जब से मुझे तेरे साथ जीने की आदत होने लगी है
यह बात तेरे दिल को कहीं चुभोने लगी है
तू सोचती है की कोई मुझसे कैसे मोहब्बत करेगा
अब तो जवानी भी मेरा दामन छोड़ने लगी है …..
तू चाहती है की मैं तेरे करीब तो आयूँ
इस अहसास को लेकर फिर दूर चला जायूँ
तुझे छूने के बाद तुझे भी मेरी चाहत होने लगी है
यह बात तुझे अंदर से झिंझोड़ने लगी है …..
तेरा डर है की कहीं मैं तुझसे ऊब ना जायूँ
किसी रंगबिरंगी तितली को देख तुझे भूल ना जायूँ
इसलिए तू मुझसे दूर जाने के बहाने खोज़ने लगी है
इस डर से तू अपनी आँखे अक्सर भिगोने लगी है ……
यह ग़म है तेरा की तूझे इश्क में पहले भी ठोकर लगी है
यह बात आज भी तेरी जख्म को करती हरी है
भरोसा करके कहीं फिर से दिल टूट ना जाए
वैसे भी यह दुनिया मौकापरस्तों से भरी है .......
इसलिए तू मेरी मोहब्बत पर नहीं करती यक़ीन है
मैं यह नहीं कहता की तेरा वहम सही नहीं है
जिसके पावँ में चुभता है कांटा दर्द सहता भी वही है
जो आसानी से मिल जाए वह मंजिल नहीं है
इसलिए तुझे पाने के लिए मैंने ली नयी जिंदगी है….
By
Kapil Kumar
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