तू मेरे अँधेरे जीवन करती रौशनी है
या मेरी बुझती आँखों का नूर
तेरे आने से ही बंधी है मेरी साँसों को आस होकर मजबूर
तेरी जुल्फे है या फैली घटा का साया
जिसने दिया है , तड़पे रेगिस्तान को हरा होने का नया लुभाया
तेरी आँखे है या किसी मयख़ाने का जाम
इनमे डूब कर कर लूँ , थोड़ी देर मैं भी आराम
तेरे होठ है या किसी रूहानी शर्बत का जाम
इन्हे जी भरकर चुम कर , मैं भी कर लूँ अपना जीवन भर का काम
तेरा आगोश है या जन्नत का झूला
इसमें लेट कर ,मैं अपने सारे दर्द और ग़म गया भूला
तुझे पाने के बाद , फिर कौन सी हसरत है बाकी
तेरे साथ कुछ पल जीने के हर कीमत है नाकाफी
कौन कमबख्त चाहता है , करोड़ो का जैकपोट
तेरा साथ मिले तो , यह है सबसे बड़े ख़जाने का प्लाट
सारे जीवन की खुशियों से भी है भारी
जब तेरे जैसी हो मेरे साथ नारी
आ मुझे कबुल कर , इस दुनिया को छोड़ दूँ
तेरे लिए तो मैं इस जमाने से भी मुंह मोड़ लूँ
तेरे आगोश के आगे ज़न्नत भी है फीका
बस बसा ले मुझे तू अपने दिल में मुझे समझ कर एक लतीफ़ा
तेरे चेहरे के सामने हर नज़ारा हो जाता है धुंधला
तू है मेरी रौशनी , जिसने किया है मेरा जीवन उजला
मेरी धड़कन , कब मेरे सीने में आकर धडकोगी
इतनी देर मत कर देना
कि यह जिस्म सिर्फ फ़िज़ाओं में भटकता रह जाए
हमारा वज़ूद सिर्फ इस शरीर से है
कौन जाने कल आत्मा किसी और के नाम हो !
By
Kapil Kumar
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