तेरे होठों से टपकता शहद
आँखों से छलकता है जाम ....
गालों पर पड़ते डिम्पल
नहीं लेने देते मुझे आराम ....
तेरी चाल की दीवानगी
हवा में लहरता तेरा आँचल
मेरे दिल को करती हल पल हैरान
तू ही बता कैसे आँखे फेरु
जब खनकती आवाज से
तू धीरे से लेती मेरा नाम.....
आँखों से छलकता है जाम ....
गालों पर पड़ते डिम्पल
नहीं लेने देते मुझे आराम ....
तेरी चाल की दीवानगी
हवा में लहरता तेरा आँचल
मेरे दिल को करती हल पल हैरान
तू ही बता कैसे आँखे फेरु
जब खनकती आवाज से
तू धीरे से लेती मेरा नाम.....
उलझती जुल्फों की शाम
बदन से उठती खुसबू
जैसे करती मेरा जीना हराम...
मैं सोचता हर बार
जैसे तू औरत है कोई भ्रम
नोचता जब मैं खुद को
तब लगता तू है
मेरे हर दर्द का बस इकलौता मरहम ....
By
Kapil Kumar
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