Wednesday, 31 August 2016

सौदेबाज़ी


हम भी तोड़ते है दिल उन्ही का , 
जो हमसे दिल लगाते है   
लोग अक्सर काटते है सर उसी का ,
 जो उनके आगे सर झुकाते है ....  
  
 हर कोई मोहब्बत की कद्र नहीं कर सकता  
 क्योकि मोहब्बत करने वाले 
अक्सर गुमनामी में खो जाते है ..... 
  
मैं तुम्हे क्यों दोष दूँ 
तुम्हारी इस बेग़ैरत का   
आजकल तो लोगो में ईमान ही 
बा मुश्किल से पाए जाते है .....
     
क्यों छिपकर  बैठे हो चिलमन के
पीछे ओ हसीन  
आजकल तो आशिकों के लिए 
चिलमन भी खुद ही गिराए जाते है ...
     
इसे मैं अपनी बदकिस्मती कहूँ  
या  अँधा जूनून  
 वह कुचलते है हर बार दिल मेरा,
 फिर भी हम उनके कदमो में बिछए जाते है ....
    
 यह मौसम नहीं है ठीक किसी से
इश्क़ फ़रमाने का  
 एक  हम है उनकी मोहब्बत में
 दिन रात में ग़ज़ल  गाये जाते है ....
      
बदल चुकी है दुनिया और बदल गए है हसीन  
 ना पहले जैसी नज़ाकत  
और ना ही दीखता वह नाजुक  सा कमसीन   
  दिलरुबा अब आशिक के दिल में धड़कन नहीं बढ़ाती  है 
मुस्करा  कर तिरछी नज़रों  से तीर चलाये ,
 उन्हें ऐसा कला कहाँ आती है ...
  
  मोहब्बत में  अब सब कुछ दिखावा सा लगता है   
जैसे मोहब्बत नहीं , 
दो लोगो में हो रही सौदेबाज़ी  है ....

By
Kapil Kumar 

Thursday, 25 August 2016

मैंने ली नयी जिंदगी है….


जब से मुझे तेरे साथ जीने की आदत होने लगी है  
यह बात तेरे दिल को कहीं  चुभोने लगी है     
तू सोचती है की कोई मुझसे कैसे मोहब्बत करेगा     
अब तो जवानी भी मेरा दामन छोड़ने लगी है ….. 
    
तू चाहती है की मैं तेरे करीब तो आयूँ     
इस अहसास को लेकर फिर दूर चला जायूँ     
तुझे छूने के बाद तुझे भी मेरी चाहत होने लगी है     
यह बात तुझे अंदर से झिंझोड़ने लगी है   …..
     
तेरा डर है की कहीं  मैं तुझसे ऊब ना जायूँ     
किसी रंगबिरंगी तितली को देख तुझे भूल ना जायूँ     
इसलिए तू मुझसे दूर जाने के बहाने खोज़ने लगी है    
इस डर से तू अपनी आँखे अक्सर भिगोने लगी है ……
  
यह ग़म  है तेरा की तूझे  इश्क में पहले भी ठोकर लगी है    
यह बात आज भी तेरी जख्म को करती हरी है      
भरोसा करके कहीं  फिर से दिल टूट ना जाए     
वैसे भी यह दुनिया मौकापरस्तों  से भरी है  .......
   
इसलिए तू मेरी मोहब्बत पर नहीं करती यक़ीन  है     
मैं यह नहीं कहता की तेरा वहम  सही नहीं है     
जिसके पावँ में चुभता है कांटा दर्द सहता भी वही है   
जो आसानी से मिल जाए वह मंजिल नहीं है     
इसलिए तुझे पाने  के लिए मैंने  ली नयी जिंदगी है….
By
Kapil Kumar 

Tuesday, 23 August 2016

तेरी सूरत.....


तेरी हर सूरत में मुझे प्यार आता है
 तू है मुझसे क्यों दूर इस बात का जब भी ख्याल आता है 
उभर आता है दर्द एक अंजाना सा
 ना जाने बाजुओ में क्यों गुस्से का एक  उबाल आता है
 शायद यह  कुदरत का सबसे बड़ी सजा है की 
हम दो किनारे है जिनके बीच ज़माने और समय का  फासला है
वरना इतने करीब होकर भी कोई यूँ  भला दूर जाता है 
कहते है वक़्त तो बिछड़ों को भी आने पर मिलाता है 
सोचता हूँ की ग़र  कल मुझे मिल भी जाती 
क्या तू मेरी बनने के लिए फिर भी राजी हो जाती 
उम्र और समाज की दिवार फिर भी हमारे बीच अड़ ही जाती 
कहीं  तू पहले की तरह फिर से पीछे हट जाती 
आने वाला वक़्त इस बार हमें जरुर  मिलाएगा
 तू कितने भी बहाने बना ले 
यह वक़्त जरुर आएगा 
क्योंकि  हर काली रात के पीछे सवेरे का उजाला छिपा  है 
 हम दोनों की एक  मासूम  गलती की हो चुकी पूरी सजा है ......
By
Kapil Kumar 

Monday, 22 August 2016

तेरी नाराज़गी


तेरी नाराज़गी  मुझसे नहीं खुद तुझसे है  
 तू चाहकर भी इक़रार नहीं कर पाती   
यह दर्द मेरे सीने में तेरे दिल का है   
तू मोहब्बत को दिल से क़बूल  नहीं कर पाती…. 

तेरे सीने में रिस्ते कई झख्म है  
जिन्हें तू करुणा की पट्टी से छिपाती  
उनका दर्द उभरता है मेरे दिल में 
 जिसे तू जानकर भी  अनजान बन जाती…. 
    
तुझसे मेरी चाहत इस शरीर की नहीं जज़्बात की है
 यह बात क्यों अक्सर तू भूल जाती  
हम इंसान है कोई फरिश्ते नहीं 
फिर तू आदर्शो की इतनी ऊँची दिवार
हमारे बीच क्यों बनाती….. 

तू  मेरी सिर्फ दिलरुबा ही नहीं एक  हमसफ़र भी है 
फिर क्यों अपनी बेरुखी को बार बार दिखाती  
तुझे मोहब्बत के साथ मुझे रास्ता भी दिखाना है 
 फिर हम दोनों के बीच यह कसमकश के भंवर क्यों उठाती….
   
अब इन शिकवे शिकायतों को हमेशा के लिए छोड़ दे   
मुझपे भरोसा कर 
अपने को मेरी बांहो में ढीला छोड़ दे .......  
By
Kapil Kumar 

Thursday, 18 August 2016

काली बदरा तू क्यों आई…..


काली बदरा तू क्यों आई
दिल में यह कैसी आस जगाई  
मेरा सजनवा दूर देश में 
 फिर क्यों यह प्यास बढ़ाई ..  
काली बदरा तू क्यों आई ...   

छम छम से छींटे 
छूते हुए गालों  को
होठों पर  नरमी सी आई 
गिरते पानी की बूंदों  ने  
सीने में जैसे आग सी लगाई 
 काली बदरा तू क्यों  आई…. 
  
 ठंडी पुरवा ने बदन को जो छुआ तो 
  उसने भी ली अंगड़ाई
 जिस यौवन  को था छिपाया  दुनिया की नज़रों  से 
 उसने भी  रिहाई की आवाज लगाईं  
काली बदरा तू क्यों  आई….  
  
 फिसलता आँचल  उभरता यौवन  
जैसे चोली से मांगे जुदाई 
नज़रों ने शर्माकर 
चुपके से देखा   पाया की 
आँचल में कसमसाती  सख्ती आई 
गालों पर  यह कैसी  लाली छाई  
काली बदरा तू क्यों  आई…..  
  
 बिस्तर पर मचलूँ  
 बदन को तोड़ू  तकिये से 
कर लूँ थोड़ी सी लड़ाई 
 तड़पते जिस्म ने मुझको बावरा ऐसा किया 
मुझपर  पर एक  नयी मस्ती सी  छाई 
 बदरा में भिगो लू  जलता बदन  मेरा  
 करता रहे जग मेरा कितनी भी हंसाई 
 काली बदरा तू क्यों  आई…..

By
Kapil Kumar 

Tuesday, 16 August 2016

My heart is a butterfly




My heart is a butterfly,
Who wants to sniff all the flowers whether they are dull or bright?
The Garden flowers think,
I will come near to them but kiss the buds and just let them miss
In the reality,
 I fly along the wind and touch the flower whenever my wing feels little sting,
I choose the bud, not for their color or scent,
 Sometimes I want to put my fly to an end

Everyone thinks I am too agile and slicker
In reality, my heart is looking for real love from a flicker.
People forget often that seeing is deceiving,
Don’t judge someone from their anger or smile,
In fact, a beautiful butterfly was an ugly worm in this life.
I got this wing after going through a cruel change,
Why should not I enjoy this moment for an exchange
Nature has wonderful color and so many sweet,
How can I give a rest to my feet?

People think  that I am not trustworthy and stable,
But they don’t know I have to make flow zeal in each cold heart cable
Everyone see me always happy and fly,
But they forget, how hard it was to turn an ugly worm into a butterfly

In the end, it does not matter, what you were,
It’s all about you what are you today for chatter
I want to live every day with full of life,

Who cares they called me a fickle “Butterfly”
By
Kapil Kumar 

तेरा आँचल



तेरे होठों से टपकता शहद 
 आँखों से छलकता है जाम ....
गालों  पर  पड़ते डिम्पल 
नहीं लेने देते मुझे आराम ....


तेरी चाल की दीवानगी 
हवा में लहरता तेरा आँचल 

 मेरे दिल को करती हल पल हैरान
तू ही बता कैसे आँखे फेरु 
 जब खनकती आवाज से 
तू धीरे से लेती मेरा  नाम.....

उलझती जुल्फों की शाम 
बदन से उठती खुसबू  
जैसे करती मेरा जीना हराम...

मैं सोचता हर बार 
जैसे तू औरत है कोई भ्रम 
नोचता जब मैं खुद को
 तब लगता तू है 
मेरे हर दर्द का बस इकलौता मरहम ....
By
Kapil Kumar 

Thursday, 4 August 2016

समय !



समय क्या है ?
एक  बूढ़े लाचार बाप का वो लम्हा 
जब उसे अपनी लड़की के लिये लड़का ढूंडना हो ...
एक  नेता जो तीन बार हार कर आखरी बार चुनाव लड़े
की इस बार जीत जाये और काउंटिंग उसकी सांस उपर नीचे करे....
वो लम्हा जब एक  प्रेमी अपनी प्रेमिका से मिलने के लिये
 हज़ारों मील का सफर करके आये 
और उसकी सांसे दरवाजे पर दस्तक देती हो ...
वो बच्चा जो दो अटेंप्ट मे एग्ज़ॅम पास ना  कर पाया 
आज उसका आखरी नतीजा भी आना हो  ....
समय वो लम्हा है .....
जो हसीन , तनाव , खुशी , जोश और उम्मीद देता है.....

By
Kapil Kumar