका हाइअसिन्थ ने लाइलक के हाथो से पियोनिया को सौंपा है
इतनी सतरंगी रौशनी और खुसबू को देख , हर किसी का मन मयूर यहां डोला है
सारे फूल चाहते है की ,मैं भी उनकी तरह हर वक़्त खिलखिला कर मुस्करायूँ
ना जाने किस मायूसी ने आकर मुझको घेरा है
फिर भी क्यों मेरा दिल अकेला है ......
पहाड़ियां भी मुझसे दूर से शर्मा कर नज़रें मिलाती है
उड़ते आवारा बादलों को जैसे चुपके से मेरे घर का पता बताती है
हर पंछी ने जैसे मुझसे अपना कोई ना कोई नाता जोड़ा है
कभी कभी तो हिरणियों ने भी आकर मुझे झिंझोड़ा है
आजा घूल मिल जा हम सब में इन वादियों का तू बेटा है
जैसे पूछते है सब मुझसे क्यों सोचता है की तू अकेला है
फिर भी मुझे क्यों जीवन में लगता अँधेरा है
मैं भी ना जाने क्यों हर पल कुछ ना कुछ सोचता
मुझे है किसी का इंतजार
शायद इसलिए मेरा दिल अकेला है ......
By
Kapil Kumar
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